23 अगस्त 2010

उनका होना पहाड़ में एक गूंज का होना था.

गिरीश तिवाड़ी “गिर्दा” का न होना उत्तराखण्ड के पहाड़ों में एक अलाप का समापन है. हल्दवानी में आज उन्होंने अन्तिम सांस ली, शायद इस अंतिम सांस में भी अनगिनत कविताओं का विलोप रहा होगा. “गिर्दा” उत्तराखण्ड जनकाव्य के एक अहम हस्ताक्षर थे. उन्होंने धनुष यज्ञ, नगाड़े खामोश हैं जैसे महत्वपूर्ण नाटक लिखे और अंधायुग, मोहिल माटी, थैंक्यू मिस्टर ग्लाड जैसे कई नाटकों का निर्देशन भी किया. उन्होंने कुमाऊनी काव्य को जनता के संघर्षों के साथ जोड़ा और खुद संघर्षों के बीच जीते हुए घटनाओं को काव्य की जीवंतता प्रदान की. १९४५ में अल्मोड़े के ग्राम ज्योली में जन्मे “गिर्दा” ने एक आन्दोलनकारी के रूप में उत्तराखण्ड के लगभग जन संघर्षों में हिस्सा लिया. आन्दोलनकारी लोगों की भीड़, महिलायें, बच्चे उनके गीतों में उसी सहजता के साथ उतरे जैसे वे सड़कों पर उतरते थे, जैसे तारीखों में वे गिरफ्तार होते थे, जैसे कोई घायल अस्पताल जाता था, जैसे किसी के सीने में गोली लगती थी वैसे गिर्दा की कविताओं में वे इतिहास की तरह सर्जित कर दिये जाते थे. आंदोलन की तेजी और सफलता पर उनके गीतों में बधाईयाँ होती थी और तीव्र करने की प्रेरणा भी और उम्मीद का एक स्वर भी जिसने “जैता एक दिन तो आलो” जैसी रचना का सृजन किया. उत्तराखण्ड के लोगों को आव्हन करते हुए जो गीत गिर्दा ने ९४ में लिखा था, उसमे जो पुकार थी आज वह पुकार मद्धिम स्वर में उन्हीं के लिये पहाड़ों में बह रही हो.... आज हिमाल तुमन कैं धत्यूँ छौ/ जागौ, जागौ हो म्यारा लाल.
गिर्दा को एक ऐसी दुनिया की उम्मीद थी और जो बनी रहेगी उनके स्वर में, भले ही उस दिन वे नहीं होंगे, जिसमें यह गीत शब्दों से जमीन पर उतरेगा।
जैंता एक दिन तो आलो


ततुक नी लगा उदेख
घुनन मुनइ नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में॥
जै दिन कठुलि रात ब्यालि
पौ फाटला, कौ कड़ालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में॥
जै दिन चोर नी फलाल
कै कै जोर नी चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में॥
जै दिन नान-ठुल नि रौलो
जै दिन त्योर-म्यारो नि होलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में॥
चाहे हम नि ल्यै सकूँ
चाहे तुम नि ल्यै सकौ
मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में
वि दिन हम नि हुँलो लेकिन
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में॥

2 टिप्‍पणियां:

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  2. चाहे तुम नि ल्यै सकौ
    मगर क्वे न क्वे तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में
    uttarakhand rajy aandolan ke dauran gunjte rahne wale ese giton ki panktiyan har us samy tak dohraie jati rahengi jab tak yah ummeed kaayam rahegi
    कठुलि रात ब्यालि
    पौ फाटला, कौ कड़ालो
    एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में॥
    salam uttrakahand ke is janpakshdhar lokgayak ko.

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