03 सितंबर 2013

गडचिरौली मुठभेड़: मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट

दख़ल की दुनिया के लिए हिन्दी में अनुवाद किया है प्रेम प्रकाश ने. 
गडचिरोली जिले में इस वर्ष मुठभेड़ की छः वारदातों की खबरें मीडिया व प्रेस में आयीं। इन मुठभेड़ों में कुल 26 व्यक्तियों की जिंदगी खत्म हो गई। जहाँ पर मुठभेड़ हुई वहाँ के लोगों ने पुलिस द्वारा बताई गयी बात की सच्चाई पर सवाल खड़े किए हैं।  
            विभिन्न राज्यों के अखिल भारतीय नागरिक आजादी और जनतांत्रिक अधिकारों की संयुक्त संस्था जनतान्त्रिक अधिकार संगठनों का समन्वय (सी.डी.आर..) ने भारतीय जन वकील संघ (इंडियन एसोशिएसन आफ पीपुल्स लायर) के साथ मिलकर सत्य को सुनिश्चित करने के लिए तथ्यों की जाँच-पड़ताल को अंजाम दिया। आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र और दिल्ली के सात संगठनों के 23 सदस्यीय दल ने 23 से 26 अगस्त 2013 तक गडचिरोली जिले का दौरा किया। दल नें पाँच गाँवों-  धानोरा तहसील के सिंदेसुर, कुरखेड़ा तहसील के भगवानपुर, एटापल्ली तहसील के मेंधरी और अहेरी तहसील के गोविंदगाँव व भाटपार का भ्रमण किया जहाँ मुठभेड़ हुई थी। जाँच दल नें पांचों गाँवों के लोगों, जन प्रतिनिधियों, मीडिया के लोगों, राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों और पुलिस से मुलाक़ात की। 
जाँच दल की तात्कालिक प्राप्तियाँ निम्नलिखित हैं:
1.      सभी पांचों घटनाओं में पुलिस द्वारा पहले गोलाबारी शुरू की गयी। भगवानपुर और गोविंदगाँव की  घटनाओं  में जो लोग मारे गए उनकी तरफ से कोई जवाबी गोलाबारी नहीं हुई।
2.         सभी पांचों घटनाओं में पुलिस द्वारा चेतावनी व समझाने का कोई प्रायस नहीं किया गया। पुलिस द्वारा तथाकथित माओवादियों से अपना हथियार डालने के लिए कोई घोषणा नहीं की गई। भगवानपुर, मेंधरी, गोविंदगाँव और भाटपार की घटनाओं में जहाँ लोग पुलिस द्वारा चारो तरफ से घेर लिए गए थे, पुलिस द्वारा आत्मसमर्पण करने के लिए घोषणा नहीं की गई और लोगों को बाद में मार डाला गया।
3.         मेंधरी और भगवानपुर की घटनाओं में हुई हत्याएं फर्जी मुठभेड़ थी। मेंधरी गाँव में छः महिला माओवादियों ने मारे जाने से पहले ही अपने हथियार डाल दिये थे और समर्पण कर दिया था। भगवानपुर में जो व्यक्ति मारा गया वह मारे जाने से पहले पुलिस हिरासत में था।
4.      भगवानपुर, मेंधरी और भाटपार गाँव की घटनाओं में गाँव वालों को पुलिस द्वारा बुरी तरह पीटा गया। भगवानपुर में 10 व्यक्तियों को सारी रात सड़क पर पीटा गया। मेंधरी में एक व्यक्ति को पुलिस द्वारा लोगों को पीटने तथा दुर्व्यवहार से बचाने के लिए गोली मार दी गयी। भाटपार गाँव के तीन लोगों को दो दिन तक पुलिस स्टेशन में रोक कर रखा गया और पीटा जाता रहा। 
5.    मुठभेड़ में हत्या की सभी घटनाओं में यह अनिवार्य है कि अपराध की जाँच ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा हो जो हत्या में शामिल पुलिस बल और पुलिस स्टेशन से स्वतंत्र हो। हमारी अधिकतम जानकारी के अनुसार इसका पालन नहीं किया गया।
6.       पुलिस अधीक्षक नें हमसे कहा की उचित पंजीयन और जाँच को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक मुठभेड़ में हत्या की आंतरिक जाँच एक उप पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा की जा रही है। यद्यपि उसने पुष्ट किया कि इन घटनाओं की जाँच रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। आंतरिक जाँच होने की वजह से इसमें न तो पारदर्शिता होगी और न ही निष्पक्षता।
7.       मेंधरी मुठभेड़ मामले में मजिस्ट्रेट स्तर की जाँच का आदेश दिया गया है। परंतु हमें मजिस्ट्रेट द्वारा ग्रामीणों के बयान दर्ज करने के प्रयास का एक भी साक्ष्य नहीं मिला। किसी भी तरह अधिशासी मजिस्ट्रेट द्वारा जाँच इस तरह के मामले की जाँच में निष्पक्षता नहीं प्रदान कर सकती।
8.      कम से कम सिंदेपुर की दो हत्याओं को “द्विपक्षीय क्षति कहा जा सकता है। पुलिस और प्रशासन का इस मामले में रवैया अत्यंत निर्मम है। गाँव के दो युवा लड़के दो-तरफा गोलाबारी में मारे गए। अभी तक उन परिवारों को न तो कोई मुआवजा मिला और न ही राज्य द्वारा उन परिवारों से कोई संवेदना प्रकट की गई। इसके विपरीत सरकार ने बड़ी फुर्ती से अपने मानवीय सरोकार” के प्रमाण के रूप में प्रत्येक परिवार को 10 लाख रुपये की सहायता के बड़े विज्ञापन बोर्ड जिले भर में लगा दिया है।
9.   भाटपाल गाँव में मारी गई महिलाओं में से एक उसी गाँव की निवासी थी। उसके माँ-बाप के अनुनय-विनय और सारे गाँव के पुलिस थाने पर इकट्ठा होने के बावजूद पुलिस ने अंतिम अधिकार के रूप में मृत शरीर को उन्हें देने से इंकार कर दिया। यह अत्यंत निंदनीय है। अन्य मामलों में भी लाशें लंबे समय तक बिना पहचाने ही पड़ी रहीं, उनकी तस्वीरें प्रकाशित नहीं की गईं तथा माँ-बाप व संबंधियों को पोस्टमार्टम की प्रक्रिया व अंतेष्टि में शामिल होने की संभावना को खत्म कर दिया गया।   
           
