13 अप्रैल 2007
मुंशी प्रेमचंद की पहली विदर्भ यात्रा
मैं और मुंशी प्रेमचंद जेट एयरवेज़ की फ्लाइट में सवार दिल्ली से नागपुर जा रहे थे । विदर्भ की राजधानी नागपुर । बहुत मुश्किल से प्रेमचंद को लमही से निकाला था । इसके लिए पहली बार अमर सिंह से पैरवी की ताकि बनारस एयरपोर्ट पर सहारा का विमान प्रेमचंद का इंतज़ार करे । सैंत्रो कार में बैठे प्रेमचंद गुस्साते रहे । मुझे लमही में रहने दो । कहां ले जा रहे हो । मुझे अब किसी किसान से नहीं मिलना है । मुंशी जी आप नहीं मिलेंगे तो कौन मिलेगा- मैं कहता रहता और गाड़ी तेजी से भगा रहा था । तभी विदर्भ से सुप्रिया शर्मा और योगेश पवार का एसएमएस आता है । इज़ मुंशी कमिंग टू विदर्भा ? मेरा छोटा सा जवाब- या...फाइनली । सहारा का विमान दिल्ली उतरता है । और मुंशी प्रेमचंद और मैं विदर्भ के लिए उड़ जाते हैं ।जहाज़ में मुंशी प्रेमचंद को विंडो सीट पर बैठा कर मैं उन्हें नीचे देखने के लिए कहता हूं । देखिये तो मुंशी जी किसान नहीं दिखते हैं । जाने कैसे आपको हर वक्त किसान दिखता रहा । देखिये जहाज़ के नीचे ऊंची इमारतें और मॉल उड़ रहे हैं । किसान नहीं दिखता है । मेरे कहते ही प्रेमचंद भड़क गए । मैंने कहा था न कि मैं अब किसानों को नहीं देखना चाहता । एक तुम हो और एक हंस निकाल निकाल कर मुझे बार बार घसीटने वाले राजेंद्र यादव । मैं जहाज़ से कूद जाऊंगा । मैंने कहा सारी सर । सुप्रिया और योगेश से मिलना ही होगा । उनसे मिलकर आपका गुस्सा भी शांत होगा और अहसास भी । वे एनडीटीवी के अंग्रेजी चैनल के बेहतरीन संवाददाता हैं । उनके साथ कुछ बड़े घर की बेटियां हैं । जिनके बाप किसान होने के स्वाभिमान के कारण अपना ही गला घोंट गए । और वो अपना स्वाभिमान मुंबई के देहबाज़ार में बेच रही हैं । मुंशी जी आपकी वजह से । और आप मुझे लानत देते हैं । किसने दिया किसानों को झूठा स्वाभिमान । क्यों लिखा आपने किसान कर्ज में पैदा होता है और कर्ज में मरता है । मुंशी जी मेरे बटुए में दस क्रेडिट कार्ड है । तगादे वाले फोन करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट का फरमान सुना देता हूं । कि तुम वसूली के लिए मुझसे ज़बरदस्ती नहीं कर सकते । उपोभक्ता अधिकार है मेरा । मैंने तो आत्महत्या नहीं की । दुनिया जानती है । विमान का टिकट भी क्रेडिट कार्ड से लिया है । तो स्वाभिमान के नाम पर दोनों मर जाएं । कूद जाएं विमान से । ये मरजाद क्या होता मुंशी जी ? किसानों का मरजाद ? आपको विदर्भ जाना होगा । यू हैव टू गेट इन देअर । सुप्रिया इज़ वेटिंग विद गर्ल्स ।नागपुर एयरपोर्ट । संजय तिवारी, सुप्रिया शर्मा और योगेश पवार । वेलकम मुंशी जी । हमने आपके बारे में बहुत सुना है । तभी सुप्रिया कहती है- सर आई हैव रेड यू । प्रेमचंद अपनी टोपी संभालते हैं और सुप्रिया से कहते हैं- क्यों द लास ऑफ इनहेरिटेंस नहीं पढ़ा तुमने । किरण कितना अच्छा लिखती है । योगेश कहता है वो मेरी फेवरेट है । मगर हम सीधे गांव जाना चाहते हैं । कुछ बड़े घर की बेटियां इंतज़ार कर रही हैं ।