04 सितंबर 2012

कोल, कोल, कोल, कोल ..... कोयला

-दिलीप ख़ान
घोटाला है। नहीं, सरकार को जो आमदनी होनी थी वो नहीं हुई, उसका नुकसान है। नहीं, नहीं ये तो निजी कंपनियों को होने वाले विंडफॉल गेन का मामला है। गेन मतलब घाटा। काहे का घाटा? कोई घाटा नहीं हुआ है। 142 ब्लॉक में से 58 पर तो काम ही शुरू नहीं हुआ है। तो घाटा कैसा? ज़मीन ही नहीं खुदी। अच्छा तो ये बात। कैसी सरकार है..कंपनियों को दिया ब्लॉक, कंपनियों ने ज़मीन ही नहीं खोदी। कैसी कंपनियां हैं? हम होते तो खोद के कोयला बेच लेते। कोयला निकला ही नहीं, इसलिए घोटाला नहीं हुआ। नहीं निकला यही सवाल है। क्यों नहीं निकला। निकम्मी कंपनियों को क्यों दिया ब्लॉक। नहीं चलेगी संसद। संसद की गरिमा है, गरिमामय संसद है। चलनी चाहिए। नहीं चलने देंगे। देश का नुकसान हो रहा है। नुकसान तो 2जी में भी हुआ था। संसद नहीं चलने दिए तो नुकसान पता चला। राजा को जेल हुई। पीएम इस्तीफ़ दें। मंत्रालय के प्रभारी थे। कोयला ब्लॉक उन्होंने ही बांटा है। देश को चूना लगाया है। इस्तीफ़ा नहीं देंगे। इस्तीफ़े का सवाल ही पैदा नहीं होता। जवाब देंगे। विपक्ष संसद में बहस करें। पहले इस्तीफ़ा दें फिर बहस करेंगे। इस्तीफ़ा दे देंगे तो बहस किससे करेंगे। नैतिकता नहीं है पीएम के पास। विपक्ष अमर्यादित हो गया है। ये सब कांग्रेस-बीजेपी की मैच फिक्सिंग है। लेफ्ट को ये मंजूर नहीं। संसद चले। चलो धरना देते हैं। तीसरा मोर्चा टाइप कुछ बन रहा है क्या? सवाल ही नहीं पैदा होता। काहे का तीसरा मोर्चा! मुलायम तो हमारे साथ हैं। तीसरा टाइप प्रयोग सफ़ल नहीं है देश में। फिर क्या करें? जनता का सवाल है कुछ तो गरमाहट बनी रहनी चाहिए। चलो, कुछ तूफानी करते हैं। तूफानी ही तो है सबकुछ। ठाकरे-वाकरे पर इस समय बात नहीं होगी। कोयला के आगे कुछ नहीं। सुपरहिट है।
पर्यावरण क्लीयरेंस की कतार में लगे ब्लॉक्स
(चित्र: द हिंदू)

कोयला में इतना पोटेंशियल होगा, इससे पहले कोई नहीं जानता था। अब क्या। बीजेपी सच्ची पार्टी है। क्यों भई, क्या बीजेपी के राज में सब-कुछ ठीक था? कर्नाटक क्या इसी मुल्क में है? नहीं, ये विषय को भटकाना हुआ। मुद्दे पर आइए। कोयले पर आइए। लोहे पर बात नहीं होगी। ठीक है, ठीक है। कोयला ही सही। सारे ठेके हमने बांटे क्या? एनडीए ने क्या किया फिर? 2004 के बाद कांग्रेस ने जो 142 बांटे हैं उसको रद्द कीजिए। हम आपकी क्यों माने? 2004 ही विभाजन रेखा क्यों। कोई भूमंडलीकरण का मसला नहीं है कि हमेशा आप 1991 से ही अपनी बात शुरू करेंगे। हम 2004 को नहीं मानते। इस साल को इतनी तवज्जो ठीक नहीं। 1947 ही इसके लिए काफ़ी है। बात शुरू करेंगे तो 1993 से करेंगे। श्रीप्रकाश जायसवाल मेरा नाम नहीं है...मैं तो चिदंबरम हूं। मैं जेटली हूं..और मैं आडवाणी। सुषमा भी यहीं कहीं हैं। फिलहाल ट्वीट कर रही है। मैं ब्लॉग लिख रहा हूं। पीएम इन वेटिंग मानते हो मुझे, तो मेरी मानो। प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा नहीं भी देंगे तो चलेगा। खाली आवंटन रद्द कर दो। कोई कंप्रोमाइज नहीं है ये। बस नज़ाकत है। वक्त की।
इस्तीफ़ा, फिर वही बात कर दी। क्यों दे? पहले तर्क दो। नैतिकता की जमीन पर, और क्या? राजनीति में नैतिकता क्यों, कोई फिक्शन पढ़कर उठे हो क्या? अजीब तर्क है। संसद चलने क्यों नहीं देते? इस्तीफ़ा क्यों नहीं देते? पहले संसद। नहीं, पहले इस्तीफ़ा। ठीक है तो चलो 15 सितंबर तक मंत्रालय बताएगा कि करना क्या है। कोई हड़बड़ी नहीं है। पीएम ने नहीं कहा कि 6 सितंबर तक कह दो। 15 तक ही कहेंगे। कोई बंदिश नहीं है। कोई जल्दबाज़ी नहीं है। सघन पड़ताल के बाद ही फ़ैसला होगा। अच्छा 15 सितंबर तक। ..फिर संसद नहीं चलेगी। अरे क्या आप दोनों पार्टी ही देश में हैं या हम भी हैं। दोनों मिलकर फिक्स कर रहे हैं मामले को। संसद चलेगी। तो, कूवत है तो चला के दिखा दो। मालिक सुनो, चलो इस बात पर मान जाओ। न्यायिक जांच ही करवा दो। सीबीआई जो जांच कर रही है उसका क्या? सीबीआई की जांच के बीच और कोई जांच नहीं। 2004....फिर वही साल। हां। क्यों? यूपीए आई इसलिए। तो, 2004 के बाद से जो 142 को रद्द करने की हम मांग कर रहे हैं। उसको करो। निपटाओ..नहीं तो ऐसे ही चलेगा। 30 पर काम चालू है। ठीक है तो उनको रहने दो। 16 पर शुरू होने वाला है। कभी भी खुदाई शुरू हो सकती है। ठीक है। 58 पर कुछ नहीं हुआ है। बस्स...इन निकम्मी कंपनियों पर कार्रवाई क्यों नहीं। अरे, ठहरो, रुको। मतलब....जो कोयला बेच रहे हैं उनसे ज़्यादा कार्रवाई उनपर जो कोयला नहीं निकाल रहे हैं। हां। क्यों? अब ये क्या सवाल है। बड़े बेतुके हैं जी आप। निकालने वालों ने कुछ तो किया ना!
कोयला रे कोयला
ठीक है, हम कार्रवाई करते हैं। मंत्रालय ने कारण बताओ नोटिस भेजा है। सबको। टाटा पावर, रिलायंस पावर, हिंडालको, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, आर्सेलर मित्तल, जीवीके पावर, सबको। 58 के 58 को। अब खुश। वही ऊषा मार्टिन, जो प्रभात ख़बर अख़बार भी छापती है....उसको भी घसीटे हैं। कांग्रेस के ही सांसद हैं जिंदल और जिंदल से भी कारण पूछा जा रहा है। इससे ज़्यादा ईमानदार तो हनुमान भी नहीं थे। सीना फाड़ने से क्या होता है जी! हे, हनुमान की बात क्यों? मनमोहन की बात होगी। कोयले की बात होगी। ऊषा मार्टिन और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड डिफॉल्टर्स हैं। फिर, क्यों दिया निजी कंपनियों को औने-पौने दाम पर ब्लॉक। क्या कहा, निजी। किसने शुरुआत की, कांग्रेस ने नहीं की है। पहली बार निजी को बांटना एनडीए ने शुरू किया। फिर भी, 58 में तो सिर्फ़ 25 निजी है। बाकी सरकारी है। और क्या गणित बताते हो जी....सिर्फ़ यूपीए पर तोहमत कसते हो। 32 में से 7 तो एनडीए ने बांटा। ये इमटा क्या है? सीपीएम वाले कहां गए? ज्योति बसु का बेटा चंदन बसु क्या गुल खिला रहा है? मुद्दा केंद्र का है। बंगाल पर बात नहीं होगी। केंद्र पर बात होगी। सुबोधकांत सहाय और शिवराज सिंह चौहान की सिफ़ारिशों पर बात नहीं होगी। हम 2004 के बाद से बात करेंगे। क्यों करेंगे आप 2004 के बाद से बातहम तो पहले से करेंगे। केंद्र सरकार घोटालेबाज़ है। नीलामी की प्रक्रिया नहीं अपनाई। अच्छा.. तो आप ईमानदार हैं? तो फिर बताइए कि बीजेपी वाले मुख्यमंत्रियों ने नीलामी क्यों नहीं की। ये क्या बात हुई। पहले जिसने सवाल उछाला, सवाल उसका हुआ। आप हमारा सवाल हमको नहीं दाग सकते। दागेंगे। बताना पड़ेगा। बस ऐसे ही नहीं अपनाई, जैसे केंद्र ने नहीं अपनाई। तो आप केंद्र की नकल मारते हैं। चोर हैं जी आप तो। नहीं, हम नकल नहीं करते। हमने तो सिर्फ़ इसलिए नीलामी नहीं की क्योंकि केंद्र नहीं कर रहा था… हमने निवेशक के हित में सोचा। हम उनको बिदकाना नहीं चाहते। हम तो तरक्कीपसंद लोग हैं। कंपनियों की तरक्की, देश की तरक्की। देश की तरक्की, लोगों की तरक्की। शाइनिंग इंडिया..ऐसे ही तो होता है।

चलो, थोड़ा हम कंप्रोमाइज करते हैं। इस्तीफ़ा मत दो, लेकिन सबको तुरंत रद्द करो। घूम-फिरकर वही बात। कैसे रद्द कर दें। जेटली के कहने से थोड़ी रद्द कर देंगे। जेटली तो वकील हैं। जानते नहीं हैं क्या इतना? बिना नियम-कायदे को खंगाले अगर कर देंगे तो कंपनियां कोर्ट से स्टे नहीं ले लेंगी जी। कैसी बात करते हैं। कोर्ट बड़ी या सरकार? हम तो चाहते हैं कि उनको स्टे न मिले। निवेश भी बना रहे। जेटली चाहते हैं कि रद्द हो और कल को कोर्ट से स्टे मिल जाए। तरीका उचित नहीं। नहीं, कैसे भी रद्द होना चाहिए। कौन बड़ी है जी? कांग्रेस या बीजेपी? नहीं..नहीं अगर स्टे लेने का डर इतना है तो सबसे बड़ी तो कंपनियां हैं जी!! तो ड्रामा कब ख़त्म होगा? जब मानसून सत्र ख़त्म हो जाएगा। इस्तीफ़ा होगा? नहीं। कंपनियों के कान मरोड़े जाएंगे? नहीं, चिकोटी काटी जाएगी...इतना क्या कम है

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