सुनील कुमार
दिल्ली के बस स्टॉपों, चौराहों व सार्वजनिक स्थानों पर दिल्ली सरकार की चमचमाती होर्डिंग दिख जाती है। इनमें दिल्ली मैट्रो को दिल्ली के विकास के साथ जोड़ा गया है जिसमें करीब 22 लाख यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं। दिल्ली मैट्रो का रजिस्ट्रेशन 3 मई 1995 को कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत हुआ था। दिल्ली मैट्रो में हम और आप इसलिए सफर करते हैं कि जल्दी से अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच जायें। मेट्रो स्टेशन पर पहुंचते ही हमें चिलचिलाती धूप और कान को चीरती गाड़ियों की सायरन से राहत मिलती है। एक्सलेटर (स्वचालित सीढ़ियां) से हम ऊपर या नीचे जाते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हम भारत में नहीं किसी यूरोपीयन देश में आ गये हैं। दिल्ली मेट्रो का भी कहना है कि वो वर्ल्ड श्रेणी की मैट्रो है। मैट्रो परिसर के अन्दर प्रवेश करने से लेकर बाहर निकलते समय तक हमारी हरेक गतिविधियों पर तीसरी आंख (सीसीटीवी) द्वारा नजर रखी जाती है। मैट्रो में जेबतराशी की घटनाएं होती रहती हैं लेकिन आज तक जेबतराशों पर यह तीसरी आंख द्वारा काबू नहीं पाया जा सका। किसी की अश्लील हरकत को ये तीसरी आंख कैद कर लेती है और ये कैद की हुई तस्वीरें मेट्रो अधिकारियों व सेक्स-धंधेबाजों के बीच सांठ-गांठ से सेक्स वीडियो बन कर नेट पर चला जाता है। शासन-प्रशासन कुछ भी नहीं करता; यह केवल एक खबर बन कर रह जाती है। मैट्रो के पास अपना सतर्कता (विजिलंेस) विभाग है लेकिन बहुत सारे केस होने के बावजूद आज तक इसका खुलासा नहीं हो पाया कि मैट्रो द्वारा ली गई तस्वीर बाजार में कैसे पहुंची और उसके लिए कौन जिम्मेदार है? ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जन जागरण व सुरक्षा गॉर्ड की जरूरत है जबकि डीएमआरसी ने जन जागरण पर वर्ष 2011-12 में 228.30 लाख रू. की कटौती की। इसी तरह सुरक्षा में भी 156.16 लाख रू. की कटौती की। विज्ञापन पर वर्ष 2011-12 में वर्ष 2010-11 की तुलना में 12.91 लाख रू. ज्यादा खर्च किया है। वर्ष 2011-12 में डीएमआरसी की आय 641.75 करोड़ रू. बढ़कर 2247.77करोड़ रू. हो गया।
मैट्रो को चलाने के लिए कई विभाग होते हैं, जैसे- प्रोजेक्ट, आपरेशन, मेंटीनेंस, प्रॅापर्टी डेवलपमेंट, एचआर, विजिलेंस आदि। मैट्रो में प्रोजेक्ट और आपरेशन विभाग की मुख्य भूमिका होती है, जो मैट्रो लाईनों का निर्माण और मैट्रो के संचालन की जिम्मेदारी संभालते हैं।
प्रोजेक्ट विभाग में बड़े-बड़े डायरेक्टर जुड़े होते हैं जिनकी तनख्वाह लाखों में होती है। उसी प्रोजेक्ट विभाग में निर्माण कार्य में ठेका मजदूर होते हैं। ये मजदूर दैनिक वेतन भोगी होते हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर कभी 80-100 फीट जमीन के अन्दर, तो कभी 25-35 फीट ऊपर चढ़ कर मैट्रो लाईन का निर्माण करते हैं। निर्माण के दौरान बहुत सारे मजूदरों की मौत होती है। सितम्बर 2010 मंे दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल किए गए एक शपथ-पत्र में दिल्ली मैट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) ने यह स्वीकार किया कि राजधानी के विभिन्न कार्य-स्थलों पर हुई दुर्घटनाओं में कुल 109 मजदूरों की मौत (जबकि वास्तविक संख्या इससे भी अधिक होगी) हुई है। इस आंकड़े को डीएमआरसी ने अपने वेबसाईट पर भी नहीं डाला है। 