10 अप्रैल 2008

पवन करण की तीन कवितायें:-



पवन करण जाने माने कवि है उनकी कविता आज के दौर में समाज का शब्दों से प्रतिबिम्बन है हम उनकी कुछ कविताओं को यहां प्रकासित कर रहे है।



इस कदर बेमतलब रहना सिखाया जाता है उन्हें
कि प्रधानमंत्री को हमेशा घेरे में लिये रहते
उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता
प्रधानमंत्री जनता से क्या कह रहे हैं
जिस वक्त प्रधानमंत्री बोले जा रहे होते हैं
कमांडो अपनी बिल्लौट निगाहों से लगातार
देख रहे होते हैं हमें इधर उधर

पेट से बाहर आने को व्यग्र वायु और
मुंह से बाहर छलांग मारने को बेताब हंसी
रोक पाना कितना कठिन होता है
यह कोई पदोड़ और हंसोड़ से पूछे
प्रधानमंत्री के सुनाये जिस चुटकुले पर जनता
मुंह फाड़ कर हंस रही होती है
उसे सुन कर कमांडो के चेहरे पर हंसी तो क्या
मुस्कान की हल्की सी लकीर भी नहीं उभरती

प्रधानमंत्री के पढ़े किसी शेर पर जब सब
दे रहे होते हैं दाद उनके होंठ कसे हुए होते हैं
प्रधानमंत्री की किसी घोषणा पर तालियों की
गड़गड़ाहट में शामिल होने
उनके हाथों की उंगलियां हिलती तक नहीं
वे हमें इतने निरपेक्ष दिखाई देते हैं कि हमें लगता है
वे कभी प्रधानमंत्री के आगे अपने भतीजे की
नौकरी की दरखास्त तक रखने की नहीं सोचते होंगे
हम अपने प्रधानमंत्री को हमेशा उन्हीं से घिरे
किसी परियोजना का शिलान्यास करते
किसी सेमीनार में दीप प्रज्ज्वलित करते या फिर
किसी पुल का उद्घाटन करते देखते हुए सोचते हैं
कमांडो के रहते हमारे प्रधानमंत्राी की जान
सुरक्षित है एकदम , कि प्रधानमंत्राी को हरदम
घेरे रहते वे कितने चुस्त दुरस्त ,
सजग, चौकस और आश्चर्यजनक फुर्तीले हैं

कमांडो से घिरे हमारे प्रधानमंत्राी हमें देख कर
मुस्कराते हुए दूर से हाथ हिलाते हैं , हम भी
उन्हें अपनी तरफ हाथ हिलाते देख उनकी तरफ
जोर जोर से हिलाते हैं अपने हाथ , मगर जैसे ही
अपने प्रधानमंत्राी से हम हाथ मिलाने की कोशिश करते हैं
कमांडो हम पर पिस्टल तान लेते हैं

हरदम प्रधानमंत्राी को घेरे रहने वाले ओैर
जरा सी बात पर हम पर गोली दाग देने के लिये तैयार
कमांडो से हमें डर लगता है , क्या हरदम
कमांडो से घिरे रहने वाले और हमारी तरह ही निहत्थे
प्रधानमंत्राी को कभी उनसे डर नहीं लगता ?





हम दूरदराज बैठे कमांडो से घिरे अपने प्रधानमंत्राी को
भारी भरकम प्रतिनिधि मंडल के साथ
विदेश यात्राा पर जाते देखते हैं
प्रतिनिधि मंडल में वही लोग शामिल होते हैं
जो प्रधानमंत्राी से हाथ मिलाने में हो चुके होते हैं कामयाब
हम अपने खाली हाथ अपनी जेबों में घुसेड़े
कमांडो की तनी हुई पिस्टल को करते हुए याद
प्रधानमंत्राी को हवाई जहाज में चढ़ने से पहले
मंत्रिामंडल के साथियों से फूल ग्रहण करते देखते हैं

प्रधानमंत्राी एक एक कर सबसे मुस्कराते
किसी किसी से थोड़ी थोड़ी बात करते
फूल लेते जाते हुए हवाई जहाज पर चढ़ने के लिये
लगी सीढ़ी तक बढ़ते जाते हैं
प्रधानमंत्राी को मिलते जा रहे फूलों को
प्रधानमंत्राी के साथ साथ आगे बढ़ रहे
कमांडो करते जाते हैं खुद के हवाले

