-दिलीप खान
खुदरा क्षेत्र में
एफ़डीआई, डीज़ल में मूल्यवृद्धि और रियायती दर पर रसोई गैस सिलेंडर हासिल करने का
कोटा तय करने के बीच कोयला का मामला दब गया सा लगता है। मुद्दे आधारित राजनीति में
नया मुद्दा आते ही पुराना मुद्दा किसी झाड़ी तले ढंक जाता है। लेकिन कोयला ब्लॉक
की समीक्षा कर रही अंतर-मंत्रालयी समूह में जिस तरह की पड़ताल हो रही है और जैसे
नतीजे सामने आ रहे हैं वो कई दफ़ा चौंकाते भी हैं। जिन 58 कंपनियों को कारण बताओ
नोटिस जारी हुए थे, उनमें से महज 29 की जांच हो पाई है और इनमें से आईएमजी ने
सिर्फ़ 8 कंपनियों के आवंटन रद्द करने की कोयला मंत्रालय से सिफ़ारिश की है। शुरुआत
में 142 में से 58 को जांच पड़ताल के बाद सिर्फ़ इस आधार पर कारण बताओ नोटिस भेजा
गया था कि इन सबकी प्रगति काफ़ी ढीली थी।
आईएमजी ने जिन 8 कंपनियों के आवंटन रद्द
करने की सिफ़ारिश की
ब्लॉक का नाम
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राज्य
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कंपनी का नाम
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क्षमता
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आवंटन वर्ष
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चिन्होरा
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महाराष्ट्र
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फ़ील्ड माइनिंग
एंड इस्पात
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2 करोड़ टन
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2003
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बरोरा
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महाराष्ट्र
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फ़ील्ड माइनिंग
एंड इस्पात
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1.8 करोड़ टन
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2003
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लालगढ़ उत्तरी
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झारखंड
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डोमको स्मोकलेस फ्यूल्स
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3 करोड़ टन
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2005
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ब्रह्मडीह
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झारखंड
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कैस्ट्रॉन माइनिंग
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20 लाख टन
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1996
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रावणवाड़ा उत्तरी
कोयला ब्लॉक
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मध्य प्रदेश
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एसकेएस इस्पात एंड
पावर लिमिटेड
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2006
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नई पात्रापाड़ा
कोयला ब्लॉक
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उड़ीसा
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भूषण स्टील
लिमिटेड एंड अदर्स
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31.6 करोड़ टन
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2006
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गौरंगडीह एबीसी
कोयला ब्लॉक
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प. बंगाल
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हिमाचल ईएमटीए
पावर लिमिटेड और जेएसडब्लू स्टील लिमिटेड
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6.15 करोड़ टन
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2009
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मचेरकुंडा ब्लॉक
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झारखंड
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बिहार स्पॉन्ज
आयरन एंड स्टील
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2008
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आईएमजी की अगुवाई कर रही अतिरिक्त सचिव ज़ोहरा
चटर्जी 21 तारीख़ को अमेरिका दौरे पर जा रही हैं और ऐसे में ये साफ़ लग रहा है
मंगलवार को मचेरकुंडा ब्लॉक रद्द करने का फ़ैसला इस चरण का लगभग आख़िरी फ़ैसला
है। ‘निर्भीक और निष्पक्ष’ आईएमजी रिलायंस,
टाटा, आर्सेलर-मित्तल और हिंडालको (बिड़ला समूह की कंपनी) से सवाल-जवाब करने के
बाद इस नतीजे पर पहुंची कि इनके खदानों को बरकरार रखा जाय। सारे बड़े घरानों के
ब्लॉक बच गए। अंबानी, टाटा, मित्तल, बिड़ला। सबके। राजनीतिक गलियारे में जिन
नेताओं के घर में कोयले का धुंआ उठ रहा था, उनपर पानी गिराया गया ताकि धुंए का
गुबार शांत हो जाए। जाहिर है इसके लिए कुछ आवंटन रद्द भी करने पड़े। मिसाल के लिए
पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय की चारों ओर थू-थू हो रही थी कि उन्होंने यह जानकारी
छुपाते हुए प्रधानमंत्री (तत्कालीन कोयला मंत्री) मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर
एसकेएस इस्पात एंड पावर लिमिटेड को खदान देने की सिफ़ारिश की थी कि उनका भाई सुधीर
कुमार सहाय इस कंपनी का मानद निदेशक है। मंत्रालय ने अभूतपूर्व तेजी दिखाते हुए इस
ब्लॉक को हरी झंडी दी थी। इसी तरह जायसवाल समूह के नाम पर घिरे मौजूदा कोयला
मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल भी मंत्रालय से इतर कुछ कार्रवाई के चलते अपने दाग को
मलिन होते देख रहे हैं। अभिजीत समूह की तीन कंपनियों जेएएस इंफ्रास्ट्रक्चर,
जेएलडी यवतमाल और एएमआर आयरन एंड स्टील के मालिक भाइयों अरविंद जायसवाल और मनोज
जायसवाल को सीबीआई ने पूछताछ की। इसी कंपनी के साथ कांग्रेस सांसद विजय दर्डा का
नाम जुड़ा है। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि इन दोनों जायसवाल भाइयों ने विजय दर्डा
को 26 फ़ीसदी हिस्सेदारी इस आधार पर देने की पेशकश की थी कि वो मंत्रालय से हरी
झंडी दिलवाने में जायसवाल की मदद करें।
लेकिन खेल का मैदान काफ़ी चौड़ा है। इधर कोयला
मंत्रालय इन कंपनियों के आवंटन रद्द कर रही है और उधर ऊर्जा मंत्री वीरप्पा मोइली
इन कंपनियों को भविष्य में पावर प्लांट देने की बात कहकर ये यक़ीन दिला रहे हैं कि
देश में कंपनियों द्वारा बरती गई अनियमितताओं को जुर्म के खांचे में रखने की मांग
करने वाले लोग निरा बेवकूफ़ है। कंपनियों को किस तरह का घाटा होगा? मान लीजिए किसी सुबोधकांत सहाय के भाई को कोयला ब्लॉक के बदले पावर
प्रोजेक्ट मिल जाए तो इसमें उन्हें क्या हर्ज हो सकता है? बड़ी बात यह कि
राजनीतिक सफ़ेदी बरकरार रहते हुए ऐसा हो जाए तो क्यों नहीं कोयला खदान रद्द करावाए
कोई? 10 ब्लॉकों के लिए अब तक 8 कंपनियों को बैंक
गारंटी जमा करने या बैंक गारंटी रद्द करने की भी आईएमजी ने सिफ़ारिश की है।
कांग्रेस महकमे में आईएमजी की सिफ़ारिश को शो-रूम
के बाहर सजे-धजे मॉडल्स की तरह पेश किया जा रहा है। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने
कहा कि आईएमजी के जरिए सरकार ही कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में पारदर्शिता बरतने की
पहलकदमी कर रही है। उनके मुताबिक सरकार हमेशा धांधली के ख़िलाफ़ रही है और इसीलिए
कंपनियों के आवंटन रद्द हो रहे हैं। लेकिन शर्मा ने यह नहीं बताया कि उनकी ‘ईमानदार सरकार’ ने कैग की रिपोर्ट से पहले यह कदम क्यों
नहीं उठाया? पहले दिन यानी 13 सितंबर को आईएमजी ने जिन चार
कंपनियों को रद्द करने (टेबल में ऊपर की चार कंपनियां) की सिफ़ारिश की उनमें से सिर्फ़
एक कंपनी को यूपीए के शासनकाल में ब्लॉक आवंटित किया गया और बाकी तीन कंपनियां
एनडीए के जमाने वाली थीं। यहां दो बातें साफ़ होती हैं। पहली, जो बीजेपी 17 अगस्त
को संसद में कैग की रिपोर्ट पेश होने के बाद पूरे मानसून सत्र में सदन के भीतर
नारेबाजी करके गला ख़राब करती रही, उसके जमाने में भी ऐसे ही कोयला खदान बांटे जाते
रहे हैं। जाहिर है बीजेपी का मौजूदा विरोध किसी कॉरपोरेट लूट के ख़िलाफ़ न होकर
यूपीए सरकार के साथ लगभग नत्थी हो चले घोटालों की श्रृंखला को लपककर राजनीतिक लाभ
लूटने की है। दूसरी, आईएमजी ने पहले दिन ज़्यादातर एनडीए के जमाने में आवंटित
हुए कोयला खदानों को रद्द करने की
सिफ़ारिश कर यूपीए सरकार को ये मौका दिया कि अब वो डीज़ल, रसोई गैस और एफ़डीआई पर
खेल खेल सकती है क्योंकि कोयला पर एनडीए को आईना दिखाने वाली रिपोर्ट सामने है। यह
महज संयोग नहीं है कि ठीक उसी दिन (13 सितंबर को) यूपीए ने डीज़ल और रसोई
गैस वाला फ़ैसला लिया और अगले दिन, 14 सितंबर (जब हिंदी पट्टी के बुद्धिजीवी
हिंदी दिवस मनाने में मशगूल थे) को खुदरा बाज़ार में 51 फ़ीसदी एफडीआई का।
सवाल अपनी जगह कायम है। कॉरपोरेट लूट और इसमें
राजनीतिक सहभागिता पर लगाम कसने की कोशिश जिस संरचना के जरिए की जा रही है उसमें
पार्टियों के बीच ज़्यादा फर्क नहीं है। भाजपा अथवा कांग्रेस सिर्फ़ विपक्ष में
आने पर ही विरोध का स्वर अलापते हैं वरना नीतिगत स्तर पर दोनों के बीच कोई अंतर
नहीं है। इसके कई उदाहरण अतीत में देखे गए हैं। गुजरे साल दिल्ली में कुछ किलोमीटर
के अंतर में ही एक जगह भाजपा के लोग आदर्श सोसाइटी में हुए भ्रष्टाचार को लेकर
धरने पर बैठे थे तो दूसरी जगह कर्नाटक में येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोपों के
बीच उनके इस्तीफ़े की मांग कर रही कांग्रेस बैठी थी। मुद्दे और जगह में पाए जाने वाले
अंतर को दरअसल सैद्धांतिक अंतर के तौर पर पेश करने की शातिराना राजनीति की जब परत
उघड़ने लगती है तो नया शिगूफ़ा छोड़कर उसे शांत कर दिया जाता है। वरना इस नीति के
साथ कोयला आवंटन पहली बार यूपीए ने तो किया नहीं। 1993 से यही नीति अमल में लाई जा
रही है। और घोटाला अगर है तो सिर्फ़ 2004 से ही नहीं है...और अगर नहीं है तो फिर
कोई सवाल ही नहीं है।
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