17 अप्रैल 2007

धर्म के नाम पर ......

भारत में आज धविनोंद विप्लवर्म का बोलबाला है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के चरम विकास के इस युग में हमारे देश की बहुसंख्यक जनता की सोच में धर्म और आस्था हावी होती जा रही है। कुछ समय पूर्व एक प्रमुख राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्रिका की ओर से कराये गये सर्वेक्षण में यह तथ्य उभर कर सामने आया था कि हमारे देश में लोगों का धर्म, ईश्वर और कर्मकांडों के प्रति विश्वास बढ़ा है। यहां तक कि नयी पीढ़ी खास तौर पर सूचना प्रौद्योगिकी कम्प्यूटर ई- कॉमर्स मीडिया फैशन माकेZटिंग और प्रबंधन जैसे आधुनिक पेशों से जुड़े युवा वर्ग के लोगों की धर्म के प्रति आस्था और पूजा-पाठ जैसे विभिन्न धार्मिक अनु\ष्ठानों में हिस्सेदारी बढ़ी है। विज्ञान fशक्षा और संचार जैसे क्षेत्रों में तीव्र विकास के कारण आम लोगों के विवेक एवं मानसिक स्तर में भी विकास एवं विस्तार होना चाहिये था लेकिन आज हम देखते हैं कि हमारी मानसिक सोच दिनोंदिन और संकीर्ण होती जा रही है। हम जाति भेद साम्प्रदायिकता धर्म अंधविश्वास कर्मकांड जैसी प्रतिगामी प्रवृतियों के दलदल में फंसते जा रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि आज जब आधुनिक विज्ञान जीवन-जगत के रहस्यों की परतों को एक के बाद एक करके उघाड़ता जा रहा है और सदियों से कायम धर्म आधारित अंधविश्वासों कर्मकांडों पाखंडों और भ्रांतियों के झूठ को उजागर करता जा रहा है, लोगों के मन-मस्तिष्क पर धार्मिक कर्मकांड और अंधविश्वास अधिक हावी होते जा रहे हैं। क्या ऐसा स्वत स्फूर्त हो रहे हैं या इन सब के पीछे कोई संगठित या असंगठित साजिश चल रही है। आज शायद ही किसी शहर का कोई मोहल्ला, कस्बा या गांव हो जहां आये दिन भजन-कीर्तन-प्रवचन के आयोजन नहीं होते हों। इन आयोजनों पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। आप कहीं भी-कभी भी नजर उठाकर देख लें कोई न कोई धार्मिक आयोजन-अनुष्ठान होते अवश्य मिल जायेंगे। कहीं भगवती जागरण तो कहीं सत्संग हो रहे हैं। कहीं राम की सवारी तो कहीं शोभा यात्रा और कहीं तजिया निकल रही है। कहीं मंदिर तो कहीं मfस्जद और कहीं गुरूद्वारे बन रहे हैं। कहीं मंदिर के नाम पर तो कहीं मजिस्द के नाम पर दंगे हो रहे हैं। कभी नये धार्मिक टेलीविजन चैनल खुल रहे हैं। खबरिया चैनलों पर पुनर्जन्म, नाग-नागिन और भूत-प्रेत की कहानियों की बाढ़ आई हुई है। टी आर पी बढ़ाने के नाम पर अंधवि”वास को बढ़ावा देने की साजि”ा चल रही है। इस साजि”ा में कई धुरंधर पत्रकार बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। कहीं किसी धार्मिक पत्रिका का लोकार्पण हो रहा है। कभी किसी सरकारी कॉलेज या अस्पताल में मंत्र चिकित्सा विभाग खोला जा रहा है तो कभी देश का कोई केन्द्रीय मंत्री गले में नाग लपेट कर आग पर चल रहा है और तांत्रिकों को सम्मानित कर रहा है और कभी कोई केन्द्रीय मंत्री तंत्र-साधना और ज्योतिष को स्कूल-कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल करा रहा है। आखिर इन सब के क्या निहितार्थ हैं। क्या हमारा देश पूरी तरह से धार्मिक देश बन गया है और यहां के लोग अत्यंत धार्मिक जीवन जीने लगे हैं अथवा क्या देश और यहां की जनता