11 जून 2008

'माओवादी दिखते कैसे हैं? मैं उन्हें देखना चाहती हूं'


तीन दशक से पंश्चिम बंगाल की पंचायत से लेकर विधानसभा तक पर काबिज़ वाममोर्चे की चूलें हिलाने वाली तृणमूल कांग्रेस की तेज़तर्रार नेता ममता बनर्जी ने तहलका संवाददाता आशीष सेनगुप्ता से तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की। औद्योगीकरण पर अपनी सोच रखते हुए ममता ने माओवादियों से संबंधों की बात पर सीपीएम को जमकर लताड़ लगाई।
पंचायत चुनाव के नतीज़ों के बाद किस तरह का बदलाव देख रही हैं?
बिल्कुल वैसा ही जैसा मैंने कहा था। ईमानदारी से मतदान होने दीजिए और फिर देखिए जनता क्या चाहती है। मैंने चुनाव आयोग से कह दिया था कि सीपीएम अक्सर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ करती है। जो पहले इसे असंभव मानते थे अब वो भी इससे सहमत हो गए हैं। ये चुनाव ईवीएम की बजाय मतपत्रों के जरिए हुए। ये हमारे लिए मौका था और लोगों ने हमें सही साबित किया। जिस तरह से सीपीएम ने हमें विकास विरोधी साबित करने की कोशिश की थी वो गलत साबित हुआ। ये हमेशा से ही सीपीएम की रणनीति रही है। जब भी वो राजनीतिक तौर-तरीकों से लड़ने में विफल होते हैं तो झूठे आरोपों पर उतर आते हैं।
यानी, आप ये स्वीकार करती है कि इस बार जिस तरह से मतदान हुआ उससे विपक्षी दल संतुष्ट हैं? क्या आप को वास्तव में इसी तरह के नतीज़ों की उम्मीद थी?
हमें पता था कि लोग वाम मोर्चे की सरकार से काफी निराश हैं और उन्हें बदलाव की दरकार थी। 320 में से 100 ब्लॉक्स में हमें चुनाव ही नहीं लड़ने दिया गया। बाकी बचे 220 ब्लॉक में से 50 में बिल्कुल मतदान ही नहीं हो सका। ऐसा सीपीएम के हिंसक हथकंडों की वजह से हुआ। जहां भी लोगों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग करने की आज़ादी मिली ज्यादातर जगहों पर उन्होंने हमें चुना।
ये संभव कैसे हुआ? क्या सिर्फ भूमि अधिग्रहण का मुद्दा ही था?
भूमि अधिग्रहण का मुद्दा तो था ही लेकिन सिर्फ यही नहीं था। सीपीएम के अत्याचार, 30 सालों से जनता के साथ की जा रही बर्बरता, प्रशासन का राजनीतिकरण, निचले स्तर पर भ्रष्टाचार—इन सभी ने अपनी भूमिका निभाई। सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलनों ने अपनी भूमिका निभाई, इसके अलावा भी तमाम वजहें थी जो लोगों के भीतर सालों से इकट्ठा हो रही थीं।
यानी कि सीपीएम के कुकर्मों ने ही बंगाल के ग्रामीण इलाकों से उसकी पकड़ को खत्म कर दिया?
उन्हें अपने कुकर्मों का खामियाजा भुगतना पड़ा। काफी समय से ये बकाया था। जैसा मैंने कहा कि लोग बुरी तरह से निराश थे। लिहाजा हिंसा के खिलाफ वो दृढ़ता से खड़े हो गए, सक्रियता से उसका विरोध किया और हमें चुना क्योंकि हम हमेशा से जन आंदोलनों के साथ रहे हैं। मुझे यकीन है कि तमाम वामपंथी मतदाताओं ने भी हमारे पक्ष में मतदान किया।
वाममोर्चे की तीस साल पुरानी सरकार का आंकलन आप किस रूप में करती हैं?
