-दिलीप
खान
अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) ने 6-7-8 सितंबर को उन 29 निजी कंपनियों को अपने दफ़्तर में तलब किया
जिनको कोयला मंत्रालय की तरफ़ से कारण बताओ नोटिस जारी हुआ था। सभी कंपनियों के
साथ बातचीत का दौर अब पूरा हो चुका है। अतिरिक्त सचिव ज़ोहरा चटर्जी की अध्यक्षता
वाले आईएमजी को कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने 15 सितंबर तक रिपोर्ट जमा करने
की हिदायत दी है। जाहिर है अब आईएमजी की रिपोर्ट का इंतज़ार हो रहा है। इसी
रिपोर्ट को आधार बनाकर मंत्रालय यह फ़ैसला लेगा कि किस कंपनी के लायसेंस को रद्द
किया जाए और किसके लायसेंस को बरकरार रखा जाए। हालांकि आईएमजी की बैठक से बाहर
निकलने वाले किसी भी सीईओ के चेहरे पर चिंता की लकीर नहीं दिखी और उम्मीद की जानी
चाहिए कि सभी कंपनियां अपने लायसेंस को बचा ले जाएंगी। एक भी कंपनी ने नहीं माना
कि उनके द्वारा किसी भी नियम का उल्लंघन हुआ है। सबका कहना है कि ‘ड्यू प्रोसेस’ उन्हें ब्लॉक आवंटित हुए। सबका मतलब
सबका। 2004-09 के बीच जो 142 कोयला ब्लॉक आवंटित हुए आईएमजी ने उनमें से कुछ ऐसी
कंपनियों को ही तलब किया था जिनपर कुछ शक-शुबहे की गुंजाइश दिख रही थी। सरकारी
कंपनियों को फ़िलहाल बख़्श दिया गया है। तो जिन कंपनियों को सफ़ाईतलब समझा गया
उन्होंने भीतर कितनी मज़बूती दिखाई ये तो 15 सितंबर तक ही पता चल पाएगा, लेकिन बाहरी आत्मविश्वास के आईने में देखें तो पलड़ा कंपनियों के पक्ष
में ही झुकता दिख रहा है।
आईएमजी के सामने पेश
होने वाली प्रमुख निजी कंपनियां
6 सितंबर
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7 सितंबर
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8 सितंबर
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मोनेट इस्पात
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आर्सेलर मित्तल
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ग्रासिम
इंडस्ट्रीज़
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इलेक्ट्रोस्टील
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रिलायंस पावर
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उषा मार्टिन
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भूषण स्टील
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आईएसटी स्टील एंड
पावर
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आधुनिक एल्वाइज
एंड पावर
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टाटा स्पाउंज
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नीलाचल आयरन एंड
स्टील
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जिंदल स्टील एंड
पावर
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बिहार स्पाउंज एंड
आयरन
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वानी कोलफ़ील्ड
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डीबी पावर
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झारखंड इस्पात
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जीवीके
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केसोराम
इंडस्ट्रीज़
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कोरपोरेट इस्पात
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जेएसपीएल
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एसकेएस इस्पात एंड
पावर
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जायसवाल नेको
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सरकारी-निजी मिलाकर जिन 58 कंपनियों को समय पर
काम शुरू नहीं करने के लिए कसूरवार ठहराते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, उनमें से लगभग हर निजी कंपनी का कहना था कि ज़मीन-अधिग्रहण, जंगल और पर्यावरण क्लीयरेंस जैसे ‘पचड़ों’ की वजह से उन्हें देरी हुई। मोनेट इस्पात के प्रबंध निदेशक संदीप
जजोदिया की माने तो कोयला निकालने से पहले काफ़ी ‘बोझिल प्रक्रिया’ से कंपनियों को गुजरना पड़ता है। जीवीके के एक अधिकारी के मुताबिक
ज़मीन खोदकर कोयला निकालने तक 52 जगह से हरी झंडी लेनी होती है। सबके दर्द समान थे! चाहे वो टाटा स्पाउंज आयरन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उज्जवल चटर्जी
हो या फिर भूषण स्टील के उपाध्यक्ष नीरज सिंघल। आईएमजी को सबने मिलकर आश्वस्त किया
होगा कि देश में यदि कंपनियों के मुताबिक़ ज़मीन-अधिग्रहण की नीति तैयार की जाए तो
कोयला खोदने में उनको आसानी होगी! एक अधिकारी ने तो पत्रकारों से ही सवाल
दाग दिया कि ज़मीन अधिग्रहण के लिए क्यों नहीं निवेश को बढ़ावा देने वाली नीति