को धार्मिक बनाये रखने तथा यहां के लोगों को धर्म, अंधवि\श्वासों एवं कर्मकांडों के बंधनों से जकड़ कर रखने की सतत् कोf\श\श हो रही है ताकि राजनीतिज्ञों, पुजारियों, पादरियों, मौलवियों, तांत्रिकों-मांत्रिकों, ओझाओं, बाबाओं, साधु- साfध्वयों और विभिन्न धार्मिक संस्थाओं की दुकानदारी बेरोकटोक चलती रहे। कहीं धार्मिकता के इस अभूतपूर्व विस्फोट के पीछे धर्म को बाजार और व्यवसाय में तब्दील करने की साजि\श तो नहीं है। धम्ाZनिरपेक्ष कहे जाने वाले बुfद्धजीवी और राजनीतिज्ञ धर्म को राजनीति का हिस्सा बनाये जाने पर चिंता करते हुये दिखते हैं लेकिन आज दे\श भर में जो पूरा तामझाम चल रहा है वह दरअसल धम्ाZ को राजनीति का हिस्सा बनाने का नहीं, बल्कि धर्म को व्यवसाय बनाने के दीघZकालिक अभियान का हिस्सा है। जिस तरह से सौंदर्य प्रसाधन बनाने और बेचने वाली कंपनियां अपने उत्पादों के बाजार के विस्तार के लिये सौंदर्य प्रतियोगिता और फै\शन परेड जैसे आयोजनों तथा प्रचार एवं विज्ञापन के तरह-तरह के हथकंडों के जरिये गरीब से गरीब दे\शों की अभाव में जीने वाली भोली-भाली लड़कियों के मन में भी सौंदर्य कामना एवं सौंदर्य प्रसाधनों के प्रति ललक पैदा करती है उसी तरह से विभिन्न धार्मिक उत्पादों के व्यवसाय को बढ़ाने के लिये धार्मिक आयोजन अंधवि\श्वास, अफवाह और चमत्कार जैसे तरह-तरह के उपायों के जरिये लोगों के मन में धार्मिक आस्था कायम किया जा रहा है ताकि धर्म के नाम पर व्यवसाय और भांति-भांति के धंधे किये जा सकें। यह कोfशश कितने सुनियोजित तरीके से चलती है इसका पता गणेश की प्रतिमाओं को दूध पिलाने की घटना से चलता है जब पूरे देश में ही नहीं विदेशों में भी इसकी अफवाह फैलायी गयी। इस तरह की कोfशश केवल भारत या हिन्दू धर्म में ही नहीं, हर देशों में और हर धर्मों में हो रहा है। आखिर अगर लोगों में धार्मिक आस्था नहीं बढ़ायी गयी और उनमें धर्म के प्रति भय नहीं पैदा किया गया तो कौन मंदिरों में चढ़ावे चढ़ायेगा, कौन मfस्जदों, गुरुद्वारों और चचोZं के लिये लाखों-करोड़ों रुपये का दान देगा, कौन पूजा-पाठ करायेगा, कौन सैकड़ों-हजारों रुपयों की फीस देकर नयी पीढ़ी के ज्योतिf\षयों से भवि\ष्य जानेगा, धार्मिक चैनलों को कौन देखेगा, फिल्म्ाी गानों की पैरोडी पर बनने वाले कैसेटों को कौन खरीदेगा, कौन भगवती जागरण करायेगा। अगर धार्मिकता का यह तामझाम नहीं चलता रहा तो धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों की रोटी कैसे सिंकेगी और कैसे साधुओं पंडितों मौलवियों धर्म गुरुओं और गं्रथियों की विशाल फौज का पेट भरेगा। सभी धर्मों के उद्यमी अथाZत पुरोहित वर्ग इस बात को विरासतन साफ तौर पर जानते हैं कि उनके उद्यम अथाZत् धर्म को कोई दिव्य शक्ति न तो चला सकती है और न ही चला रही है। धर्म को वही शक्तियां चला रही हैं जो बाजार की शक्तियां हैं और जो किसी भी उद्यम को चलाती हैं। इसलिये धर्म के प्रबंधन में हम वे सभी तिकड़में देखते हैं जो बाजार के प्रबंधन में मिलती हैं, बल्कि अब तो धम्ाZ की यह हेरा-फेरी बाजार की कुत्साओं को काफी पीछे छोड़ चुकी है। हमारे देश में हर बातों के लिये कानून है और कानून का उल्लंघन करने वालों के लिये सजा का प्रावधान है। लेकिन धर्म के नाम पर दुकानदारी चलाने वाले, अपराध करने वाले, मासूम बच्चों की बलि देने वाले डायन बताकर विधवाओं की हत्या करने वाले मंदिर-मfस्जद के नाम पर जमीन हड़पने वाले टैक्स चोरी करने वाले और दंगे करने वाले इस देश के कानून से परे हैं। अगर कोई गरीब अपने बाल-बच्चों का पेट पालने के लिये कहीं कोई रेहड़ी लगा ले तो उससे पैसे वसूलने और उसे वहां से हटाने के लिये तत्काल पुलिस वाले आ धमके लेकिन मंदिर-मfस्जद बनाने के लिये जहां चाहे और जितना चाहे जमीन पर कब्जा कर लें कोई बोलने वाला नहीं है। अगर कोई वेतनभोगी किसी साल का आयकर का रिर्टन नहीं भरे तो उस पर जुर्माने का नोटिस आ जायेगा लेकिन मंदिर-मजिस्दों के नाम पर चाहे जितने धन हड़प लें और धार्मिक संस्था बनाकर चाहे जितना मन करे टैक्सचोरी करते रहें पूछने वाला कोई नहीं है। चमत्कारिक एवं दैवी इलाज के नाम पर कोई चाहे जितने पैसे कमाते रहें और मरीजों को मौत के घाट उतारते रहें।, धार्मिक स्कूूल चलाकर चाहे जितनी फीस लें और बच्चों तथा अभिभावकों को चाहे जितना लूट लें, कोई fशकायत भी नहीं करेगा। जहां दिल करे वहां रास्ता जाम कर दें जहां मन आये वहां दंगे करा दें और चाहे जिसकी जान ले लें या किसी की सम्पत्ति हड़प लें, चाहे डायन, अधार्मिक नास्तिक बताकर हत्या कर दें। धर्म के नाम पर सब कुछ जायज है। आज धम्ाZ और मजहब के नाम पर अपराध, व्यवसाय और भ्रष्टाचार पहले की तुलना में अधिक तेजी एवं खुले तरीके से जारी है। पिछले दो हजार वर्षों में ईश्वर और धम्ाZ उत्पादन में किसी भी तरह की भूमिका नहीं निभाने वाले निकम्मों, ढोंगियों ठगों और धोखेबाजों के लिये उत्पादन में लगे कामगारों और मेहनतकशों से धन-सम्पत्ति के लूटने-खसोटने तथा विलासिता का जीवन जीने का कारगर हथियार बन गया है। आज धर्म की सौदागिरी और ठेकेदारी सबसे मुनाफे का, सबसे निरापद एवं सबसे आसान धंधा है क्योंकि इसमें न तो कोई पूंजी लगती है और न ही श्रम एवं कौ\शल की दरकार होती है जबकि धन-संपदा सम्मान प्रसिfद्ध और ऐशो-आराम छप्पड़ फाड़ कर मिलते हैं। साथ ही साथ सरकार-दरबार तक आकर चरण पखारते हैं। भारत के बारे में बिना किसी हिचक के कहा जा सकता है कि धर्म इस देश का सबसे बड़ा उद्योग-व्यवसाय है जिससे लाखों लोगों की रोजी-रोटी और ऐय्याशी चलती है। जिस पर करोड़ों की पूंजी लगी है। हर वर्ष धर्म के प्रदर्शन एवं दिखावे पर हजारों करोड़ की रकम पानी की तरह बहा दी जाती है। भारत जैसे गरीब देश में धर्म के नाम पर धार्मिक उत्सवों एवं प्रवचनों पर जो फिजूलखर्ची होती है उसका कभी आकलन नहीं किया गया। यह रकम लाखों-करोड़ों में नहीं, अरबों-खरबों में है और इसका बड़ा हिस्सा देश के राजस्व बढ़ाने अथवा समाज कल्याण में नहीं बल्कि कुछ मुठ्ठी भर पुजारियों पंडितों एवं धर्म के नाम पर ठगी का धंधा करने वालों की विलासिता में खर्च होता है। देश में जगह-जगह होने वाले धार्मिक आयोजनों पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। देश में स्कूलों और अस्पतालों से अधिक संख्या धार्मिक स्थलों की है। गरीब हिन्दुओं के पास रहने को छत नहीं है, पीने के लिये पानी नहीं है, यहां तक कि उनके लिये \शौच की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। लेकिन अरबों रुपये मंदिरों के निर्माण के लिये लगाये जा रहे हैं। सरकारी अस्पतालों, जन कायोZं में लगी सरकारी संस्थाओं, सरकारी स्कूलों और अनुसंधान संस्थाओं के पास पैसे की भारी तंगी है, कई राज्यों में f\शक्षकों और चिकित्सकों को वेतन तक देना मुfश्कल हो पा रहा है कई स्कूलों में ब्लैकबोर्ड तक नहीं हैं, लेकिन मठों, मंदिरों मfस्जदों दरगाहों मजारों चचोZं गुरुद्वारों की अरबों-खरबों की पूंजी है। कुछ मंदिरों में तो इतनी सम्पत्ति एवं धन है कि उससे कोई छोटे-मोटे देश का पूरा खर्च निकल सकता है। विश्व के सबसे धनाढ्य एवं संपत्ति शाली देव मंदिर अथाZत जग प्रसिद्ध तिरूपति देवस्थानम् को एक अनुमान के अनुसार हर साल करीब 50 करोड़ रुपये दान एवं चढ़ावे में मिलते हैं। आंध्र प्रदेश के इस मंदिर में प्रति\ष्ठापित प्रतिमा पर करोड़ों रुपये के वस्त्राभूषण लदे रहते हैं। तिरूपति, बालाजी, सबरीमाला, मीनाक्षी और अक्षरधाम जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में चढ़ावे के लिये न केवल देश-विदेश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों एवं व्यावसायियों के बीच होड़ लगी रहती है बल्कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री केन्द्रीय मंत्री और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री पूजा अर्चना एवं चढ़ावे के लिये पहुंचते हैं। अभी कुछ दिन पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जानकी जयललिता ने तिरूपति मंदिर जाकर सोने-चांदी और अन्य जेवरात चढ़ाया था। पिछले दिनों खबर आयी थी कि नागपुर (महाराष्ट्र) के एक प्रसिद्ध स्वर्णकार ने विश्व का सबसे महंगा माणिक रत्न (जिसका मूल्य दो हजार करोड़ रुपये के लगभग है) पत्थर के भगवान बालाजी को चढ़ाया। पंजाब में एसजीपीसी का वाf\र्षक बजट ही सौ करोड़ से ऊपर है। इसके द्वारा नियंत्रित कुल संपत्ति का मूल्य तो अरबों में होगा। यही वजह है कि इस पर कब्जे के लिए पंजाब के राजनीतिक दलों में भी होड़ लगी रहती है। इन मंदिरों, धार्मिक स्थलों एवं धार्मिक संस्थाओं को न केवल देश से, बल्कि विदेशों से भी भारी पैमाने पर दान मिलते हैं। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार दे\श के विभिन्न स्वैच्छिक एवं धार्मिक संगठनों को विदे\शों से खरबों रुपये मिलते हैं जिनमें साल दर साल वृfद्ध हो रही है। गृह मंत्रालय के एक नवीनतम आंकड़े के अनुसार देश के 14 हजार 598 स्वैच्छिक संगठनों तथा धार्मिक समूहों को 2000-2001 के दौरान चार खरब 53 अरब पांच करोड़ 23 लाख रुपये के विदेशी धन प्राप्त हुये।अमरीका स्थित ईसाई राहत एवं विकास संगठन वल्र्ड विजन इंटरनेशन अनेक भारतीय स्वैच्छिक संगठनों के लिये सबसे बड़ी दानदाता एजेंसी है। आंध्र प्रदेश स्थित श्री सत्य साई केन्द्रीय न्यास सबसे अधिक विदेशी धन पाने वाला संगठन है। सत्य साई न्यास को 88 करोड 18 लाख रुपये का विदे\शी धन मिला। विदेशी धन पाने वालों में दूसरे स्थान पर वॉच टॉवर बाइबिल ट्रैक्ट सोसायटी इंडिया (महाराष्ट्र) है जिसे 74 करोड़ 88 लाख रुपये मिले। तीसरे स्थान पर केरल के गॉस्पेल फॉर एfशया को 58 करोड़ 10 लाख जबकि केरल के माता अमृतानंदमायी मिशन को 23 करोड़ 19 लाख रुपये मिले। विदेशी सहायता नियमन कानून 1976 के तहत धार्मिक एवं गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलने वाले धन पर नियंत्रण रखने का