2010 के बाद और भी रफ्तार से मैट्रो के कार्य हो रहे हैं लेकिन मजदूरों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं मालूम है। तीसरे चरण में चल रहे वर्क प्लेस (काम के स्थान) बादली मोड़ के पास मैं गया था जहां मैट्रो स्टेशन का काम चल रहा है। इस काम का ठेका जे. कुमार इण्टरप्राइजेज कम्पनी के पास है। जे. कुमार इण्टरप्राइजेज ने इस काम को पूरा कराने के लिए दूसरे ठेकेदारों को काम बांट रखा है। उन ठेकेदारों ने दूसरे-तीसरे ठेकेदारों को काम दे रखा है। इस तरह ठेकेदारों के कई लेअर (परत) हैं। मजदूरों का कहना है कि उनकी मजदूरी 5 ठेकेदारों के हाथों से गुजर कर आती है। यहां पर विभिन्न कामों में करीब 400 ठेका मजदूर काम करते हैं जिसमें 90 प्रतिशत बिहार से आये हुए प्रवासी मजदूर हैं।
म.प्र. के भिंड जिले के गुड्डेश, जिनकी उम्र 41 वर्ष हैं और बादली में किराये के कमरे में रहते हैं, इस साईट पर स्वीपर का काम करते हैं। 12 घंटे काम करने पर उन्हें 6500 रु. दिया जाता है। उनको किसी तरह का साप्ताहिक अवकाश तक नहीं दिया जाता है। वे किसी तरह गुजर-बसर कर कुछ पैसे घर पर भेजते हैं जिसमें उनकी पत्नी मां-बाप और चार बच्चों का किसी तरह गुजारा हो पाता है। यहां पर चौकीदारों की ड्यूटी 12 घंटे की होती है। 12 घंटे की ड्यूटी (कोई साप्ताहिक अवकाश के बगैर) पर 5000 से 6000 रु. दिया जाता है। गुरूचरण सिंह, जो कि चौकीदारी का काम करते हैं, सिरसपुर में किराये के कमरे में रहते हैं। इनके पास पहले अपना घर भारत नगर (दिल्ली) में था जिसको दिल्ली सरकार ने 335 घरों के साथ तोड़ दिया। उनको 12 घंटे का 6000 रू. मिलता है वो भी समय से नहीं। कभी कभी तो महीने के 30 तारीख तक तनख्वाह मिल पाती है। पहले महीने में तो 50-60 दिन काम करने के बाद ही पैसा मिलता है। उनकी बेटी ने 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी, क्योंकि वे आगे पढ़ा नहीं सकते थे।
यहां पर तीन ठेकेदारों को सरिया का काम दिया गया है। प्रभुदयाल, जो सिद्धार्थनगर, उ.प्र. से हैं और 2 माह से काम करते हैं, को 180 रू. प्रतिदिन के हिसाब से ही भुगतान किया जा रहा है। मैट्रो में दैनिक मजदूरी दिल्ली में आम जगह पर मिलने वाली मजदूरी से कम है। यहां पर कारीगर (मिस्त्री) को 300 रू. दिये जाते हैं जबकि दिल्ली में 400-500 रू. मिस्त्री की मजदूरी है। 12 अगस्त् को रहीबुल, हबुल, राजकुमार, इश्तकार गाटर चढ़ाने का काम कर रहे थे। गाटर फिसल कर गिर गया जिसमें तीन के सिर पर चोट आई व रहीबुल का दाहिना हाथ टूट गया है, जिसमें सरिया लगा हुआ है। उनका ईलाज ठेकेदार इसान अस्पताल, बादली से करा रहा है जो कि बहुत ही छोटा अस्पताल है। इस मजदूर को प्रतिदिन साइट (काम करने के स्थान) पर बुलाया जाता है, जहां वो पूरा दिन बैठा रहता है तब उसकी मजदूरी दी जाती है। अगर वह साइट पर न आये तो उस दिन की उसको मजदूरी नहीं मिलती है। अभी तक उसको कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया है, न ही कोई एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई है। रहीबुल को यह डर है कि हाथ ठीक होने के बाद उसको निकाल दिया जायेगा। टीपीएल, स्क्रोपयन वीकील सर्विस प्राइवेट लिमिटेड इत्यादि कम्पनियों का ठेका है। जे. कुमार इण्टरप्राइजेज द्वारा रोहणी सेक्टर 18 में मेट्रो का काम चल रहा है जहां कि सुरक्षा मानको का ध्यान नहीं रखा जाता है जिसके कारण 16 सितम्बर, 2013 को 14 फीट गड्ढे में तीन मजदूर मिट्टी गिरने से दब गये, इसमें एक मजदूर उमाशंकर की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गये। वर्ल्ड श्रेणी की कहे जाने वाली मैट्रो इस मजदूर को गड्ढ़े से निकालने में तीन घंटा का समय लगाया। जुलाई-अगस्त महिने में भी बादली में एक मजदूर की मौत हो गई थी गाटर गिरने से यहा पर भी जे कुमार इण्टरप्रजेज का ही काम चल रहा है।
