(साभार बीबीसी हिंदी)
गुजरात पुलिस ने इशरत जहाँ और तीन अन्य को चरमपंथी संगठन लश्कर का सदस्य बताकर उन्हें कथित मुठभेड़ में मार दिया था
गुजरात पुलिस मुठभेड़ की नए सिरे से छानबीन कर रहे विशेष जांच दल के एक सदस्य ने कहा है कि 2004 इशरत जहाँ और तीन दूसरे लोगों का मुठभेड़ फ़र्ज़ी था.
शुक्रवार को गुजरात हाई कोर्ट में इस मामले पर एक लम्बी दलील पेश करते हुए सीनियर पुलिस अधिकारी सतीश वर्मा ने कहा कि इस मामले में एक नई प्राथिमिकी यानी एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए.
पहले हुए एक न्यायिक जांच में भी ये बात सामने आई थी कि 2004 में आतंकवादी बताकर इन लोगों को जिस तरह से मारा गया था वह मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी. लेकिन अदालत ने उस रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी.
सतीश वर्मा उस तीन सदस्यीय विशेष जांच दल के सदस्य हैं जो गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर पिछले साल बनाई गई थी.
दो जजों की खंडपीठ के सामने एक हलफ़नामे में सतीश वर्मा ने कहा,"अभी तक सामने आए साक्ष्य उन बातों को नकारते हैं जो एफआईआर में कही गई हैं."
सबूत
उन्होनें इसके सबूत के तौर पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और दूसरे तथ्यों को अदालत के सामने रखा.
जाँच दल के सदस्य का कहना था कि इशरत जहाँ और तीन अन्य के शरीर से निकाली गई गोली उस पिस्तौल से मेल नहीं खाती जिसका इस्तेमाल पुलिस के अनुसार मुठभेड़ के दौरान किया गया था.
सतीश वर्मा का कहना था कि पुलिस ने इन चारों को ये कहकर मारा था कि ये लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से गुजरात आए थे लेकिन इस बात का कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका कि ये ख़बर पुलिस को किस आधार पर, कहाँ और कैसे मिली.
हालांकि अदालत की कार्रवाई के सामने जांच दल के भीतर की फूट भी सामने आई.
दोनों जजों ने इस मामले में हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील योगेश लखानी को अदालत का दोस्त मुक़र्रर कर दिया है जो जाँच दल के बीच के मतभेदों पर बीच-बचाव करेंगें.
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