शैलेश कुमार
जो समाज औरों के इन्साफ की जंग लड़ने वालों के
साथ हो रहे अन्याय पर भी चुप्पी साधे रहे, समझो की उस समाज में इंसाफ मर रहा है। वो समाज कायरता व बेपरवाही की नपुंसकता
से ग्रस्त है, उस समाज में
आज़ाद मनुष्य नहीं, गुलाम प्राणी रह
रहे हैं। ऐसी ही एक दास्तान है मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे प्रशान्त राही की।
जिनकी रिहाई के लिये गत् 8 अपै्रल को
आई.आई.टी. बी.एच.यू. के छात्रों व भगत सिंह छात्र मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने
आई.आई.टी. बी.एच.यू. में ही गेस्ट प्रोफेसर के रूप मंे कार्यरत मैग्सेसे पुरस्कार
विजेता संदीप पाण्डेय के नेतृत्व में एक कैण्डिल मार्च निकाला। यह कैण्डिल मार्च
आई.आई.टी. बी.एच.यू. से होते हुए मुख्य द्वार बी.एच.यू. तक पहुंच कर सभा में बदल
गया। प्रशान्त राही ने 90 के दशक में एक
मेधावी छात्र के रूप में प्रौद्योगिकीय संस्थान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से
इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग में बीटेक तथा एमटेक किया। पेशे से वह एक पत्रकार थें।
समाज सेवा करते हुए उन्होने कई नामी अखबारों में सामाजिक विषयों पर अंग्रेजी व
हिन्दी लेख लिखे। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले प्रशान्त
राही ने तहरी बांध निर्माण के समय विस्थापित हुए ग्रामीण एवं आदिवासी लोगों के
अधिकारों की मांग के आन्दोलन का नेतृत्व किया। फलस्वरूप सरकार को उन्हंे उनका हक
देना पड़ा। प्रशान्त की यह सक्रियता भारतीय राज्य को बर्दाश्त नहीं हो रही थी,
इसलिये दिसम्बर 2007 में उन्हें अवैधानिक और अमानवीय तरीके से गिरफ्तार कर
टार्चर किया गया और करीब 4 साल उन्हें जेल
में गुजारना पड़ा। बाद में उन्हें 21 अगस्त 2011 को जमानत पर
छोड़ा गया। जेल में उन्होंने राजनैतिक कैदियों के भीषण दुर्दशा को महसूस किया और
यह तय किया कि रिहा होने के बाद वो राजनैतिक बंदियों की रिहाई के लिये काम करेंगे।
और वो ऐसा कर भी रहे थे। उनके इन प्रयासों से कुछ लोग रिहा भी हुए और कईयों के
केसों में भारी प्रगति हुई। भारतीय राज्य को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और एक बार फिर
सितम्बर 2013 में जब उनके 2007 वाले मुकदमें की अन्तिम सुनवाई होनी थी एवं
न्यायालय द्वारा उनके दोषमुक्त होने की पूरी संभावना थी तभी 1 सितम्बर 2013 को उन्हें रायपूर से दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा
गिरफ्तारी को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में दिखाया गया। सभा में अपनी बात रखते हुए
संदीप पाण्डेय ने कहा कि ’’प्रशान्त राही
जैसे हजारों लोग जो समाज के लिये कार्य कर रहे हैं उन्हे नक्सलवाद के नाम पर
यूएपीए के अन्तर्गत फर्जी मुकदमों में फसाकर जेलांे में डाल दिया जा रहा है और
उनके मुकदमों की बहुत ही धीमी गति से सुनवाई हो रही है। बल्कि विडियो
कान्फ्रेंसिंग के जरिये एवं केवल पुलिस के बयान पर केस की सुनवाई की जा रही है।’’
इस कड़ी में प्रशान्त के वकील शिव प्रसाद, भगत सिंह छात्र
मोर्चा के सचिव रितेश विद्यार्थी, आई.आई.टी. के
छात्र माॅनिश बब्बर ने भी अपनी बात रखी। वक्ताओं ने एक स्वर में यूएपीए सरीखे काले
कानूनों को रद्द करने व प्रशान्त राही को तत्काल रिहा करने की मांग की। जुलुस एवं
सभा का संचालन आई.आई.टी के छात्र माॅनिश बब्बर व निखिल जैन ने किया।
प्रशांत राही रिहाई समिति की ओर से जारी पर्चा.
द्वारा: संदीप पाण्डेय
प्रशांत राही रिहाई समिति की ओर से जारी पर्चा.
द्वारा: संदीप पाण्डेय
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