02 नवंबर 2010

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले में

दिलीप
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले में 40 से अधिक आदिवासियों के पेचिस और कुछ अन्य पेट संबंधी बीमारियों से मारे जाने की ख़बर है.
कुछ महीने पहले इसी ज़िले के तारमेटला नामक जगह पर पच्चीस से अधिक लोग गंदा पानी पीने से उपजी बीमारी का शिकार हुए थे.
गांव में चूंकि एक भी बोरवेल चालू स्थिति में नहीं था सो लोग जगह-जगह जमा हुए गंदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे. दोनों मौकों पर पीड़ित लोगों ने बीमार होने के दो-तीन दिनों के अंदर ही दम तोड़ दिया. चूंकि ज़िले में डॉक्टर की संख्या देश में प्रति व्यक्ति डॉक्टर की उपलब्धता से बेहद कम है और जो डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में इलाज करने के लिए मौजूद हैं वे सिर्फ़ शहरी इलाके में ही रहना चाहते हैं, इसलिए बीमार पड़ने पर लोगों को आयुर्वेदिक इलाज के अलावा कोई और मज़बूत विकल्प नज़र नहीं आया. आयुर्वेदिक इलाज तत्काल प्रभाव डालने में असमर्थ साबित हुईं और लोग कालकवलित हो गए. इस पूरी पट्टी में ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों में से अधिकांश या तो जीर्ण-शीर्ण हैं या फ़िर बिना डॉक्टर के ही चल रहे हैं.

पानी जैसे बेहद बुनियादी ज़रूरत को लोगों तक पहुंचाने के बजाए सरकार छत्तीसगढ़ के दक्षिणी हिस्से में विकास के नाम पर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए चार लेन की सड़क बनाने में और खनन फ़ैक्ट्रियॉ खोलने देने के लिए इन कंपनियों को ज़मीन उपलब्ध करवाने में मशगूल हैं. सरकार इस भूगोल में ’क्षेत्र का विकास’ चाहती है और यहां के लोगों के विकास को वह ’क्षेत्र के विकास’ में समाहित मान रही है. मसलन कारखाना खोलना प्राथमिक है क्योंकि कारखाने से ’क्षेत्र का विकास’ होगा और कारखाना खोलने में अगर कोई परेशानी हो रही है तो सरकार द्वितीयक तौर पर यह तर्क देगी कि इससे नज़दीक के लोगों को रोजगार मिलेगा और अंततः इससे स्थानीय लोगों का ही विकास होगा. यह अर्थशास्त्र के ’ट्रिकल डाऊन थ्येरी’ का छत्तीसगढ़ी प्रयोग है जिसमें कहा गया है कि विकास रिस-रिस कर लोगों तक पहुंच ही जाती है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में एक व्यक्ति के धनी होने से पूरी अर्थव्यवस्था का भला होना तय है, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति अमीर होता है तो निश्चित तौर पर वह माली रखेगा, ड्राईवर रखेगा या सेक्रेटरी रखेगा. इस तरह विकास तो अंततः उस अमीर व्यक्ति के जरिए माली और ड्राईवर तक पहुंच ही गया. इसी तरह कारखाना लगने से लोग स्वतः ही विकसित हो जाएंगे. सरगुजा में लौह-अयस्क को पानी के जरिए जापान भेजने के क्रम में वहां का ’विकास’ इस तरह हो रहा है कि स्थानीय लोग पानी की भीषण समस्या की चपेट में आ गए हैं. पानी के ज़्यादातर स्रोत सूख गए हैं और लोग संकट में मज़बूर होकर गंदा पानी पीते हैं. इस प्रक्रिया में उपलब्ध कराए गए रोजगार और पानी के कारण लोगों की मौत की अगर एक साथ तुलना की जाए तो तस्वीर ज़्यादा साफ़ हो जाएगी कि विकास के नाम पर विकसित कौन हो रहा है? मनमोहनी अर्थव्यवस्था में जीडीपी का बढ़ना ही संपूर्ण विकास का परिचायक हो गया है. उदारीकरण के बाद