लिंगराज आजाद |
साक्षात्कार
नियमगिरि की पहाड़ियों में बसे डोंगरिया कोंध आदिवासियों ने पिछले 19 अगस्त को रायगढ़ा जिले की जरपा गांव में संपन्न हुई अंतिम पल्ली सभा में भी ब्रितानी कंपनी वेदांता की बॉक्साइट खनन परियोजना को नामंजूर कर दिया। ओडिसा सरकार उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर कालाहांडी और रायगड़ा जिले में कुल बारह पल्ली सभा ( ग्राम सभा) आयोजित की थी, ताकि आदिवासी इस परियोजना के पक्ष या विपक्ष में प्रस्ताव पारित करें। पल्ली सभाओं का यह एकमुश्त फैसला वेदांता कंपनी और राज्य सरकार के लिए एक शिकस्त की तरह है। इस फैसले का असर कितना व्यापक होगा और क्या नियमगिरि की पहाड़ियां इससे महफूज रहेंगी, इसी मसले पर नियमगिरि सुरक्षा समिति के महामंत्री और समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय सचिव लिंगराज आजाद से अभिषेक रंजन सिंह ने बातचीत की, प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश...
नियमगिरि की पहाड़ियों में बसे डोंगरिया कोंध आदिवासियों ने पिछले 19 अगस्त को रायगढ़ा जिले की जरपा गांव में संपन्न हुई अंतिम पल्ली सभा में भी ब्रितानी कंपनी वेदांता की बॉक्साइट खनन परियोजना को नामंजूर कर दिया। ओडिसा सरकार उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर कालाहांडी और रायगड़ा जिले में कुल बारह पल्ली सभा ( ग्राम सभा) आयोजित की थी, ताकि आदिवासी इस परियोजना के पक्ष या विपक्ष में प्रस्ताव पारित करें। पल्ली सभाओं का यह एकमुश्त फैसला वेदांता कंपनी और राज्य सरकार के लिए एक शिकस्त की तरह है। इस फैसले का असर कितना व्यापक होगा और क्या नियमगिरि की पहाड़ियां इससे महफूज रहेंगी, इसी मसले पर नियमगिरि सुरक्षा समिति के महामंत्री और समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय सचिव लिंगराज आजाद से अभिषेक रंजन सिंह ने बातचीत की, प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश...
प्रश्न- आजाद जी, सभी बारह पल्ली सभाओं (
ग्राम सभाओं) ने एक स्वर में नियमगिरि की पहाड़ियों पर वेदांता कंपनी की बॉक्साइट खनन
परियोजना को खारिज कर दिया है। इस फैसले को किस तरह देखते हैं आप ?
उत्तर- सबसे पहले तो मैं उच्चतम
न्यायालय को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने इस मामले की गंभीरता समझते हुए 18
अप्रैल 2013 को ओडिसा सरकार को पल्ली सभा आयोजित कराने का आदेश दिया था। जैसा कि
आपको पता है कि डोंगरिया कोंध आदिवासियों ने सभी पल्ली सभाओं में वेदांता की
बॉक्साइट खनन परियोजना को सिरे से खारिज कर दिया। मेरे ख्याल से आदिवासियों का यह फैसला
देश में जल, जंगल, जमीन और पहाड़ों को बचाने के लिए जारी जनांदोलनों के लिए एक
नजीर पेश करेगा। नियमगिरि की पहाड़ियों की सुरक्षा के लिए डोंगरिया कोंध आदिवासियों
ने जो एकजुटता दिखाई है, हम उसे सलाम करते हैं।
प्रश्न- कालाहांडी और रायगढ़ा जिले में
नियमगिरि की पहाड़ियों पर कुल 112 गांव बसे हैं, फिर ओडिसा सरकार ने सिर्फ बारह
गांवों में ही पल्ली सभाओं का आयोजन क्यों किया ?
