अनिल मिश्र
पिछले सप्ताह जापान में सुनामी के साथ आए भूकंप ने समूची दुनिया को दहला कर रख दिया है. इस विभीषिका से होने वाले नुक़सानों का वास्तविक आकलन, एड़ी चोटी के प्रयासों के बावजूद, अभी तक नहीं हो पाया है. सब कुछ धरती के नीचे दफ़्न हो जाने की सैकड़ों ख़बरें अभी तक आ रही हैं. रही सही कसर परमाणु संयंत्रों में विस्फ़ोट के बाद विकिरण के ख़तरे ने पूरी कर दी है जिसके असर कई कई सालों और पीढ़ियों तक मारक होते हैं.
जापान के प्रधानमंत्री नाओतो कान के बयान कि ’दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह उनके देश में सबसे भयानक तबाही है, और कुछ मायनों में उससे भी ज़्यादा विनाशकारी’, के कई पहलू हैं. इसे प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो चुके एक देश द्वारा महज वैश्विक मानवीय सहायता और सहानुभूति की अपील की तरह देखना पर्याप्त नहीं होगा. प्रधानमंत्री का बयान परमाणु ऊर्जा के ख़तरनाक पहलुओं की भी एक स्वीकारोक्ति है. मानवतावादी संकटों से निपटना निश्चित ही एक अहम और तात्कालिक चुनौती है. लेकिन परमाणु संयंत्रों में विस्फ़ोट और विकिरण के जो खतरे पैदा हो रहे हैं उनसे निपटना आने वाले दिनों में बेहद कठिन होगा. साथ ही, ऊर्जा के लिए परमाणु ईंधन को प्रोत्साहन देने वाले अन्य देशों की योजनाओं के लिए इससे कई महत्वपूर्ण सबक़ मिले हैं.
हिरोशिमा पर बमबारी से दूसरे विश्वयुद्ध का ख़ात्मा हुआ. तब यह सिर्फ़ युद्ध की समाप्ति की घोषणा नहीं थी बल्कि एक देश को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया गया था. हिरोशिमा और नागासाकी पर जो परमाणु बम गिराए गए थे उनके प्रभाव कुछ लोगों और कुछ दिनों तक ही नहीं सीमित रहे. जापान अब तक, इस विभीषिका के पहले तक, हिरोशिमा के नासूर प्रभावों से पूरी तरह छुटकारा नहीं पा सका था. विकिरण प्रभावों के कारण अपंगता, कैंसर, कु-समय जचगी, दृष्टीहीनता समेत कई नई तरह की बीमारियां जापान की कई पीढ़ियों की जैसे नियति हो गई हों. दुनिया भर में इस बमबारी के बाद परमाणु बमों की ज़रूरत पर तीखी बहसें हुईं. कई वैज्ञानिकों ने एक मत से इसकी मुख़ालफ़त की थी. आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने तो परमाणु बम बनाने की अपनी कोशिशों के लिए अफ़सोस तक ज़ाहिर किया था. दूसरे विश्वयुद्ध की यह तबाही मानव इतिहास में अब तक की सर्वाधिक बर्बर कारवाइयों में से एक थी जिसने भारी पैमाने पर न सिर्फ़ जान-माल को क्षति पहुंचाई थी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों, उनके भविष्य को निगलने में भी कोई कसर नही छोड़ी थी.
सुनामी और भूकंप से जापान के एक अन्य शहर फ़ुकुशिमा में देश के छः में से कम से कम चार परमाणु संयंत्रों में ज़बर्दस्त विस्फ़ोट हुआ है. छन छन कर आ रही ख़बरों के मुताबिक़ परमाणु संयंत्रों के ऊपर विकिरण फैल गया है और जल्द ही संयुक्त राज्य अमेरिका तक इसके असर फैल चुके है. परमाणु संयंत्रों में लगी आग को बुझाने के लिए हवाई जहाज़ के ज़रिये पानी उड़ेला जा रहा है लेकिन वह धरती की सतह पर पहुंचने से पहले ही, ताप और तूफ़ान के कारण भाप बन कर में उड़ जा रहा है. परमाणु ईंधन छड़ों के पिघलने के कारण विकिरण लगातार फैल रहा है.
