साप्ताहिक न्यूयॉर्कर में टाइम्स ऑफ इंडिया के धतकर्मों पर केन ऑलेटा का यह
ज़रूरी आलेख जिसने न पढ़ा हो, वो एक बार इससे ज़रूर गुजरे। भारतीय
पत्रकारिता में टाइम्स ऑफ इंडिया जिस तरह ट्रेंड सेटर के तौर पर उभरा है और
जिस तरह बीते 2-3 दशकों से विज्ञापन के बोझ तले कंटेंट की हत्या हुई है
उसपर टाइम्स को कोई पछतावा नहीं है, बल्कि गर्व है। टाइम्स ऑफ इंडिया वाले
विनीत जैन का मानना है कि वो ख़बरों के नहीं बल्कि विज्ञापन के धंधे में
हैं। ज़रूर पढ़े।पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें....
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