यह प्रत्येक सरकार की नीति में शामिल रहा है कि विकास के नाम पर मोटे आंकड़े में लोगों को उलझा देना है. राजग सरकार में प्रति सप्ताह यह दर्शाया जाता था कि विदेशी मुद्रा भंडार में देश ने कितनी बढोत्तरी की और कितने नए भारतीय करोड़पति की नई सूची में शामिल हुए. इस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से यह दावा किया जा रहा है कि देश में 88 फ़ीसदी लोगों को स्वच्छ पेय जल की सुविधा उपलब्ध है. क्या इस आंकड़े पर भरोसा किया जा सकता है जब राजधानी दिल्ली में स्वच्छ पेय जल के लिए आए दिन प्रदर्शन हो रहे हों और जब क्रमिक रूप से मुंबई के सभी इलाके में सप्ताह में एक दिन पानी बंद करने की नीति अपनाई जा रही हो? अगर सरकारी दावे को सच मान लिया जाए जो तस्वीर अधिक विद्रूप हो जाती है . इसका मतलब यह हुआ कि अनेक ऐसी जगह, जहां पानी के कारण लोगों के आए दिन मरने की ख़बर आती रहती है वह बाकी बचे बारह प्रतिशत के दायरे में आती है. और लगातार ऐसी ख़बर आने के बावजूद सरकार इन इलाकों में पेय जल की सुविधा उपलब्ध कराने के प्रति निर्मम रूप से उदासीन है. इस उदासीनता की क्या वजह हो सकती है?

हाल के वर्षों में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लेकर छत्तीसगढ़ के इस भाग में माओवादियों के अलावा बड़ी संख्या में अन्य जनसंगठनों ने इसे स्थानीय लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के हिसाब से अनुपयुक्त दिया और इसका विरोध किया. इस विरोध को मास मीडिया के जरिए सत्ता तंत्र ने विकास विरोधी क़ौम की देश विरोधी हरक़त साबित करने का हरसंभव कोशिश की है. इस प्रचार को तथ्य के रूप में स्थापित करने की मुहिम लगातार जारी है कि माओवादियों के कारण ’अन्य आम लोगों’ का विकास बाधित हो रहा है और माओवादियों की नीति सरकार द्वारा शुरू किए गए किसी भी परियोजना को ध्वस्त करना हैं, इसलिए ’विकास’ वहाँ तक पहुँच नहीं पाता. इस दृष्टिकोण से उठने वाली बात को कि, स्थानीय लोगों की ज़रूरतों के हिसाब से सामाजिक-आर्थिक विकास नहीं होने से ही इस विचारधारा को अधिक विस्तार मिला है, बार-बार यह कह कर ढंकने का प्रयास किया जाता है कि सरकार वहां के लोगों को समाज की ’मुख्यधारा’ से जोड़ने की कोशिश कर रही है. ऐसे क्षेत्रों में अनेक ऑपरेशनों के जरिए माओवादियों के सफ़ाई का अभियान सेना ने चला रखा है. ऐसे ऑपरेशन में माओवादियों को घेरने और आत्मसमर्पण करने के लिए तमाम अमानवीय तरीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है जिसमें सरकार का जोर नहीं चल पाता कि ऐसे किसी तरीके से ’आम लोग’ प्रभावित न हो. लालगढ़ में हुए सैन्य ऑपरेशन में इस आशय की ख़बर भी आई थी कि सीआरपीएफ़ के जवानों ने माओवादियों को कमज़ोर करने के लिए पीने के पानी को दूषित कर दिया और कई कुंओं में मलमूत्र तक त्याग कर पानी को ऐसा बना दिया गया कि वह पीने लायक न रह पाए. ऐसी स्थिति में सरकार क्या ऐसे लोगों को, जो माओवादी विचारधारा में यक़ीन नहीं रखते, लेकिन उस क्षेत्र में रहते हैं, स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाई थी? तारमेटला में लोग साफ़ पानी नहीं मिलने के कारण मरते गए और सरकार सतर्क नहीं हुई. अब कुछ और लोग मरे हैं तो सरकार से क्या उम्मीद की जाए? जनस्वास्थ्य के प्रति सरकारी चिंता कितनी गंभीर है?
