पुलिस के द्वारा महाविद्यालयों के प्राचार्य को दिया गया पत्र:-
गोपनीय प्रति,
माननीय आचार्य,
विषय:-छात्रॊं संबधी जानकारी पहुचाने हेतु
देखने में आया है कि नक्सल वादी संगठन(cpi माओवादी)युवा छात्र तथा बीच में पढा़ई छोड़ने वाले और आर्थिक द्रिष्टिकोण से कमजोर अपने भावी जीवन में बडी़ अपेक्षा रखने वाले युवाओं को ढूढ़्कर अपना हस्तक बनाते हैं उनके परिवार की थोडी़ सी आर्थिक जरूरत को पूर्री करके उनको दूसरों की झूठी और दूसरों कि लिविंग सर्टिफ़िकेट देकर तथा उनको आर्थिक मदद करके महाविद्यालयों में गैप सर्टिफ़िकेट के आधार पर प्रवेश लेने के लिये कहते हैं ऎसे छात्रॊ द्वारा महविद्यालयों में छात्र संगठनात्मक बनकर नक्सलवादी ध्यय धोरण उद्देश्य तथा इसके लिये पुरक विचार का छात्रों में प्रचार प्रसार करते हैं.यह छात्र जनजागरण ,नुक्कण नाटक,व बौमादद्धिक चर्चाओं के जरिये माध्यम से नक्सल वादी ध्यय तथा उनके उद्देश्यों का प्रसार एवं प्रचार करते हैं.छात्रों के अंदर सुप्त गुणों को जाग्रित कर देशविघात करने के लिये उन्हें मानसिक द्रिश्टि से तैयार करके माओवादी आंदोलन में प्रवेश करने हेहु उन्हें बाध्य करके हैं,आपके विद्यालय में अभी जून २००८ से नये सत्र की प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो रही है इस दौरान सभी प्रकार के छात्र प्रवेश लेंगे.आपके अधीनस्थ सभी प्रवेश प्रक्रिया संबंधी प्रोफ़ेसर तथा अन्य कर्म चारी वर्ग को उपर दिये गये मुद्दों से परिचित करवाकर तथा गैप सर्टिफ़िकेट के आधार पर प्रवेश लेने वाले छात्रों की एक लिस्ट बनाकर इस कार्यालय को हर सोमवार को देने की क्रिपा करें.गैप सर्टिफ़िकेट के आधार पर प्रवेश करने वाले छात्रो के नाम गाँव पतातथा उसकी लिविंग सर्टिफ़िकेट की पूरी जाँच करने के बाद तथा उसकी पूर्व सूचना हमारे कार्यालय को देने के बाद ही उसका प्रवेश शुनिश्चित किया जाय तब तक उनको अस्थायी प्रवेश ही दिये जायें.प्रवेश के लिये आने वाले छात्रों को उनके अध्यावत फ़ोटो मांगे जायें तथा दो ऎसे प्रतिष्ठित व्यक्तिओं के नाम भी मांगे जाय जो उनको पहचानते हों.नक्सल वादी आंदोलन को रोकने के लिये और उनका प्रसार व प्रचार तथा नये नक्सलवादी समर्थक तैयार न होंइसके लिये आपका सहयोग अपेक्षित है.
पोलिस उपायुकत-विषेश शाखा नागपुर शहर
आज पाश जैसा कोई कवि नहीं जो यह लिखे कि हम नहीं चाहते पुलिस की लाठियों पर टंगी किताबों को पढ़ना.सत्ता हस्तांतरण के बाद देश ने शिक्षा को लेकर अपने प्रोफ़ाइल को जरूर सुधारा है. पर इस सुधार का जो स्वरूप रहा है वह बेहद चिंतनीय है.साझी विरासत के रूप में शिक्षा को देखने के बजाय, जो कदम उठाये गये हैं उनका संबंध वर्तमान समाज से काटकर एक ऎसी शिक्षा व्यवस्था का निर्माण करना रहा है जिसने मानवीय मूल्यों को ताक पर रखते हुए वर्तमान शोषण युकत समाज को पुख्ता बनाये रखने का प्रयास किया है.मूल्य आधारित शिक्षा पर दिनों दिन सिकंजे कसे गये हैं और व्यवसायिक शिक्षा को बढा़वा दिया गया है. इस कडी़ में उच्च शिक्षण संस्थानों में गैर राजनीतिकरण करके शिक्षा को समाज से काटने व साझी विरासत के रूप में देखने के बजाय एक खास समुदाय तक ही शिक्षा को सीमित करने का प्रयास भी जारी रहा है.जिसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षा प्राप्ति का एकमात्र उद्देश्य टटपुजिया नौकरीयों को प्राप्त करना ही रह गया है जिसके सहरे अगली पीढी़ को भी नौकर बनाया जा सके.यह एक प्रवृत्ति है जो कि शिक्षण संस्थानों में पनप चुकी है.