मेट्रो में अलग-अलग विभाग होता है। मुख्यतः मैट्रो ट्रेनों को संचालित करने का काम आपरेशन विभाग का होता है। इस विभाग में सीआरए (कस्टमर रिलेशनशिप असिस्टेंट) होता है जो कि कस्टमर का कूपन रिचॉर्ज करता है व कस्टमर की शिकायतों को सुनता है। इसकी ड्यूटी 8-8 घंटे की दो शिफ्ट में होती है। एस.सी. (स्टेशन कंट्रोलर) और टी.ओ. (ट्रेन आपॅरेटर) दोनों की ट्रेनिंग एक ही व्यक्ति की होती है जो कि तीन वर्ष पर या जरूरत के अनुसार बदली जाती है। इन्हीं को प्रमोशन करके एस.एम. (स्टेशन मैनेजर) बनाया जाता है। एस.एम. की ड्यूटी 8 घंटे की होती है और इनका शिफ्ट भी एक ही होता है। यानी केवल 8 घंटे ही स्टेशन मैनेजर होता है और इन 8 घंटों में दो स्टेशनों की जिम्मेदारी होती है, जबकि मैट्रो करीब 17 घंटे संचालित होती है। इन तीनों पदों के कर्मचारी स्थायी होते हैं।
इसके अलावा इसमें भारी संख्या में ठेकेदारों के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं। जे.एम.डी., वेदी एण्ड वेदी, ट्रीग, गु्रप 4, आशा इण्टरप्राइजेज जैसी बड़ी कम्पनियों के अलावा करीब डेढ़ दर्जन कम्पनियां कर्मचारी/मजदूर मुहैय्या कराती हैं। ठेका पाने के लिए इन कम्पनियों में होड़ रहती है। ये कम्पनियां डी.एम.आर.सी. के डायरेक्टरों/अधिकारियों को अलग- अलग तरीके से प्रभावित करके ठेका हासिल करती हैं। कम्पनियों द्वारा अधिकारियों पर किये गये खर्च मजदूरों/ कर्मचारियों से वसूले जाते हैं- जैसे कि टाम आपरेटरों को 50-60 हजार रू. लेकर नियुक्ति की जाती है। 25 हजार रू. तो सिक्युरिटी के नाम पर होता है जो कि काम से हटने के बाद वापस मिल जाता है। बाकी के पैसे दलालों द्वारा ठेकेदार व मैट्रो अधिकारियों के जेब में जाता है। वहीं हाऊस कीपर और सिक्युरिटी गार्ड से 5000 रू. वर्दी के नाम पर ले लिया जाता है।
टाम आपरेटर (काउंटर पर टोकन देने वाला), हाउस कीपिंग (सफाई कर्मचारी), सिक्युरिटी गार्ड मैट्रो परिचालन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। टाम आपरेटर 12वीं से अधिक पढे-लिखे होते हैं। उनकी ड्यूटी टाइम में थोड़ा देर होने से मैट्रो यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये महीने में करीब 8500-9000 रू. वेतन पा जाते हैं। अधिक यात्रियों की संख्या होने पर इनको लंच करने तक का समय नहीं मिलता है। इनकी ड्यूटी कागज में 8 घंटे की होती है लेकिन इनकी असली ड्यूटी 9 घंटे की हो जाती है। 15 मिनट से अधिक लेट होने पर इन पर 500 रू. की फाईन लग जाती है। अगर इनके हिसाब में 6 रू. से कम या अधिक पाया जाये या गलती से अपना पैसा भी पॉकेट में चला जाये तो इन पर मैट्रो की भाषा में हिडेन (चोरी) का आरोप लग जाता है। इनके ऊपर हमेशा ही नौकरी जाने का खतरा मंडराता रहता है। कई बार किसी कारण से पहुंचने में देर हो गयी, अगर दो-चार बार हिडेन का आरोप लगा या ठेकेदार बदल जाये तो इनकी नौकरी जाना लाजमी है।
