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हिकारत भरी नज़र से
देखती है लड़की
अपने ही घर को
जैसे देख रही हो डर को
घर से निकलती हुई लड़की को देखकर
तुम कैसे कह सकते हो
कि वह लौटेगी...........
उसी उदासी संकोच और चुप्पी के साथ
अपनी ठीक वही उम्र लेकर
किसी निखालिस खाली जगह पर
अब तक के भरोसे को
उड़ेल कर जा चुकी लड़की
बची रह जाती है
लोगों की जिक्र
अखबारों की सुर्खी में
पूरे शहर में जब लड़की के
पते का पता नहीं होता
स्टेशन को अपना पता बताकर
चली गयी होती है लड़की
शहर से॥ :-चंद्रिका
स्केच- मेघा, अनुवाद विभाग हिन्दी वि.
बहुत सहज कविता है यह और बहुत सच ।
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