अनुज शुक्ला –
पाकिस्तान में पत्रकारों पर हो रहे हमले के आलोक में भारत के कई मंचों पर अखबारों और पत्रकारों पर हिंसात्मक कार्रवाइयों के बढ़ते स्तर को लेकर बहस चल ही रही थी कि मुंबई में एक पत्रकार; पेशागत ईमानदारी के चलते अपराधियों की भेंट चढ़ गया। खोजी पत्रकारिता के जरिए कई आपराधिक एवं भ्रष्टाचार से जुड़ी कारगुजारियों की पोल खोलने वाले, मिड डे के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे को माफियाओं ने दिन दहाड़े गोलियों से भून डाला। ज्योतिर्मय डे के साथ हुआ यह हादसा महाराष्ट्र में मजबूत हो चुके माफियातन्त्र का एक नया नमूना है, जिसने अवचेतन में चले गए पुराने सवालों को फिर से जिंदा कर दिया है।
डेढ़ साल पहले पुणे में भूमि घोटाले को उजागर करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता सतीस शेट्टी की हत्या और पाँच महीने पूर्व नासिक के ईमानदार सहायक कलेक्टर यशवंत सोनावड़े को तेल माफियाओं द्वारा जिंदा जलाने की घटना, महाराष्ट्र के माफिया तंत्र और प्रशासन के गठजोड़ का एक पुख्ता सबूत है। पाँच महीने के अंदर पुलिस और सीबीआई सोनावड़े के हत्यारों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर पाई। सतीस शेट्टी के केस की भी प्रगति बहुत ठीक नहीं है, जांच ठीक ढंग से नहीं किए जाने के कारण रसूखदार अपराधी कानूनी दायरे से बाहर हैं। जाहिर है कि इन घटनाओं से जहां माफियाओं की उदण्डता उजागर होती है तो वहीं महाराष्ट्र के सरकारी तंत्र की कलई भी खुलती है। ज्योतिर्मय डे की हत्या में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसके भी तार आपराधिक सरगनाओं या तेल माफियाओं से जुड़े हुए हैं। सनद रहे कि ‘मिड डे’ में प्रकाशित ज्योतिर्मय डे की रिपोर्टों के आधार पर कई अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई है।
दरअसल अन्य राज्यों के मुक़ाबले महाराष्ट्र में आए दिन पत्रकार, आरटीआई कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अपराधियों, माफियाओं और पुलिसतंत्र के हमलों के शिकार होते आए हैं। ज्योतिर्मय डे की हत्या से लगभग सालभर पहले सरकार की पोलखोलने वाले पत्रकार हेमंत पांडे को नागपूर में पुलिसतंत्र ने नक्सली बताकर फर्जी एनकाउंटर में मार दिया था। जिसपर अदालत में मामला विचाराधीन है। मुंबई के एक दूसरे पत्रकार सुधीर धवले को नक्सली होने के आरोप में छ महीने पहले से वर्धा स्टेशन से उठाया गया था, वो अभी तक जेल में बंद हैं। एक लंबे समय से कई अखबार और पत्रकार शिवसेना जैसी सांप्रदायिक ताकतों का गुस्सा झेलते आ रहें हैं। जाहिर है कि महाराष्ट्र के मौजूदा हालात पत्रकारों के अनुकूल नहीं कहे जा सकते हैं। महाराष्ट्र राज्य में प्रचुर मात्रा में भ्रष्टाचार और अपराध के मामले उजागर होते रहते हैं। इनपर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर खतरे की संभावना हमेशा बनी रहती है।
ध्यान दे तो ये सारी घटनाएँ सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को उजागर करने या सच्चाई के साथ खड़े होने के कारण घटित हुई हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपराध के इन खेलों में सफेदपोश लोगों का प्रश्रय न हो। हर बार बड़ी मुर्गियों तक कानूनी हाथ पहुँचते-पहुँचतेरूक जाता है। यशवंत सोनावड़े की हत्या के वक्त ही, महाराष्ट्र के कुछ संगठनों ने तेल और जमीन के गोरखधंधे में बड़े कारकुनों की संलिप्तता को लेकर मांग की थी कि पूरे मामले की बड़े स्तर पर जांच की जाय ताकि दागदारों का चेहरा उजागर हो सके। जांच की प्रक्रिया और उसकी गति क्या रही इसे सोनावड़े के केस में सीबीआई द्वारा चार्जशीट तक नहीं दायर करने से समझा जा सकता है। अब डे की हत्या के बाद महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटील की रिरियाहाट को कैसे सत्य मान लिया जाय कि अपराधियों को बख्शा नहीं जायेगा?