एक महिला नागलोई मेट्रो स्टेशन पर 11 मई 2013 से कार्यरत थी। उनको कोई नोटिस/चेतावनी दिये बिना अचानक 24 अगस्त को निकाल दिया गया। 23 अगस्त को वो अपनी ड्यूटी से वापस आई तो उनके मोबाईल पर उनके सुपरवाईजर का मेसेज (संदेश) आया कि कल उनका ऑफ है और वे लक्ष्मी नगर जे.एम.डी. ऑफिस में चली जायें। जब वह महिला लक्ष्मी नगर जे.एम.डी. ऑफिस गई तो उनको लेटर दे दिया गया कि आपकी सेवा समाप्त की जा रही है। इस का कोई कारण नहीं बताया गया, न ही उनको नोटिस दिया गया और न ही कभी उनको किसी तरह की चेतावनी दी गई थी। 25 हजार सिक्युरिटी के पैसे के लिए बोले कि 10 दिन बाद मिल जायेगा। 10 दिन बाद भी उनका पैसा वापस नहीं आने पर फोन किया तो जवाब मिला कि कुछ दिन और रूकिये, आपको पैसा मिल जायेगा। उनकी जुलाई 2013 की तनख्वाह भी अभी (9 सितम्बर) तक नहीं मिली है। इस महिला का जेएमडी के द्वारा ईएसआई, पीएफ काट लिया जाता था लेकिन न तो इनको ईएसआई कार्ड मिला, न ही पीएफ नम्बर दिया गया था।
स्थायी मजदूरों को वेतन तथा छुट्टियां तो मिल जाती हैं लेकिन उनके ऊपर भी नौकरी जाने का खतरा हर समय मंडराता रहता है। अगस्त् 2013 में 16 सीआरए और एक ट्रेन आपरेटर को निलम्बित कर दिया गया है। ट्रेन आपरेटर की गलती बस ये थी कि उसने डीएमआरसी के बनाये नियम का पालन करना चाहा। डीएमआरसी का नियम है कि मैट्रो कैब (ड्राइबर का स्थान) के अन्दर ट्रेन ऑपरेटर के अलावा कोई नहीं होगा। इलेक्ट्रिकल डीजीएम (जो कि अपना पहचान पत्र भी नहीं दिखा रहे थे) कैब में यात्रा करना चाह रहे थे। ट्रेन आपरेटर ने उन्हें यात्रा करने से मना करा दिया। नियम पालन करने का ईनाम उनको नौकरी से निकाल कर दिया गया, जिसके विरोध में 30 अगस्त, 2013 को मैट्रो ट्रेन आपरेटरों ने काली पट्टी बांध कर ट्रेन को चलाया। मैट्रो कर्मचारियांे/मजदूरों की कोई यूनियन नहीं है। अगर कोई यूनियन बनाने की कभी कोशिश करता है तो उसको निकाल दिया जाता है। हाउस कीपिंग (सफाई कर्मचारी) व गॉर्ड को न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है, न ही उनके लिए कोई अवकाश है। डीएमआरसी ने 2011-12 की वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है कि 31 मार्च, 2012 तक 6341 कर्मचारी तथा 579 अधिकारी डीएमआरसी में काम करते थे, यानी डीएमआरसी ठेका कर्मचारियों/मजदूरों को अपना नहीं मानता है। यह अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के नियमों का खुला उल्लंघन है।
डीएमआरसी का प्रॉपर्टी डेवलपमेंट विभाग पार्किंग, विज्ञापन व मेट्रो स्टेशनों पर टी स्टाल, रेस्टोरेंट से भी कमाई करता है।
दिल्ली सरकार व डीएमआरसी मैट्रो पर अपनी पीठ थप-थपाते हुए फूले नहीं समाती है और शेखी बघारती है कि वे जनता को विश्वस्तरीय सुविधाएं दे रही हैं। उसी के कर्मचारीं/मजदूर किस हालत में काम कर रहे हैं, उनका किस तरह शोषण किया जा रहा है उससे डीएमआरसी आंखे बंद किये हुए है। डीएमआरसी के बनाये नियमों को ठेकेदार व अधिकारी नहीं मानते हैं जो कि डीएमआरसी के अध्यक्ष भी जानते हैं। फिर भी सरकार व डीएमआरसी आंखें मूंदे उन्हें मनमानी करने की पूरी छूट दे रखी है। डीएमआरसी कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत है फिर कम्पनी अधिनियम व अन्तर्राष्टीªय श्रम संगठन का उल्लंघन डीएमआरसी में क्यों हो रहा है? मैट्रो एसएमएस जिस तरह से बाजार में आया उसके लिए कौन जिम्मेदार है, उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जन जागरण व सुरक्षा पर खर्च कम क्यों किये जा रहे हैं? क्या यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी डीएमआरसी को नहीं लेनी चाहिए? इन सभी सवालों का जबाब क्या हम मैट्रो में सफर करने वाले यात्री डीएमआरसी से मांग सकते है? यात्रियों का क्या यह फर्ज नहीं है कि वे अपनी सुरक्षा तथा कर्मचारियों/मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठायें?