उपरोक्त के प्रकाश में सीडीआरओ इस विचार पर पहुंचा है कि पांचों मुठभेड़ों में हुई जीवन की क्षति को आसानी से बचाया जा सकता था। पुलिस और सुरक्षा बलों के क्रिया-कलाप को निर्देशित करने के लिए आरपीसी में दिये गए स्थापित मानकों का पालन इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त हो सकता था। इन परिस्थितियों में गोलाबारी करना गाँव के हिसाब से गलत  था जो न तो आत्म रक्षा” और न ही दोषियों” को हिरासत में लेने की दृष्टि से उपयोगी था। वास्तव में उपरोक्त प्रत्येक मामला दोषियों को हिरासत में लेने की अत्यधिक असफलता थी।  यह शक्ति का अतिरिक्त व अनाधिकृत गठन था।   
            समान तरह की घटनाओं की लगातार पुनरावृत्ति बताती है कि बंदियों के लिए कोई कार्यकारी नीति नहीं है और उनको माओवादी होने के संदेह में मारा जा रहा है। यह प्रशासन द्वारा विभिन्न जगहों पर लगाए गए बैनर में स्पष्ट दिखाता है जो मेंधरी में मारी गई महिला माओवादियों की तस्वीरों से भरा है । यह कहता है कि सामान्य जनतेवार अन्याय करल, तार पोलिसांच्या बंदुकीनेच मारल (अगर तुम सामान्य जन के साथ अन्याय करोगे तो तुम पुलिस की बंदूकों से मारे जाओगे)
            इस तरह पुलिस के खतरे की एक झलक को इस बंदूक के आनंद की प्रवृत्ति में देखा जा सकता है जो भगवानपुर की घटना में दिखाई दी। उपचारात्मक उपायों से दूर पुलिस अधीक्षक गडचिरोली ने पुलिस की भाषा ही दोहराते हुये कहा कि इससे कोई मतलब नहीं की यह कितना अविश्वासनीय है कि सामान्य ग्रामीण रहवासी जोकि माओवादियों से संबन्धित नहीं है पुलिस पर गोलाबारी किए जबकि उनसे रुकने के लिए कहा गया। इस तरह की नीति भविष्य में भयानक अनहोनी की पूर्व-सूचना देती है ।      
            चारो मामले में पुलिस का विवरण हमारी खोज तथा ग्रामीणों के विवरण से गंभीर रूप से भिन्न है। प्रेस को दी गई पुलिस रिपोर्ट तथा एफ़आईआर चौंकाने वाली है जिसमें कहा गया है कि जाँच पूर्णतया हत्या में शामिल पुलिस दल के विवरण पर आधारित है। यह नागरिक न्यायशास्त्र के विचार से पूर्णतया उलट है। हत्यारा, सूचनादाता, जाँच और न्यायाधीश एक दूसरे से अलग होने चाहिए। और यह कानून तथा व्यवहार में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 
उपरोक्त के प्रकाश में हम मांग करते हैं कि:
           