महाराष्ट्र में सांगठानिक अपराधों को राज्य की मशीनरी ने गुप्त रूप से प्रश्रय दे रखा है। यानी बड़े पैमाने पर अपराधियों को सफेदपोश चेहरों का वरदहस्त प्राप्त है। यह एक बार नहीं कई मर्तबा साबित हो चुका है। जाहिर है कभी कोई ऐसा उदाहरण ही नहीं देखने को मिला जिसमें अपराधियों को सजा मिली हो। कई मामले में अपराधी चार्जशीट के अभाव में बरी हो जाते हैं। फलस्वरूप अपराधी दिनदहाड़े आपराधिक कृत्यों को अंजाम देते हुए हिचकिचाते नहीं। पब्लिक है कि घटना के वक्त गुस्से और सदमे में रहती है लेकिन एक समय के बाद उसकी स्मृति से ये मामले गायब हो जाते हैं।
ज्योतिर्मय डे के की हत्या पत्रकारिता के ऊपर हमला नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार की फैक्ट्री बन चुके महाराष्ट्र के पूरे सिस्टम पर एक बड़ा सवाल है। क्या पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई कार्यकर्ता अपने काम की कीमत अपनी जान से चुकाएंगे, उनके ऊपर हमले किए जाएंगे? क्या सरकार दो मीनट की ‘भर्त्सना-बाइट’ से मुक्त हो जाएगी। डे की हत्या भविष्य में मुक्त पत्रकारिता को लेकर आशंकित करती है। यदि मामले की तह में जाकर अपराधियों को पकड़ कर सजा नहीं दी गई तो भविष्य मेँ अन्य दूसरे पत्रकारों पर जानलेवा हमलों की घटनाओं में इजाफा होगा।
पाकिस्तान में पत्रकारों पर हो रहे हमले के आलोक में भारत के कई मंचों पर अखबारों और पत्रकारों पर हिंसात्मक कार्रवाइयों के बढ़ते स्तर को लेकर बहस चल ही रही थी कि मुंबई में एक पत्रकार; पेशागत ईमानदारी के चलते अपराधियों की भेंट चढ़ गया। खोजी पत्रकारिता के जरिए कई आपराधिक एवं भ्रष्टाचार से जुड़ी कारगुजारियों की पोल खोलने वाले, मिड डे के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे को माफियाओं ने दिन दहाड़े गोलियों से भून डाला। ज्योतिर्मय डे के साथ हुआ यह हादसा महाराष्ट्र में मजबूत हो चुके माफियातन्त्र का एक नया नमूना है, जिसने अवचेतन में चले गए पुराने सवालों को फिर से जिंदा कर दिया है।
डेढ़ साल पहले पुणे में भूमि घोटाले को उजागर करने वाले आरटीआई कार्यकर्ता सतीस शेट्टी की हत्या और पाँच महीने पूर्व नासिक के ईमानदार सहायक कलेक्टर यशवंत सोनावड़े को तेल माफियाओं द्वारा जिंदा जलाने की घटना, महाराष्ट्र के माफिया तंत्र और प्रशासन के गठजोड़ का एक पुख्ता सबूत है। पाँच महीने के अंदर पुलिस और सीबीआई सोनावड़े के हत्यारों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर पाई। सतीस शेट्टी के केस की भी प्रगति बहुत ठीक नहीं है, जांच ठीक ढंग से नहीं किए जाने के कारण रसूखदार अपराधी कानूनी दायरे से बाहर हैं। जाहिर है कि इन घटनाओं से जहां माफियाओं की उदण्डता उजागर होती है तो वहीं महाराष्ट्र के सरकारी तंत्र की कलई भी खुलती है। ज्योतिर्मय डे की हत्या में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसके भी तार आपराधिक सरगनाओं या तेल माफियाओं से जुड़े हुए हैं। सनद रहे कि ‘मिड डे’ में प्रकाशित ज्योतिर्मय डे की रिपोर्टों के आधार पर कई अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई है।