दिल्ली के बस स्टॉपों, चौराहों व सार्वजनिक स्थानों पर दिल्ली सरकार की चमचमाती होर्डिंग दिख जाती है। इनमें दिल्ली मैट्रो को दिल्ली के विकास के साथ जोड़ा गया है जिसमें करीब 22 लाख यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं। दिल्ली मैट्रो का रजिस्ट्रेशन 3 मई 1995 को कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत हुआ था। दिल्ली मैट्रो में हम और आप इसलिए सफर करते हैं कि जल्दी से अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच जायें। मेट्रो स्टेशन पर पहुंचते ही हमें चिलचिलाती धूप और कान को चीरती गाड़ियों की सायरन से राहत मिलती है। एक्सलेटर (स्वचालित सीढ़ियां) से हम ऊपर या नीचे जाते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हम भारत में नहीं किसी यूरोपीयन देश में आ गये हैं। दिल्ली मेट्रो का भी कहना है कि वो वर्ल्ड श्रेणी की मैट्रो है। मैट्रो परिसर के अन्दर प्रवेश करने से लेकर बाहर निकलते समय तक हमारी हरेक गतिविधियों पर तीसरी आंख (सीसीटीवी) द्वारा नजर रखी जाती है। मैट्रो में जेबतराशी की घटनाएं होती रहती हैं लेकिन आज तक जेबतराशों पर यह तीसरी आंख द्वारा काबू नहीं पाया जा सका। किसी की अश्लील हरकत को ये तीसरी आंख कैद कर लेती है और ये कैद की हुई तस्वीरें मेट्रो अधिकारियों व सेक्स-धंधेबाजों के बीच सांठ-गांठ से सेक्स वीडियो बन कर नेट पर चला जाता है। शासन-प्रशासन कुछ भी नहीं करता; यह केवल एक खबर बन कर रह जाती है। मैट्रो के पास अपना सतर्कता (विजिलंेस) विभाग है लेकिन बहुत सारे केस होने के बावजूद आज तक इसका खुलासा नहीं हो पाया कि मैट्रो द्वारा ली गई तस्वीर बाजार में कैसे पहुंची और उसके लिए कौन जिम्मेदार है? ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जन जागरण व सुरक्षा गॉर्ड की जरूरत है जबकि डीएमआरसी ने जन जागरण पर वर्ष 2011-12 में 228.30 लाख रू. की कटौती की। इसी तरह सुरक्षा में भी 156.16 लाख रू. की कटौती की। विज्ञापन पर वर्ष 2011-12 में वर्ष 2010-11 की तुलना में 12.91 लाख रू. ज्यादा खर्च किया है। वर्ष 2011-12 में डीएमआरसी की आय 641.75 करोड़ रू. बढ़कर 2247.77करोड़ रू. हो गया।
मैट्रो को चलाने के लिए कई विभाग होते हैं, जैसे- प्रोजेक्ट, आपरेशन, मेंटीनेंस, प्रॅापर्टी डेवलपमेंट, एचआर, विजिलेंस आदि। मैट्रो में प्रोजेक्ट और आपरेशन विभाग की मुख्य भूमिका होती है, जो मैट्रो लाईनों का निर्माण और मैट्रो के संचालन की जिम्मेदारी संभालते हैं।
प्रोजेक्ट विभाग में बड़े-बड़े डायरेक्टर जुड़े होते हैं जिनकी तनख्वाह लाखों में होती है। उसी प्रोजेक्ट विभाग में निर्माण कार्य में ठेका मजदूर होते हैं। ये मजदूर दैनिक वेतन भोगी होते हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर कभी 80-100 फीट जमीन के अन्दर, तो कभी 25-35 फीट ऊपर चढ़ कर मैट्रो लाईन का निर्माण करते हैं। निर्माण के दौरान बहुत सारे मजूदरों की मौत होती है। सितम्बर 2010 मंे दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल किए गए एक शपथ-पत्र में दिल्ली मैट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) ने यह स्वीकार किया कि राजधानी के विभिन्न कार्य-स्थलों पर हुई दुर्घटनाओं में कुल 109 मजदूरों की मौत (जबकि वास्तविक संख्या इससे भी अधिक होगी) हुई है। इस आंकड़े को डीएमआरसी ने अपने वेबसाईट पर भी नहीं डाला है। 