1.      बंदियों को गिरफ्तार करने के बजाय उनको जान से मारना तथा अधिकतम नुकसान पहुंचाना अवश्य ही बंद किया जाय।
2.       मुठभेड़ के सभी मामलों में जिम्मेदार पुलिस दल के खिलाफ आपराधिक मानवहत्या की एफ़आईआर दर्ज हो। इसकी जाँच दूसरे जिले के पुलिस अधिकारी को सौंपी जाय।
3.      भाटपाल, मेंधरी और भगवानपुर की घटनाओं में जहाँ लोगों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया, की न्यायिक जाँच की जाय।
4.      न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रत्येक मुठभेड़ की घटना की मजिस्ट्रेट स्तरीय जाँच की जाय और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान उनके घर पर भयमुक्त वातावरण में दर्ज किया जाय तथा इस तरह के गवाहों पर भविष्य में पुलिस प्रताड़ना के मामलों को रोकने के लिए कदम उठाए जाएँ।
5.      भगवानपुर से गिरफ्तार दो व्यक्तियों को अविलंब रिहा किया जाय।
6.      भगवानपुर गाँव के देवराव व बुधनाथ के परिवारों को अविलंब मुआवजा दिया जाय। 

द्वारा जारी: 
·       जनतान्त्रिक अधिकार संघ,पंजाब (Association for Democratic Rights, Punjab)
·       जंतान्त्रिक अधिकार रक्षा संघ, पश्चिम बंगाल(Association for the Protection of Democratic Rights, West Bengal)
·        नागरिक स्वतन्त्रता समिति, आंध्र प्रदेश (Civil Liberties Committee, Andhra Pradesh)
·       जंतान्त्रिक अधिकार रक्षा समिति, मुंबई (Committee for the Protection of Democratic Rights, Mumbai)
·       भारतीय जन वकील संघ (Indian Association of People’s Lawyers)
·       जंतान्त्रिक अधिकार रक्षा संगठन, आंध्र प्रदेश(Organisation for the Protection of Democratic Rights, Andhra Pradesh)
·       जंतान्त्रिक अधिकार जनसंघ, दिल्ली (People’s Union for Democratic Rights, Delhi)


गाँव की जाँच-प्राप्ति  का विवरण: संक्षिप्त रूप
(Village Accounts of our Findings – Short Version)

