30 मार्च 2010

पंजाब में किसान नेताओं पर दमनचक्र

प्रधानमंत्री जब इस चुनाव के दौरान पंजाब में चुनावी सभायें कर रहे थे तो लग रहा था कि फिर से पंजाब में हरित क्रांति की तैयारी में हैं और चुनावी व्यस्तता से जैसे ही वे मुक्त होंगे यह क्रांति पल्लवित होती दिखने लगेगी. आज़ादी के बाद किसी सरकार ने किसानों के लिये इतने मुक्त हांथों से कभी कोई बजट नहीं बनाया, पहली बार इतने किसानों के कर्ज माफ किये गये व किसानों के लिये केन्द्र सरकार ने अन्य योजनायें भी बनायी, सरकारी प्रचारतंत्र यह दावा करते रहे. फिर भी किसानों की आत्महत्यायें जारी हैं विदर्भ, छत्तीसगढ़ से लेकर पंजाब तक. किसी किसान की आत्महत्या सरकार के लिये कोई परेशानी नहीं पैदा करती पर जब किसान विरोध पर उतर आयें, जब वे अपनी मांगों को लेकर रैलियाँ, धरने प्रदर्शन करने लगते हैं तो इससे सरकार का विचलन बढ़ जाता है फिर वह वैसा ही करती है जैसा कि पंजाब के किसान नेता दर्शनपाल के साथ किया गया या फिर उसके एक दिन पहले बी.के.यू. एकता पंजाब के अध्यक्ष बलकार सिंह व पंजाब के अन्य किसान नेताओं के साथ. दर्शनपाल पी.डी.एफ.आई. के संयोजक हैं पिछले दिनों पंजाब के किसानों द्वारा सिंचाई हेतु विद्युत आपूर्ति व उनकी दरों में हुई बृद्धि को लेकर एक बड़ी रैली हुई. जिसमे २० से अधिक किसान संगठन शामिल हुए थे, पंजाब में किसान संगठनों द्वारा एक लम्बे अर्से बाद इतने बड़े तादात में किसान इकट्ठा हुए थे. इस रैली से पंजाब सरकार भयभीत हो गयी और २३ मार्च को पटियाला से २५ किलोमीटर दूर समना से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे एक किसान सभा में शामिल होने के लिये गये हुए थे. पर सरकार के भय का कारण महज़ रैली नहीं थी बल्कि किसानों की संगठित हो रही वह ताकत थी जिसने पिछले बरस प्रतिरोध के जरिये सरकार को इस बात के लिये मजबूर कर दिया था कि उसे सिंचाई के लिये बिजली उपलब्ध करायी जाय और सरकार को कार्यालयों में चलने वाली वातानुकूलित मशीनों को बंद करने का आदेश देना पड़ा था.
पंजाब में किसानों की स्थितियाँ पिछले वर्षों की तुलना में और भी बदहाल हुई हैं पर राज्य सरकार उन स्थितियों को बेहतर करने और किसानों को राहत देने के बजाय उचित मांगों को उठाने वाले किसान संगठन के नेताओं को गिरफ्तार कर रही है. पंजाब के कृषि विश्वविद्यालय ने वहाँ के किसानों की स्थितियों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें पंजाब के किसानों पर कर्ज के बढ़ रहे बोझ को दिखाया गया है २००६ में किसानों पर जो कर्ज था वह २४०० करोड़ था आज की स्थिति में वह और भी बढ़ गया है. केन्द्र सरकार अपनी कर्ज माफी को लेकर भले ही किसानों के प्रति प्रतिबद्धता को जताये पर पंजाब की स्थितियाँ इससे थोड़ा भिन्न हैं पंजाब के ज्यादातर किसान साहूकारों की कर्ज से डूबे हुए हैं और यह साहूकारी का कर्ज उन्हें बिजली की बढ़ती दर व कृषि संसाधनों के मूल्य में हुई बृद्धि के कारण भी लेना पड़ा है. किसानों का बड़ा तबका है जो गेहूं की फसल उगाता है पर पिछले वर्षों में उसके मूल्य में महज १.५ प्रतिशत की बृद्धि हुई है जबकि लागत ८ फीसदी बढ़ गयी है. इन स्थितियों में किसानों का मुनाफा और भी कम हो गया जिस पर कर्जदार किसानों को साहूकारों की प्रताड़ना के कारण मजबूरन आत्म हत्या का रास्ता चुनना पड़ रहा है. दरअसल किसान आत्महत्याओं का दौर किसान आंदोलनों की असफलता का ही परिणाम रहा है जहाँ एक किसान संघर्ष करने के बजाय अपनी जिंदगी को खत्म करने का विकल्प चुन लेता है. विदर्भ किसान आत्महत्याओं को लेकर खासा चर्चित रहा है पर उन वर्षों में यदि गौर किया जाय जब वहाँ किसान आंदोलन बेहतर स्थिति में थे तो किसान आत्महत्याओं की दर काफी कम रही है. आंदोलन की स्थिति में किसान एक संगठित ताकत के रूप में अपने को महसूस करता है लिहाजा मरने के बजाय उसके सामने लड़ने का विकल्प होता है और इन लड़ाईयों से जो उपलब्धियाँ हासिल होती हैं वे उसे मानसिक रूप से और मजबूत बनाती हैं. पूरे देश में खाद्यानों की महगाई जिस अनुपात में बढ़ी है किसानों को फसलों के लिये मिलने वाला मूल्य कहीं कम रहा है, नयी तकनीक और बीजों के कारण किसानी की प्रक्रिया ही बदल गयी है हर वर्ष नये बीज और मंहगे हो रहे फर्टिलाइजर्स का भुगतान करना छोटे किसानों के लिये बेहद मुश्किल है. ये वजह रही है कि किसानों के जीवन दशा में गिरावट आयी है.
किसानी पर निर्भर ६५ प्रतिशत आबादी की स्थिति आज इस रूप में हो गयी है कि वह मजबूरन किसानी के पेशे को अपना रहा है. किसानी एक स्वेच्छा से चुनाव करने का पेशा न होकर मजबूर होकर अपनाया गया उद्यम बन गया है. यह सब किसानों के प्रति सरकार की उपेक्षाओं के कारण ही हुआ है. इन स्थितियों में खेतिहर मजदूर व गरीब किसानों के हितों और उद्देश्यों को उठाने के लिये जो ताकतें आगे आ रही हैं या उन्हें संगठित करने का प्रयास कर रही हैं उन पर सरकार दमनकारी रवैया अख्तियार किये हुए है. जबकि देश में किसान आंदोलन न के बराबर हो गये हैं यदि हो भी रहे है तो तात्कालिक मुद्दों को उठाते हुए बगैर किसी ठोस सांगठनिक ढांचे के ऐसे में पंजाब में अभी भी अन्य राज्यों की अपेक्षा किसान संगठनों के मजबूत आधार बने हुए हैं. पंजाब सरकार के द्वारा किसान नेताओं पर की जा रही कार्यवाहियाँ दरअसल इन्हीं ढांचों को तोड़ने का एक प्रयास है. यह सब ऐसे समय में किया जा रहा है जब देश की कई किसान संगठन मिलकर किसानों पर सरकार द्वारा हो रही उपेक्षा व बदहाल स्थियों को लेकर ३० मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़े प्रतिरोध का आयोजन करने की तैयारी में हैं. चन्द्रिका

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