17 फ़रवरी 2011

एक बार मिस्र हो जाओ मेरे देश

यह कविता फोन पर एक मित्र ने सुनाई. वे उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले में कन्द्रियांवा गांव के रहने वाले हैं. उनका नाम शैलेन्द्र है. बी.ए. में पढ़ते हैं...... गांव से थोड़ी दूर पर मड़हा नदी है. यहाँ इन्हें रेंगते जानवरों के बीच मोटे उपन्यास जो किसी शर्मा द्वारा लिखा गया होता है...खूनी कातिल, जुदाइ की रातें जैसे जाने क्या-क्या शीर्षक वाले, पढ़ते हुए पाया जा सकता है. इनसे सम्पर्क का कोई अन्य स्रोत नहीं है. मोबाइल पड़ोसी की है. बी.बी.सी. की खबरें रोज सुनते हैं. गाँव के लोग इन्हें आवारा कहते हैं, चरवाहे नाम से इन्होंने अवधी और हिन्दी में कई कविताएं लिखी हैं, जो अप्रकाशित हैं.



चरवाहे

यह कश्मीर रह-रह कर
चुप क्यों हो रहा है
उनके फटे होंठो पर वाइस्लीन
लगाओ मेरे देश.

मणिपुर के भूख हड़तालों की अब
बरसी मनायी है जाने लगी
थोड़ी आग, थोड़ी बारूद उन्हें
दे आओ मेरे देश

मलकान गिरी की पहाड़ियों में
जो चल रहे हैं पैदल
पैरों को उनके चप्पल
पहनाओ मेरे देश

सिपाही और सेना
से घिर रहे हैं जंगल
इनकी बंदूकें और गोलियां
चुराओ मेरे देश

सब दे रहे हैं गालियां
अपने घरों और गाँवों में
उनके गुस्से को थोड़ा
खदबदाओ मेरे देश

सड़कें बहुत हैं
चौराहे हैं अनगिनत
किसी चौक को
तहरीर चौक बनाओ मेरे देश

ये जेलों के कैदी
ये वर्षों के बंदी
गुलामी-गुलामी ये कब तक रहेगी
एक बार मिस्र हो जाओ मेरे देश.

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक दुआ है यह और दुआ के बदले में सिर्फ कहा जाता है ...

    आमीन !

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  2. सच है..बस आमीन ही है कहने को .
    संवेदनशील अभिव्यक्ति.

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  3. yah sapna nahi hakikat banega bus jarurat hai hume apne vicharo ko ek karne kee.

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