1-गोविंदपुरगाँव, अहेरी तहसील: 11 जनवरी को मावोवादियों के 11 सदस्यीय समूह की  ग्रामीणों के साथ शाम 7 बजे बैठक हुई। बैठक के दौरान माओवादियों नें गाँव में शराब उत्पादन और शराब पीने की बंदी के लिए, परिवार में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए, ग्रामीणो में झगड़े और तनाव को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने और बिजली के तारों से शिकार के खतरनाक तरीकों को बंद करने के लिए अभियान चलाया। उन्होने  सरकार की लघु-बचत योजना बचत घट के विरोध का लोगों से आह्वान किया। गाँव में रात्रि भोज के बाद मावोवादी दल बस्ती से अभी बाहर गया ही होगा कि “सुरक्षा बल” के लोगों ने ग्रामीणों को घेर लिया और उन पर गोलियां बरसाने लगे।
            छः व्यक्ति वारदात की जगह पर ही मारे गए जबकि बाकी माओवादी बच निकलने में  सफल हो गए। प्रतिरक्षा में माओवादियों द्वारा कोई गोलीबारी नहीं की गई। मृतकों में दो महिलाएं थी। गाँव से कुछ व्यक्तियों को मृतकों की पहचान के लिए लाया गया।

2- भगवानपुर, कुरखेडा तहसील: 16 जुलाई 2013 को रात के लगभग 10 बजे गाँव के 11 लोग जंगल में शिकार के लिए गए। उसमें से 8 लोग तीन स्कूटरों पर गए जिसके कुछ देर बाद तीन लोग दूसरे स्कूटर पर गए। बाद में गए लोग अपने साथ एक भामार (एक देशी बंदूक), एक कुल्हाड़ी, एक चाकू तथा एक टोपी वाली टार्च ले गए।  
करोडी गाँव के महात्मा फुले स्कूल के नजदीक मुख्य सड़क पर उन्होन्नें सी – 60 कमांडो दल को देखा और जल्दी से निकल जाने का निश्चय किया। पुलिस दल जो तीन गाड़ियों में था ने उनका पीछा किया और उन्हें रोक लिया। उनमें से तीन ग्रामीणों नें पुलिस को समझाने की कोशिश की कि उनके 8 साथी नीचे है। लेकिन सब कुछ अनसुना कर पुलिस द्वारा पीटे जाने के बाद आनंदराव मार दिया गया। आनंदराव घटना की जगह पर ही गिर गया और मर गया उसकी पसलियों के ठीक नीचे दो गोली मारी गई थी। साक्षियों ने बताया कि जिन पुलिस वालों  ने आनंदराव को मारा वे उसे पहले से जानते थे।   
            पुलिस ने अन्य आठ व्यक्तियों के लौटने की प्रतीक्षा की और उन्हें पकड़कर भोर के 4 बजे तक लगातार पीटती रही जबकि 10 ग्रामीणों व लाश को दो गाड़ियों में अरमोरी पुलिस थाने लाया गया। वहाँ आनंदराव के साथ दो व्यक्तियों देवराव राजाराव उसेंदी तथा बुधनाथ पांडुरंग तुलावी पर आईपीसी की धारा 307 व 353 के तहत केस दर्ज की गई। वर्तमान में वे दोनों चंद्रपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं। बाकी बचे लोगों को जिन्हें पुलिस नें हवालात में बंद कर रखा  था बाद में छोड़ दिया गया।   

