04 फ़रवरी 2011

मुख्यमंत्री मायावती कों खुला ख़त

दिनांक: 1 फरवरी 2011

सेवा में,
बहन कु0 मायावती जी,
मुख्य मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार,
लखनऊ


विषय: डा0 बिनायक सेन व रामशकल गोंड़ पर लगाये फर्जी मुकदमें खारिज किये जाये व बाइज्जत रिहा किया जाये। सोनभद्र में आदिवासीयों व दलित युवकों महिलाओं पर वनविभाग कानून को बिना शर्त खारिज किया जाये।

आदरणीय बहन कु0 मायावती जी,

आज सोनभद्र के राबर्टसगंज कस्बे में हजारों की संख्या में आदिवासीयों दलितों ने विरोध प्रदर्शन कर डा0 बिनायक सेन व रामशकल गोंड़ को रिहा करने की मांग की व उनपर चलाये जा रहे सभी झूठे मुकदमें खारिज करने की मांग की। रामशकल गोंड़ को सांमतों के चलते फर्जी केस चला कर माओवादी घोषित कर सन् 2002 में पोटा कानून में उनके साथ 42 लोगों को जेल भेज दिया गया था। लेकिन सन् 2003 में आपके शासन काल में यह तमाम केस फर्जी पाये गये थे व इन सभी आदिवासीयों पर लगे सभी मुकदमें खारिज कर उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया था। लेकिन फिर भी रामशकल को ढाई वर्ष जेल में रहना पड़ा था। उसके बाद एक अन्य मामले खोरडीह पीएसी लूट में रामशकल व अन्य दस आदिवासीयों के नाम एफआईआर होने के दो वर्ष बाद डाल कर इन्हें फिर से आरोपित किया गया।2009 में बिना किसी सबूत के मिर्जापुर न्यायालय में इन्हे सात वर्ष की सज़ा सुनाई गयी। यह केस बिल्कुल फर्जी है जिसके ऊपर सही प्रकार से जांच होनी चाहिये। रामशकल व अन्य तीन लोग पिछले दो वर्ष से जेल में निरूद्ध है जिनकी जमानत हाई कोर्ट द्वारा भी खारिज की जा रही है।

इसी तरह से इस कैमूर क्षेत्र में हजारों की संख्या में वनाश्रित समुदाय के ऊपर हजारों मुकदमें वनविभाग व पुलिस विभाग ने किये हुये हैं जिनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है व न्यायालय भी एक तरफा फैसला सुना यहां के गरीब आदिवासीयों दलितों को अपराधी बना यहां की समस्या को और भी जटिल बना रहे हैं। आपकी सरकार द्वारा अभी पिछले साल 7000 आदिवासीयों पर मुकदमा खारिज करने का ऐलान किया गया था लेकिन वनविभाग द्वारा इन आदिवासीयों को लोकअदालत में बुलवा कर इनसे इनका जुर्म कबूल करवा कर अपराधिक इतिहास बनाया जा रहा है। व इन्हीं से सम्बिन्धित तमाम आईपीसी की धाराओं को भी खारिज नहीं किया जा रहा है। जिससे वनाधिकार कानून का लाभ वनाश्रित समुदायों को नहीं मिल पर रहा है।
अभी भी वनविभाग यहां के आदिवासीयों पर लगातार झूठे मुकदमें दायर शासन की मंशा के खिलाफ काम कर रहा है। यह तमाम फर्जी मुकदमें खारिज कर आदिवासीयों का सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिये आजाद किया जाये नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब यहां पर अत्याचार की पराकाष्ठा हो लोग हथियार उठाने पर मजबूर हो सकते हैं।

भवदीय
रोमा, शांता भटटाचार्य, राजकुमारी, जगदीश अगरिया, विनोद पाठक, रजनीश, अशोक चौधरी, सोकालू देवी, रमाशंकर, राजेन्द्र गोंड़, हुलसी देवी, धनमनिया देवी।

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