दिलीप ख़ान
1940 के दशक में संचार के क्षेत्र में एक साथ कई तरह के सिद्धांत एवं अवधारणाएं उभर कर सामने आईं। ज़्यादातर अवधारणाओं पर सुनियोजित ढंग से काम द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में शुरू हुआ। इनमें से दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं- विकास संचार और मुक्त सूचना प्रवाह- पर यहां चर्चा की जाएगी कि कैसे ये दोनों वैश्विक राजनीति में कभी साथ–साथ तो कभी एक-दूसरे के विरोध में नज़र आए और साथ-साथ रहने तथा विरोध में होने के असल कारण क्या थे। पश्चिमी पूंजीवादी देशों ने अपने हितों की सुरक्षा के लिए इन अवधारणाओं को किस तरह पेश किया और दुनिया भर में इसके इस्तेमाल के किन नए तरीकों का ईजाद किया, साथ ही इस बात की भी पड़ताल की जाएगी कि तीसरी दुनिया के देशों के पास मुक्त सूचना प्रवाह के विकल्प के तौर पर ज़ोर-शोर से नई विश्वी सूचना और संचार व्यवस्था के पक्ष में गोलबंद होने के पीछे क्या कारण और तर्क थे तथा इस व्यवस्था का संचार के वैश्विक मंच पर क्या नतीजे निकलकर सामने आए? सूचना युग की सच्चाई और राजनीति भी चर्चा का हिस्सा होगी।
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