-दिलीप ख़ान
किसान आत्महत्या को रोकने के जितने प्रयास किए गए हैं वे अब तक नाकाफ़ी साबित हुए हैं और आत्महत्याओं के आंकड़े साल-दर-साल बढ़े ही है. विदर्भ क्षेत्र में कई गांवों की पहचान किसान आत्महत्या वाले गांव के तौर पर होती है और समेकित रूप से देश के भीतर विदर्भ की पहचान “सुसाइड बेल्ट” के तौर पर. देश में ऐसी अलग-अलग पहचान के कई क्षेत्र हैं जिसको किसी एक ख़ास विशेषता के साथ जोड़ दिया गया है. नक्शे पर एक रेखा खींचकर कुछ पट्टियों को चिह्नित किया गया है जिसका नामकरण ’समस्या’ अथवा ’गौरवशाली प्रतीक’ के साथ किया गया है. जेहन में ऐसे क्षेत्रों को किसी ख़ास शब्द के साथ जोड़कर संरक्षित किए जाने से अन्य कई सवालों और पेंचोखम से निजात मिलती है. बीते दशक में कई साल विदर्भ के मुकाबले छत्तीसगढ़ में अधिक किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन किसान आत्महत्या जैसे विषय के साथ छत्तीसगढ़ स्वाभाविक तौर पर चर्चा में नहीं रहता. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नक्शे पर खींचे गए कई पट्टियों के दायरे में छत्तीसगढ़ आता है और इनमें से किस पट्टी के साथ छत्तीसगढ़ के नाम को नत्थी किया जाए इसे सत्ता अपनी सुविधानुसार अपने प्रचार तंत्र के जरिए स्थापित करती है. छत्तीसगढ़ को “रेड कोरिडोर” के सबसे प्रतिनिधि चेहरे के बतौर जाना जाता है।
गृह मंत्रालय द्वारा आधिकारिक-अनाधिकारिक तौर पर हर साल यह दावा किया जाता है कि देश के भीतर ’रेड कोरिडोर’ लगातार अपना विस्तार कर रहा है. इसको विस्तार देने से न सिर्फ़ देश के भीतर किसी विकास परियोजना के नाम पर हो रहे विस्थापन विरोधी आंदोलन को रोकने में सहूलियत होती है बल्कि एक ऐसे प्रदेश, जो आत्महत्या के मामले में शिखर पर पहुंच कर किसान आत्महत्या जैसे बेहद संवेदनशील विषय पर राज्य की असफ़लता को और अधिक प्रमाणित करने का जरिया बनती, उसे उस पहचान से विमुख किया जाता है. इससे फायदा यह होता है कि ’सुसाइड बेल्ट’ से इस क्षेत्र को ग़ायब मान लिया जाता है और इस एहसास को प्रमुखता दी जाती है कि आत्महत्या रोकने में राज्य सफ़ल हो रहा है। ’रेड कोरिडोर’ को लंबा करने और ’सुसाइड बेल्ट’ को छोटा करने के साथ ही राज्य और सरकार की सफ़लता-असफ़लता जुड़ी हुई है और इसकी लंबाई-चौड़ाई तात्कालिक राजनीतिक परिस्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है.
पहचान निर्मिति एक बड़े राजनीतिक योजना के साथ होती है और इसका न सिर्फ़ प्रतीकात्मक महत्त्व है बल्कि इसमें किसी एक पूरी राजनीतिक विरासत को बिल्कुल भिन्न लबादे में उतारने की भी कोशिश रहती है. मसलन 1 मई सारी दुनिया में मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है और इसकी शुरूआत अमेरिका से हुई, जहां के मज़दूरों ने प्रतिदिन आठ घंटे को कार्यदिवस के रूप में मानने-मनवाने के लिए लंबा संघर्ष किया. लेकिन, 1984 में रोनाल्ड रीगन ने यह कहते हुए इस दिन को क़ानून दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया कि दो सौ साल पहले इस दिन ’मुक्ति और क़ानून’ के बीच साझेदारी का आरंभ हुआ था. बकौल चोम्सकी, इस कदम के बाद मज़दूर दिवस की पूरी राजनीतिक संघर्ष रीगन की नई उद्घोषणा के साथ ही राष्ट्रवाद के प्रतीक के तौर पर परिवर्तित हो गई.
राष्ट्रवाद का प्रतीक गढना और इसे स्थापित करना जनांदोलनों के जरिए गढे गए प्रतीको के मुकाबले सरल है. यह अलग बात है कि इसे स्थापित करने में एक अरसा लग जाए, लेकिन आरामदायक स्थिति हासिल करने के लिए राज्य अक्सर ऐसा करता है. नर्मदा में पिछले 25 सालों से बड़े बांधों के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण स्थानीय जनता और मानवाधिकार कार्यकर्ता ’नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के बैनर तले संघर्ष कर रहे हैं. इस संघर्ष के दौरान कई ऐसे मौंके आए जब राज्य की कमज़ोरिया साफ़ नमूदार हुई। नर्मदा घाटी की एक ऐसी पहचान निर्मित हुई जिसमें लोग अथक आंदोलन करते हुए सरकारों और कॉरपोरेटों से जूझ रहे हैं. सरदार सरोवर बांध पूरी घाटी में बन रहे बांधों में सबसे विशालकाय और चर्चित है. अब नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की है कि वे सरदार पटेल की ऐसी प्रतिमा बनाएंगे जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी. इस प्रतिमा को बनाने के साथ ही इस घाटी की पहचान और राजनीतिक संघर्ष को झटके में बदलने की यह कोशिश है. सरदार पटेल की पहचान को सरदार सरोवर बांध के साथ मोदी देख रहे हैं और सबसे ऊंचा, सबसे लंबा, सबसे पहले जैसे सामान्य ज्ञान के प्रश्नों के साथ ही गुजरात और नर्मदा घाटी की पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
राज्य की सहभागिता के बगैर किसी ऐसी पहचान का स्थानांतरण मुश्किल होता है. देश में ’सुसाइड बेल्ट’ जैसी अवधारणा के तहत आने वाले कई नए क्षेत्र उभर रहे हैं जो भविष्य में विदर्भ को पछाड़ने वाले हैं. मसलन तमिलनाडु के तिरुपुर में पिछले दो सालों में एक हज़ार से अधिक कपड़ा मज़दूरों ने आत्महत्या की. तिरुपुर अभी तक डॉलर सिटी, कॉटन सिटी जैसे नामों से जाना जाता रहा है लेकिन अब इसे तमिलनाडु की आत्महत्या राजधानी कहा जा रहा है. मज़दूरों की आत्महत्या देश में इस अर्थ में नया है कि आत्महत्या को किसान के साथ जोड़ दिया गया है, इसलिए तिरुपुर को ’सुसाइड बेल्ट’ में आने में वक़्त लग सकता है.
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