16 अप्रैल 2008

जार्ज बुस से कहो कि साम्यवाद का भूत जिन्दा है! नेपाल में माओवादी दौर :-


आनंद स्वरूप वर्मा नेपाल विषय के जानकार है इन्होंने नेपाल का वह काल भी देखा है जब राजतंत्र की तूती बोलती थी पर समय और काल बदलता गया घट्नाये घटती गयी आनंद की आखों के सामने ही शुरू हुआ माओवादी आंदोलन आज जिस मुकाम पर है उसका एक आंकलन .....
नेपाल के १० अप्रैल को सम्पन्न संविधान सभा के नतीजो ने सबको हैरानी में डाल दिया है. राजनीतिक विश्लेषकों, चुनाव विशेषग्यों, और भारत तथा अमेरिका के खुफिया तन्त्रों के सभी अनुमानो को गलत साबित करते हुए नेपाल में माओवादियों ने संविधान सभा के चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की. जहां तक मीडिया का और खास तौर पर नेपाली मीडिया का सवाल है, उसने शुरू से ही यह भ्र्म फैलाने की कोशिश की कि माओवादियों का जिस तरह से जन समर्थन दिखायी देता रहा है, वह उनकी लोकप्रियता के कारण नहीं, बल्कि जनता में व्याप्त उनकी बंदूक के भय के कारण है. इस प्रचार को वर्षों तक इतनी बार तरह तरह से दोहराया गया कि बहुत सारे लोगों को यह सच लगने लगा था. इसके बाद लोगों के बीच यह कहना आसान हो जाता था कि माओवादियों का युवा संगठ्न वाईसीएल(यंग कम्युनिष्ट लीग)जनता को ड्राने धमकाने और लूटपाट में लगा रहता है. यह प्रचार मीडिया से ज्यादा नेपाली कांग्रेस और नेकपा के नेताओं द्वारा किया गया, क्योंकि उन्हें लगता था कि इस प्रचार के जरिये ही वे अपनी अलोक्प्रियता पर पर्दा डाल सकते है. इसी के साथ ही यह प्रचार भी किया जाता रहा कि माओवादिइ चुनाव नही चाहते. अतीत में संविधान सभा के चुनाव दो बार स्थगित हुए और पार्टियों ने यही आरोप लगाया कि माओवादियों ने चुनाव नहीं होने दिया. इन पार्टियों का कहना था कि माओवादी चुनाव से भाग रहे है. नेकपा (माओवादी) नेता प्रचंड,बाबूराम भट्टाराई तथा अन्य लोग बराबर यह कहते रहे कि संविधान सभा के गठन और देश की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्क्रितिक पुनर्सनरचना के लिये हमने दस वर्श तक सशस्त्र संघर्ष चलाया और दस हजार से ज्यादा लोगों ने अपना बलिदान किया और हम पर ही आरोप लगाया जा रहा है कि हम चुनाव नहीं चाहते. चुनाव के प्रारम्भिक परिणामों ने ही लोगों को हैरानी में डाल दिया. काठ्मांडू घाटी एमाले का कई दशकों से गढ माना जाता रहा है.यहां कुल पंद्रह सीटे है. काठ्मांडु शहर में दस,ललित पुर में तीन, और भक्त पुर में दो सीटे है। पंद्रह में से सात सीटों पर नेकपा माओवादी, दो पर नेपाल मजदूर किसान पार्टी, और छः सीटों पर नेपाली कांग्रेस को सफलता मिली है. एमाले को एक भी सीट नही मिली है. इतना ही नही पार्टी के महासचिव माघव नेपाल को काठ्मांडु दो निर्वाचन छेत्र में झक्कु प्रसाद सुबैदी नामक एक लगभग अनजान से माओवादी के हाथ पराजय नही अपमान जनक पराजय का मुह देखना पडा है. काठ्मांडु घाटी में इनकी केन्द्रीय समिति के तीन प्रमुख सदस्यों ईश्वर पोखरेल, रघु पंत और प्रदीप नेपाल को पराजय का सामना करना पडा.

