01 जुलाई 2008

हर बार आसमान में कुछ नया देखने को होता है:-

न रायपुर रायपुर है. न मैं, मैं हूँ. देश में कई रायपुर हैं और कई मैं. मै दूसरा बिनायक सेन है,तीसरा अजय टी.जी.,या कोई और आदमी जो रायपुर की सड़कों पर घूमते हुए भूल जाता है आदमीयत की तमीज.घर से निकल कर वापस न लौटने का खौफ़ लिये देश की सुरक्षा से असुरक्षित, चलते-चलते अक्सर बदल देता है अपने रास्ते.कई बार सड़क के किनारे खडे़ पेड़ उसे देखते हैं हिकारत की नजर से और वह भर उठता है भय और संदेह से.पूरा शहर मै के लिये वर्जित प्रान्त है जहाँ उसका दमित जन के दमन के लिये दिये जा रहे तर्कों से असहमत होना, झूठे शांति अभियानों की खिलाफ़त करना उसे उग्रवादी बना देता है.सड़क पर आदमी की पहुँच से दूर मुख्यमंत्री का चेहरा उसे चिढा़ता है उसे देख मंत्री मुस्कराते हैं,मै होर्डिंग के नीचे से सिर झुकाकर निकल जाता है.चौराहे के दूसरे छोर पर पहुंच वह पीछे मुड़कर देखता है कि मुख्यमंत्री उसे देख रहा है. उसका चेहरा और चौडा़ हो गया है.बगल लगी होर्डिंग में एक आदिवासी महिला अपने कान से सटाकर मोबाइल से बात कर रही है.मोबाइल से बात करती महिला देश के विकास का बिम्ब है जो हर दूसरे चौराहे पर मौजूद है. सामने गांधी पंक्ति के इस आखिरी आदमी को देख खुश हैं या नाराज नहीं पता. उनकी आँखें नीचे झुकी हैं ठीक जमीन पर टिकी लाठी की नोक पर . इंदिरा का चेहरा खिला हुआ है , २००८ के आपातकाल को अनापातकाल समझती जनता को देख.एक पार्क में बैठकर मै लम्बी साँस खींचता आसमान की तरफ़ देखता हूँ और खारिज कर देता हूँ फ़र्नांदो पेसोवा को कि आसमान में एक बार देख चुकने के बाद देखने को कुछ भी नहीं बचता.एक आभासी दुनिया,शून्य में,आसमान में.जहाँ कुछ भी नहीं होता देखने पर हर बार कुछ नया होता है.एक नयी उम्मीद के साथ.

5 टिप्‍पणियां:

  1. लाख टके कि बात.
    एक स्वप्न टूटे दूसरा गढो.

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    मेरा इमेल पता है:

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  4. अगर ये कविता नुमा गद्य आपने ही लिखा है तो वाकई बहुत दमदार है।

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