प्रावधान किया गया है। इस कानून के तहत 22 हजार 924 संस्थाओं को विदे\शी धन प्राप्त करने के लिये पंजीकृत किया गया है, लेकिन गृह मंत्रालय के हाल के आंकडों के अनुसार केवल 14 हजार 598 संस्थानों ने विदे\शी धन प्राप्त करने के संबंध में अपने रिर्टन भरे। आयकर संपत्ति कर आदि से छूट तथा अन्य रियायतों से भी धार्मिक संस्थाओं को काफी लाभ होता है। कानूनी रियायतों का लाभ उठाकर ये धार्मिक संस्थान न तो रिर्टन भरते हैं न कोई लेखा-जोखा देते हैं। इस कारण इस बात का अंदाजा लगाना मुfश्कल होता है कि इन धार्मिक स्थलों एवं संस्थानों के पास कितनी सम्पत्ति है। कुछ सर्वाधिक संपत्ति\शाली संस्थाओं पर नजर डालें तो तिरूपति तिरुमल देवस्थानम् संभवत: पहले स्थान पर होगा। इसके अलावा दक्षिण भारत में सबरीमाला मंदिर, मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, उत्तर भारत में गोरखनाथ मंदिर स्वगाZश्रम ट्रस्ट अक्षरधाम मंदिर बोधगया का बौद्ध मठ fशरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह वप्फ बोर्ड तथा कई बड़े चचोZं के नाम गिनाये जा सकते हैं। ये तो मात्र कुछ उदाहरण भर हैं।धार्मिक संस्थाओं की कमाई का एक और बहुत बड़ा स्रोत है इनके परिसरों में स्थित दूकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों से होने वाली आय। ज्यादातर बड़े मंदिर एवं अन्य धार्मिक स्थल शहरों की प्राइम लोके\शन पर स्थित हैं और वहां श्रद्धालुओं के अलावा अन्य लोगों का भी भारी संख्या में आना-जाना लगा रहता है। पहले तो मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों के परिसरों में प्रसाद, फूल-मालाओं एवं अन्य पूजा सामfग्रयों की ही बिक्री होती थी लेकिन अब तो मांस-मदिरा छोड़कर सांसारिक भोग-विलास की हर उपभोक्ता वस्तुयें इन पूजा परिसरों में अथवा आसपास की दुकानों में मिल जायेगी। कई पूजा स्थलों से लगे भवनों में तो सौ-सौ, दो-दो सौ दुकानें और पूरे के पूरे \शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खुल हुये हैं। हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा जैसे आश्रमों ने तो अब खुद ही दुकानें चलानी \शुरू कर दी है। आश्रम में आने वाले भक्त बारी-बारी से इनको नि:शुल्क सेवायें देते हैं। कई साल पहले नई दिल्ली नगर पालिका के एक सचिव ने माता का मंदिर बनाने के लिये न्यू फं्रेडस कालोनी में जमीन एलाट करायी थी। इस जमीन पर सफेद संगमर्मर का एक विशाल मंदिर बनाया गया लेकिन अब इसका इस्तेमाल चौथा और उठाला जैसे रस्मों के लिये होता है और इसके लिये बकायदा \शुल्क लिये जाते हैं। लगभग हर दिन दोपहर के बाद यहां चमचमाती गाडि़यों के कारण रास्ता जाम सा हो जाता है। यही नहीं दिल्ली विकास प्राधिकरण ने मंदिर के पुजारियों और श्रद्धालुओं के रहने के लिये धम्ाZशाला डायग्नोfस्टक सेंटर और रिसर्च लेबोरेट्री बनाने के लिये मंदिर के बगल में अलग से जमीन आबंटित किया। कुछ साल पहले धार्मिक संस्थाओं के पास जो धन एवं जमीन-जायदाद होते थे वे निfष्क्रय पड़े रहते थे लेकिन अब धार्मिक संस्थायें भी बड़े-बड़े कारपोरेट एवं व्यापारिक घरानों की तरह अत्यंत व्यावसायिक एवं प्रबंधकीय दक्षता के साथ सुनियोजित तरीके से उद्योग-व्यापार चला रहे हैं। ये धार्मिक संस्थायें दान में मिली सैकड़ों-हजारों एकड़ की जमीन पर आधुनिक तरीके से नगदी फसलें उगा रही हैं डेयरी उद्योग चला रही हैं, एवं तरह-तरह की व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं। कई संस्थायें स्कूल कॉलेज इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन संस्थान आदि चला रहे हैं जिनमें fशक्षण शुल्क अन्य व्यावसायिक शैक्षिक संस्थाओं की तरह ही बहुत अधिक होता है लेकिन इनमें पढ़ाने वाले fशक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों को काई वेतन नहीं दिया जाता या नाममात्र का पारिश्रमिक दिया जाता है क्योंकि इन्हें यह कहकर बहलाया जाता है कि वे धर्म का काम कर रहे हैं। नये उभरे मठ एवं धार्मिक संस्थायें इस काम में अधिक आगे हैं। आसाराम बापू सुधांशु महाराज ओशो श्री रविशंकर जैसे आधुनिक गुरूओं के पास तावीज, चूर्ण, मंजन आयुर्वेदिक औषधियों माला पेन, कॉपी, किताबें, कैलेंडर, पोस्टर, fस्टकर, घड़ी, बेल्ट आदि विभिन्न प्रकार के वस्तुओं के उत्पादन एवं विपणन का एक विराट तंत्र है। इनके उत्पादन पर बहुत कम या नाममात्र की लागत लगती है जबकि इन्हें बाजार में बहुत अधिक कीमत पर बेचा जाता है क्योंकि इनके भक्त गण धर्मसेवा के नाम पर बिना कुछ वेतन लिये कार्य करते हैं तथा श्रद्धालु भक्तिभाव के कारण इन्हें ऊंची दाम होने के बावजूद खरीदते हैं। तिरूपति तिरूमल देवस्थानम् ट्रस्ट सबसे संगठित ढंग से कारपोरेट गतिविधियां चलाता है। इस ट्रस्ट ने अनेक कॉलेज-अस्पताल आदि खुलवाये हैं जिन्हें बिल्कुल प्रोफेशनल ढंग से संचालित किया जाता है। साथ ही यह विभिन्न कारोबारी गतिविधियों का प्रबंधन करता है। यहां तक कि तिरुपति बालाजी के मंदिर में प्रतिदिन तीन हजारों लोगों के मुंडन से गिरने वाले बालों से भी यहां कंबल, ऊनी वस्त्र जैसी वस्तुएं तैयार की जाती हैं जिनका बड़े पैमाने पर निर्यात होता है। प्रसाद को सामान्य डीलक्स तथा सुपर डीलक्स जैसी श्रेणियों में बांटकर इसे भारी मुनाफादेह कारोबार में बदलने का काम भी सबसे पहले यहीं शुरू हुआ था। पंजाब में fशरोमणि गुरुद्वारा कमेटी की ओर से दर्जनों कॉलेज तथा वोकेशनल इंस्टीच्यूट चलते हैं। इनमें कैपिटेशन फीस सहित ऊंची फीस वसूल की जाती है। देश में छोटे-छोटे गांव-गिरांव से लेकर महानगरों तक में न जाने कितने धर्म पुरुष महापुरुष विविध नामों वाले बाबाओं के, गुरूओं के महात्माओं के और संतों के शानदार आश्रम पाये जा सकते हैं जिसकी भव्यता एवं रौनक देखते बनती है। हमारे देश में 50 लाख के करीब साधु-संत, इमाम पादरी और गं्रथी हैं जिनमें से ज्यादातर को धर्म और देश-दुनिया का क ख, ग का भी पता नहीं है लेकिन वे लोगों को धर्म की f\शक्षा देते हैं और लोगों को मूर्ख बना कर ऐश करते हैं। देश में उत्सवों-कीर्तनों प्रवचनों और धार्मिक स्थलों के रख-रखाव और पुजारियों-पादरियों की ऐय्या\शी पर वर्ष भर में जो रकम खर्च होती है, वह अगर देश के विकास पर खर्च होता तो स्कूलों-कॉलेजों और अस्पतालों का जाल बिछ जाता। हर गांव में बिजली, सड़क और पेय जल जैसी सुविधायें उपलब्ध हो गयी होती। न कोई निरक्षर रहता और न कोई इलाज के अभाव में मरता।
� विनोंद विप्लव
अंगारे व साथी विप्लव का आभार..................................

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