21 मई 2008

एक गैर क्रांतिकारी क्रांति पर बहस:-

पिछले दिनों प्रतिष्ठित पत्र प्रभात खबर में मीडिया को लेकर बह्स चली. सूचनाक्रांति की मौजूदा दिशा दशा क्या है.इस पर कई मीडिया विषेशग्यों ने अपनी राय दी. ऎसी स्थिति में जब की सूचना क्रांति को एक बडी क्रान्ति के रूप में देखा जा रहा है.सूचना क्रांति के उपरांत विश्व में ऎतिहासिक परिवर्तन की बात की जा रही है. भारतीय मीडिया कहाँ खडा है? सूचना के प्रवाह ने लोगों की मनोंदशा को ऎसा कर दिया है कि झूठ और सच का फर्क ही मिट गया है. अर्थात मानव जाति के वैग्यानिक ग्यान में विकास करने के बजाय इसमें एक अंतरविस्फ़ोट किया है जिससे बहुराष्टीय सत्ता तन्त्र को ताकत मिली है. मीडिया की इस बहस को लगातार हम जारी रखेंगे..

पहली कडी में:-
मीडियाकर्मियों को ही तय करना होगा मीडिया का भविष्य:-
भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जीएन रे पिछले दिनों एक समारोह में भाग लेने फैजाबाद पहुंचे थे. कृष्ण प्रताप सिंह ने विभिन्न मुद्दे पर उनके विचार जानने की कोशिश की. यहां प्रस्तुत है संपादित अंशः

पत्रकारिता व्यवसाय नहीं
पत्रकारिता व्यवसाय नहीं, एक मिशन है. संकट के दौर में है और ऐसे मोड पर खडी है, जहां से नई ऊंचाइयों की ओर भी जा सकती है और उस आत्मघाती रास्ते की ओर भी, जो उसके उद्देश्य को भी नष्ट कर दे.

बदलाव का औजार
मीडिया समाज को बदलने का शक्तिशाली औजार है. मगर कुछ ताकतें चाहती हैं कि वह समाज के बजाय उनके हित साधने में लगे. वे ताकतें मीडिया की भूमिका ही बदल देना चाहती हैं. हमारे देश में कई विकसित पश्चिमी देशों के मुकाबले प्रेस का बहुत तेजी से विस्तार हो रहा है. ऐसे में पत्रकारों पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी है कि विकास के सोपान तय करते हुए वे विरासत में मिले उन मूल्यों का संरक्षण करें, जिन्होंने हमारे देश को दुनिया में अनुपम स्थान दिलाया हुआ है. वे अपने दायित्व से हट जायेंगे, तो संकट और भी गहरा हो जायेगा. विकासशील विश्र्व में ' मीडिया साम्राज्यवाद' और सोच-विचारों, विचारधाराओं व संस्कृतियों के उपनिवेश और फैलेंगे.

आत्मनिरीक्षण की जरूरत
पत्रकारों में जनता के विचारों को नये सांचे में ढाल देने की शक्ति होती है. उन्हें मीडिया पर कब्जा कर उसका फोकस बाजार की ओर मोड देने की साम्राज्यवादी कोशिशों के विरुद्ध अपनी इस शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए.

समाचार व विचार अलग-अलग
अफसोस की बात है कि आज मीडिया की सोच में आजादी के पहले जितनी स्वच्छता नहीं है और उसकी एकाउंटेबिलिटी लगातार कम हो रही है. समाचार और विचार दो अलग-अलग चीजें हैं और उनके घालमेल से खबरों को प्रदूषित नहीं किया जाना चाहिए. दूसरी ओर टेलीविजन चैनल मनोरंजन के नाम पर भारत की संस्कृति को बिगाडने पर तुले हुए हैं. आज कई बार टीवी पर ऐसे कार्यक्रम आते हैं, जिसे घर के सारे सदस्य एक साथ बैठ कर देख नहीं सकते. म्यूजिक, डांस और टैलेंट हंट के नाम पर बच्चों को समय से पहले ही व्यस्क बनाने का खेल चलता है.

पत्रकारिता का भविष्य
पत्रकारिता का भविष्य बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगा कि वह जिस मोड पर है, वहां से किस रास्ते जाने को तैयार है. भविष्य कोई ऐसी चीज नहीं, जो प्रतिक्षा करने से हाथ आ जाये. इसका निर्माण करना पडता है. पत्रकार पत्रकारिता का सुनहरा भविष्य चाहते हैं, तो उन्हें इनके लिए वर्तमान में स्वस्थ बीज बोने होंगे. सामाजिक दायित्वों के साथ विश्र्वसनीयता में वृद्धि के प्रयास, आंतरिक ओम्बुड्समैन की स्थापना, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खबरों व सूचनाओं के बेहतर प्रवाह के लिए काम, देश के बहुभाषी-बहुक्षेत्रीय स्वरूप को देखते हुए छोटे व मंझोले समाचार पत्रों को प्रोत्साहन देना होगा.

संपादक की आजादी
गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में एक संपूर्ण अखबार की संकल्पना और उसका संचालन कोई आसान काम नहीं. इसलिए समाचार पत्र मालिकों के योगदान को भी स्वीकार किया जाना चाहिए. यह भी देखा जाना चाहिए कि उनके उपक्रम को अनावश्यक नुकसान न उठाना पडे, फिर भी वाणिज्यिक हितों को संपादकीय विचारों पर तरजीह नहीं दी जा सकती. संपादक की आजादी को सबसे ऊपर मानना ही होगा. जैसा कि दूसरे प्रेस आयोग ने भी कहा था कि एक पत्रकार की स्वतंत्रता किसी प्रेस की स्वतंत्रता का मूल है और यह बहुत हद तक संपादक पर निर्भर करता है.

मीडिया परिषद बने
चार दशक पहले भारतीय प्रेस परिषद का विधिवत गठन हुआ, तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अस्तित्व नहीं था और रेडियो सरकारी नियंत्रण में था. इसलिए टेलीविजन चैनल इस कार्यक्षेत्र में नहीं पडते. उन पर उसका अंकुश नहीं चलता. मेरे विचार से अब दोनों माध्यमों को एक साथ लाया जाना चाहिए और भारतीय मीडिया परिषद गठित की जानी चाहिए. मगर सरकार इससे सहमत नहीं है और न ही इसके लिए कानून में संशोधन के पक्ष में है. मैं किसी भी माध्यम पर सीधे नियंत्रण के पक्ष में नहीं हूं. प्री-सेंसरशिप भी नहीं होना चाहिए. परिषद को समाचार पत्रों को दंडित करनेवाला निकाय भी नहीं बनना चाहिए.

स्टिंग ऑपरेशन
मैं जनहित में स्टिंग ऑपरेशन जारी रखने के पक्ष में हूं. अलबत्ता इनका उद्देश्य जनहित के सिवाय कुछ और नहीं होना चाहिए. आम लोगों को भी मीडिया के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए.

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