23 अगस्त 2013

नियमगिरि में खुदाई नहीं होने देंगे!

पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर

नियमगिरि हमारे मां-बाप हैं,नियमगिरि हमें वह सब कुछ दे रहा है जो हमें चाहिए। इसलिए पूरे नियमगिरि पर्वत को हम “ नियमराजा ” कहते हैं और उसकी पूजा भी करते हैं । यहां कोई खनन नहीं होगा और नियमगिरि को बचाने के लिए अगर हमें मरना भी पड़े तो हमें वह मंजूर है पर नियमगिरि को छोडना मंजूर नहीं !

नियमगिरि में अब सभी ग्रामसभा हो चुकी हैं औऱ उऩमें डोंगरिया आदिवासियों ने इसी तरह के बयान दिये हैं और नियमगिरि में खनन नहीं करने देने का निर्णय सुना दिया है।

कुनकाडु गाँव के कुंदरु माझी ने ग्रामसभा में अपनी बात तो कुछ इन शब्दों में कही “ हमारे गाँव में आर आई , पटवारी और तहसीलदार कब आए और यह पहाड़ नाप कर चले गए, हमें तो पता नहीं, हमने देखा नहीं और हमें जंगल ज़मीन का पट्टा दे गए ! लेकिन हम सरकार से कहना चाहते हैं कि सरकार तुम अपना यह पर्चा-पट्टा वापस ले जाओ, यह नहीं चाहिए हमें, हम इन पट्टों को नहीं मानते ।

हमें अपना भगवान नियमगिरि वापस दे दो। हम नियमगिरि को मानते हैं और नियमगिरि हमें मानता है। और यह आज से नहीं बल्कि जब से हमारे दादा-परदादा हैं तब से मान रहे हैं।

आप को पता है यहा कोई सरकारी डॉक्टर है क्या ? नहीं है। लेकिन हमारे साथ हमारे नियमगिरी डॉक्टर हैं ! नियमगिरि में सैंकडों जड़ी-बूटी हैं, साथ ही हमारे पास गुरु, गुनिया, बेजू, जानी हैं जो उन चेरी मूली को पहचानते हैं, उसे खोदकर लाते हैं दवाई बनाते हैं और  बीमारी के हिसाब से दवाई देते हैं और उसी से तो हम ज़िंदा हैं आज तक ।

अगर सरकार नियमगिरि में खुदाई की बात करेगी तो हम इसे बिलकुल नहीं मानेंगे , हम मूर्ख लोग हैं, समझे हैं तो समझे हैं नहीं तो ....हम युग युग से विरोध करते आए हैं, और अब भी हमारे पूर्वज जैसे रिंन्डो माझी और बिरसा मुंडा जैसे लड़ाई करेंगे।

तुम जानते हो अगर नियमगिरि में खुदाई हुई तो क्या होगा, नियमगिरी खत्म हो जाएगा, इसके बिना हम आदिवासी मर जाएँगे। नियमगिरी के पानी सुख जाएगा, हवा गायब हो जाएगा,पत्तियाँ सुख जाएगा। इस पहाड़ में भालू, सांभर, मुर्गा सब रहते हैं, खुदाई होगी तो सब ध्वंस हो जाएगा।

फिर उन्होने कहा कि “ आज हम जो बोल रहे हैं उसे लिखना पड़ेगा । जैसे ब्राम्हण और करण (कायस्थ) जगन्नाथ पूजा करते हैं वैसे ही हम नियमगिरि की पूजा करते हैं । ”

गौरतलब है कि ब्रिटिश एल्युमीनियम कंपनी वेदांत के लिए बाक्साईट का खनन नियमगिरि से करने की योजना के खिलाफ डोंगरिया आदिवासी संघर्ष कर रहे हैं । यह मामला देश के सर्वोच्च न्याय़ालय तक पहुंचा और सर्वोच्च न्यायालय ने नियमगिरि में खनन के बारे में अंतिम फैसला लेने के बारे में ग्रामसभाओं पर छोड़ दिया है। जिसके तहत नियमगिरी पर्वत में स्थित रायगड़ा और कालाहांडी ज़िले के कूल 12 गावों में ग्रामसभाओं हो चुकी हैं जिनमें लोगों ने खऩऩ को खारिज कर दिया है।

इन ग्रामसभाओं के चलते नियमगिरि में फिलहाल अद्भूत नज़ारा देखने को मिल रहा है। जहां भी ग्रामसभा हो रही हैं वहां इसे देखने आसपास के ग्रामीणों के अलावा अधिकारी, पुलिस, पत्रकार और इस संघर्ष को समर्थन देने वाले कार्यकर्ता भी आ रहे हैं।

डोंगरिया आदिम आदिवासियों का घर नियमगिरि पर्वत सच में प्रकृति की एक सुंदर तस्वीर पेश करता है। जितनी सुंदर यहां प्रकृति है, इसके पहाड़, जंगल , झरने हैं उतने ही सुंदर यहां कॆ आदिवासी हैं। महिला और पुरुष दोनों लंबे-लंबे बाल रखते हैं और दोनों ही खूबसूरत ढंग से सजाये रखते हैं। जीवनयापन के लिए आवश्यक वह तमाम चीज़ वहां उपलब्ध हैं । यह आदिवासी काफी मेहनती हैं जो डोंगर किसानी के जरिये अपनी फसल पैदा करते हैं । “ ज़ाहिर है वेदान्त जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी और सरकार के खिलाफ डोंगरिया आदिवासियों की यह लड़ाई एक निर्णायक मोड पर पहुँच चुकी है । ” ऐसा कहना है स्थानीय पत्रकार अजित पन्डा का।

लेकिन डोंगरिया आदिवासियों के नेता लोदो सिकोका का कहना है की “ फैसला चाहे जो भी हो लेकिन एक बात तय है कि हम डोंगरिया आदिवासी किसी भी कीमत पर नियमगिरि पर्वत को नहीं छोड़ेंगे ! और हमारी यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक लांजीगड़ स्थित वेदांत अलुमिना कंपनी अपना बोरिया बिस्तर समेट कर यहां से नहीं जाती है , क्योंकि यह जब तक यहां रहेगी यह खतरा टल तो सकता है पर बरकरार रहेगा। ”

उनका यह शक जायज भी है क्योंकि वेदांत कंपनी ने लांजीगड़ में एक मिलियन टन क्षमता का अलुमिना रिफ़ाइनरी यूं ही नहीं स्थापित किया है। वह इतने जबर्दस्त आत्मविश्वास से भरी हुई थी और वह इस बात से कितनी आश्वस्त थी, यह इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उसने रिफाईनरी स्थापित करते समय और बाद में भी पर्यावरण कानून से लेकर दूसरे नियमों की जबर्दस्त खिल्ली उड़ाई।

इसके बावजूद सरकार उसे नियमगिरि देने के लिए आमादा थी और है पर सारा खेल इस आंदोलन ने बिगाड़ दिया जिसे खुद वहां के डोंगरिया आदिवासी और उन्हें साथ देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, जो देश और विदेश में फैले हुए हैं।

आंदोलन के बतौर भी यह बहुत अनोखा आंदोलन माना जाएगा। इस आंदोलन में हर तरह के लोगों की हिस्सेदारी भी बहुत जबरदस्त रही। डोंगरिया आदिवासियों के अलावा कुमटी माझी, लिंगराज आज़ाद की अगुवाई में नियमगिरि सुरक्षा समिति के बैनर के तले डोंगरिया आदिवासियों के अलावा कालाहांडी और रायगड़ा ज़िले के एक्टिविस्ट शामिल हैं। वहीं कालाहांडी के सांसद भक्त दास द्वारा ग्रीन कालाहांडी के माध्यम से इस आंदोलन में काफी अहम भूमिका निभाई।  फिर इस आंदोलन के प्रति राहुल गांधी का समर्थन भी रहा और राहुल गांधी लांजीगढ़ आकर यह भी कह कर गए कि वह दिल्ली में उनके सिपाही हैं जो उनके लिए दिल्ली में लड़ेंगे।

इस आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में अरुंधति राय जैसे कई व्यक्तियों से लेकर सरवायवल इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं ने काफी महत्वपूर्ण निभाई है । यहां तक कि डोंगरिया आदिवासियों की जेम्स केमरून की हॉलीवुड फिल्म अवतार के नावी  आदिवासियों से तुलना की जाती है और डोंगरिया आदिवासियों को असली नावी कहा जाता है। इस तरह से देखा जाये तो डोंगरिया आदिवासियों का आंदोलन सात समंदर पार भी लड़ा गया।

आठ हज़ार डोंगरिया आदिम आदिवासियों का घर नियमगिरि पर्वत सच में प्रकृति की एक सुंदर तस्वीर पेश करता है। जितनी सुंदर यहां प्रकृति है, इसके पहाड़, जंगल , झरने हैं उतने ही सुंदर यहां कॆ आदिवासी हैं। महिला और पुरुष दोनों लंबे-लंबे बाल रखते हैं और दोनों ही खूबसूरत ढंग से सजाये रखते हैं। जीवनयापन के लिए आवश्यक वह तमाम चीज़ वहां उपलब्ध हैं । यह आदिवासी काफी मेहनती हैं जो डोंगर किसानी के जरिये अपनी फसल पैदा करते हैं ।

 यहां फल-मूल भी काफी मौजूद हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि यहां इतने वर्षों बाद भी ज़्यादातर गाँव में न तो पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था है, ना स्वास्थ्य सुविधा और तो और स्कूल भी नहीं है जिस से बच्चे इस शिक्षा के कानून के युग में भी शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। और जब सरकार और उसकी रहनुमा कहते हैं कि वहां जब खनन होगा तब विकास होगा तो समझ में नहीं आता की इस बेशर्मी भरी बात पर रोया जाए य हंसी जाए, क्योंकि यह सरकारें शायद भूल गईं हैं कि यह एक कल्याणकारी देश है और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि बिना किसी भेद भाव और मोलभाव के सभी को उनका हक़ दिया जाए।

लेकिन एक बात तो तय है की डोंगरिया आदिवासियों की यह लड़ाई रंग लाने लगी है औऱ यह और संघर्ष एक मिसाल बन गया है.

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