20 नवंबर 2009

सीपीआई (माओवादी) पोलित ब्यूरो किशनजी का साक्षात्कार

मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी बिना झिझक, गर्व के साथ खुद को देश का दूसरा सर्वाधिक वांछित व्यक्ति बताते हैं। सीपीआई (माओवादी) की पोलित ब्यूरो के इस 53 वर्षीय सदस्य की तुषा मित्तल के साथ फोन पर हुई बातचीत के मुख्य अंश:

सबसे पहले अपनी निजी जिंदगी के बारे में कुछ बताइए. सीपीआई (माओवादी) से जुड़ने का ख्याल कैसे आया?
मैं करीमनगर के पेड्डापल्ली गांव में पैदा हुआ. मेरा जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, पर हमारे परिवार ने कभी जाति को तवज्जो नहीं दी. मेरे पिता आंध्र प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे. मैंने गणित में बीएससी की और उसके बाद 1983 में लॉ की पढ़ाई के लिए हैदराबाद आ गया. यहां मैं तेलंगाना संघर्ष समिति से जुड़ गया. बाद में यहीं रैडिकल स्टूडेंट्स यूनियन की नींव रखी. इसके पहले इमरजेंसी में मैंने भूमिगत रहते हुए इसके खिलाफ अभियान चलाया था. मेरे ऊपर कई चीजों का प्रभाव रहा: लेखक वारवरा राव, देश की राजनीतिक दशा और जिस तरह के प्रगतिशील माहौल में पला-बढ़ा. मेरे पिता एक स्वतंत्रता सेनानी और लोकतंत्र में अगाध श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति थे. जब मैंने सीपीआई (एमएल) की सदस्यता ग्रहण की तो मेरे पिताजी ने यह कहते हुए कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दी कि एक छत के नीचे दो तरह की राजनीति नहीं चल सकती. 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद मैंने एक देशव्यापी आंदोलन की अगुवाई की जिसमें देश भर से करीब 60,000 किसानों ने हिस्सा लिया था.
किसी भी राजनीतिक पार्टी का नेता अपने अध्यक्ष के खिलाफ आवाज उठा सकता है? औपचारिक और वास्तविक लोकतंत्र के बीच गहरी खाई है


गृहमंत्री अब सीपीआई (माओवादी) से कई मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं. आप उनका प्रस्ताव क्यों ठुकरा रहे हैं? वे आपसे सिर्फ हिंसा न करने के लिए ही तो कह रहे हैं.
अगर सरकार सुरक्षा बलों को वापस बुला लेती है तो हम बात करने के लिए तैयार हैं। हिंसा हमारे एजेंडे में नहीं है. हम सिर्फ जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं. पिछले महीने बस्तर में कोबरा फोर्स ने 12 माओवादियों के साथ 18 निर्दोष ग्रामीणों को मार दिया. छत्तीसगढ़ में उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया जो विकास कार्यों के जरिए हमारी मदद कर रहे थे. हाल ही में छत्तीसगढ़ के डीजीपी ने सलवा जुडूम के 6000 विशेष पुलिस अधिकारियों को गौरव का प्रतीक बताया. नई भर्तियां चालू हैं. ये लोग सालों से हत्या, बलात्कार और लूटपाट करते आ रहे हैं. हम सरकार के वादे पर भरोसा नहीं कर सकते. वह अपनी नीतियों को कैसे बदलेगी जब उसके हाथ में ही कुछ नहीं है? यह तो विश्व बैंक और अमेरिका के हाथों में है.


हिंसा रोकने के लिए आपकी क्या शर्तें होंगी?
प्रधानमंत्री वनवासियों से माफी मांगें, सुरक्षा बलों को हटाएं, जेल में बंद कैदियों को रिहा किया जाय। सुरक्षा बलों को हटाने के लिए जरूरी समय लीजिए लेकिन यह सुनिश्चित कीजिए कि पुलिस अब कोई हमला नहीं करेगी. अगर सरकार इसपर राजी है तो हम हिंसा रोक देंगे. हम पहले की तरह गांवों में अपना आंदोलन चलाएंगे.


