सुनील कुमार
पूंजीवाद की बेतहासा
लूट से लोगों
की जीवन दिन
प्रतिदिन कठिन होता
जा रहा है।
जीवन के संकट
के डोर को
लोग आस्था से
जोड़ कर देख
रहे हैं, जिसके
कारण आये दिन
नये-नये बाबाओं
उदय हो
रहा है। इसी
अंधभक्ति का फायदा
उठाकर आसराम, निर्मलबाबा
व रामदेव जैसे
गुरूओं की बाढ़
आ चुकी है।
इस आस्था को
बढ़ाने में इलेक्ट्रानिक
मिडिया का भी
बड़ा हाथ है
जो पूंजीवादी घरानों
द्वारा चलाये जाते हैं।
इसी आस्था में
सरोबार होकर लोग
कुंभ और माता
मंदिर, बाबाओं के दर्शन
के लिए जाते
हैं। धर्म में
प्रचारित किया जाता
है कि मनुष्य
अपने पिछले जन्म
के कर्मों को
जीता है। इसी
अंध विश्वास में
लोग इस जन्म
के कष्ट को
अपने पिछले जन्म
का पाप मानते
हैं और अगले
जन्म को अच्छा
बनाने के लिए
धार्मिक स्थानों पर जाते
हैं। इनमें ज्यादातर
वे गरीब होते
हैं जो किसी
तरह दो जून
की रोटी जुटा
पाने में सक्षम
होते हैंं। वे
सामुहिक रूप से
ट्रैक्टर ट्रालियों व टैम्पों
में ऐसे मौके
पर स्नान करने
या मंदिर दर्शन
के लिए जाते
हैं जिनमंे महिलाओं
व बच्चों की
संख्या अधिक
होती है। इन
स्थानों पर ज्यादातर
गरीब लोगों के
जाने के कारण
प्रशासनिक व्यवस्था उस तरह
से नहीं की
जाती है जिस
तरह से इतने
भीड़ के लिए
व्यवस्था करना चाहिए,
पुलिस फोर्स भी
नाम मात्र की
होती है। जो
थोड़ा बहुत प्रशासनिक
व्यवस्था व पुलिस
फोर्स होती है
वे अधिकांशतः आने
वाले वीआईपी लोगों
की ड्यूटी में
लगा होता है
तो कुछ पुलिसकर्मी
आने वाले वाहनों,
दुकनदारों से अवैध
कमाई करने में
लगा रहता है।
यही कारण है
कि म.प्र.
के दतिया जिले
के रतनगढ़ माता
मन्दिर में 5 लाख लोगों
के लिए 250 पुलिस
वालों की तैनाती
की गई थी।
जबकि प्रशासन को
मालूम था कि
यहां पर नवरात्रि
में लाखों की
संख्या में लोग
आते हैं। रतनगढ़
माता मन्दिर में
2006 की भगदगड़ की पुनरावृत्ति
हुई है जिसमंे
कि 50 से अधिक
लोगों की मौत
हो गई थी
और सैकड़ों लोग
घायल हुए थे।
उस घटना से
म.प्र. शासन-प्रशासन ने किसी
तरह का सबक
नहीं सिखा था
और 5 लाख लोगों
के लिए कोई
व्यवस्था नहंी की।
इस भगदड़ में
अभी तक 115 लोगों
की मरने की
अधिकारिक पुष्टि हो चुकी
है (कई सारे
लोग सिंध नदी
में बह भी
गये होंगे) और
150 लोग घायल हैं।
स्थानीय पत्रकार रामाशंकर नागरिया
के अनुसार जब
वह घटना स्थल
पर पहुंचे तो
‘‘कोई भी प्रशासन
का व्यक्ति वहां
नहीं था दो
घंटे बाद एसडीओ
वहां पहुंचे। बहुत
सारे लोग अपने
परिजनों के लाश
को ले गये
कुछ लोग नदी
में बह गये
इन सभी लोगों
की गीनती नहीं
की गई है।
उन्हीं मृतकों की गिनती
हो पाई है
जो घटना स्थल
पर मौजूद थे।’’
यह घटना प्रशासन
की लपरवाही व
गैर जिम्मेदारी से
घटी है इतने
मौतों के जिम्मेदार
दतिया का प्रशासन
है। जब सुबह
8 बजे के करीब
बड़ी संख्या में
लोग रतनगढ़ माता
मन्दिर की तरफ
जा रहे थे
तो भीड़ को
नियंत्रित करने के
लिए पुलिस द्वारा
लाठीचलाई गई जिससे
लोग भागने लगे
इसी में किसी
ने कहा कि
पुल टूट गया
है इसलिए पुलिस
भगा रही है
यह सुनकर लोग
बेताहासा इधर से
उधर भागने लगे।
जान बचाने के
लिए लोग सिंध
नदी में धोती,
साड़ी, दुपटे व
रस्सी के सहायता
से उतरने लगे
तो कुुछ सिधे
नदी में कुद
गये यहां तक
कि लोग अपने
बच्चों को पुल
से निचे अपने
परिजनों के हाथ
में फेंक रहे
थे। इस तरह
नदी में गिरने
से बहुत लोगों
की मृत्यु हो
गई तो कुछ
भगदड़ में कुचल
गये। मरने वालों
में ज्यादातर संख्या
महिलाओं की है।
म.प्र. के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों
को दंडित करने
तक का नाम
भी नहीं लिया
बस मृतकों को
डेढ़ लाख रु.
तो घायलों को
50 से 25 हाजर रु.
देने की घोषणा
कर और घाटना
स्थल का दौरा
कर अपने कर्तव्य
पूरा कर देना
चाहते हैं।
धार्मिक स्थलों में अनेकों
बार भगदड़े हो
चुकी हैं जिसमें
कई सौ लोगों
की जाने गई
हैं। लेकिन शासन-प्रशासन ने उसे
सबक नहीं लिया
है कि ऐसे
धार्मिक स्थानों पर किस
तरह से भीड़
को नियंत्रित किया
जाये ऐसे हादसों
से बचने के
लिए पुलिस को
किसी तरह की
ट्रेनिंग तक नहीं
दी जाती है।
दातिया या दातिया
जैसे हादसे का
जिम्मेदार कौन है?
कुछ बड़े भगदड़
की घटनाएं
11 फरवरी,
2013: इलाहाबाद
महांकुंभ के समय
रेलवे स्टेशन पर
भगदड़ 36 लोगों की मौत
करीब 40 लोग घायल।
20 नवम्बर,
2012: बिहार
में छठ पूजा
के लिए बना
अस्थायी पुल टूटा
18 लोगों की मौत,
कई घायल।
09 नवम्बर,
2011: हरिद्वारा
की हरकी पैड़ी
के पार नीलाधरा
के निकट भगदड़
मचने से 20 लोगों
की मौत।
14 जनवरी,
2011: केरल
के सबरीमाला मंदिर
में मची भगदड़
106 लोगों की मौत
100 से ज्यादा लोग घायल।
04 मार्च,
2010 : प्रतापगढ़
कृपालुजी महाराज के मनगढ़
मंदिर में 65 लोगों
की मौत और
अन्य घायल।
30 सितम्बर,
2008: जोधपुर
के चामुंडा देवी
मंदिर में भगदड़
224 लोगों की मौत,
400 से अधिक घायल।
03 अगस्त
2008 : श्रावण
पार्क के मौके
पर हिमाचल प्रदेश
के नैनादेवी मंदिर
में भगदड़ 150 से
अधिक लोगों की
मौत, सैकड़ लोग
घायल।
01 अक्टूबर,
2006: नवरात्र
के मौके पर
करके मंदिर दर्शन
के लिए जा
रहे 50 तिर्थयात्रियों की मौत।
2006 (तारिख