3- सिंदेसूर, धनोरा तहसील: 12 अप्रैल की सुबह सिंदेसूर गाँव से 12 लोगों का एक समूह पहाड़ी की तली में अपने खेतों के निकट जंगल से महुआ के फूलों को इकट्ठा कर रहा था। कुछ समय बाद चार माओवादी वहाँ आए और उन्होनें 20 साल के दो लड़कों से गाँव से पीने के लिए पानी लाने को कहा। जब ये लड़के पानी लेकर लौट रहे थे तो पुलिस ने अचानक आकार गोलीबारी शुरू कर दी। परिणाम स्वरूप जवाबी गोलीबारी हुई और दोनों लड़के उसकी चपेट में आ गए। दोनों ही मुकेश दुरु हुड़को तथा सुखदेव वरलू गवडे मारे गए। गोलीबारी के अंत में एक पुलिस  और चार माओवादी मृत पाये गए। दो मृतक ग्रामीण लड़कों के लिए मुआवजे की घोषणा की गई है परंतु अभी तक वह अंधेरे में ही अटकी हुई है।

4- मेंधरी, एटापल्ली तहसील: 7 जुलाई की सुबह 6 औरतों व दो पुरुषों का एक मावोवादी समूह गाँव के निकट एक नाले के पास था। उनमें से दो औरतें नहाने के लिए नाले में गईं तथा शेष गाँव की एक युवती के साथ चाय पीते हुये बातचीत करनें लगीं जबकि दो पुरुष सदस्य गाँव में चीनी तथा चाय खरीदने चले गए। नजदीक ही एक पुलिस को छिपते हुये देखकर गाँव की युवती अपने घर भाग गई और उसके कुछ क्षण बाद ही गोलीबारी शुरू हो गई। महिला मावोवादी अपना बैग वहीं छोड़कर बंदूकों के साथ दौड़ीं तथा जवाबी गोलीबारी शुरू हो गई। बिना युद्ध सामाग्री के भागते हुये महिलाओं नें गाँव की शरण लेने की कोशिश की लेकिन पुलिस नें खुले खेतों में उनका पीछा किया। दूसरी तरफ से अन्य पुलिस वाले आ गए और महिलाओं ने अपने आपको फंसा हुआ पाया, उन्होने अपनी बंदूकें फेंक दीं तथा आत्मसमर्पण में अपने हाथ उठा दिये। उनमें से एक नें अपनी बंदूक फेककर उसी खेत में महुआ के पेड़ पर चढ़ गई। इसके बाद पुलिस महिलाओं के निकट पहुंची, आत्मसमर्पण की हुई महिलाओं को नजदीक से मारा तथा पेड़ पर छिपने का प्रयास कर रही महिला को भी मार गिराया। 10 से अधिक गाँव वालों को खींचकर बाहर लाया गया और उन्हें पीटा गया जबकि वे मृतकों को पहचानने में असमर्थ थे। एक ग्रामीण को तब मार दिया गया जब वह शवों से दूर भागने की कोशिश कर रहा था।     

5- भाटपार, अहेरी तहसील: तीन अप्रैल की शाम चार सशस्त्र मावोवादियों का एक समूह ग्रामीणों के साथ बैठक कर रहा था। बाद में उस रात वे गाँव छोड़ दिये और आधा किलोमीटर दूर नदी के किनारे रुके। उनके साथ गाँव की दो औरतें भी थीं। दूसरे दिन तड़के सुबह गाँव वालों नें गोली की आवाज सुनी और उनमें से एक औरत भागती हुई गाँव में आई। बाकी पांचों की लाशों को पुलिस नदी के इस पार लायी। गाँव वालों नें पुलिस से कुम्मा ताड़ो की बेटी सुनीता की लाश को परिवार वालों को देने की मांग की। पुलिस नें लोगों को दूर रहने की चेतावनी दी, जबकि तीन ग्रामीणों को खेत से पकड़ा, उनको पीटा और अपने साथ धोजराज पुलिस थाने लाये। अगले दिन सुबह अधिकतम ग्रामीण थाने गए और मृतक की लाश को वापस करने तथा चार ग्रामीणों को छोड़ने की मांग किए। वे चार ग्रामीणों के साथ वापस आए। लाश को कभी भी परिवार वालों को नहीं सौंपा गया। 
जनतान्त्रिक अधिकार संगठनों का समन्वय
(Coordination of Democratic Rights Organisations)

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