05 जनवरी 2011

हम जीते न जीतें पर हम लड़ेंगे

जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है”, ये शब्द बिनायक सेन ने जेल जाने से पहले अपनी पत्नी इलीना को कहे थे. इलीना बिनायक के साथ, अराजकतावादी राज्य और साम्राज्यवादी अदालतों के निर्णयों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रही है. वो हारी नहीं है ना आगे हारने वाली है. इलिना जब ये कहती हैं कि हम लड़ेंगे, हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे, जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते. इन शब्दों में उनका अदम्य साहस नजर आता है, इस साहसी महिला के साथ आवेश तिवारी ने थोड़ी देर पहले बातचीत की.

इलिना आप अदालत के फैसले को किस तरह से देखती हैं ?
बिनायक ने पैसे और सारी चीजें छोड़कर गरीबोंआदिवासियों के लिए काम किया, उनके ऊपर ऐसा आरोप लगाना कि वो देशद्रोही है, गलत हैं. उन्होंने हमेशा देश के लिए काम किया, मेरे और मेरे पति के लिए देश का मतलब देश की जनता हैं. आश्चर्य ये है कि चोर, लूटेरे, गेंगेस्टर खुलेआम घूम रहे हैं ,और बिनायक सलाखों के पीछे हैं .
आपके पति को जिस कानून के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गयी वो देश का ही कानून है, आप हिंदुस्तान में लोकतंत्र को कितना सफल मानती हैं ?
विकास के दौर में गरीबी और अमीरी की खाई लगातार बढ़ी है, संविधान के नीति निदेशक तत्वों में साफ़ तौर पर कहा गया है कि इस खाई को ख़त्म करने की कोशिश की जायेगी, लेकिन आजादी के साठ सालों बाद भी ये खाई निरंतर गहरी होती जा रही है. आज देश में विशाल मध्यम वर्ग है जिसके हाथ में पूरा बाजार है, लेकिन जितना विशाल मध्यम वर्ग है उतना ही बड़ा वो वर्ग है जो बाजार तक नहीं पहुँच पाता. ये लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा हैं. बिनायक सेन के मामले ने एक और नए खतरे को दिखाया, वो खतरा देश में अदालतों और प्रशासन की मिलीभगत से पैदा हो रहा है, कई बार झूठे मामले बनाये जा रहे हैं और फिर अपनी नाक बचाने के लिए लगातार झूठ को सच बनाने का खेल खेलने में लग जाते हैं और फिर वो अपनी झूठी दलीलों से अदालतों को भी प्रभावित करने लगते हैं ,जैसा बिनायक सेन के मामले में हुआ.
छत्तीसगढ़ में बिनायक सेन की गिरफ्तारी हुई, उत्तर प्रदेश में सीमा आजाद की गिरफ्तारी होती है, वही दूसरी तरफ अरुंधती रॉय छतीसगढ़ के जंगलों में जाती हैं, नक्सली हिंसा का समर्थन करतीं हैं, उनका इंटरव्यू छपता है, क्या आपको लगता है राज्य माओवाद के सम्बंध में दोहरे मापदंड अपना रहा हैं?
सीमा आजाद को मै अख़बारों के माध्यम से ही जानती हूँ ,फिर भी कहूँगी चाहे बिनायक सेन हों या सीमा आजाद, साजिशन की जा रही कार्रवाईयां लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. जहाँ तक अरुंधती का सवाल है मैंने उन्हें पढ़ा हैं, कहीं-कहीं अरुंधती और बिनायक सेन के विचारों से समानता हो सकती है, लेकिन विचारों में अंतर भी है. हर व्यक्ति के विचारों में ये विभिन्नता है. हमें विचारों का सम्मान करना चाहिए. हम काला सफ़ेद देखने लगते हैं, कि क्या काला है क्या सफ़ेद है, ऐसा नहीं होना चाहिए.
मै देश के कई विश्वविद्यालयों में गया, युवा पीढ़ी विनायक को अपना आदर्श मानने लगी है उनकी गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं आन्दोलन हो रहे हैं, आप बिनायक को कितना साहसी मानती हैं?
मेरे हिसाब से बिनायक साहसी जरुर है. कई बार उन्होंने लोकप्रिय बातें कहकर वो बातें कहीं जो कड़वी मालूम पड़ती है, लेकिन आम आदमी के हित की बात कही. जो उन्हें सही लगा उन्होंने बोला. ये बात अलग है कि आप उनकी बात से सहमत और असहमत हों.
आपको क्या लगता है कि छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल की स्थिति हैं?
इसे हम घोषित आपातकाल कहेंगे.
आपको क्या लगता है कि बारबार सरकार आपके पति को ही निशाना क्यूँ बना रही है.
केंद्र सरकार की भी इस कार्यवाही में मूक सहमति है. दो दिन पहले हमारे डीजीपी ने कहा कि सारे एनजीओ शक के दायरे में है. उन्होंने कहा कि पीयूसीएल पर प्रतिबन्ध लगाएगी तो जनता लगाएगी, जनता के बारे में इस तरह के ब्यान देना बेहद खतरनाक है. कुछ दिनों पहले संदीप पांडे और मेधा पाटेकर शान्ति का पैगाम लेकर दंतेवाड़ा गए थे, वहां उन पर अंडे और टमाटर फेंके गए थे. जब वो गए थे तो राज्य के मंत्रियों ने कहा कि इनके लिए हम कुछ नहीं कहेंगे, इनका फैसला जनता करेगी. ये बातें मुझे विचलित करती हैं, कि वो कौन सी जनता है और उसे क्या इशारा किया जा रह. ये साफ़ है कि वो पीयूसीएल के खिलाफ जनता को सन्देश दे रहे हैं.
आपको क्या लगता है वो कौन सी जनता है?
वो उस जनता के बारे में बात कर रहे हैं जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो.
जेल जाने से पहले बिनायक सेन ने आखिरी बात क्या कही ?
मेरी मुलाक़ात उनसे २६ को हुई थी जब कोर्ट ने ये खेदपूर्ण निर्णय सुनाया. अब सजा हो चुकी है मुझे १५ दिन में सिर्फ एक बार मिलने दिया जायेगा. मैंने उन्हें कहा कि हम लड़ेंगे. हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे. जीतेंगे या नहीं जीतेंगे, हम नहीं जानते. इस पर बिनायक ने कहा कि जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं, सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है.
क्या आपको लगता है कि हिंदुस्तान में जनता और मीडिया आदालतों के फैसलों की आलोचना करने से डरती हैं, अदालतें साम्राज्यवाद का प्रतीक बन गयी है?
अदालती व्यस्था ने जो इस केस में भूमिका अदा की, वो बेहद चिंताजनक है. कानून की मौलिक समझ भी इस फ़ैसले में नहीं दिखती. बिनायक के खिलाफ फैसला सुनाने वाले जस्टिस वर्मा पहले वकील थे, जो एक परीक्षा पास करके जज बन गए. मुझे भी लगता ये कि लोकतंत्र है कोई राजशाही नहीं, कि हम फैसलों के खिलाफ आवाज उठा सके. मुझे लगता है कि अदालतों के निर्णयों के मामले में भी अगर जनता सवाल कर रही है तो गलत नहीं कर रही है.

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