उत्तर- यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है।
नियमगिरि सुरक्षा समिति भी यह मांग कर रही थी कि उन सभी गांवों में पल्ली सभाएं
आयोजित हों, जहां डोंगरिया कोंध और कुटिया कोंध आदिवासी निवास करते हैं। नियमगिरि
की पहाड़ियों पर 112 गांवों में डोंगरिया कोंध और पहाड़ के नीचे तराई में 50
गांवों कुटिया कोंध आदिवासी रहते हैं, लेकिन राज्य सरकार ने सिर्फ बारह गांवों में
पल्ली सभाओं का आयोजन किया। दरअसल, ओडिसा सरकार ने कालाहांडी और रायगढ़ा जिले की
सिर्फ बारह गांवों में पल्ली सभाओं की बैठक बुलाकर उच्चतम न्यायालय के फैसले की
मनमानी व्याख्या की है, जो सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करती है। अगर सरकार ने सभी
गांवों में पल्ली सभाओं की बैठक बुलाती, तो निश्चित रूप से बारह की बजाय 162 गांव
नियमगिरि में खनन परियोजना को नामंजूर कर देती।
प्रश्न- क्या आपको लगता है कि पल्ली
सभाओं के प्रस्ताव के बाद वेदांता समूह इतनी आसानी से पीछे हट जाएगी?
उत्तर- यह कहना जल्दबाजी होगी कि पल्ली
सभाओं के प्रस्ताव के बाद वेदांता समूह चुपचाप बैठ जाएगी, क्योंकि कंपनी ने इस
इलाके में करोड़ों रुपये का निवेश किया है। निश्चित रूप से वह नई रणनीति बनाएगी।
हमें पता है कि उनके पास बेशुमार दौलत और ओडिसा सरकार का समर्थन भी हासिल है,
लेकिन स्थानीय आदिवासियों के पास सिर्फ हिम्मत है उनसे लड़ने के लिए। पल्ली सभाओं
की जीत से ग्रामीणों का हौसला बुलंद हुआ है। यह संघर्ष प्राकृतिक संसाधनों और
आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए है और इसकी रक्षा के लिए हम आखिरी
दम तक लड़ेंगे। देश की न्यायपालिका पर हमें पूरा यकीन है कि वह गरीब और लाचार
आदिवासियों के साथ अन्याय नहीं होने देगी।
प्रश्न- पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र
के लिए नियमगिरि की पहाड़ियों का कितना महत्व है?
उत्तर- पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए सिर्फ
नियमगिरि की पहाड़ियों और यहां मौजूद जंगल ही नहीं, बल्कि सभी पहाड़ों और जंगलों
की अहमियत एक जैसी है। नियमगिरि की श्रृंखलाएं हजारों साल पुरानी हैं। यहां के
जंगलों में वृक्षों की सैंकड़ों किस्में हैं, अनगिनत जड़ी-बूटियां हैं और
वन्यजीवों में बाघ, तेंदुआ, चीतल, सांभर, वराह, हिरण, हाथी समेत कई जीव-जंतु रहते
हैं। नियमगिरि की पहाड़ियों की वजह से यहां अच्छी बारिश होती है। स्थानीय
आदिवासियों की जीविका इन्हीं पहाड़ों और जंगलों पर निर्भर है। धान यहां की मुख्य
फसल है, जबकि पानी की उपलब्धता से तराई इलाकों में मछली पालन भी किया जाता है।
यहां खेतों में पूर्णतः प्राकृतिक ढंग से सिंचाई होती है। बोरिंग और कुएं की कोई
आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यहां दर्जनों की संख्या में झरने मौजूद हैं। अब आप
फर्ज कीजए, अगर बॉक्साइट के लिए नियमगिरि के जंगलों को नष्ट कर पहाड़ों को बारूदी
सुरंग से तोड़ दिया जाएगा, तो यहां की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली कैसे महफूज रह
पाएगी। एक तरफ पूरी दुनिया वैश्विक पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित
है साथ ही वन्यजीवों को बचाने के लिए नित्य नए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी
ओर पहाड़ों और जंगलों के साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार किया जा रहा है।
प्रश्न- इन सबके बावजूद विकास की जरूरत
को कैसे खारिज किया जा सकता है
?
उत्तर- सरकार की नजर में विकास क्या है ? क्या विकास की एकमात्र परिभाषा
आर्थिक विकास ही हैं वह भी प्राकृतिक संसाधनों और इंसानी जान की कीमत पर। माफ कीजए,
अगर सरकार की दृष्टि में विकास का अर्थ यही है, तो हमें उनका यह मॉडल स्वीकार नहीं
है। आर्थिक विकास के नाम पर पिछले ढाई दशकों के दौरान काफी तबाही हो चुकी हैं।
भारत में तथाकथित विकास के नाम पर 10 करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ है। विस्थापित
होने वालों में आदिवासियों की संख्या सर्वाधिक है, जिन्हें जल, जंगल और जमीन से
बेदखल किया है। आज तक उनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस इंतजामात नहीं किए गए हैं।
केंद्र और राज्य सरकारें ब्रिटिश राज्य में बनी भूमि अधिग्रहण कानून के सहारे
किसानों से उनकी जमीनें छीनकर पूंजीपतियों के हवाले कर रही हैं। इसके खिलाफ जहां
आवाजें उठती हैं, उन आवाजों को गोलियों और लाठियों के सहारे दबाने का प्रयास किया
जाता है।
प्रश्न- नियमगिरि की पहाड़ियों में
वेदांता कंपनी को खनन की इजाजत मिले अथवा नहीं इस बारे में राजनीतिक दलों की क्या
राय है?
