09 फ़रवरी 2011

पुलिस के सिपाही से


पंजाब का कवि कहूंगा तो शायद पाश को समेट देने जैसा होगा। वे उन सबके कवि हैं जो अन्याय के विरुद्ध लड़ते हैं और शायद यह कहना एक समूचे जगत के साथ उन्हें खड़ा करता है। उनकी यह कविता देश के उन सभी सिपाहियों के लिये जो सरकार की तरफ से अपने ही लोगों पर गोलियां चला रहे हैं, महज नौकरी के चलते, उनके लिये और उनके साथी सिपाहियों के लिये जिन्हें बस्तर की जनताना सरकार की जन अदालतों ने माफीनामे और मजबूरी बयानी के साथ रिहा करने का एलान किया है।

मैं पीछे छोड़ आया हूं
समंदर रोती बहनें
किसी अनजान भय से
बाप की हिलती दाढ़ी
और सुखों का वर मांगती
बेहोश होती मासूम ममता को
मेरी खुरली पर बंधे
बेजुबान पशुओं को
कोई छाया में न बांधेगा
कोई पानी न देगा
और मेरे घर में कई दिन
शोक में चूल्हा न जलेगा

सिपाही बता, मैं तुम्हें भी
इतना खतरनाक लगता हूँ?
भाई सच बता, तुम्हें
मेरी छिली हुई चमड़ी
और मेरे मुंह से बहते लहू में
कुछ अपना नहीं लगता?

तुम लाख दुश्मन कतारों में
बढ़-चढ़कर शेखियां बघार लो
तुम्हारे निद्रा प्यासे नयन
और पथराया माथा
तुम्हारी फटी हुई निक्कर
और उसकी जेब में
तम्बाकू की रच गई जहरीली गंध
तुम्हारी चुंगली कर रहे हैं
गर नहीं सांझी तो बस अपनी
यह वर्दी ही नहीं सांझी
लेकिन तुम्हारे परिवार के दुख
आज भी मेरे साथ सांझे हैं

तुम्हारा बाप भी जब
सिर से चारे का गट्ठर फेंकता है
तो उसकी कसी हुई नसें भी
यही चाहती हैं
बुरे का सिर अब किसी भी क्षण
बस कुचल दिया जाए
तुम्हारे बच्चों को जब भाई
स्कूल का खर्च नहीं मिलता
तो तुम्हारी अर्धांगिनी का भी
सीना फट जाता है

तुम्हारी पी हुई रिश्वत
जब तुम्हारा अंतस जलाती है
तो तुम भी
हकूमत की सांस-नली बंद करना चाहते हो
जो कुछ ही वर्षों में खा गई है
तुम्हारी चंदन जैसी देह
तुम्हारी रिषियों जैसी मनोवृत्ति
और बरसाती हवा जैसा
परिवार का लुभावना सुख

तुम लाख वर्दी की ओट में
मुझसे दूर खड़े रहो
लेकिन तुम्हारे भीतर की दुनिया
मेरी बाजू में बांह डाल रही है
हम जो बिना सम्हाले
आवारा रोगी बचपन को
आटे की तरह गूंथते रहे
किसी के लिये खतरा न बने
और वे जो हमारे सुख के बदले
बिकते रहे, नष्ट होते रहे
किसी के लिये चिंता न बने
तुम चाहे आज दुश्मनों के हाथ में
लाठी बन गये हो
पेट पर हांथ रख कर बताओ तो
कि हमारी जात को अब
किसी से और क्या खतरा?
जिन्हें दुनिया में बस खतरा ही खतरा है

तुम अपने मुंह की गालियों को
अपने कीमती गुस्से के लिये
सम्हालकर रखो----
मैं कोई सफेदपोश
कुर्सी का बेटा नहीं हूं
इस अभागे देश का भाग्य बनाते
धूल में लथपथ हजारों चेहरों में से एक हूं
मेरे माथे से बहती पसीने की धारा से
मेरे देश की कोई भी नदी बहुत छोटी है
किसी भी धर्म का कोई ग्रंथ
मेरे जख्मी होंठों की चुप से अधिक पवित्र नहीं है
तुम जिस झंडे को एड़िया जोड़
सलामी देते हो
हम शोषितों के किसी भी दर्द का इतिहास
उसके तीन रंगों से बहुत गाढ़ा है
और हमारी रूह का हर एक ज़ख्म
उसके बीच के चक्र से बहुत बड़ा है
मेरे दोस्त, मैं तुम्हारे कीलों वाले बूटों तले
कुचला पड़ा भी
माउंट एवरेस्ट से बहुत ऊंचा हूं

मेरे बारे में तुम्हारे कायर अफसर ने
गलत बताया है
कि मैं इस हकूमत का
मारक महादुश्मन हूं
नहीं, मैंने तो दुश्मनी की
अभी पूनी भी नहीं छुई है
अभी तो मैं घर की मुश्किलों के सामने
हार जाता हूं
अभी तो मैं अमल के गढ़े
कलम से ही भर देता हूं
अभी मैं दिहाड़ियों और जाटों के बीच की
लरजती कड़ी हूं
मेरी दाई बाजू होकर भी अभी तुम
मुझसे बेगाने लगते हो
अभी तो मुझे
हज्जामों के उस्तरे
खंजर में बदलने हैं
अभी राज-मिस्त्रियों की करंडी पर
मुझे चंडी की वार लिखनी है
अभी तो मोची की सुम्मी
ज़हर में भिगोकर
चमकते नारों को जन्म देने वाली कोख में घुमानी है

अभी घुम्मे बढ़ई का
भभकता धधकता हुआ तेसा
इस शैतान के झंडे से
ऊंचा लहराना है
अभी तो आने-जानेवालों के
जूठे बर्तन मांजते रहे लागी
जुबलियों में- लाग लेंगे
अभी तो किसी कुर्सी पर बैठे
गीध की नरम हड्डी को जलाकर
"खुशिया’ चुहड़ा हुक्के में रखेगा

मैं जिस दिन सातो रंग जोड़कर
इंद्रधनुष बन गया
दुश्मन पर मेरा कोई वार
कभी खाली न जायेगा
तब झंडी वाली कार के
बदबूदार थूक के छीटे
मेरी जिंदगी के चाव भरे
मुंह पर न चमकेंगे
मैं उस रोशनी के बुर्ज तक
अकेला नहीं पहुंच सकता
तुम्हारी भी जरूरत है
तुम्हें भी वहाँ पहुंचना होगा
हम एक काफ़िला हैं
जिंदगी की तेज खुशबूओं का
तुम्हारी पीढ़ियों की खाद
इस चमन में लगी है
हम गीतों जैसी गज़र के
बेताब आशिक हैं
और हमारी तड़प में
तुम्हारी उदासी का नग्मा भी है

सिपाही बता, मैं तुम्हें भी
इतना खतरनाक लगता हूं?
मैं पीछे छोड़ आया हूं.........पंजाब के कवि पाश की पंक्तियां.

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