05 दिसंबर 2011

गौरैया- नवारुण भट्टाचार्य की कविता

किसी तात्कालिक घटना पर कविता लिखना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। इस चुनौती को बांग्ला के विशिष्ट कवि नवारुण भट्टाचार्य ने स्वीकार कर हाल में शीर्ष माओवादी नेता किशन जी की मौत पर यह कविता लिखी है। गौरैया शीर्षक से। माओवादी नेता एम. कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी की मौत पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं, नवारुण की काव्यात्मक प्रतिक्रियाकविता के रूप में आई.....अनुवादः कृपाशंकर चौबे


शराब नहीं पीने पर भी

स्ट्रोक नहीं होने पर भी

मेरा पांव लड़खड़ाता है

भूकंप आ जाता है मेरी छाती और सिर में

मोबाइल टावर चीखता है

गौरैया मरी पड़ी रहती हैं

उनका आकाश लुप्त हो गया है

तस्करों ने चुरा लिया है आकाश

पड़ी रहती है नितांत अकेली

गौरैया

उसके पंख पर जंगली निशान

चोट से नीले पड़े हैं होंठ व आंखें

पास में बिखरे पड़े हैं खास पतवार, एके फोर्टिसेवेन

इसी तरह खत्म हुआ इस बार का लेन-देन

जरा चुप करेंगे विशिष्ट गिद्धजन

रोकेंगे अपनी कर्कश आवाज

कुछ देर, बिना श्रवण यंत्र के, गौरैया की किचिरमिचिर

सुनी जाए.

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