उत्तर- प्रदेश की सत्ताधारी बीजू जनता
दल की भूमिका के विषय में कहने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सभी जानते हैं कि
नवीन पटनायक सरकार पूरी तरह उसके पक्ष में खड़ी है। वर्ष 2009 में पर्यावरणीय
मंजूरी निरस्त होने के बाद वेदांता कंपनी की बजाय ओडिसा माइनिंग कॉरपोरेशन ने
उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी, इससे साफ जाहिर होता है कि राज्य सरकार हर
स्तर पर वेदांता कंपनी का सहयोग कर रही है। जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है,
तो पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी साल 2009 में नियमगिरि के इलाकों
में आए थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमारी पार्टी आपके साथ खड़ी है और आप
हमें नियमगिरि आंदोलन में अपना सिपाही समझें। हालांकि कांग्रेस ने केंद्र और राज्य
स्तर पर अभी तक कोई ऐसा प्रयास नहीं किया है। कम्युनिस्ट पार्टियों का समर्थन इस
आंदोलन को जरूर हासिल है, लेकिन प्रदेश की राजनीति में उनकी शक्ति उतनी नहीं है कि
वे कुछ ज्यादा कर सकें।
प्रश्न- ओडिसा सरकार का आरोप है कि
नियमगिरि सुरक्षा समिति की अगुआई में चल रहे इस आंदोलन को माओवादियों का समर्थन
हासिल है, इस बात में कितनी सच्चाई है ?
उत्तर- केंद्र और राज्य सरकारों के लिए लोकतांत्रिक
तरीके से लड़ी जा रहीं आंदोलनों को माओवादी आंदोलन कहकर कुचलना एक शगल बन चुका है।
यह पहला जनांदोलन है, जहां कानूनी हस्तक्षेप ( उच्चतम न्यायालय की ओर से पल्ली सभा
कराने का आदेश ) जनांदोलनों में सकारात्मक भूमिका निभा रही है। बात जहां तक
माओवादियों के समर्थन की है, तो राज्य सरकार को यह पता होना चाहिए कि माओवादियों
ने पिछले दिनों पर्चा चस्पां कर पल्ली सभा को नौटंकी करार दिया था। हमारे और
माओवादियों के सिद्धांत में काफी अंतर है। यह अलग बात है कि नियमगिरि बचाओ आंदोलन
में उनकी ओर से कोई बाधा नहीं पहुंचाई जा रही है। हमारा यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसक
है, वैसे भी उड़ीसा शांतिपूर्ण आंदोलनों का गढ़ रहा है। गंधमर्दन, बालियापाल,
चिल्का और हीराकुंड किसान आंदोलन इसके सुंदर उदाहरण हैं।
प्रश्न- मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का
दावा है कि उनके शासन में प्रदेश का चौतरफा विकास हुआ है और वे राज्य की आर्थिक
समृद्धि के लिए कृतसंकल्प हैं?
उत्तर- बेशक, विकास जरूर हुआ है, लेकिन
जनता का नहीं, बल्कि उनकी सरकार में शामिल मंत्रियों, उनकी पार्टी के विधायकों और
सांसदों का। बीजेडी के शासन में जनता भले ही समृद्ध नहीं हुई हो, लेकिन नौकरशाहों
और अधिकारियों की चौतरफा कमाई जरूर बढ़ी है। इतिहास में नवीन पटनायक का नाम एमओयू
मुख्यमंत्री के रूप में दर्ज किया जाएगा, जिन्होंने निजी कंपनियों के साथ अनगिनत
समझौते पर दस्तखत ओडिसा की जनता और उसकी खुदमुख्तारी को गिरवी रख दिया।
बेशक, विकास जरूर हुआ है, लेकिन जनता का नहीं, बल्कि उनकी सरकार में शामिल मंत्रियों, उनकी पार्टी के विधायकों और सांसदों का।
जवाब देंहटाएंsahi baat
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं