04 दिसंबर 2007
डॉलर : साम्राज्य में सेंध
रेयाज-उल-हक
द इकोनॉमिस्ट भले ही इस बात पर खुशी जाहिर कर रहा हो कि डॉलर अभी ध्वस्त नहीं होने जा रहा है. मगर यह एक विश्व मुद्रा के लिए बहुत अच्छे संकेत नहीं हैं कि वह एक मॉडल के पारिश्रमिक भुगतान में असमर्थ साबित हो. ब्राजील की सुपर मॉडल गीसेल अब डॉलर स्वीकार नहीं कर रही हैं.
और ऐसा करनेवाली गीसेल अकेली नहीं हैं. अरबपति जार्ज सोरोस के पूर्व पार्टनर जिम रोजर्स अपनी पूरी जायदाद और मकान बेच रहे हैं, ताकि वे पूरी संपत्ति चीनी यूआन में तबदील कर सकें. एयर बस ने पहले ही डॉलर के इस संकट को प्राणघातक कहा है. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने इकोनॉमिक वार की चेतावनी दी है.
अमेरिकी पूंजी का अमेरिका से बाहर निवेश होना और बुश द्वारा युद्ध पर किये जा रहे भारी खर्च के बीच मांग और आपूर्ति के सिद्धांत में विश्वास रखनेवालों को यह अभी आकलन ही करना है कि डॉलर की मांग में कमी डॉलर की कीमत और अमेरिकी शक्ति को किस तरह डुबो रही है.
दुनिया भर के अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि डॉलर का इस तरह लुढकते जाना नियंत्रण से बाहर हो सकता है. और अगर ऐसा हुआ तो अमेरिकी साम्राज्य का बने रहना असंभव हो जायेगा.
अगर हम थोडी कल्पना करने की इजाजत लें तो हम देखेंगे कि अमेरिका के लिए तब भारी मुश्किल पैदा हो जायेगी, जब उसका डॉलर विश्व मुद्रा के रूप में अपना अस्तित्व खो देगा. तब अमेरिका को विदेशों में स्थित अपने ७३७ सैनिक अड्डों के खर्च के लिए भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित करनी होगी. और अभी अमेरिका के ८०० बिलियन व्यापार घाटे को देखते हुए यह असंभव लगता है. जब डॉलर रिजर्व करेंसी के रूप में नहीं रह जायेगा, विदेशी निवेशक अमेरिकी व्यापार और बजट घाटे में पैसा लगाना भी बंद कर देंगे.
२००२ में, जबकि डॉलर का प्रभुत्व विश्व अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक था, के बाद से वह संयुक्त रूप से विश्व की शेष करेंसियों के मुकाबले २४ प्रतिशत नीचे गिरा है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में ०.७५ प्रतिशत की कटौती के बावजूद इसकी गिरावट जारी है. बढी हुई मुद्रास्फीति से उबरने के लिए ब्याज दरों में कटौती की जाती है. मगर अब अमेरिका में यह मांग उठने लगी है कि डॉलर को विनाश से बचाने के लिए अभी और कटौती पर रोक लगायी जाये.
अभी कुछ समय पहले यह खबर आयी थी कि दुनिया के सात देश डॉलर का परित्याग करनेवाले हैं. इनमें दक्षिण कोरिया, वेनेजुएला, ईरान, सूडान, चीन और रूस के साथ आश्चर्यजनक रूप से सऊदी अरब भी शामिल है. सऊदी अरब ने हाल में तब ब्याज दरों में कटौती से इनकार कर दिया, जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें घटायीं. जानकारों का कहना है कि यह स्थिति अमेरिकी डॉलर के लिए एक विश्व मुद्रा के रूप में बेहद खतरनाक हालात पैदा करेगी. अमेरिका के साथ लेन-देन में अकेले सऊदी अरब की ८०० बिलियन डॉलर की भागीदारी है. और अगर सऊदी अरब ने डॉलर का साथ छोड दिया तो यह मध्य पूर्व में डॉलर के लिए एक बडा झटका साबित होगा. पूरे मध्य पूर्व के साथ अमेरिका का ३५०० बिलियन का लेन-देन है. दक्षिण कोरिया अगस्त में १०० मिलियन डॉलर बेच चुका है और ऐसी खबरें हैं कि वह एक बिलियन अमेरिकी बांड बेचनेवाला है. चीन के बारे में माना जाता है कि वह डॉलर को उडा देने की क्षमता रखता है.
नवंबर, २००५ में दक्षिण कोरिया के मात्र इतना कहने से कि वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार में कटौती करने की योजना पर विचार कर रहा है, डॉलर के इतिहास में सबसे बडी एकदिवसीय गिरावट आयी थी. उस समय द कोरिया के पास मात्र ६९ बिलियन डॉलर का रिजर्व था. हम कल्पना कर सकते हैं कि चीन और जापान जैसे देशों, जिनके पास कुल मिला कर लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का विदेशी भंडार है, यदि डॉलर में कटौती पर विचार करें तो क्या हालत हो सकती है.
हम संकेतों को पढ सकते हैं. मध्य पूर्व में ताजा राजनीतिक-सैन्य गतिविधियों को देखें तो युद्ध को लेकर अमेरिकी उतावली और ईरान के खिलाफ नये सिरे से और तेज लामबंदी का डॉलर के इस घटते प्रभुत्व से भी संबंध है. २००३ में इराक पर सारी दुनिया की जनता के प्रतिरोध को नजरअंदाज करते हुए थोपे गये युद्ध के पूर्व भी ऐसी ही स्थिति थी. तब साम हुसेन ने अपने १० बिलियन अमेरिकी डॉलर के भंडार को यूरो में बदल दिया था और उसकी देखा-देखी कई और देश इस राह पर जाने को तैयार थे.
१९७० के बाद से जारी वैश्विक मंदी से निकलने के लिए कि्वे ग्वे सारे उपा्व असफल साबित हुए हैं. उल्टे संकट और सघन हुआ है. लैटिन अमेरिका, एशि्वा और अफ्रीका में जनता के तेज होते प्रतिरोध संघर्षों के बीच उसका संकट और बढेगा ही.
...और जाहिर है, ऐसे में द इकोनॉमिस्ट' के लिए राहत भरे दिन लंबे समय तक नहीं नहीं रहनेवाले हैं.
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शीघ्र ही एक रुपये में 49 डॉलर मिलने लगेंगे... स्वप्न कब साकार होगा?
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