दरअसल अन्य राज्यों के मुक़ाबले महाराष्ट्र में आए दिन पत्रकार, आरटीआई कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अपराधियों, माफियाओं और पुलिसतंत्र के हमलों के शिकार होते आए हैं। ज्योतिर्मय डे की हत्या से लगभग सालभर पहले सरकार की पोलखोलने वाले पत्रकार हेमंत पांडे को नागपूर में पुलिसतंत्र ने नक्सली बताकर फर्जी एनकाउंटर में मार दिया था। जिसपर अदालत में मामला विचाराधीन है। मुंबई के एक दूसरे पत्रकार सुधीर धवले को नक्सली होने के आरोप में छ महीने पहले से वर्धा स्टेशन से उठाया गया था, वो अभी तक जेल में बंद हैं। एक लंबे समय से कई अखबार और पत्रकार शिवसेना जैसी सांप्रदायिक ताकतों का गुस्सा झेलते आ रहें हैं। जाहिर है कि महाराष्ट्र के मौजूदा हालात पत्रकारों के अनुकूल नहीं कहे जा सकते हैं। महाराष्ट्र राज्य में प्रचुर मात्रा में भ्रष्टाचार और अपराध के मामले उजागर होते रहते हैं। इनपर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर खतरे की संभावना हमेशा बनी रहती है।
ध्यान दे तो ये सारी घटनाएँ सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को उजागर करने या सच्चाई के साथ खड़े होने के कारण घटित हुई हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपराध के इन खेलों में सफेदपोश लोगों का प्रश्रय न हो। हर बार बड़ी मुर्गियों तक कानूनी हाथ पहुँचते-पहुँचतेरूक जाता है। यशवंत सोनावड़े की हत्या के वक्त ही, महाराष्ट्र के कुछ संगठनों ने तेल और जमीन के गोरखधंधे में बड़े कारकुनों की संलिप्तता को लेकर मांग की थी कि पूरे मामले की बड़े स्तर पर जांच की जाय ताकि दागदारों का चेहरा उजागर हो सके। जांच की प्रक्रिया और उसकी गति क्या रही इसे सोनावड़े के केस में सीबीआई द्वारा चार्जशीट तक नहीं दायर करने से समझा जा सकता है। अब डे की हत्या के बाद महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटील की रिरियाहाट को कैसे सत्य मान लिया जाय कि अपराधियों को बख्शा नहीं जायेगा?
महाराष्ट्र में सांगठानिक अपराधों को राज्य की मशीनरी ने गुप्त रूप से प्रश्रय दे रखा है। यानी बड़े पैमाने पर अपराधियों को सफेदपोश चेहरों का वरदहस्त प्राप्त है। यह एक बार नहीं कई मर्तबा साबित हो चुका है। जाहिर है कभी कोई ऐसा उदाहरण ही नहीं देखने को मिला जिसमें अपराधियों को सजा मिली हो। कई मामले में अपराधी चार्जशीट के अभाव में बरी हो जाते हैं। फलस्वरूप अपराधी दिनदहाड़े आपराधिक कृत्यों को अंजाम देते हुए हिचकिचाते नहीं। पब्लिक है कि घटना के वक्त गुस्से और सदमे में रहती है लेकिन एक समय के बाद उसकी स्मृति से ये मामले गायब हो जाते हैं।
ज्योतिर्मय डे के की हत्या पत्रकारिता के ऊपर हमला नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार की फैक्ट्री बन चुके महाराष्ट्र के पूरे सिस्टम पर एक बड़ा सवाल है। क्या पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई कार्यकर्ता अपने काम की कीमत अपनी जान से चुकाएंगे, उनके ऊपर हमले किए जाएंगे? क्या सरकार दो मीनट की ‘भर्त्सना-बाइट’ से मुक्त हो जाएगी। डे की हत्या भविष्य में मुक्त पत्रकारिता को लेकर आशंकित करती है। यदि मामले की तह में जाकर अपराधियों को पकड़ कर सजा नहीं दी गई तो भविष्य मेँ अन्य दूसरे पत्रकारों पर जानलेवा हमलों की घटनाओं में इजाफा होगा।
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