26 दिसंबर 2007

यह चरित्र है संसदवादी कम्युनिष्टों काः-

के ए शाजी
संसदवाद की प्रणाली में अपने को फिट करते-करते अब भारतीय कम्युनिष्तों का चरित्र सामने आा रहा है चाहे वह नंदीग्राम में हो या फिर केरल में
बुद्धदेव भट्टाचार्य अब शायद खुश होंगे। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का नंदीग्राम मार्का मार्क्सवादी समाजवाद अब केरल के ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी जड़ें जमा रहा है। राज्य के इडुक्की जिले में कॉमरेड भू-माफियाओं और पर्यटन व्यवसायियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसकी मार पड़ रही है उन गरीब आदिवासियों पर जिन्हें उनकी सदियों पुरानी ज़मीनों से खदेड़ा जा रहा है।

पार्टी के नवउदारवादी नेता पिन्नाराई विजयन, टीएम थॉमस, आइसाक और एमए बेबी के स्थानीय गुंडों ने इडुक्की की ज़मीनों पर कब्जा करने के लिए अभियान छेड़ा हुआ है। इडुक्की हाल तक मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन का गढ़ हुआ करता था जहां उन्होंने बड़े भू-माफियाओं को बाहर खदेड़ने के लिए कड़े क़दम उठए थे। लेकिन ताकतवर माफियाओं ने स्थानीय सीपीआई और सीपीएम, दोनों को अपने पाले में कर लिया। नतीजा, अच्युतानंदन का सबसे मजबूत गढ़ उनके हाथ से जाता रहा।

नवंबर के आखिर में हजारों की संख्या में सीपीएम कैडरों ने हिल स्टेशन मुन्नार के पास बसे गांव चिन्नाकनाल की 53 एकड़ सरकारी ज़मीन पर कब्जा कर लिया. इस जमीन पर करीब कुछ महीनों से 160 भूमिहीन आदिवासी सरकार के उस आश्वासन आदिवासियों के सामने मुश्किल हालात हैं। झोपड़ियां मार्क्सवादी आक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं और वे समझ नहीं पा रहे कि कहां जाएं। ज़िला प्रशासन और पुलिस ने उनसे आंखें फेर ली हैं और सीपीएम के लोग अभी भी आज़ाद कराई गई इस जगह की निगरानी कर रहे है।
के बाद झोपड़ियां बनाकर रह रहे थे जिसमें कहा गया था कि उन्हें इस इलाके में जमीन दी जाएगी। इन झोपड़ियों को आग लगाकर राख कर दिया गया और उनके ऊपर लाल झंडे फहरा दिए गए जो इस बात का संकेत थे कि जमीन अब आजाद है। असहाय आदिवासियों ने पास ही स्थित एक चट्टान के नीचे शरण ली और सीपीएम के लोगों ने उस ज़मीन पर अपने छप्पर डाल कर अपने "अतिक्रमण विरोधी" अभियान को अंतिम रूप दे दिया।

हालांकि पहले दिन सिर्फ अनयिरंगल और पप्पाथिचोला से ही आदिवासियों को बाहर निकालने का अभियान चला लेकिन अगले दिन सीपीएम के गुंडो ने लगभग पूरे चिन्नाकनाल गांव में आने वाली राजस्व भूमि पर लाल झंडे फहरा कर उस पर अपने अधिकार का ऐलान कर दिया। दूसरे दिन के अभियान में करीब 2000 कैडरों ने हिस्सा लिया।

अब आदिवासियों के सामने मुश्किल हालात हैं। झोपड़ियां मार्क्सवादी आक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं और वे समझ नहीं पा रहे कि कहां जाएं। ज़िला प्रशासन और पुलिस ने उनसे आंखें फेर ली हैं और सीपीएम के लोग अभी भी आज़ाद कराई गई इस जगह की निगरानी कर रहे है।

आदिवासी परिवारों ने 1500 एकड़ की जिस ज़मीन पर झोपड़ियां बनाई थीं उसे सरकार ने सालों पहले हिंदुस्तान न्यूज़प्रिंट लिमिटेड नाम की एक कंपनी को यूकेलिप्टिस के पेड़ लगाने के लिए आवंटित किया था। इन आदिवासियों को पता ही नहीं चला कि कब सीपीएम कैडरों ने अपना कब्जा अभियान शुरू कर किया। दरअसल ये पूरा इलाका आदिवासियों का ही था और कंपनी इस ज़मीन का कोई उपयोग नहीं कर रही थी। आदिवासियों को सीपीएम का कोपभाजन इसलिए बनना पड़ा क्योंकि उन्होंने ज़मीन को तब तक न छोड़ने की धमकी दी थी जब तक की सरकार उन्हें अपने वादे के मुताबिक ज़मीनें मुहैया नहीं करवाती। आदिवासी इन ज़मीनों पर ट्राइबल रिहैबिलिटेशन प्रोटेक्शन कमेटी के झंडे तले रह रहे थे।

जाने-माने आदिवासी नेता सी के जानू कहते हैं, "ये एक औऱ नंदीग्राम की शुरुआत है। आदिवासियों के आवंटन वाली ज़मीन से उन्हें बेदखल करने का अधिकार सीपीएम कैडरों को किसने दिया? ये लोग ज़मीन के मामलों में फैसला करने का अधिकार न्यायपालिका और सरकार के जिम्मे क्यों नहीं छोड़ते हैं? मामला बिल्कुल साफ है कि पार्टी बाहुबल के दम पर सार्वजनिक ज़मीनों पर कब्जा करके उसे भू-माफियाओं को सौंपना चाहती है।"