किसी भी परमाणु रियेक्टर की सुरक्षा के तीन चक्र होते हैं. पहला, बाहरी प्रतिरोधक इमारत, दूसरा ईंधन को रखने के भारी क्षमता वाले वृहद बर्तन और तीसरा ईंधन छड़ों के चारों ओर लपेटे गए मोटे धातु लेप. फ़ुकुशिमा संयंत्रों में विस्फ़ोट से ये तीनों चक्र क्षतिग्रस्त हो गए हैं. जो परमाणु ईंधन छड़ें २५ डिग्री सेल्सियस तापमान पर धातु लेप के भीतर सुरक्षित रखी जाती थीं, अब वे ८५ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर खुली पड़ी हैं. इनसे रेडियोएक्टिव भाप वातावरण में फैल रही है. अब इन छड़ों के संपूर्ण पिघलाव की भी आशंका जताई जा रही है. विकिरण ख़तरों के मद्देनज़र परमाणु संयंत्र के बीस किलोमीटर के दायरे में लोगों के रहने पर पाबंदी लगा दी गई है, और तीस किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को घरों के दरवाज़े बंद रखने की सलाह दी गई है.
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में परमाणु विकिरण की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है जबकि इस दिशा में और कई महत्वपूर्ण जानकारियों का सामने आना
अभी भी बाक़ी है. फ़ुकुशिमा परमाणु संयंत्र विस्फ़ोट ने परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता की बहस को नए सिरे से पुनर्जीवित कर दिया है. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि फ़ुकुशिमा के परमाणु संयंत्रों का विकिरण रिसाव समूचे उत्तरी गोलार्ध में फैलेगा. इससे न सिर्फ़ जापान बल्कि आसपास के देश भी बुरी तरह प्रभावित होंगे. रूस इन विकरण प्रभावों के प्रति पहले ही सशंकित है. चीन के एक परमाणु वैज्ञानिक का कहना है कि फेफड़ों और चमड़ी पर विकिरण के असर दिखने शुरू हो गए हैं. ग्रीन पीस के एक वैज्ञानिक का कहना है कि ’अगर परमाणु ईंधन छड़ें एक बार पिघलना शुरू हो जाती हैं तो इसे रोका नहीं जा सकता. उन्हें अगर पानी उड़ेल कर ठंडा किया गया तो इसके ऊपर लगा धातुओं का लेप भाप बनकर उड़ जाएगा और वातावरण में जाकर आग और ताप को और बढ़ाएगा. इससे विकिरण के और फैलने का ख़तरा टाला नहीं जा सकेगा.’
जापान के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के स्तर पर हिरोशिमा पर बमबारी के कई अहम सबक़ थे. अब फ़ुकुशिमा से परमाणु ऊर्जा के लिए कई महत्वपूर्ण चेतावनियां और सीख हासिल हुई है. हिरोशिमा ने, आने वाली पीढ़ियों के हक़ में, परमाणु बमों की खोज से पैदा हुए युद्धीय उन्माद से आगाह किया था. तहस-नहस जापान को हिरोशिमा से उबरने में कई दशक लगे थे. अब फ़ुकोशिमा परमाणु संयंत्र के विस्फ़ोट और विकिरण से परमाणु ईंधन पर निर्भरता की बेतुकी होड़ को ठहर कर सोचने की चेतावनी मिली है कि मानवता के हित में ऐसे ख़तरनाक़ तरीक़ों की आज़माइश क्यों न बंद कर दी जाए जिनमें वक़्त बे-वक़्त की आपदाओं से युगीन विनाश की संभावनाएं निहित रहती हैं?
भारत में प. बंगाल के समुद्र तटवर्ती इलाक़े के हरिपुर नामक गांव में भी एक परमाणु संयंत्र स्थापित करने की कवायद जारी है. जापान की तकनीकी दक्षता का दुनिया लोहा मानती है. बावजूद इसके परमाणु ऊर्जा के दुष्प्रभावों को कम नहीं किया जा सका है. यह तो जापान की ’राष्ट्रीय दृढ़ता’ का नतीजा था कि वह हिरोशिमा के हमले के दीर्घकालीन प्रभावों को शिकस्त देने में लगातार जुटा रहा. दुनिया के अन्य देशों को हिरोशिमा और फ़ुकोशिमा से बहुत कुछ सीखने को मिला है. चेर्नोबिल और भोपाल की चर्चा यहां शामिल नहीं की जा रही है. यह चिंता का अलग विषय है कि शेष विश्व का राजनीतिक-कूटनीतिक नेतृत्व और परमाणु लॉबी इस विभीषिका से समय रहते कुछ सीखना पसंद करेगा या सच्चाई से मुंह चुरा कर टाल-मटोल करता रहेगा.
सम्पर्क- Mobile: 9579938779, E-mail : anamil.anu@gmail.com
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