माओवादियों की व्यूहरचना:-
१० अप्रैल का चुनाव सचमुच सम्पन्न हो सकेगा इस बारे में अंत तक अनिश्चय की स्थिति बनी रही. शुरू में इसलिये, क्यंकि माओवादी तत्वों को आभास मिल गया था कि माओवादियों के जनाधार में कोई कमी नही आयी है. धीरे धीरे भारत के प्रयास से एमाले और माओवादियों के बीच वह एकता नही हो सकी , जिसे माओवादी वम एकता की दिशा में पहला कदम मानते थे. दूसरी तरफ इन्ही त्त्वों के प्रयास से कोइराला के नेत्रित्व वाली देउबा के बीच फिर एकीकरण हो गया. यह सब हो जाने के बद अब मधेस में शान्ति की जरूरत थी, वर्ना चुनाव नही हो पाते. लिहाजा नेपाल स्थित भारतीय दूतावासों में मार्च में नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और मधेसी मुद्दे पर आंदोलन कर रहे नेताओं के बीच बात चीत हुई जिसके बाद प्रधान्मन्त्री निवास में एक आठ सूत्री समझौता हुआ.
अब चुनाव का मार्ग प्रसस्त हो गया था. माओवादिओं के खिलाफ एक व्यूह रचना हो गयी थी. नेपाली कांग्रेस, एमाले, दरबार, भारत और अमेरिका संघ निश्चित थे कि इस चुनावी अखाडे मे माओवादियों को धूल चट्यी जा सकती है. माओवादियों ने भी कुछ ऎसा ही रूख दिखाया. जिससे विरोधी खेमे का यह भ्रम बना रहे . उन्हे पता था कि अगर विरोधी खेमे को माओवादियों कि सफलता का थोडा भी संकेत मिल जायेगा तो चुनाव फिर स्थगित हो सकता है. हालांकि माओवादियों के नेता प्रचंड ने बहुत साफ शब्दों में एलान कर दिया था कि इस बार चुनाव स्थगित हुआ तो यह पूरे देश के लिये विध्वंसकारी होगा विरोधी खेमे ने यह प्रचारित करना शुरू किया चुनाव में बडे पैमाने पर वाइसीएल द्वारा हिंसा और बूथ लूट्ने की घट्नाए होंगी. इस आशंका को देखते हुए राष्टीय और अंतर्राष्टीय प्रेक्छकों का बहुत बडा जत्था तैयार कर दिया गया. जहां तक वाइसीएल का संबंध है इसमे कोई संदेह नही है कि विभिन्न चुनाव छेत्रो व निर्वाचन छेत्रों मे माओवादियों ने बहुत बडी तादात में वाइसील कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की थी. लेकिन इसका मकसद बूथ लूट्ना नहीं बल्कि नेपाली कांग्रेस और एमाले के परंपरागत बूथलुटेरों द्वारा संभावित घट्नाओं को रोकना था. इस काम में उन्हें सफलता भी मिली. अमेरिका के पूर्व राष्ट्पति जिमि कार्टर स्वंय अपनी पत्नी के साथ ६० प्रेछ्कों की टीम लेकर आये थे.जितने शांतिपूर्ण,व्यवस्थित, और अनुशासित ढंग से चुनाव हुआ उसे देखकर इन सबने यही कहा कि विगत कुछ वर्षों में इतना निष्पछ और शांति पूर्ण चुनाव कहीं देखने को नही मिला. इस शांति पूर्ण और निष्पछ चुनाव से बहुत सारे लोग निश्चिन्त हो गये कि अब माओवादी जीत नहीं सकेंगे.

अवसरवादियों का सफाया:-
इस चुनाव ने एमाले को बहुत बडा झटका तो दिया ही है, नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रधान्मन्त्री गिरजा प्रसाद कोइराला के मंसूबे पर भी पानी फेर दिया. उनकी बेटी सुजाता कोइराला भतिइजे शेखर कोइराला और पार्टी अध्यछ सुशील कोइराला सभी को हार का सामना करना पडा. सबसे दिल्चस्प यह है कि जनयुद्ध के नायकों के रूप में चर्चित नेताओं को रिकार्ड मतों से सफलता मिली. सेल्पा में प्रचंड को ३४२२० और माधव नेपाल के उम्मीदवार को ६०२९ वोट मिले. गोरखा निर्वाचन छेत्र में बाबूराम भट्टाराई को ४६२७२ वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वन्दी नेपाली कांग्रेस के चंद्र प्रसाद न्योपाने को ६१४३ और एमाले के हरि प्रसाद काले को २०८३ वोट मिले. इस प्रकार जन्युद्ध के दौरान पाल्पा के राज्महल पर हुए आक्रमण का संचालन करने वाले कमांड्र प्रभाकर को रूकुम निर्वाचन छेत्र में ३०२७० वोट मिले जबकि उनके मुकाबले एमाले के शेर बहादुर केसी को ६०६८ वोट मिले दरसल इस चुनाव में एमाले के के.पी. ओली और नेपाली कांग्रेस की सुजाता कोइराला को बुरी तरह हराकर जनता ने यह संदेश देना चाहा कि वह राज्तंत्र के समर्थकों का साथ नहीं देगी. ये दोनों लोग किसी न किसी रूप में राजतंत्र को बनाये रखने के पछ में बोलते रहे हैं.इसी प्रकार ग्यानेन्द्र के चहेते कमल थापा की पार्टी को पूरे देश में एक भी सीट न्हीं मिली .
इस बहु प्रतिछित चुनाव के साथ नेपाल अब नये युग में प्रवेश कर रहा है. प्रचंड ने साफ तौर पर कहा है कि नये नेपाल में राज्तंत्र का कोई स्थान नहीं रहेगा. प्रत्यछः चुनाव में माओवादियों को बहुमत मिल गया है और यही रूझान समानुपातिक प्रणाली के तहत हुए मतदान में भी देखने को मिलेगा. बहुमत के बावजूद प्रचंड का यह कहना कि वह अन्य राजतंत्र विरोधी पार्टियों और तत्वों को लेकर सर्कार का गठन करेंगे. उनका मानना है कि नये संविधान के निर्माण में ज्यादा से ज्यादा विचारों को शामिल करना देश के लिये हितकर होगा.

नेपाल चुनाव के कुछ फोटो:-

















5 टिप्‍पणियां:

  1. thank,s for this this is a good artile and your blog is very seirous blog i crazy to see it ............

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  2. नेपाल में माओवादियों को तो बहुमत मिला जैसा सब देख रहे है पर भारत में माओवादियों का कम कुप्रचार नहिं हुआ है उनका जनाधार भी तभी समझ में आयेगा जब भारत मे जन क्रान्ति होगी पर गौर की बत ये है कि भार्त की मेन स्ट्रीम की मीदिया ने इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नही दिखाई है शायद इसलिये कि भारत की माओवादी पार्टी और यहां के जन युध्ध के पछः में चीजे न चली जायं...............

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  3. इसे साम्यवाद का भूत न कहो। यह तो साम्यवाद की दुनियाँ मैं फैली जड़ें हैं। जो बार बार काट देने पर भी बार बार निकल आती हैं। और निकलती रहेंगी।

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  4. नेपाल पर ये एक अच्छी और सन्तुलित रिपोर्ट है. वैकल्पिक मिडीया ही वो माध्यम है जहां ऎसि रिपोर्ट सम्भव है.

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  5. How do you play Barcelona in this year?

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