2010 के बाद और भी रफ्तार से मैट्रो के कार्य हो रहे हैं लेकिन मजदूरों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं मालूम है। तीसरे चरण में चल रहे वर्क प्लेस (काम के स्थान) बादली मोड़ के पास मैं गया था जहां मैट्रो स्टेशन का काम चल रहा है। इस काम का ठेका जे. कुमार इण्टरप्राइजेज कम्पनी के पास है। जे. कुमार इण्टरप्राइजेज ने इस काम को पूरा कराने के लिए दूसरे ठेकेदारों को काम बांट रखा है। उन ठेकेदारों ने दूसरे-तीसरे ठेकेदारों को काम दे रखा है। इस तरह ठेकेदारों के कई लेअर (परत) हैं। मजदूरों का कहना है कि उनकी मजदूरी 5 ठेकेदारों के हाथों से गुजर कर आती है। यहां पर विभिन्न कामों में करीब 400 ठेका मजदूर काम करते हैं जिसमें 90 प्रतिशत बिहार से आये हुए प्रवासी मजदूर हैं।
म.प्र. के भिंड जिले के गुड्डेश, जिनकी उम्र 41 वर्ष हैं और बादली में किराये के कमरे में रहते हैं, इस साईट पर स्वीपर का काम करते हैं। 12 घंटे काम करने पर उन्हें 6500 रु. दिया जाता है। उनको किसी तरह का साप्ताहिक अवकाश तक नहीं दिया जाता है। वे किसी तरह गुजर-बसर कर कुछ पैसे घर पर भेजते हैं जिसमें उनकी पत्नी मां-बाप और चार बच्चों का किसी तरह गुजारा हो पाता है। यहां पर चौकीदारों की ड्यूटी 12 घंटे की होती है। 12 घंटे की ड्यूटी (कोई साप्ताहिक अवकाश के बगैर) पर 5000 से 6000 रु. दिया जाता है। गुरूचरण सिंह, जो कि चौकीदारी का काम करते हैं, सिरसपुर में किराये के कमरे में रहते हैं। इनके पास पहले अपना घर भारत नगर (दिल्ली) में था जिसको दिल्ली सरकार ने 335 घरों के साथ तोड़ दिया। उनको 12 घंटे का 6000 रू. मिलता है वो भी समय से नहीं। कभी कभी तो महीने के 30 तारीख तक तनख्वाह मिल पाती है। पहले महीने में तो 50-60 दिन काम करने के बाद ही पैसा मिलता है। उनकी बेटी ने 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी, क्योंकि वे आगे पढ़ा नहीं सकते थे।
यहां पर तीन ठेकेदारों को सरिया का काम दिया गया है। प्रभुदयाल, जो सिद्धार्थनगर, उ.प्र. से हैं और 2 माह से काम करते हैं, को 180 रू. प्रतिदिन के हिसाब से ही भुगतान किया जा रहा है। मैट्रो में दैनिक मजदूरी दिल्ली में आम जगह पर मिलने वाली मजदूरी से कम है। यहां पर कारीगर (मिस्त्री) को 300 रू. दिये जाते हैं जबकि दिल्ली में 400-500 रू. मिस्त्री की मजदूरी है। 12 अगस्त् को रहीबुल, हबुल, राजकुमार, इश्तकार गाटर चढ़ाने का काम कर रहे थे। गाटर फिसल कर गिर गया जिसमें तीन के सिर पर चोट आई व रहीबुल का दाहिना हाथ टूट गया है, जिसमें सरिया लगा हुआ है। उनका ईलाज ठेकेदार इसान अस्पताल, बादली से करा रहा है जो कि बहुत ही छोटा अस्पताल है। इस मजदूर को प्रतिदिन साइट (काम करने के स्थान) पर बुलाया जाता है, जहां वो पूरा दिन बैठा रहता है तब उसकी मजदूरी दी जाती है। अगर वह साइट पर न आये तो उस दिन की उसको मजदूरी नहीं मिलती है। अभी तक उसको कोई मुआवजा भी नहीं दिया गया है, न ही कोई एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई है। रहीबुल को यह डर है कि हाथ ठीक होने के बाद उसको निकाल दिया जायेगा। टीपीएल, स्क्रोपयन वीकील सर्विस प्राइवेट लिमिटेड इत्यादि कम्पनियों का ठेका है। जे. कुमार इण्टरप्राइजेज द्वारा रोहणी सेक्टर 18 में मेट्रो का काम चल रहा है जहां कि सुरक्षा मानको का ध्यान नहीं रखा जाता है जिसके कारण 16 सितम्बर, 2013 को 14 फीट गड्ढे में तीन मजदूर मिट्टी गिरने से दब गये, इसमें एक मजदूर उमाशंकर की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गये। वर्ल्ड श्रेणी की कहे जाने वाली मैट्रो इस मजदूर को गड्ढ़े से निकालने में तीन घंटा का समय लगाया। जुलाई-अगस्त महिने में भी बादली में एक मजदूर की मौत हो गई थी गाटर गिरने से यहा पर भी जे कुमार इण्टरप्रजेज का ही काम चल रहा है।
