बर्नार्ड मारग्रेट
पत्रकारिता का मूलतः दो काम है. पहला लोकतंत्र के खंभे के रूप में काम करना और दूसरा लोगों को एक साथ लाने, समुदायों को एक करने में अहम भूमिका का निर्वाह करना. पत्रकारों का मूल काम तो फैक्ट प्रोवाइड करवाना है. क्या, कौन, कहां, कब, क्यों, कैसे, कितना... के फॉर्मेट में लेकिन यही काफी नहीं है. उस फैक्ट के पीछे के ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक कारणों से भी लोगों को रू-ब-रू करवाना जरूरी है.
मीडिया की एक दूसरी अहम भूमिका दो भिन्न समुदाय, संस्कृति, धर्म और जीवनशैली वाले लोगों को भी एक-दूसरे से परिचित कराते हुए करीब लाने की सार्थक कोशिश करना है. यानी इन्फॉर्मेशन को इंटर-फॉर्मेशन और अंडरस्टैंडिंग को म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग में बदलना है. सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करना भी मीडिया का काम है.
मिशन से भटकने के कारण ही मीडिया व मीडियाकर्मियों की साख पर सवाल उठने शुरू हुए हैं. पश्चिमी यूरोप में विगत वर्ष एक सर्वेक्षण हुआ कि किस पेशे को लोग सम्मान की नजर से देखते हैं. इसमें मीडियाकर्मियों को मात्र १६-१७ प्रतिशत के बीच अंक मिले.
आज स्थिति क्या हैङ्क्ष मीडिया का दिन-ब-दिन विस्तार हो रहा है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तेजी से फैल रहा है, इंटरनेट पत्रकारिता का दायरा बढा लेकिन फिर भी हम जहां थे, वहीं पर खडे हैं. खबर तो आ रही हैं लेकिन क्याङ्क्ष यह देनेवालों को भी नहीं पता. समाचार अपील नहीं कर पा रहे. आज भी लोग वोट डालने नहीं जाते. लोकतंत्र की मजबूती के लिए आखिर क्या कर रही है मीडियाङ्क्ष
यह सच है कि मीडिया पर ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव पडा है. वैसे उद्योगपति, जिनका मीडिया से कोई लेना-देना नहीं था, वे आज मीडिया के कारोबारी हो गये हैं. अमेरिका ऑनलाइन आज नेटस्केप, टाइम, वार्नर ब्रदर्स व सीएनन को नियंत्रित करता है तो फोटोग्राफी के क्षेत्र में बिल गेट्स की एजेंसी 'कॉर्बिस' है. रूपर्ट मर्डोक आज कई ब्रिटिश व अमेरिकी अखबारों के शहंशाह बने हुए हैं. द टाइम्स, द सन, द न्यूयॉर्क पोस्ट, बी स्काई बी जैसे सैटेलाइट नेटवर्क एवं २० सेंचुरी फॉक्स नामक बडी फिल्म निर्माण कंपनी को संचालित कर रहे हैं. यूरोप में भी यह ट्रेंड बढ रहा है. फ्रांस के दो बडे मीडिया ग्रुप सेर्गे डेसॉल्ट और जीन लक लैगार्देर द्वारा नियंत्रित हो रहे हैं. ये दोनों हथियार निर्माण क्षेत्र के व्यापारी रहे हैं. इनके आने से मीडिया उद्योग का लक्ष्य-उेश्य तेजी से अधिक पैसा बनाना और अपना रेटिंग बनाये रखना है. इसके लिए सनसनी, पोर्नोग्राफी, हिंसा को ही मुख्य राह बनाना पडे, तो भी इनके लिए कोई मायने नहीं रखता.
सनसनी लिखना या दिखाना, तो किसी पत्रकार के लिए सबसे आसान होता है. गंभीर विषयों/मुों पर लिखना या काम करना कठिन होता है, क्योंकि उसके लिए पहले होमवर्क, रिसर्च-वर्क करना पडता है. गंभीर विषयों को रोचक ढंग से लिखना तो सबसे कठिन काम होता है. हमें मूल वाक्य याद रखना होगा कि, सिर्फ पेशेवर पत्रकारिता ही नैतिक हो सकती है और नैतिक पत्रकारिता ही पेशेवर हो सकती है.
तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिएङ्क्ष सबसे पहले तो यह याद रखना होगा कि हम कॉमोडिटी नहीं बेचते.
प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि बिजनेस को नुकसान पहुंचाये बिना कैसे बेहतरी से काम कर सकते हैं. अच्छी पत्रकारिता के लिए एक पत्रकार के दिल में लोग, समुदाय के लिए प्यार होना बेहद जरूरी है. खुद में बदलाव लाना होगा. यदि रास्ता नहीं निकाल पाते, विजन को विकसित नहीं कर पा रहे, तो फिर बैड गवर्नेंस पर बोलने का हमें अधिकार नहीं.
(फ्रांसीसी पत्रकार बर्नार्ड मारग्रेट इंटरनेशनल कम्युनिकेशंस फोरम के अध्यक्ष हैं. यह आलेख मीडिया, गवर्नेंस व सोसायटी विषयक एक व्याख्यान का संपादित अंश है.)
अनुवाद : निराला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें