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अम्बेड्कर के बाद जब कांशीराम दलित राजनीति के नायक के रूप में सामने आये तो उन्होंने पेरियार,बुद्ध, शाहू महराज, अम्बेड्कर, साबित्रीबाई फुले, बिजली पासी, झलकारी बाई जैसे की विभूतियों को दलित नायकों के रूप में प्रस्तुत किया।और वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा का नारा दिया।यह कह कर उन्होंने सवर्ण पार्टी कांग्रेव्स जो सत्ता में थी उसको ललकारा और ८५% पर १५% के शासन को खत्म करने की बात उठाई।दलित चेतना के इस उभार ने कांग्रेस को गिराने और एक नये विकल्प की तलास की ओर अग्र्सित किया पर बसपा या कंशीराम यह विकल्प नहीं दे सके जिसका फायदा उठाया साम्प्रदायिक पार्टीयों ने भाजपा जैसी पार्टी का उभार तभी संभव हो सका और यही दौर था जब महाराष्ट्र में कई ऎसे साम्प्रदायिक दलों का उभार भी हुआ।जो जनता बहुजन के पछ में जानी थी वह हिन्दूवादी ताकतों के हाँथ में चली गयी।और अन्ततः वे सत्तासीन भी हुए। पर जब बहुजन पार्टी एक स्थिति में आयी तो उसने किसी भी तरह सत्ता पाने का रास्ता खोजा और बहुजन हिताय को भूलकर वह इन्ही के साथ मिल गयी। उत्तर प्रदेश में बसपा जितनी बार भी सत्ता में आयी उसे इन्ही साम्प्रदायिक पार्टीयों का दामन थामना पडा।और इस बार की भी स्थिति कुछ भिन्न नही है एक बडे सवर्ण वर्ग के साथ मिलकर ही आज भी पार्टी सत्ता में आयी है और कुर्मी सभा ब्रहमण सभा जैसी सभायें करके जातिगत उभारों को बढावा दे रही है अभी हाल में मायावती ने ब्रहमणों के आरछ्ण की बात भी कह दी है इसके पीछे क्या कारण है ?क्या मायावती को आरछ्ण के आधार नही पता है या वे किसी तरह से सत्ता में रहना चाहती हैं।इससे स्पष्ट है कि बसपा जैसी पार्टीयों से सामाजिक असमानता तो दूर की बात है जातिगत उभार ही लाया जा सकता है।और यह भी स्पष्ट है कि वर्ग विहीन और जातिविहीन समाज के लियेदलितों को एक नया रास्ता तलासना होगा।जो वर्तमान में चल रहे अलोकतांत्रिक लोकतंत्र का रास्ता नहीं होगा। इस अंक में प्रमुखतः दलित विचारकॊं की टिप्पणियाँ है और नेपाल के बदलते परिद्रिष्य पर रिपोर्ट और आलेख हम प्रकाशित कर रहे है।पत्रिका में भेजे गये कुछ आलेखों को हम सम्मलित नहीं कर सके हैं हम इन्हें अन्य किसी अंक में सम्मलित करेंगे। इस अंक के संपादन के लिये हमने विभिन्न वेब साइटों से भी समाग्री का सहयोग लिया है जिसके लिये हम इनके आभारी हैं।
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