बनाई जानी चाहिए? समझा जा सकता है कि अपने बचाव में कंपनियों ने
किस पहलू पर सरकार को झुकने के लिए दबाव बनाया होगा। अनिल अंबानी की रिलायंस से
लेकर रतन टाटा तक की इज़्ज़त का सवाल इससे जुड़ा है। बीते दिनों कांग्रेस सहित हर
राजनीतिक दल पर ज़मीन अधिग्रहण क़ानून में बदलाव को लेकर समाज के निचले हिस्से से
दबाव बना है। संसद में इसके ड्राफ़्ट पर भी लगातार बहसें हुईं। पार्टियों के पास
जनता के सामने जाने पर जनता की भाषा बोलने और उसी अनुरूप पक्षधरता दिखाने के
वास्ते ज़मीन का मुद्दा हमेशा अहम रहा है। बीते कुछ सालों से, ख़ासकर सेज़ के नाम पर चौतरफ़ा बहुराष्ट्रीय निजी कंपनियों के हाथों
ज़मीन सौंपने का बाद, अंग्रेज़ों के ज़माने के क़ानून में बदलाव
की बात चल रही है। ज़मीन को लेकर चलने वाले संघर्षों की अनथक यात्रा में पिछले
दिनों पॉस्को से लेकर जैतापुर तक और राजस्थान से लेकर बंगाल तक मज़बूत आंदोलन चले।
कई बार कंपनियां और सरकार जीतीं और कई बार जनता। फिर कोयला ब्लॉक आवंटन मामले पर
सीएजी की रिपोर्ट आई। 17 अगस्त को संसद के पटल पर इसे रखा गया। आवंटन में गड़बड़ी
की वजह से कैग ने 1.86 लाख करोड़ रुपए के नुकसान की बात उठाई। उसके बाद संसद के
दोनों सदन तकरीबन ठप्प रहे। बीजेपी सभी 142 आवंटन को रद्द करने की मांग पर अड़ी
रही। रद्द करने की बात पर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कई बार जो बात
दोहराई वह ग़ौरतलब है। जायसवाल ने अरुण जेटली पर व्यंग्य करते हुए कहा, “जेटली तो वकील हैं फिर भी नियम-क़ायदा नहीं
समझते। अगर हम आपाधापी में आवंटन रद्द करते हैं तो सारी कंपनियां कोर्ट में जाकर
स्टे ले लेंगी और सरकार कुछ भी नहीं कर पाएगी। जेटली चाहते हैं कि ऐसा ही हो। हम
आईएमजी की रिपोर्ट के आधार पर ही कुछ फ़ैसला ले पाएंगे।”
कोल इंडिया का एक ब्लॉक |
यानी बीजेपी जिस तरह दोसूत्रीय एजेंडा पर अड़ी
हुई राजनीतिक बढ़त बनाने में लगी थी कि प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा दें और कोल ब्लॉक
आवंटन को रद्द किया जाए उसे कांग्रेस ने कोर्ट का दांव खेलकर ध्वस्त करना चाहा।
कांग्रेस ये जता रही है कि देश के असली हित में वो सोच रही है और बीजेपी ने तो
यहां तक खुलकर कहा कि देशहित में कभी-कभी संसद ठप्प रखना भी ज़रूरी है। लेकिन जिन
कंपनियों ने उत्पादन शुरू नहीं किया उनका अपना तीसरा सुर है। वो इस बात पर लगातार
ज़ोर दे रही हैं कि ज़मीन अधिग्रहण और जंगल व पर्यावरण क्लीयरेंस निवेश-फ्रेंडली
नहीं है। मतलब अगर कांग्रेस और बीजेपी सहित अन्य राजनीतिक पार्टियां इस पर साझा
मंथन करती हैं तो उत्पादन शुरू नहीं होने के पीछे सबसे बड़ी वजह के तौर पर इसी बात
को देखा जाएगा। अगर आवंटन रद्द होता है तो भी पार्टियां जनता को यह संदेश देंगी कि
ज़मीन अधिग्रहण नीति की वजह से ऐसा हुआ, इसलिए देश का बट्टा
लगा और यदि आवंटन रद्द नहीं होता है तो कंपनियों की तरफ़ से सरकार पर दबाव ज़्यादा
बढ़ जाएगा कि भविष्य में ऐसी नीति को दुरुस्त किया जाए ताकि कंपनियों पर निकम्मेपन
का आरोप न लगे। ओह! तो खेल इस मैदान में खेला जा रहा है!
जब ‘औने-पौने क़ीमत’ पर ब्लॉक बांटे गए तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों को तथ्य मालूम थे।
चंद्रपुर (महाराष्ट्र) के बीजेपी सांसद हंसराज अहीर ने इस बाबत तत्कालीन कोयला
मंत्रियों, क्रमश: शिबू सोरेन और
मनमोहन सिंह को कई चिट्ठियां लिखीं थीं जिनमें आवंटन की गड़बड़ियों का उल्लेख था।
उस समय बीजेपी ने मुख्य विपक्षी पार्टी की हैसियत से कोई स्टैंड नहीं लिया। मामला
चुक जाने और सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद अब उसे देशहित का ख़याल क्यों आ रहा है? निजी कंपनियों को ब्लॉक देने पर श्रीप्रकाश जायसवाल ने बीते हफ़्ते
सफ़ाई दी कि चूकि कोल इंडिया के पास पहले से पर्याप्त ब्लॉक मौजूद हैं, इसलिए हमने ब्लॉक्स को निजी कंपनियों की तरफ़ मोड़ने का फ़ैसला किया।
जायसवाल ने बताया कि कोल इंडिया के पास जो भंडार है उससे अगर अगले 30 साल तक वो
कोयला निकालती रहे तो भंडार ख़त्म नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि कोल इंडिया को
अगर और ब्लॉक्स दिए जाते तो सीमित संसाधन की वजह से वो उनका सही उपयोग नहीं कर
पाती। अब दूसरा पहलू देखिए। मंत्रालय के ही एक अधिकारी का कहना है कि यदि आईएमजी
यह सिफ़ारिश करती हैं कि 29 में से कुछ कंपनियों का आवंटन रद्द किया जाए तो वे
सारे रद्द ब्लॉक्स कोल इंडिया को सौंप दिए जाएंगे। मंत्री जी, क्या गफ़लत है? कोल इंडिया उत्पदान कर भी नहीं सकती और
आपका मंत्रालय कह रहा है कि सौंपा भी उसे ही जाएगा, हालांकि मोटे तौर पर
हर कोई जान रहा है कि आवंटन रद्द ही नहीं होंगे।
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