मालूम नहीं): दातिया के भगदड़
में 50 से अधिक
लोगों की मौत,
और सैकड़ों घायल।
26 जनवरी,
2005 : महाराष्ट्र
के सतरा जिले
के मंधेरी देवी
मंदिर परिसर की
भगदड़ में 340 लोगों
की मौत, 200 से
ज्यादा घायल।
27 अगस्त,
2003: नासिक
कुंभ में भगदड़
से 40 लोगों की
मौत, कई घायल।
ये तो चंद
कुछ बड़े हादसों
के उदाहरण हैं
छोटी-छोटी हादसा
होती रहती है
जिसका रेकॉर्ड नहीं
मिल पात है।
दिल्ली में ही
मूर्ति विर्सजन के दौरान
हर वर्ष कई
लोगों की मौत
हो जाती है।
2013 में ही गणेश
मूर्ती विर्सजन के दौरान
8 लोगों की मौत
हो गई।
पूंजीवाद अपनी लूट
को बनाये रखने
के लिए अंध
भक्ति को बढ़ावा
देता हैं और
धर्म का प्रचार
जोर-शोर से
करता है क्योंकि
धर्म के आड़
में वे अपने
को छिपा कर
रख सके और
इससे लाखों करोड़
की कमाई भी
कर लेता है।
इस तरह धर्म
के नाम पर
एक पंथ दो
काज हो जाता
है। हम सभी
देख रहे है
कि किस तरह
सावन माह (अगस्त)
के समय में
बोल बम के
नारों से सड़क
भरे होते हैं,
जगह-जगह पंडाल
दिख जाते हैं
जहंा पर कांवरिया
रूके होते हैं।
बोल-बम में
जाने वाले अधिकांशतः
18-30 वर्ष के युवा
होते हैं। जहां
पहले बोल बम
में कुछ लोग
जाते थे वहीं
अब इनकी संख्या
में कई गुना
इजाफा हुआ। पहले
लोग डंडे का
बना हुआ कांवर
व साधारण रूप
से सिले हुए
वस्त्र पहन कर
जाते थे। लेकिन
पूंजीवाद ने इसका
प्रचार-प्रसार कर रेडिमेड
कंावर (जिसकी हजारों डिजाइनें
है) और रेडिमड
वस्त्रों की भरमार
लगा दी। इसी
तरह कई प्रकार
के मुखौटे, शंकर
के जाटा इत्यादि
तरिके से लोगों
के जेब से
पैसा खिंच लेता
है। रास्ते में
इन कांवड़ियों की
सेवा के लिए
राजनीतिक पार्टियों, वेलफेयर सोसाईटियों
व क्लबों द्वारा
इन कांवरियों की
रूकने, खाने-पीने,
नहाने-धोने की
व्यवस्था की जाती
है। ये कांवड़िया
सड़कों पर उत्पात
मचाते रहते हैं।
हाथों में डंडे,
हाकी, वेसबाल यहां
तक रॉड (लोहे
का डंडा) लेकर चलते
हैं किसी वाहन
से छू जाने
पर ये मार-पिट पर
आमदा हो जाते
हैं।
इस तरह की
धार्मिक भावनाएं केवल भारत
में ही नहीं
है जैसा कि
मक्का में मुस्लिम
समुदाय के लोग
हज के लिए
जाते हैं और
शैतान को पत्थर
मारने में भगदर
होती है और
बहुत सारे लोग
दब कर मर
जाते हैं। इस
तरह से धर्म
का प्रचार-प्रसार
करके पूंजीवाद अपने
को छिपाने और
आम जनता को
बरगलाने में कमायब
रहा है। जब
तक लोगों की
आंखों पर धर्म
की पट्टी बंधी
रहेगी दातिया जैसे
भगदड़ होते रहेंगे
और उसके असली
गुनाहगारों का पता
भी नहीं चल
पायेगा।
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