उत्तर प्रदेश में चुनाव को देखते हुए धूमिल कि "रोटी व संसद, एक बार फिर प्रासंगिक हो जाती है दखल पर दस्तक देने वालों के लिये लिये प्रस्तुत है यह कविता-
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो ना रोटी बेलता है,न रोटी खाता
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मै पूंछता हू-
यह तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है....
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