मेट्रो में अलग-अलग विभाग होता है। मुख्यतः मैट्रो ट्रेनों को संचालित करने का काम आपरेशन विभाग का होता है। इस विभाग में सीआरए (कस्टमर रिलेशनशिप असिस्टेंट) होता है जो कि कस्टमर का कूपन रिचॉर्ज करता है व कस्टमर की शिकायतों को सुनता है। इसकी ड्यूटी 8-8 घंटे की दो शिफ्ट में होती है। एस.सी. (स्टेशन कंट्रोलर) और टी.ओ. (ट्रेन आपॅरेटर) दोनों की ट्रेनिंग एक ही व्यक्ति की होती है जो कि तीन वर्ष पर या जरूरत के अनुसार बदली जाती है। इन्हीं को प्रमोशन करके एस.एम. (स्टेशन मैनेजर) बनाया जाता है। एस.एम. की ड्यूटी 8 घंटे की होती है और इनका शिफ्ट भी एक ही होता है। यानी केवल 8 घंटे ही स्टेशन मैनेजर होता है और इन 8 घंटों में दो स्टेशनों की जिम्मेदारी होती है, जबकि मैट्रो करीब 17 घंटे संचालित होती है। इन तीनों पदों के कर्मचारी स्थायी होते हैं।
इसके अलावा इसमें भारी संख्या में ठेकेदारों के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं। जे.एम.डी., वेदी एण्ड वेदी, ट्रीग, गु्रप 4, आशा इण्टरप्राइजेज जैसी बड़ी कम्पनियों के अलावा करीब डेढ़ दर्जन कम्पनियां कर्मचारी/मजदूर मुहैय्या कराती हैं। ठेका पाने के लिए इन कम्पनियों में होड़ रहती है। ये कम्पनियां डी.एम.आर.सी. के डायरेक्टरों/अधिकारियों को अलग- अलग तरीके से प्रभावित करके ठेका हासिल करती हैं। कम्पनियों द्वारा अधिकारियों पर किये गये खर्च मजदूरों/ कर्मचारियों से वसूले जाते हैं- जैसे कि टाम आपरेटरों को 50-60 हजार रू. लेकर नियुक्ति की जाती है। 25 हजार रू. तो सिक्युरिटी के नाम पर होता है जो कि काम से हटने के बाद वापस मिल जाता है। बाकी के पैसे दलालों द्वारा ठेकेदार व मैट्रो अधिकारियों के जेब में जाता है। वहीं हाऊस कीपर और सिक्युरिटी गार्ड से 5000 रू. वर्दी के नाम पर ले लिया जाता है।
टाम आपरेटर (काउंटर पर टोकन देने वाला), हाउस कीपिंग (सफाई कर्मचारी), सिक्युरिटी गार्ड मैट्रो परिचालन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। टाम आपरेटर 12वीं से अधिक पढे-लिखे होते हैं। उनकी ड्यूटी टाइम में थोड़ा देर होने से मैट्रो यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये महीने में करीब 8500-9000 रू. वेतन पा जाते हैं। अधिक यात्रियों की संख्या होने पर इनको लंच करने तक का समय नहीं मिलता है। इनकी ड्यूटी कागज में 8 घंटे की होती है लेकिन इनकी असली ड्यूटी 9 घंटे की हो जाती है। 15 मिनट से अधिक लेट होने पर इन पर 500 रू. की फाईन लग जाती है। अगर इनके हिसाब में 6 रू. से कम या अधिक पाया जाये या गलती से अपना पैसा भी पॉकेट में चला जाये तो इन पर मैट्रो की भाषा में हिडेन (चोरी) का आरोप लग जाता है। इनके ऊपर हमेशा ही नौकरी जाने का खतरा मंडराता रहता है। कई बार किसी कारण से पहुंचने में देर हो गयी, अगर दो-चार बार हिडेन का आरोप लगा या ठेकेदार बदल जाये तो इनकी नौकरी जाना लाजमी है।
