यह समय आपात काल का है जरूरी नहीं कि हर बार आपात काल के साथ इंदिरा का नाम जुडा़ हो.पूरे देश की नाजुक स्थितियों पर गौर करें तो हम एक आतंक भरी जिंदगी जी रहे हैं.देश का अलग अलग टुकडा़ अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहा है.पर इन अलग-अलग समस्यायों मे जो एक चीज कामन है वह यह कि हम एक व्यवस्था के अंदर जूझ रहे हैं.ऎसा नहीं है कि नंदीग्राम के किसानों की हत्या और विदर्भ या बुन्देलखण्ड के किसान की आत्महत्या में कोई सम्बंध नहीं है.इसे हमें आज की मुनाफ़ेखोरी और बढ़ते पूँजी केन्द्रीकरण के साथ देखना होगा.पर अंततः हम समस्याओं से जूझते हुए अपने समय को काट रहे हैं.कलेण्डर कभी तारीखें नहीं बदलते और न ही समय स्थितियों को बदलता है, जब तक कि हम उसे नहीं बदलते.दूसरों को जूझता हुआ देखकर हम चुप हैं.सूचनाक्रांति के साथ शायद हम एक मीडिया विहीन युग में जी रहे है कि लोगों के मारे जाने और मरने की खबरें हम तक नहीं पहुँच रही हैं यानि हम बेखबर हैं या फ़िर मानवीय इतिहास के लम्बे दौर को पार करते हुए आज हमारी संवेदनाये थक गयी हैं.बघेलखण्ड से बार-बार ये खबर आ रही है कि स्थितियाँ गम्भीर होती जा रही हैं.पिछले कुछ सालों से कम-तर बारिस ने इन बदहाल होती स्थितियोँ को और भी बेहाल कर दिया है.रावेन्द्र जी एक स्कूल के अध्यापक हैं जो देवई बघेलखण्ड में रहते हैं. न ही इन्होंने दिल्ली का कैफ़ेटेरिया देखा है और न ही राजकमल की आफ़िस,किसी समुद्र का किनारा नहीं देखा,शराब पीना इनकी कल्चर में नहीं, इनके माता-पिता लेखक नहीं हैं फ़िर भी ये कवितायें लिखते हैं.पर अभी अमेरिका के बारे में कुछ नहीं लिखा है और न ही कहीं छपे हैं....बघेलखण्ड के आस-पास व्यवस्था की जो हवा बहती है रावेन्द्र जी की कविता के बहाने उसकी महक आप भी सूँघिये?
१.
आँखि मांही धूधूर झोंका कहा कि दोख जमाना के है.
बीच गईल दिन मानैं पोंका कहा कि दोख जमाना के है.
करू-कसायल खातिर, हमसे नीक भला को.
रसगुल्ला तू पाँचै लोका कहा कि दोख जमाना के है.
राम जोहार सलाम पैलगी, जबर बूट का.
सीध-साध का छल-बल धोखा कहा कि दोख जमाना के है.
दंद-फंद धूधूर के जेउरी खूब बरा.
सेतैं फ़ाँसा एखा-ओखा कहा कि दोख जमाना के है.
सेवा,त्याग,समरपन काहीं आन के कांधा.
ताकत बागा रवि तू मोका, कहा कि दोख जमाना के है.
चार चुहेड़्न के चाटे जे गोर एसाइत.
कै दिन रही रंग धौ चोखा कहा कि दोख जमाना के है.
शब्दार्थ:-
धूधूर-धूल, दोख-गलती, गईल-गली, मानै-में पोका-गंदगी, करू-कसायल-कड़्वा-तीखा, जेउरी-रस्सी, बरा-बनाना, चुहेड़न-दुष्ट, एसाइत-इस समय
२.
कुछ तू साधा कुछ हम साधी नातपलागो.
गाँव सुराज घरै म बांधी नातपलागो.
बरिहत्तेन के हाँथे आबा घटइ न पावै.
मिलि-जुलि अस मिलि के नाधी नातपलागो.
सूखा, बाढ़, अकाल, भुखमरी, दइउ के लीला.
जनता मरै पै आपन चाँदी नातपलागो.
जनसेवा कै नही जेब कै राजनीति भै.
अबको इहाँ विनोवा, गाँधी नातपलागो.
पाँच बरिस मा पाँच पुस्त के इन्त्जाम भा.
कुछ जबरन कुछ धोखा धाँधी नातपलागो.
हाँथ मिलावै करै चेरउरी वोट परे मा.
फेर भला को छाबै धाँधी नातपलागो.
शब्दार्थ:-
नातपलागो-रिश्तेदारों का पैर छूना, सुराज-स्वराज, बरिहत्थेन-मुश्किल से, दइउ-ईश्वर, चेरौरी-विनती, छावै-बनाना, धाँधी-छप्पर
३.
केही आपन बिपति सुनाई तुहिन बतावा.
केत्ता मूँदी केत्ता ताई तुहिन बतावा.
सब देखि सुनि, के तानि पिछोरी वाला जुग.
काहें नाहक देह देखाई तुहिन बतावा.
राजा, मंत्री, हाकिम, अफ़्सर एकै घाट के पंडा.
आपुस मा सब साढ़ू भाई तुहिन बतावा.
जब जबरा मनमानी करब राज धरम है.
तब काहें के राम दोहाई तुहिन बतावा.
कुलुक-कुलुक के जै-जै बोलत गिल्लियान भा
सेतैं कब तक सोहर गाई तुहिन बतावा.
जेहिन जउनै मिला सइधै हज़म किहिस.
केखर केखर नाव गिनाई तुहिन बतावा.
कब के चला सुराज न आवा हमरे टोला.
कहाँ फ़िरत हैं चाईं माईं तुहिन बतावा.
शब्दार्थ:-
केही-किसको, बिपति-बिपत्ति-परेशानी, मूदी-ढकना, पिछौरी-चद्दर, आपुस-आपस, जबरा-जबरन, कुलुक-उछलना, गिल्लियाना-तंग आना, सईधै-सीधे, केखर-किसका, चाईं माँई-चक्कर लगाता.
bahut badhiya.sach ukerane ke liye .abhaar
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