04 जनवरी 2011

देश को विनायक सेन जैसे देशद्रोहियों की जरूरत है.


डॉ। बिनायक सेन की रिहाई को लेकर हिन्दी विश्वविद्यालय के छात्रों अध्यापकों व शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आज उनके ६१ वें जन्म दिन पर एक बड़ा जुलूस निकाला. यह जुलूस हिन्दी विश्वविद्यालय से प्रारम्भ हो मगनवाड़ी तक गया और यहाँ पर एक सभा का आयोजन भी किया गया. जिसमे प्रतिष्ठित किसान नेता विजय जावंधिया, मनोज कुमार, विभा गुप्ता, संतोष भदौरिया, आमिर अली अजानी के साथ नागपुर से आये कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपना प्रतिवाद व्यक्त किया.
डॉ. बिनायक सेन को माओवादियों की मदद करने के आरोप में छत्तीसगढ़ की रायपुर निचली अदालत ने २४ दिसम्बर को अन्य दो अभियुक्तों पियुष गुहा और नारायण सान्याल के साथ आजीवन कैद की सजा सुनायी थी. जिसके बाद पूरे देश व दुनिया भर में इस सजा के खिलाफ प्रदर्शन हुए और लोगों ने उनके तत्काल रिहाई के मांग की है. जुलूस में सरकार के जन विरोधी नीतियों तथा माओवाद के नाम पर सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ नारे लगाये गये. इलाहाबाद की पत्रकार सीमा आज़ाद व छात्र नेता विश्वविजय व उत्तराखण्ड के प्रतिष्ठित पत्रकार प्रशांत राही की भी रिहाई की मांग ऊठाई गयी. देश में भ्रष्ट प्रशासकों के द्वारा बनाये गये अलोकतांत्रिक कानूनों के तहत राज्य व केन्द्र सरकारें आम जनता के नेताओं को जेलों में बंद कर रही हैं जबकि राडिया, राजा, अशोक चव्हान जैसे कलंकित नेता बेफिक्र घोम रहे हैं. लोगों ने कहा कि अगर देश की जनता के साथ लड़ना देशद्रोह है तो हम सब देश द्रोही हैं और हम देशद्रोही बनेगे. जुलूस में शामिल लोगों ने एक कागज अपने ऊपर चस्पा कर सरकार को यह संदेश दिया कि आम जनता के नेताओं को देशद्रोही कहना बंद करे और माओवाद के नाम पर चल रहे दमन चक्र को खत्म करे. जुलूस ने सलवा-जुडुम के खिलाफ नारे लगाये और इसे सरकार प्रायोजित बताते हुए कहा कि यह आदिवासियों का आदिवासियों से लड़ाया जाना है जिसमे अन्ततः आदिवासी मारे जायें और सरकार जंगलों पर कब्जा कर देश की सम्पत्ति पूजीपतियों के हवाले कर सके. लोगों ने आवाह्न किया कि प्रतिरोधी ताकतों को एक मंच पर आना चाहिये और युवाओं को अपने अन्धकारमय भविष्य के खिलाफ लड़ना चाहिये. प्रोफेसर मनोज कुमार ने कहा कि गांधी के ऊपर देश द्रोह लगाया गया था यह साठ साल पहले की बात है आज बिनायक सेन हमारे बीच गाँधी के प्रतीक के रूप में हैं और इस देश को बिनायक सेन जैसे देशद्रोहियों की ही जरूरत है. किसान नेता विजय जावंधिया ने कहा कि देश के किसान मर रहे हैं और इसका मूलभूत कारण देश की वितरण प्रणाली है और बिनायक सेन इसीलिये लड़ रहे थे कि आदिवासियों और वंचितों को भी संसाधन मुहैया हो, उन तक भी स्वास्थ्य सुनिधायें पहुंचे. नागपुर से आये कॉ. सरोज ने कहा कि वर्धा में माओवादी के नाम पर गिरफ्तार किये गये सुधीर ढेवले जो कि बिद्रोही पत्रिका के सम्पादक हैं की भी रिहाई होनी चाहिये. क्योंकि सरकार दलित चिंतकों और ऐसे लोगों को माओवादी के नाम पर गिरफ्तार कर रही है जो सही मायने में देश के सामाजिक कार्यकर्ता हैं उन्होंने युवाओं से आवाह्न किया कि वे आगे आयें और ऐसी दमनकारी नीतियों का खुलकर विरोध करें. बिनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार ने बिनायक सेन के खिलाफ साजिस करना उसी समय शुरू कर दिया था जब बिनायक सेन ने देश के तमाम मानवाधिकार संगठनों के साथ मिलकर सलवा-जुडुम की स्थिति को सामने लाया था. इसके बाद पुलिस उनके खिलाफ झूठे सबूत पेश करती रही पर न्यायपालिका से उम्मीद थी कि वह इसकी जाँच करेगी जाँच करने के बजाय न्यायपालिका ने छत्तीसगढ़ की पुलिस के चार्जशीट को ही समर्थन दे दिया. प्रोफेसर सूरज पालीवाल ने कहा कि बिनायक सेब्न का देशद्रोह यही है कि वे आमजन के पक्ष में बोल रहे थे और यह सरकार आमजन की नहीं है बल्कि यह पूजीपतियों की है समय आ गया है कि हम इसके खिलाफ लड़े इसकी परवाह किये बगैर कि कल हम भी गिरफ्तार किये जा सकते है. अनुज शुक्ला ने अपने वक्तव्य में कहा कि हम इस देश की संरचना में आखिर कहा जायें? जबकि सब भ्रष्ट हो चुकी हैं. और सरकार सभी तरह के प्रतिरोध को माओवादी करार दे रही है. अब देश की जनता देशद्रोही है और जिंदल, टाटा, मित्तल देश प्रेमी. अन्य वक्तव्यों के तहत यह सवाल उठा कि देश का बड़ा वर्ग माओवादी क्यों होता जा रहा है इस पर भी विचार किये जाने की जरूरत है क्या यह संरचना ही अलोकतांत्रिक हो चुकी है. सभा में विश्वविद्यालय के छात्रों की तरफ से जन गीत की भी सुंदर प्रस्तुति की गयी जिसमें देश की स्थितियों को दर्शाते हुए समाज के बदलाव की जरूरतों को इंगित किया गया.

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