क्या आप भी यह वादा कर सकते हैं कि एक महीने तक कोई हमला नहीं करेंगे?
हम विचार करेंगे। मुझे अपने महासचिव से बात करनी होगी. पर इस बात की क्या गारंटी है कि अगले एक महीने पुलिस भी हमला नहीं करेगी? पहले सरकार को इसकी घोषणा करने और सुरक्षा बलों को हटाने दीजिए, सिर्फ दिखाने से भी काम नहीं चलेगा. आंध्र प्रदेश में क्या हुआ, हमारी केंद्रीय समिति के सदस्य राज्य के मुख्य सचिव से बात करने गए थे. उन्हें गोली मार दी गई.


अगर आप जनहित की बात करते हैं तो हथियार क्यों उठा रखे हैं? आपका लक्ष्य आदिवासी हित है या राजनीतिक ताकत?
राजनीतिक ताकत. आदिवासी हित हमारा लक्ष्य है पर राजनीतिक ताकत के बिना यह संभव नहीं. हथियार के बिना सत्ता नहीं मिलती. आदिवासियों का शोषण इसीलिए हुआ क्योंकि उनके पास राजनीतिक ताकत नहीं थी. अपनी ही संपदा पर उनका अधिकार जाता रहा. पर हथियार हमारी विचारधारा नहीं है. हम उसे दूसरे स्थान पर रखते हैं. इसकी वजह से हम आंध्र प्रदेश में नुकसान भी उठा चुके हैं।


सरकार कह रही है पहले हिंसा रोको. आप कह रहे हैं पहले पुलिस हटाओ. इन सबके बीच पिस रहा है वह वनवासी जिसके हित का आप दावा कर रहे हैं.
हमने वाममोर्चे के घटक दलों- फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी, सीपीआई- के दरवाजे खड़काए हैं. मैं तो बंगाल सरकार के कई मंत्रियों तक के संपर्क में हूं. मैंने मुख्यमंत्री से भी बात की है
तो फिर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों को बुला लीजिए। हमने कहीं हिंसा नहीं शुरू की. आंध्र प्रदेश हो या पश्चिम बंगाल या उड़ीसा, हमने कहीं हिंसा शुरू नहीं की. बंगाल में सीपीएम ने सबको गांवों में घुसने से रोक दिया था. जब बंगाल में न्यूनतम मजदूरी 85 रूपए थी तब उन्हें 22 रुपए दिए जा रहे थे. हम सिर्फ 25 रुपए मांग रहे थे. कौरवों ने पांडवों को पांच गांव भी देने से इनकार कर दिया था इसीलिए महाभारत हुआ. हम पांडव हैं और वे कौरव हैं.


आप अहिंसक होने की बात कर रहे हैं और आपके अभियानों में पिछले चार साल के दौरान 900 से ज्यादा पुलिस वाले मारे जा चुके हैं. इनमें से कई गरीब आदीवासी भी हैं. यह कैसा जनहित है?
हमारी लड़ाई व्यवस्था से है। हम पुलिस वालों की हत्याएं कम करना चाहते हैं. पिछले 28 सालों के सीपीएमराज में 51,000 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है. हां पिछले सात महीनों में हमने भी सीपीएम के 52 लोगों को मारा है लेकिन यह सिर्फ बदले की कार्रवाई है.


सीपीआई (माओवादी) को धन कहां से मिलता है? आपपर जबरन वसूली के आरोप भी लगते हैं?
कोई जबरन वसूली नहीं होती। हम बड़े औद्योगिक घरानों और बुर्जुआओं से कर लेते हैं लेकिन यह राजनीतिक पार्टियों द्वारा वसूले जाने वाले चंदे के जैसा ही है. ग्रामीण भी साल में दो दिन की अपनी कमाई स्वेच्छा से हमें दान देते हैं. इस साल गढ़चिरौली में बांस की कटाई के दो दिनों से हमें 25 लाख रुपए मिले. बस्तर में तेंदू पत्तों से 35 लाख. बाकी जगहों पर किसानों ने हमें करीब 1000 कुंतल के करीब धान का दान दिया. एक-एक पैसे का हर छह महीने में ऑडिट होता है.


किसानों ने कभी इनकार किया?
नहीं। वे हमारे साथ हैं. हम ग्रामीणों के विकास के लिए जो करते हैं उसके एवज में एक पैसा भी नहीं लेते.


आपने किस तरह के विकास कार्य किए हैं? इससे आदिवासियों के जीवन में क्या सुधार आया है?
हम उन्हें राज्य और अमीरों का असली चेहरा दिखाते हैं। वे पहले एक रुपए में 1000 तेंदू पत्ते बेचते थे हमने इन्हें कई जगह 50 पैसा प्रति पत्ता करवा दिया है. कागज मिलों में 50 पैसा प्रति बंडल के हिसाब से बांस बिकता था हमने इसे 55 रुपए प्रति बंडल करवाया. सीपीआई (माओवादी) हर दिन देश के 1,200 गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाती है. अकेले बस्तर जिले में इस तरह के करीब 50 मोबाइल स्वास्थ्य दल और 100 के लगभग मोबाइल अस्पताल हैं. हम लोगों को मुफ्त दवाएं मुहैया कराते हैं. सरकार को तो पता भी नहीं कि ये दवाएं उसी की हैं.


अगर नक्सली इलाकों में सरकार अपना दल भेजती है तो आप आने देंगे?
हम इसका स्वागत करेंगे। छात्र और डॉक्टर यहां आ सकते हैं. लालगढ़ के लोग एक दशक से अस्पताल की मांग कर रहे थे, पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया. जब लोगों ने अपने पैसे से अस्पताल बना लिया तो सरकार ने उसे सेना की छावनी बना दिया.


आपकी दीर्घकालिक योजनाएं क्या हैं? तीन मुख्य लक्ष्य बताइए.
राजनीतिक ताकत हासिल करके एक नया लोकतंत्र फिर समाजवाद और साम्यवाद स्थापित करना। दूसरा, अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना ताकि हमें साम्राज्यवादियों से कर्ज लेने की जरूरत न पड़े. हम आज भी दशकों पुराने कर्ज चुका रहे हैं. हमें ऐसी अर्थव्यवस्था की जरूरत है जो कृषि और उद्योग पर आधारित हो. आदिवासियों का उनकी जमीन पर अधिकार होना चाहिए. हम उद्योगों के विरोधी नहीं हैं, आखिर इसके बिना विकास कैसे होगा? पर हमें सोचना होगा कि भारत के लिए क्या ठीक रहेगा. बड़े-बड़े बांधों और उद्योगों की बजाय हमें छोटे-छोटे उद्योग लगाने होंगे. तीसरा लक्ष्य है देश में मौजूद तमाम बड़े औद्योगिक समूहों- टाटा से लेकर अंबानी तक- की संपत्ति जब्त करके उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना और उनके मालिकों को जेल में डालना.


लेकिन दुनिया भर में कम्युनिस्ट सरकारों का इतिहास देखें तो वे दमन का ही प्रतीक दिखती हैं. माओवादी राज्य-व्यवस्थाओं में असहमति की कोई जगह नहीं होती. ये जनता के हित में कैसे हैं?
ये कहानियां पूंजीवादियों की फैलाई हैं। गांवो में सैकड़ों लोग मर रहे हैं, लेकिन डॉक्टर शहरों में रहना चाहते हैं, इंजीनियर जापान में काम करना चाहते हैं. वे देश के संसाधनों से वहां तक पहुंचे हैं मगर देश के लिए क्या कर रहे हैं? राज्य आपको डॉक्टर बनने के लिए मजबूर नहीं करता लेकिन अगर आप बनते हैं तो आपको दो साल गांवों में काम करने के लिए मजबूर करने में कोई बुराई नहीं है. कोई राज्य कितना दमनकारी है यह इसपर निर्भर करता है कि सत्ता की कुंजी किसके पास है. हम लोकतांत्रिक संस्कृति चाहते हैं. अगर हम ऐसा नहीं करते तो ग्रामीण एक और क्रांति करके हमें उखाड़ फेंकें. बस्तर जिले में एक वैकल्पिक लोकतांत्रिक सरकार शैशवावस्था में है. चुनावों के जरिए हम स्थानीय सरकार बनाते हैं जिसे रिवॉल्यूशनरी पीपुल्स गवर्नमेंट कहा जाता है. इसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और कानून व्यवस्था से जुड़े पदाधिकारी होते हैं. यह व्यवस्था देश के 40 जिलों में काम कर रही है. यह धारणा बिल्कुल गलत है कि हम लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते. भारत में इस समय सिर्फ औपचारिक लोकतंत्र है. किसी भी राजनीतिक पार्टी का नेता अपने अध्यक्ष के खिलाफ आवाज उठा सकता है? औपचारिक और वास्तविक लोकतंत्र के बीच गहरी खाई है.


अगर आप लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं तो फिर लोकतांत्रिक प्रक्रिया का बहिष्कार क्यों करते हैं? नेपाल में तो माओवादियों ने चुनाव लड़ा
नया लोकतंत्र स्थापित करने के लिए पुराने को खत्म करना जरूरी है। नेपाल में माओवादियों ने राजनीतिक पार्टियों से समझौता कर लिया. आप किस लोकतंत्र की बात कर रही हैं. 180 सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं, 310 सांसद करोड़पति हैं. आपको पता है अमेरिकी सेना ने उत्तर प्रदेश में एक छावनी में अभ्यास शुरू कर दिया है? वे खुलेआम कहते हैं हम जहां चाहे भारतीय सेना को ले जा सकते हैं. उन्हें ऐसा करने की छूट कौन दे रहा है? मैं तो नहीं दे रहा. मैं सच्चा देशभक्त हूं.


आप भारत को कैसा देखना चाहते हैं? कोई एक देश बताइए.
हमारा पहला रोल मॉडल था पेरिस। उसका विघटन हो गया. रूस भी ध्वस्त हो गया. इसके बाद चीन का उदय हुआ, लेकिन माओ के बाद वह भी भटक गया है. फिलहाल पूरी दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां असली ताकत जनता के पास हो. हर जगह मजदूर अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. फिलहाल तो कोई भी रोलमॉडल नहीं है.


जब साम्यवाद दुनिया-भर में कहीं नहीं चला तो फिर भारत में यह कैसे सफल होगा?
चीन भी यह मानता है कि माओ के सिद्धांत में त्रुटियां थीं। नेपाल में माओवादी विदेशी निवेश स्वीकार कर रहे हैं. नेपाली माओवादी गलत रास्ते पर जा रहे हैं, वे एक और बुद्धदेब बाबू बनने की राह पर हैं. जहां भी साम्यवाद ने पैर जमाया है पूंजीवाद ने उसे उखाड़ने की कोशिश की है. लेनिन, माओ, प्रचंड सबकी कुछ कमजोरियां हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लेनिन और स्तालिन ने आंतरिक लोकतंत्र को खत्म करके नौकरशाही को बढ़ावा दिया. उन्होंने जनता की हिस्सेदारी को नकारा. हमने उन गलतियों से सीख ली है. लेकिन पूंजीवाद को भी मुंह की खानी पड़ी है. आप कह सकती हैं कि पूंजीवाद सफल रहा है? साम्यवाद ही एकमात्र रास्ता है.


सत्ता में आने के बाद आप भी नेपाली माओवादियों या सीपीएम की तरह असफल साबित हो सकते हैं?
मैं लोगों से अपील करता हूं कि यदि हम बदल जाते हैं तो हमारे खिलाफ भी क्रांति करें। अगर शासक शोषक बन जाए तो जनता का अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उठ खड़ा होना जरूरी होता है. उन्हें किसी के ऊपर अंध श्रद्धा रखने की जरूरत नहीं है.


क्या आप कभी द्वंद्व से गुजरे हैं? क्या राज्य पर दबाव बनाने के लिए हिंसा ही एकमात्र रास्ता है?
मुझे विश्वास है कि हम सही काम कर रहे हैं. हम एक लड़ाई लड़ रहे हैं. इस दौरान हमसे गलतियां भी हो सकती हैं. लेकिन राज्य के उलट हम इसे स्वीकार करते हैं. फ्रांसिस इंदूवर का सर काटना गलती थी. हम इसके लिए माफी मांगते हैं. लालगढ़ में हम अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं. हमने सरकार से पूर्ण विकास की मांग की है और उन्हें 27 नवंबर की समय सीमा दी है. हमने उनसे 300 बोरवेल और 50 अस्थायी अस्पताल की मांग की है. अगर सरकार ने इन्हें पूरा कर दिया तब हम उनसे कुछ और मांग करेंगे. हमने वाममोर्चे के घटक दलों- फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी, सीपीआई- के दरवाजे खड़काए हैं. मैं तो बंगाल सरकार के कई मंत्रियों तक के संपर्क में हूं. मैंने मुख्यमंत्री से भी बात की है.

मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसका खंडन किया है.
मैंने मुख्यमंत्री से बात की है मैंने उनसे सरकारी दमन रोकने को कहा। उन्होंने कहा कि उनके ऊपर अपनी पार्टी और गृहमंत्री पी चिदंबरम का दबाव है.


पुलिस आप तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है?
मैं देश में दूसरा सर्वाधिक वांछित व्यक्ति हूं। आठ राज्यों में दिन-रात मेरी तलाश हो रही है. आज कल बंगाल के 1600 गांवों में लोग रात को जागकर पहरा देते हैं ताकि पुलिस मुझे पकड़ नहीं सके. जहां मैं इस समय हूं वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर पुलिस की छावनी है जहां 500 पुलिस वाले रह रहे हैं. बंगाल के लोग मुझे प्यार करते हैं. मुझे पकड़ने से पहले उन्हें उनको मारना होगा.


गृहसचिव ने आरोप लगाया कि चीन आप लोगों को हथियार पहुंचा रहा है. यह बात सच है?
जीके पिल्लई को हमारे मूल दर्शन की जानकारी ही नहीं है। युद्ध जीतने के लिए अपने शत्रु की पूरी जानकारी होना बहुत जरूरी है. हमारी स्थिति चीन से बिल्कुल भिन्न है. मैंने सोचा था कि चिदंबरम और पिल्लई मुझे कड़ी टक्कर देंगे, मगर यह नहीं पता था कि वे किसी लायक नहीं निकलेंगे. वे हवा में तलवारें भांज रहे हैं. जीत हमारी ही होगी.


लश्कर-ए-तैयबा के बारे में क्या सोचते हैं? आप उनकी लड़ाई का समर्थन करते हैं?

हम उनकी कुछ माँगों का समर्थन करते हैं लेकिन उनके तरीके गलत और जनविरोधी हैं। उन्हें अपनी आतंकी गतिविधियों को रोकना चाहिए क्योंकि इससे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। आप सिर्फ जनता का दिल जीतकर ही सफल हो सकते हैं। तहलका से साभार


2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सार्थक और गम्भीर बातचीत। पर दूसरे विश्वयुद्ध के समय लेनिन कहां थे? किशन जी जैसे क्रान्तिकारी से ऐसी तथ्यात्मक भूल कुछ अखरती है।

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