08 मई 2011

ओसामा की हत्या पर नोम चोम्स्की की प्रतिक्रिया

अमेरिका के अपराध नाजियों के अपराधों से भी बढ़ कर हैं



नोम चोम्स्की
हम खुद से यह पूछ सकते हैं कि तब हमारी प्रतिक्रिया क्या होती, जब कोई ईराकी कमांडो जॉर्ज डब्ल्यू बुश के घर में घुस कर उनकी हत्या कर देता और उनकी लाश अटलांटिक में बहा देता.

यह अधिक से अधिक साफ होते जाने से कि यह एक योजनाबद्ध हत्या का अभियान था, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सबसे बुनियादी नियमों का उल्लंघन भी उतना ही गहराता जा रहा है. संभवतः 80 कमांडो उस निहत्थे पीड़ित को पकड़ सकते थे, लेकिन यह भी साफ हो चुका है कि उन्होंने इसकी कोई कोशिश नहीं की. जबकि उन्हें वास्तव में किसी भी तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा, सिवाय - उन्हीं के दावे के मुताबिक – लादेन की बीवी को छोड़ कर जो उनकी तरफ लपकी थी. जिन समाजों में कानून को लेकर थोड़ा भी सम्मान होता है, वहां संदिग्धों को पकड़ कर उन्हें निष्पक्ष सुनवाई के लिए पेश किया जाता है. मैं ‘संदिग्ध’ शब्द पर पर जोर दे रहा हूं. अप्रैल, 2002 में एफबीआई के मुखिया रॉबर्ट मुलर ने प्रेस को बताया था कि इतिहास की सबसे सघन जांच के बाद एफबीआई इससे अधिक कुछ भी नहीं कह सकती कि उसका ‘मानना’ है कि योजना अफगानिस्तान में बनी, हालांकि संयुक्त अरब अमीरात और जर्मनी में उसे लागू किया गया. जो वे अप्रैल, 2002 में ‘मानते’ थे, जाहिर है कि उसे वे आठ महीना पहले उस समय नहीं जानते थे जब वाशिंगटन ने तालिबान के ढीले-ढाले प्रस्तावों को खारिज कर दिया था (वे कितने गंभीर थे, यह हम नहीं जानते, क्योंकि उन्हें खारिज कर दिया गया) कि अगर अमेरिका सबूत पेश करे तो तालिबान बिन लादेन को उन्हें सौंप देंगे. पर हमने अभी-अभी जाना है कि वे सबूत वाशिंगटन के पास थे ही नहीं. यानी ओबामा तब साफ झूठ बोल रहे थे जब उन्होंने अपने व्हाईट हाउस के बयान में कहा कि ‘हमने तत्काल जान लिया था कि 11 सितंबर के हमले अल कायदा द्वारा किए गए थे.’
तब से लेकर अब तक कुछ भी ऐसा नहीं पेश किया गया है जो गंभीर हो. बिन लादेन के कबूलनामे के बारे में बहुत चर्चा हुई है लेकिन उसका उतना ही महत्व है जितना मेरे मेरे इस कबूलनामे का कि मैंने बोस्टन मैराथन जीता है. लादेन ने उस बात की डींग हांकी जिसे वह एक बड़ी उपलब्धि मानता था.
मीडिया में वाशिंगटन के गुस्से के बारे में भी बहुत चर्चा हो रही है कि पाकिस्तान ने बिन लादेन को उसे नहीं सौंपा, जबकि पक्के तौर पर फौज और सुरक्षा बलों के कुछ अधिकारी एबटाबाद में उसकी मौजूदगी से वाकिफ थे. पाकिस्तान के गुस्से के बारे में बहुत कम कहा जा रहा है कि अमेरिक ने एक राजनीतिक हत्या के लिए उनकी जमीन में हस्तक्षेप किया. पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी गुस्सा पहले से ही बहुत है, और इस घटना से वह और बढ़ेगा. जैसा अंदाजा लगाया जा सकता है, लाश को समुद्र में फेंक देने के फैसले ने मुसलिम जगत में गुस्से और संदेह को ही भड़काया है.
हम खुद से यह पूछ सकते हैं कि तब हमारी प्रतिक्रिया क्या होती, जब कोई ईराकी कमांडो जॉर्ज डब्ल्यू बुश के घर में घुस कर उसकी हत्या कर देता और उसकी लाश अटलांटिक में बहा देता. यह तो निर्विवाद है कि बुश के अपराध बिन लादेन के अपराधों से बहुत अधिक हैं और वह ‘संदिग्ध’ नहीं है, बल्कि निर्विवाद रूप से उसने ‘फैसले’ लिये. उसने सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय अपराधों के लिए आदेश दिए, जो दूसरे युद्धापराधों से इस मायने में अलग हैं कि वे अपने में उन सारे अपराधों को समेटे हुए हैं (न्यूरेमबर्ग ट्रिब्यूनल को उद्धृत करूं तो) जिनके लिए नाजी अपराधियों को फांसी पर लटकाया गया थाः लाखों मौतें, दसियों लाख शरणार्थी, अधिकतर देश को तबाह कर देना और एक कटु सांप्रदायिक विवाद को पैदा करना जो अब बाकी इलाके में फैल गया है.
अभी फ्लोरिडा में शांति से मरे (क्यूबाई एयरलाइन बॉम्बर ओरलांडो) बोश के बारे में भी बहुत कुछ कहना है, और अभी ‘बुश डॉक्ट्रिन’ का भी हवाला देना है कि जिसके अनुसार वे समाज जहां आतंकवादी पनाह लेते हैं, उतने ही बड़े अपराधी हैं जितने आतंकवादी और उनके साथ वैसा ही सलूक किया जाना चाहिए. किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया कि ऐसा कह कर बुश अमेरिका पर हमले और इसके विनाश तथा इसके अपराधी राष्ट्रपति की हत्या का ही आह्वान कर रहा था.
अब इस ऑपरेशन के नाम पर- ऑपरेशन गेरोनिमो. पूरे पश्चिमी समाज में साम्राज्यवादी मानसिकता इस कदर गहरी है कि कोई अंदाजा तक नहीं लगा सकता कि जनसंहारकर्ता हमलावरों के खिलाफ साहसी प्रतिरोध के साथ बिन लादेन को जोड़ कर उसकी शान को बढ़ा ही रहे हैं. यह अपने मारक हथियारों को उन लोगों के नाम दे देना है, जो हमारे अपराधों के पीड़ित रहे हैः अपाचे, टॉमहॉक... यह ऐसा है मानों लुफ्टवाफे (Luftwaffe) ने अपने लड़ाकु हवाई जहाजों को ‘यहूदी’ और ‘जिप्सी’ का नाम दिया होता.
अभी बहुत कुछ कहना है, लेकिन ऐसा होना चाहिए कि बहुत जाहिर और शुरुआती तथ्यों पर भी हम सोच सकें. साभार-हाशिया

1 टिप्पणी:

  1. गंभीर मशला है, मेरा भी मानना है कि अमेरिका विश्व के साथ दोहरी नीति अपनाता हैं यह भी हो सकता है कि अब अमेरिका पाकिस्तान को फिर कोई हथियारों की बड़ी खेप दे। पर बाद में क्या पाकिस्तान का हाल अफगानिस्तान की तरह नहीं होगा।

    विचारणीय लेख।

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