योगेश रोने लगते है । सर ये सच्ची कहानी है । जिन किसानों ने आत्महत्या की है उनकी बेटियां जिस्मफरोशी के लिए मजबूर हैं । किसानों का परिवार टूट गया है । प्रेमचंद खेत की मेड़ पर बैठ कर रोने लगते हैं । कहने लगते हैं - भारत का किसान तो बुज़दिल हो गया है । वो तुम्हारी तरह क्यों नहीं है रवीश । कर्ज़ लेकर बेशर्मी से नहीं देने की हठ करने वाला । मुंशी जी, प्रधानमंत्री ने जो पैकेज दिया है उससे भी इन बेचारों का कोई फायदा नहीं । आपको पता है न प्रधानमंत्री जवाहर नहीं हैं । मनमोहन हैं । इंदिरा की बहू सोनिया जवाहर की उन चिट्ठियों को पढ़ने में व्यस्त है जो जेल में रहते हुए इंदिरा के लिए लिखीं थीं । किरण देसाई से लेकर अमिताव घोष कोई किसानों पर नहीं लिखता । राजेंद्र यादव और नामवर को कोई बुकर पुरस्कार नहीं देता । उनकी रचनाएं, जिनकी प्रेरणा का स्त्रोत आप भी है, साहित्य को कुंद कर रही हैं । जैसे आपकी रचनाओं ने किसानों को कुंद कर दिया है । तभी योगेश कहते हैं- प्रेमचंद जी मुंबई की मंडियों में बड़े घर की बेटियों को बिकने से आप बचा लीजिए । हमारी ख़बर पर भी सरकार का असर नहीं होता । पी साईनाथ की ख़बरों पर भी कोई असर नहीं । साईनाथ तो विदर्भ के किसानों के पीछे पागल हो गए हैं । सुप्रिया धीरे से कहती हैं- मुंशी जी इस बार कुछ नया लिख दीजिए ताकि आपको बुकर मिल जाए और किसानों को रास्ता । मगर इस बार किसानों को नियतिवाद में मत फंसाना । मत लिखना कि किसान कर्ज में जीता है और कर्ज में मरता है । लिखना कि कई बड़े उद्दोगपति सार्वजनिक बैंको का पचास हज़ार करोड़ लेकर भाग गए । सबको पता है । किसी ने आत्महत्या नहीं की । फिर तुम क्यों आत्महत्या करते हो । ये लिखना मुंशी जी । पूरी दिल्ली और मुंबई लोग लोन पर जी रहे हैं । मर नहीं रहे । लोन उनका स्वाभिमान है । कर्ज़ शब्द का इस्तमाल भी बंद हो गया है । कहते कहते सुप्रीया चिल्ला उठती हैं- कहती है सर उन बेटियों की कसम जिनका चेहरा हमने मौज़ैक कर के विटनेस में दिखाया था । वो आपसे बात नहीं करना चाहती हैं । मैं सिर्फ आपको उनकी देह दिखाना चाहती हूं । मन नहीं । वो लमही आकर आपसे बातें करना चाहती हैं । बहुत समझाया इनको । कहती हैं हम जब बड़े घर की बेटियां ही नहीं रहीं तो मुंशी जी से क्या बात करें । हमारे पास चौखट नहीं है । हम मुंशी जी की चौखट पर माथा पटकेंगी । हम और योगेश इन्हें लेकर भटक रहे हैं । मुंशी जी आप कुछ नया लिखना । यू कैन नॉट राइट देम ऑफ । यू हैव टू स्टार्ट राइटिंग अगैन ऑन फार्मर्स ।तभी संजय तिवारी कान में कहते हैं । रवीश मुंशी जी को दुबारा मत लाइयेगा । कोई किसान उनको सुनना नहीं चाहता है । किसान इनसे नाराज़ हैं । एक ख़बर मुंबई से आ रही है । मुख्यमंत्री देशमुख ने दक्षिण की साध्वी अम्मा को बुलाया है । लगता है किसान कहानी नहीं बनना चाहते । वो या तो मरना चाहते हैं या पुलिस की डंडे के ज़ोर पर अम्मा को सुनना चाहते हैं । इन जैसे आउटडेटेड लेखक को मत लाइयेगा ।(हाल ही में योगेश पवार और सुप्रिया शर्मा ने एनडीटीवी के अंग्रेजी चैनल के विटनेस के लिए विदर्भ पर एक विस्तृत रिपोर्ट की है । रिपोर्ट देख कर खूब रोने का मन किया । तभी पड़ोसी का कुत्ता मर गया और हम उसकी प्रोशेसन में चले गए । बाहर देखा कि पूरे शहर में सड़क छाप कुत्तों के मारे जाने के खिलाफ आंदोलन चल रहा था । मैं भी अपनी इस नई संवेदना के साथ हो लिया । कुछ घंटे बाद घर लौटा तो कुत्ते और किसान की मौत के ग़म में यह कहानी निकल गई-साथी रवीस के कस्बे का आभार.............
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