भूमि सुधारों और पंचायती राज की सफलता की चर्चा बहुत हो चुकी है। इस बार सीपीएम का जादू क्यों नहीं चल सका? वाममोर्चे ने सिर्फ पहले दो कार्यकाल में अच्छा काम किया इसके बाद स्थितियां बुरी तरह से बदल गईं। भ्रष्टाचार ने प्रशासन में जड़ें जमा ली। उनमें से ज्यादातर भ्रष्ट हो गए। उन्होंने प्रशासन और पुलिस का राजनीतिकरण कर दिया। जिस भूमि सुधार की उन्होंने शुरुआत की थी वो तमाशा बन कर रह गया। उन्होंने अपने भूमि सुधार के एजेंडे को कभी पूरा करने की कोशिश भी नहीं की. बल्कि इसके बजाय उन्होंने इसे वोट खरीदने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। इसका सबूत है हर चुनाव से पहले आयोजित होने वाला पट्टा वितरण कार्यक्रम। इसी वजह से ये सरकार इतने लंबे समय तक राज करने में कामयाब हो सकी।
आगामी म्युनिसिपल, लोकसभा या विधानसभा चुनावों को ये नतीजे किस तरह से प्रभावित करेंगे? अगले चुनावों में किस पार्टी से गठजोड़ आपके लिए मुनासिब रहेगा।
आप लोग इस तरह के सवाल मायावती या मुलायम सिंह से कभी क्यों नहीं पूछते? गठबंधन एक गतिशील प्रक्रिया है जो कार्यक्रमों, एजेंडा और तमाम दूसरे मसलों पर निर्भर होता है। इस पर टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी। निश्चित रूप से हम गठबंधन पर विचार करेंगे लेकिन पहले विधानसभा चुनाव आने तो दीजिए।
अब स्थानीय प्रशासन पर आपका भी कब्जा है वो भी ज़िला स्तर पर- क्या इसका मतलब राज्य में औद्योगीकरण पर पूर्ण विराम है?
पंचायत चुनावों के नतीजे का इतना सरलीकरण नहीं होना चाहिए कि ये औद्योगीकरण के पक्ष या विपक्ष में हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कृषि और उद्योग का साथ-साथ विकास। हमें उद्योग की जरूरत होगी लेकिन सीपीएम के रास्ते पर चलकर नहीं। उद्योग का अर्थ सिर्फ बड़ी मात्रा में पूंजी को नहीं समझा जाना चाहिए। औद्योगीकरण का स्वागत है, लेकिन छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगो की कीमत पर नहीं। सीपीएम कह रही है कि बड़ी पूंजी छोटे और मझले दर्जे के उद्योगों के लिए रास्ता तैयार करेगी, लेकिन ये अपने आप नहीं हो जाएगा इसके लिए आपको कोशिश करनी पड़ेगी। क्या वो औद्योगीकरण के लिए कभी किसी समग्र योजना की बात करते हैं? जवाब है नहीं। हमने कभी नहीं कहा कि हम उद्योगों के खिलाफ हैं, लेकिन हां, हम कृषि के मुकाबले उद्योग को खड़ा करने के प्रबल विरोधी हैं।
तो फिर राज्य में निवेश आकर्षित करने की आपके पास क्या योजना है? सत्ता में आने पर आप ऐसा क्या करना चाहेंगी जो वर्तमान सरकार अभी नहीं कर रही है?
