15 फ़रवरी 2011

हिंदुस्तान का यातना गृह

आवेश तिवारी
call1-मैं गुमियापल गाँव से बोल रहा हूँ . १७ जनवरी को पुलिस ने हमारे गाँव के एक लड़के छन्नू मिरियामी जो सत्रह साल का था उसे मार दिया. और एक लडकी जिसका नाम हुर्रे मिदियामी है और एक लड़का जिसका नाम हूँगा मुदामी है को पकड़ कर ले गए . ये तीनों पास के गाँव में मुर्गा बाज़ार में नमक मिर्च खरीदने गए थे. इनमे से कोई भी नक्सली नहीं है. दरअसल गाँव वाले पुलिस ज्यादतियों के विरोध में नज़दीकी थाने तक रैली करने वाले थे . पुलिस को लगा की इससे उसकी शर्मिन्दगी होगी. इसलिए गाँव वालों को डराने के लिए ये कांड किया है. पुलिस किसी असली नक्सली को नहीं पकड़ पायी है. हम गाँव वालों को ही ऐसे मार रही है. हम आदिवासी बाज़ार भी नहीं जा सकते. खेतों की रखवाली करने खेतों में नहीं जा सकते. हम जानते हैं सरकार हमारी ज़मीन छीनने के लिए ये सब कर रही है.

call2-मेरा नाम सुखराम है में गुमियापाल गाँव से बोल रहा हूँ . मेरी छोटी बहन बाज़ार से लौट रही थी, उसे पुलिस पकड़ कर ले गयी है , वो मजदूरी और खेती करती थी . उसके साथ एक और लड़के को पकड़ कर ले गए और एक लड़के को गोली से उड़ा दिया.सरकार हमें बिलकुल नहीं चाहती, पुलिस गाँव में आती है और हमारे घरों में घुस कर लूट पाट करती है. अभी कुछ दिन पहले हम लोग अपनी परेशानियों के बारे में रैली करने वाले थे . लेकिन पुलिस ने गाँव में आकर गाँव वालों को बोला की जो भी रैली में जाएगा उसे गोली से उड़ा दिया जाएगा. आप लोग जो फोन सुन रहे हैं मेरी बहन को पुलिस से छुडा दो.
call3- हाँ ,मैं एसएसपी दंतेवाडा बोल रहा हूँ ,मुझे इस घटना की कोई जानकारी नहीं है ,आप एस एच ओ किरणदुल से बात करें
call 4 -हाँ ,मैं एसएचओ किरणदल बोल रहा हूँ जी जी हमने इनकाउन्टर में मारा है ,नक्सली था ये सब २६ जनवरी को काला झन्डा दिखाने वाले ठे ,और जगह जगह गड्ढा कर रहे थे ,पुलिस पहुंची तो भागने लगे हम लोगों ने ठोंक दिए ,नहीं तो हम लोगों को ही मार डालते ,क्या कहते हैं हुर्रे मिदीयामी को क्यूँ पकड़ा ,इसलिए पकड़ा क्यूंकि वो वही थी ,उन लोगों के साथ



ये सेलफोन से की गयी बातचीत के ये चार हिस्से ही नहीं हैं ,ये भ्रष्टाचार ,राजनैतिक आतंकवाद और लोकतंत्र का चोला ओढ़े साम्राज्यवादी दांवपेंचों का इस्तेमाल करने में लगी उस व्यवस्था का असली चेहरा है ,जिस पर हम भूल से या जानबूझ कर फक्र करते हैं स्वाधीनता दिवस ,स्वतंत्रता दिवस और .वेलेंटाइन दिवस और दिन देश की सिर्फ एक तिहाई आबादी के लिए हैं बाकी के हिस्से में जो है वो क्रूर ,अमानवीय और अदेखा है गरीबी ,बेचारगी और भूखमरी से जूझ रहा छतीसगढ़ ,इस वक्त हिंदुस्तान के यातना गृह में तब्दील हो गया है
लौटते हैं लगभग एक माह पूर्व ,दंतेवाडा का गुमियापल वो इलाका है जहाँ आदमी का सामना या तो भूख से होता है या पुलिस से ,अपनी छोटी ,छोटी जोत में खेती किसानी करके जीने के कठिन कोशिश कर रहे आदिवसियों के लिए .दिन रोज बरोज जब नहीं तब बमुश्किल हो रहे थे ,जब नहीं तब पुलिस जिसको चाहे उसको नक्सली पकड़ कर जेल में ठूंस दे रही थी,कभी उन्हें खाना खिलाने के जुर्म में तो कभी उन्हें पानी पिलाने के जुर्म में गाँव वाले बताते हैं इस इलाके में आदिवासियों के घरों में बार बार घुसकर न सिर्फ तोड़ फोड़ करने बल्कि महिलाओं के साथ बदसलूकी करने और उनकी खड़ी फसलों को जला देने की वारदात बार बार हुई है बेहद डरे हुए यहाँ के आदिवासी कहते हैं एक तरफ पुलिस दूसरी तरफ नक्सली ,आखिर हम कहाँ जाएँ ,वो बार बार हमसे पूछते हैं कहाँ है नक्सली हम कहा बताएं कहाँ है ?रोज रोज के जुल्मो -सितम से तंग आकर ग्रामीणों ने योजना बनायीं कि वो थाने पर प्रदर्शन करेंगे
फिर १७ जनवरी को जो हुआ वो रूह को थर्रा देने वाला था,दिन -दहाड़े सैकड़ों पुलिसकर्मियों ने गुमियापल में धावा बोल दिया ,पुलिस ने पहले रास्ते में जो भी आदिवासी मिला उसकी जमकर पिटाई की ,और फिर उन्हें उसी बीच बाजार जा रहे कम उम्र के लड़के लड़कियों के एक समूह में से आधा दर्जन लोगों को अपनी गाडी पर बैठा लिया ,गुमियापल के थानाध्यक्ष ने जो गाडी पर आगे बैठे थे ने उनमे से तीन को नीचे उतार दिया ,और बाकी तीन को साथ ले गए जिनमे छन्नू मिरियामी,हूँगा मुदामी और एक १५ साल की लड़की हुर्रे मिदियामी भी थी,जिनमे से छन्नू जो कि बार बार पुलिस से गिरफ्तारी का प्रतिरोध कर रहा था ,जंगल में ले जाकर गोली मार दी



जैसी ही इन निर्दोषों की गिरफ्तारी की सूचना गुमियापल पहुंची ,गाँव में दुःख के साथ - दहशत भी फ़ैल गयी अपने घर वालों की लाडली हुर्रे मिदियामी,की गिरफ्तारी ने उसके पूरे परिवार को हिला कर रख दिया है ,घर वाले बताते हैं उसका तो पूरा दिन खाना बनाने और जंगल में लकड़ियाँ बनाने में लग जाता था ,उसे क्यूँ पकड़ लिया ?छन्नू मिरियामी, और हूँगा मुदामी के परिजन किसी से बात करने में भी डरते हैं आप लाख चाह कर भी किसी से बात नहीं कर सकते ,मीडिया हमेशा की तरह सच का आइना बनने के ढोंग करते हुए जेसिका और आरुशी की haty,गुमियापल के दिन और रात दोनों डरावने हो चुके हैं ,डर इंसानों का नहीं सत्ता के दमनचक्र का है जो फिलहाल ख़त्म होता नहीं दिख रहा. सम्पर्क- -आवेश तिवारी, मुख्य सम्पादक, नेटवर्क 6 मोबाइल -9838346828

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