एक महिला नागलोई मेट्रो स्टेशन पर 11 मई 2013 से कार्यरत थी। उनको कोई नोटिस/चेतावनी दिये बिना अचानक 24 अगस्त को निकाल दिया गया। 23 अगस्त को वो अपनी ड्यूटी से वापस आई तो उनके मोबाईल पर उनके सुपरवाईजर का मेसेज (संदेश) आया कि कल उनका ऑफ है और वे लक्ष्मी नगर जे.एम.डी. ऑफिस में चली जायें। जब वह महिला लक्ष्मी नगर जे.एम.डी. ऑफिस गई तो उनको लेटर दे दिया गया कि आपकी सेवा समाप्त की जा रही है। इस का कोई कारण नहीं बताया गया, न ही उनको नोटिस दिया गया और न ही कभी उनको किसी तरह की चेतावनी दी गई थी। 25 हजार सिक्युरिटी के पैसे के लिए बोले कि 10 दिन बाद मिल जायेगा। 10 दिन बाद भी उनका पैसा वापस नहीं आने पर फोन किया तो जवाब मिला कि कुछ दिन और रूकिये, आपको पैसा मिल जायेगा। उनकी जुलाई 2013 की तनख्वाह भी अभी (9 सितम्बर) तक नहीं मिली है। इस महिला का जेएमडी के द्वारा ईएसआई, पीएफ काट लिया जाता था लेकिन न तो इनको ईएसआई कार्ड मिला, न ही पीएफ नम्बर दिया गया था।
स्थायी मजदूरों को वेतन तथा छुट्टियां तो मिल जाती हैं लेकिन उनके ऊपर भी नौकरी जाने का खतरा हर समय मंडराता रहता है। अगस्त् 2013 में 16 सीआरए और एक ट्रेन आपरेटर को निलम्बित कर दिया गया है। ट्रेन आपरेटर की गलती बस ये थी कि उसने डीएमआरसी के बनाये नियम का पालन करना चाहा। डीएमआरसी का नियम है कि मैट्रो कैब (ड्राइबर का स्थान) के अन्दर ट्रेन ऑपरेटर के अलावा कोई नहीं होगा। इलेक्ट्रिकल डीजीएम (जो कि अपना पहचान पत्र भी नहीं दिखा रहे थे) कैब में यात्रा करना चाह रहे थे। ट्रेन आपरेटर ने उन्हें यात्रा करने से मना करा दिया। नियम पालन करने का ईनाम उनको नौकरी से निकाल कर दिया गया, जिसके विरोध में 30 अगस्त, 2013 को मैट्रो ट्रेन आपरेटरों ने काली पट्टी बांध कर ट्रेन को चलाया। मैट्रो कर्मचारियांे/मजदूरों की कोई यूनियन नहीं है। अगर कोई यूनियन बनाने की कभी कोशिश करता है तो उसको निकाल दिया जाता है। हाउस कीपिंग (सफाई कर्मचारी) व गॉर्ड को न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है, न ही उनके लिए कोई अवकाश है। डीएमआरसी ने 2011-12 की वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है कि 31 मार्च, 2012 तक 6341 कर्मचारी तथा 579 अधिकारी डीएमआरसी में काम करते थे, यानी डीएमआरसी ठेका कर्मचारियों/मजदूरों को अपना नहीं मानता है। यह अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के नियमों का खुला उल्लंघन है।
डीएमआरसी का प्रॉपर्टी डेवलपमेंट विभाग पार्किंग, विज्ञापन व मेट्रो स्टेशनों पर टी स्टाल, रेस्टोरेंट से भी कमाई करता है।
दिल्ली सरकार व डीएमआरसी मैट्रो पर अपनी पीठ थप-थपाते हुए फूले नहीं समाती है और शेखी बघारती है कि वे जनता को विश्वस्तरीय सुविधाएं दे रही हैं। उसी के कर्मचारीं/मजदूर किस हालत में काम कर रहे हैं, उनका किस तरह शोषण किया जा रहा है उससे डीएमआरसी आंखे बंद किये हुए है। डीएमआरसी के बनाये नियमों को ठेकेदार व अधिकारी नहीं मानते हैं जो कि डीएमआरसी के अध्यक्ष भी जानते हैं। फिर भी सरकार व डीएमआरसी आंखें मूंदे उन्हें मनमानी करने की पूरी छूट दे रखी है। डीएमआरसी कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत है फिर कम्पनी अधिनियम व अन्तर्राष्टीªय श्रम संगठन का उल्लंघन डीएमआरसी में क्यों हो रहा है? मैट्रो एसएमएस जिस तरह से बाजार में आया उसके लिए कौन जिम्मेदार है, उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जन जागरण व सुरक्षा पर खर्च कम क्यों किये जा रहे हैं? क्या यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी डीएमआरसी को नहीं लेनी चाहिए? इन सभी सवालों का जबाब क्या हम मैट्रो में सफर करने वाले यात्री डीएमआरसी से मांग सकते है? यात्रियों का क्या यह फर्ज नहीं है कि वे अपनी सुरक्षा तथा कर्मचारियों/मजदूरों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठायें?
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