विदेश यात्राा पर जाते प्रधानमंत्राी को फूल देने वालों में
मंत्रिामंडल में शामिल वह बुजुर्ग मंत्राी भी होता है
जो प्रधानमंत्राी को प्रधानमंत्राी मानता ही नहीं
जो सरकार में नम्बर दो या
अगला प्रधानमंत्राी माना जाता है जो ठीक
प्रधानमंत्राी के बगल वाले घर में रहता है
और रोज सुबह सोकर उठते ही
प्रधानमंत्राी के घर में पत्थर फेंकता है
और प्रधानमंत्राी के वे कमांडो भी उससे
कुछ नहीं कह पाते जो प्रधानमंत्राी से हाथ मिलाने की
कोशिश करने पर हमारी तरफ पिस्टल तान लेते हैं
प्रधानमंत्राी न चाहते हुए भी उससे हंस कर
फूल ग्रहण करते हैं , वह न चाहते हुए भी
प्रधानमंत्राी को फूल भेंट करता है
प्रधानमंत्राी अपने प्रति उसकी आंखों में
तिरस्कार और उसके होठों पर
कुटिल मुस्कान साफ देखते हुए भी
उससे नहीं कह पाते कि जाइए नहीं लेने
मुझे आपसे फूल और सुनिए आगे से आप कभी
इस मौके पर आना भी नहीं मुझे छोड़ने
कमांडो इनका चेहरा नहीं दिखना चाहिए मुझे
आज के बाद , तुम्हें पता नहीं ये महाशय
मुझे हटा कर खुद प्रधानमंत्राी बनना चाहते हैं

प्रधानमंत्राी के कमांडो प्रधानमंत्राी और उसे फूल लेते देते
देख कर बने रहते हैं सपाट , उसे लेकर
प्रधानमंत्राी की इच्छा को नहीं बनने देते वे अपनी इच्छा
मगर इस बात को याद कर
पेशाबघर में पेशाब करते हुए वे मुस्कराते जरूर हैं।




दूरदराज बैठे हम सोचते हैं हमारे प्रधानमंत्राी
उन कमांडो से जिनसे वे हमेशा घिरे रहते हैं
ठीक उसी तरह कभी हंसी मजाक करते हैं
जैसे वे पत्राकारों से करते हैं
कभी हमने उन्हें किसी कमांडो से बात
करते देखा तो नहीं चलो प्रधानमंत्राी की छोड़ो
क्या कभी प्रधानमंत्राी को खाली पाकर
उन्हें चारों तरफ से घेर कर चलते कमांडो ही उनसे
किसी बात पर बात करने की करते हैं कोशिश

क्या प्रधानमंत्राी किसी कमांडो के बीमार पड़ जाने पर
साथी कमांडो से उसका हाल पूछते हैं ,
उसके लौटने पर उससे कहते हैं
क्यों क्या हो गया था तुम्हें अब तो ठीक हो न ,
हम जैसे दफ्तर के बाबुओं के यहां
जैसे हमारे साहब चले आते हैं क्या प्रधानमंत्राी भी
किसी कमांडो की बेटी की शादी में
लिफाफा लेकर पहुंच जाते हैं
क्या कोई कमांडो भी इस तरह की इच्छा रखता है
कभी प्रधानमंत्राी अपने काफिले को रोक कर पूछें
अरे रमेश तुम्हारा घर तो इसी सड़क पर है न
चलो आज तुम्हारे घर चल कर चाय पीते हैं

प्रधानमंत्राी क्या उन सभी कमांडो
जो उन्हें हमेशा घेरे रहते हैं के नाम जानते हैं
उन्हें पानी चाहिए होता है तो किसी
कमांडो की तरफ देख कर वे सिर्फ पानी कहते हैं
या रणवीर पानी तो लाओ कहते हैं

और तो और वे कमांडो प्रधानमंत्राी के इर्द गिर्द
कहां कहां घेरा बनाये रहते हैं
क्या उस जगह के बाहर दरवाजे पर भी
जिसमें हमारे बुजुर्ग प्रधानमंत्राी के पायजामे की गांठ
अक्सर देर तक खुलती नहीं है तब क्या
प्रधानमंत्राी उसे खोलने उन्हीं में से
किसी एक को आवाज देकर बुलाते हैं

कमाल है कि अपने प्रधानमंत्राी को तो हमने
अक्सर ऊंघते , सोते, उबासी लेते देखा है
मगर प्रधानमंत्राी को घेरे रहते कमांडो को हमने आज तक
छींकते , खुजाते, नाक में उंगली मारते नहीं देखा

हम सोचते है हमारे प्रधानमंत्राी कभी अपने कमांडो से
हमारे बारे में भी बात करते होंगे
क्या वे कभी उनसे कहते होंगे जहां तक
जनता पर तुम्हारे बंदूक तान लेने की बात है
वो तो ठीक है मगर मेरा तुमसे अनुरोध है
कभी उन पर गोली मत चला देना।
तद्भव से साभार...........

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