चिन्नाकनाल में सीपीएम कैडरों के इस कारनामें पर सीपीआई नेता और राज्य के राजस्व मंत्री केपी राजेंद्रन ने तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ज़िला प्रशासन को आदेश दिया कि पार्टी से जुड़ाव को दरकिनार करके सभी अतिक्रमणकारियों को हटाया जाय। बावजूद इसके अभी तक सीपीएम के अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मुन्नार में ज़मीन के कब्जेदारों को हटाने के लिए बने टास्क फोर्स के मुखिया केएम रामानंदन ने इस मसले को हल करने के लिए सभी पार्टियों की मीटिंग भी बुलाई लेकिन इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।

गुस्साए आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मानें तो सीपीएम ने चिन्नाकलान में हड़पी गई ज़मीनों को वापस न करने की ठानी हुई है। चिन्नाकनाल में सीपीएम के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाले आदिवासी पुन्नाम्बलम कहते हैं, "अगर अधिकारियों ने तत्काल कड़े क़दम नहीं उठाए तो यहां मुथांगा जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।" मुथांगा में पुलिस ने आदिवासियों के खिलाफ सबसे कठोर अभियान चलाया था। ज़िलाधिकारी ने सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज दी है जिसमें कहा गया है कि चिन्नाकनाल की ज्यादातर सरकारी ज़मीन सीपीएम नेताओं के अवैध कब्जे में है।
एके एंटनी की यूडीएफ सरकार के दौरान ने जब उत्तरी केरल के वायनाड ज़िले में आदिवासियों को वायदे के मुताबिक ज़मीन नहीं दी तो इसके विरोध में उन्होंने जंगलों में अपनी झोपड़ियां बना ली थीं। इसकी प्रतिक्रिया में फरवरी 2003 में पुलिस कार्रवाई में एक आदिवासी और एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई थी जबकि कई आदिवासी घायल हुए थे। इस मामले में आदिवासियों को अब तक भी जमीनें नहीं मिली हैं। पुन्नाबलम कहते हैं, "मार्क्सवादियों का लक्ष्य ये साबित करना है कि आदिवासी ज़मीन के हक़दार नहीं है। चूंकि वो सत्ता में हैं इसलिए वो आसानी से अपने दावे को सही साबित करने के लिए जाली दस्तावेज भी पेश कर देते हैं और हम पर अपनी ज़मीनों से बेदखल करने का दबाव डालते हैं। एक बार ऐसा हो गया तो वो ज़मीनों के बंटवारे को ठंडे बस्ते में डालकर इन ज़मीनों को भू-माफियाओं के हवाले कर देंगे।"

उधर, राजस्व मंत्री ने तहलका को बताया कि सभी प्रदर्शनकारी आदिवासियों को उनकी ज़मीनें वापस दी जाएंगी और लाल झंडे की परवाह न करते हुए जमीनों से कब्जे हटाए जाएंगे। लेकिन चिन्नाकनाल पंचायत में वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ये आसान नहीं लगता। पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगर अस्थायी तौर पर सीपीएम कैडर हट भी जाते हैं तो आदिवासियों को ज़मीने सौंपना आसान नहीं है। स्थानीय पत्रकार टीसी राजेश कहते हैं, "सीपीएम पहले से ही ये तर्क दे रही है कि जिन 120 आदिवासियों ने अपनी झोपड़ियां यहां बना रखी थीं उनमें सिर्फ 21 के पास ही मालिकाना हक़ है। सीपीएम के लिए आदिवासियों को जारी किए गए ऑफर लेटर की फिर से जांच की मांग करना आसान है। इससे पार्टी को अपना एजेंडा लागू करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा।" सालों पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री एके एंटनी और आदिवासी नेता सीके जानू के बीच हुए एक समझौते के बाद आदिवासी इन जमीनों पर बसे थे। एक भव्य समारोह के दौरान एंटनी ने 798 आदिवासियों को ज़मीन के कागज़ात सौंपे थे। लेकिन 540 परिवारों को ही चिन्नाकनाल में ज़मीन मिली। बाक़ियों को जो ज़मीनें मिली वो पहले से ही भूमाफियाओं के कब्जे में थी।

"ये गरीब लोग पिछले पांच सालों से अपनी ज़मीन के इंतज़ार में हैं। सरकार उन्हें सीधे-सीधे सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर रही है," ये कहना है आदिवासी नेता सीपी शाजी का। उधर सीपीएम नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस और सीपीआई के लोगों ने आदिवासियों को इन ज़मीनों पर कब्जा करने के लिए उकसाया ताकि एक बार मामला शांत हो जाने के बाद वो खुद इन ज़मीनों पर कब्जा कर सकें।

बहरहाल ज़िलाधिकारी ने सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज दी है जिसमें कहा गया है कि चिन्नाकनाल की ज्यादातर सरकारी ज़मीन सीपीएम नेताओं के अवैध कब्जे में है। ज़िलाधिकारी ने ये भी साफ किया है कि आदिवासियो की ज़मीन पर कब्जा करने के पीछे टूरिस्ट रेजॉर्ट बनाने वाली एक लॉबी का हाथ भी है।

राजेश कहते हैं, "ये गांव पर्यटन के लिहाज से काफी अहम जगह पर मौजूद है जिसकी सीमाएं मथिकेत्तन राष्ट्रीय उद्यान और मुन्नार हिल स्टेशन से लगती हैं। विवादित ज़मीन दर्शनीय अनयिरंकल बांध से भी काफी नज़दीक है। रियल इस्टेट माफिया को अहसास है कि इसे बड़े फायदे के सौदे में बदला जा सकता है।"
:-तहलका से साभार

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