निश्चित रूप से हमें बड़े निवेश की जरूरत होगी लेकिन ये जनता की कीमत पर नहीं होगा। आखिर ऐसा क्यूं है कि बड़े औद्योगिक घराने जो भी शर्ते थोपें आप मान लेते हैं? ऐसा कैसे हो सकता है कि आपके पास जनता के हितों को सुरक्षित रखने और फिर जाकर औद्योगिकरण के लिए जगह तलाशने की नीति ही न हो? ये तभी हो सकता है जब आप चीज़ों को बहुत हल्के में लेते हैं और जनता की राय को दरकिनार कर अपने अहम को सर्वोपरि रखना आपकी आदत बन जाती है। सबसे पहले अपने पास उपलब्ध विकल्प खोजने की दरकार होगी, हम औद्योगिक घरानों को वास्तव में क्या सुविधाएं मुहैया करवा सकते हैं और फिर इसी के हिसाब से उनसे बातचीत करनी होगी। मुझे विश्वास है कि पश्चिम बंगाल में इन चीज़ों पर कभी चर्चा नहीं हुई होगी। बड़े नामों के साथ बातचीत करने से पहले जो विकल्प हो सकते हैं उन पर कभी विचार ही नहीं किया जाता।
नंदीग्राम का भविष्य अब कैसा है?
अब ये बात साबित हो गई है कि ये संघर्ष राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए था। हम स्थानीय प्रशासन में हैं लेकिन प्रशासन-- जिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण है— को स्वतंत्र होकर काम करने की जरूरत है। भले ही चुनावी प्रक्रिया पूरी हो गई हो, भले ही लोगों ने अपनी पसंद पर मुहर लगा दी हो, हिंसा फिर भी जारी है। हम चाहते हैं कि वहां शांति स्थापित हो लेकिन प्रशासन को अपनी भूमिका निभानी होगी।
और सिंगूर के बारे में क्या कहेंगी? क्या आप चाहेंगी कि आपको टाटा के बंगाल छोड़ने की वजह के रूप में देखा जाय?
हम अभी भी सरकार से यही सवाल पूछ रहे हैं कि सिंगूर को कार फैक्ट्री के लिए क्यों चुना गया। आप हमें दोषी कैसे ठहरा सकते हैं जब हम वैकल्पिक भूमि मुहैया करवाने की बात कर रहे हैं? अगर आप खुद के लोकतांत्रिक होने का दावा करते हैं तो फिर आपको लोगों के अधिकारों का भी सम्मान करना होगा। क्या आपके पास अब भी इस बात की कोई सफाई है कि सिंगूर में लोगों के संपत्ति के अधिकार का हनन क्यों हुआ? ये तो मूलाधिकार हैं, क्या ऐसा नहीं है? अगर ये राज्य की जनता या फिर सिंगूर की जनता की भलाई के लिए था तो फिर तीन महीनों तक धारा 144 क्यों लागू रही? अभी भी वहां पर 3,000 के करीब पुलिस के जवान तैनात हैं। हम परियोजना के विरोध में नहीं हैं, लेकिन अगर इसकी कीमत जनता और उनकी कृषि योग्य ज़मीन होगी तो निश्चित रूप से इस पर हमारी आपत्ति है।
सीपीएम हमेशा ये आरोप लगाती है कि तृणमूल कांग्रेस और माओवादियों के बीच सांठगांठ है।
अगर माओवादी इतने खतरनाक हैं तो फिर सीताराम येचुरी नेपाल में माओवादियों से बातचीत में क्यों शामिल हुए?
लेकिन उन्होंने ऐसा माओवादियों के चुनाव में हिस्सा लेने के बाद किया।

सिर्फ चुनाव में हिस्सेदारी ने उन्हें लोकतांत्रिक बना दिया? मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूं। अगर ऐसा है तो आप उन्हें प्रतिबंधित क्यों नहीं कर देते? पर हां, माओवादी दिखते कैसे हैं? मैं किसी को देखना चाहती हूं। मुझे तो आशंका है कि उन्हें सीपीएम ने ही बनाया है।
आपका दावा है कि लोग आपके साथ हैं। समाज का कौन सा तबका आपके साथ है?
समाज को इस नज़र से सीपीएम वाले देखते हैं, हम नहीं। समाज का हर तबका हमसे जुड़ा है। हमारी कोशिश जनता की मांगो का समर्थन करना है और हमें उम्मीद है कि इस काम में सभी तबकों का समर्थन हमें मिलेगा।

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