इसके बावजूद युवावों में देश समाज के लिये कुछ करने के जज्बे को देखते हुए देश के बडे़-बडे़ संस्थानों में एन.जी.ओ. का प्रवेश कराया गया जहाँ से अंततः वे इस व्यवस्था को पोशित कर सकें.बी.एच.यू. जैसे एशिया के सबसे बडे़ आवासीय परिसर के रूप में जाने-जाने वाले विश्वविद्यालय में वर्तमान में ३० से अधिक एन.जी.ओ. कार्य कर रहे हैं.इस रूप में देश के कई महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों में एन.जी.ओ. ने अपनी पकड़ मजबूत की है.और शिक्षण संस्थानों से देश की दशा दिशा तय करने वाला वर्ग खत्म होता जा रहा है.कई महत्वपूर्ण संस्थानों से छात्रसंघ के चुनाव की प्रक्रिया को खत्म करना व किसी भी तरह की राजनीति से छात्रों को दूर करना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि शिक्षित युवा वर्ग को देश समाज की समस्याओं पर सोचने विचारने से दूर करने का प्रयास है. शिक्षण संस्थानों में बार-बार एक राजनीति के तहत इस बात को भरा गया कि शिक्षा का राजनीति से कोई संबंध नहीं है और एक बेहतर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र के लिये जरूरी है कि वह राजनीति से दूर रहे.दिनों दिन बदलते इस स्वरूप में आज स्थिति यह है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये पुलिस के अनुमति की जरूरत पड़ रही है. यह सत्ताहस्तांतरण के बाद सिकंजे जाने का एक क्रम है जो यहाँ तक आ चुका है कि इस बात का निर्धारण अब पुलिस करेगी कि किसको शिक्षा दी जाय.
२००८ सत्र की शुरूआत में ही विदर्भ क्षेत्र की पुलिस ने सभी विद्यालयों कालेजों में एक गोपनीय पत्र भेजा जिसके तहत यह कहा गया कि वे क्षात्र जो किसी विषय में दुबारा प्रवेश ले रहे हैं उनकी सूचना पुलिस को दे और उनका एक फोटो भी पुलिस को उपलब्ध कराया जाय.पुलिस द्वारा यह भी सुझाव दिया गया कि प्रवेश लेते समय शहर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति का नाम भी मांगा जाय जो उन्हें पहचानते हों. इन सारी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद ही उनका प्रवेश सुनिश्चित किया जाय. ऎसा इसलिये क्योंकि इस रूप में प्रवेश लेकर नक्सलवादी राजनीति से प्रेरित युवा विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेकर छात्रों के अंदर अपनी राजनीति का प्रचार प्रसार करते हैं.जिनके द्वारा चर्चा, नाटक, गोष्ठी आदि की जाती है.मौखिक रूप से हिदायत दी गयी कि वे छात्र जो भंडारा, गड़विरौली, चन्द्रपुर से आते हैं उन पर विशेष ध्यान दिया जाय. इस रूप में शिक्षा के क्षेत्र में पुलिस की यह दखल कई सवाल उठाती है कि नक्सलवाद के नाम पर शिक्षण संस्थानों में पुलिस का यह दख़ल कितना वाजिब है. एक तो इस बहाने वे सभी तरह की चर्चा गोष्ठियों को बंद कर शिक्षण संस्थानों में सोचने समझने की परंपरा को खत्म कर रहे हैं.साथ में यह कि वे छात्र जो किसी कारण से (जिनमें आर्थिक मजबूरी अधिकांसतः होती है) पिछले वर्षों में प्रवेश से वंचित रहे हैं उन्हें शिक्षा से वंचित करने का प्रयास है या उनकी शिक्षा पर यह सीधा प्रतिबंध है.जिन जिलों को लेकर हिदायत दी गयी है वे जिले आदिवासी बहुल्य जिले हैं साथ में यहाँ पर शिक्षण संस्थानों की भी कमी है. ऎसे में इस तरह के प्रतिबंध शिक्षा व्यवस्था को पुलिस के हवाले ही करना कहा जा सकता है. जहाँ आदिवासी, अनुसूचितजाति के लोगों को शिक्षा से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है.एक तरफ़ सरकार आरक्षण के जरिये व विषेश सुविधायें मुहैया करा कर शिक्षा के इस गैरबराबरी को दूर करनें का प्रयास कर रही है, तो दूसरी तरफ़ सरकार के पुलिसिया अंग की यह कार्यवाही उन्हें शिक्षा से वंचित करने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है भारतीय लोकतंत्र में समाज को मानवाधिकार, शिक्षा, व अन्य मूलभूत अधिकारों को प्रतिबंधित करने का यह प्रयास इसलिये किया जा रहा है ताकि नक्सलवादी समर्थकों को तैयार होने से रोका जा सके. तो क्या सरकार के पास दिनों दिन बढ़ रहे नक्सलवादी आंदोलन को रोकने के लिये मानवाधिकारों से वंचना ही बची है?
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