एक तरफ़ जहां यह बताया जा रहा है कि इस इलाके में डॉक्टर नहीं आना चाहते, वहीं आदिवासियों की चिकीत्सकीय सेवा के लिए छत्तीसगढ़ में लंबे समय से सक्रिय डॉ. बिनायक सेन को पुलिस ने माओवादी समर्थक बताकर दो साल तक जेल में बंद रखा. जनता दोनों तरफ़ से पिस रही है. साधारण तौर पर इस क्षेत्र में डॉक्टरों, सरकारी नुमाइंदों और कर्मचारियों के लिए नियमित काम पर न जाने के पक्ष में एक-सा रटा-रटाया जवाब होता है कि माओवादी उपद्रवियों से बचने के लिए वे ऐसा करते है. बचने का मतलब जान बचाने से है. लेकिन अभी तक आंकड़ों के हवाले से इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि माओवादी सिविल सरकारी कर्मचारियों और डॉक्टरों को जान से मारते हैं. सरकारी प्रचार तंत्र के जरिए सरकार जो बात लोगों के बीच स्थापित करना चाहती है, डॉक्टरों की ऐसी घोषणाओं से उसे बल मिलता है. अधिकांश मौकों पर समस्याओं पर बात करते समय सरकारी मशीनरी समस्याओं को आंकड़ों के रूप में प्रदर्शित करने की मांग करती है. व्यक्तियों के दुःख-दर्द को वह जीडीपी और आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़ों तले दबाकर मानने से इंकार करती रहती है, लेकिन जब बस्तर और इर्द-गिर्द के क्षेत्रों में माओवादियों द्वारा किसी सिविल अधिकारियों के मारे जाने संबंधी आंकड़े प्रदर्शित करने को कहा जाता है तो राजकीय शासन तंत्र कुछ सरकारी कर्मचारियों की ऐसी बातों को ’लोकप्रिय जनभावना’ के तहत देखने का आग्रह इस भाव से करती है गोया आंकड़ा कोई तुच्छ चीज़ हो. इस तरह, डॉक्टरों और कर्मचारियों की बातें सरकारी बातों का नागरिक तर्जुमा बन कर सामने आती है. अब स्थिति ऐसी बनती है कि नागरिकों के अलग-अलग तबके स्थानीय विकास के मुद्दे पर पहले आपस में फ़ैसला कर लें कि आख़िरकार वास्तविक समस्या क्या है? नागरिकों के ऐसे समूह के विचार, जो राज्य के विचार से मेल खाते है, उसे वर्चस्वशाली और प्रमुख बनाकर पूरे समाज के सामने प्रस्तुत किया जाता है.
माओवादियों को कारण बताते हुए सरकार ने यह कहा है कि बस्तर के अधिकांश इलाकों में मौजूदा राउंड की जनगणना नहीं चलाई जा सकती. जनगणना नहीं होने से भूख और पानी से मरने वाले लोगों और कंपनियों के लिए विस्थापित होने वाले लोगों के वास्तविक संख्या की जानकारी भी ठीक-ठीक नहीं हो पाएगी. यह कई दस्तावेजों में दर्ज होने से बच जाएगी और सरकार का विकास काग़ज़ पर फ़र्राटा दौड़ेगा. ’सरकारी लोकतंत्र’ में विकास के लोकप्रिय सूचकांक को उन्नत करने के लिए मौजूदा राज्य सरकार ने अपने पड़ोसी राज्य से पर्यावरण और आदिवासी क्षेत्रों से संबंधित क़ानूनों के उल्लंघन के कारण भगाए गए कुख्यात खनन कंपनी वेदांता को लगभग उतने ही उदार होकर खनन करने की अनुमति प्रदान की है, जितने में उसे ओडिसा से भगाया गया था और जिसके बाद ओडिसा के मुख्यमंत्री का भाव कुछ ऐसा था कि उनके राज्य से स्वयं विकास देवता भाग रहे हो. पिछले दिनों मुख्यमंत्री रमण सिंह पर निशाना साधते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने वैसे ही सवाल उठाए जिसे आमतौर पर माओवादियों और जनसंगठनों के एरिया का माना जाता है. जोगी ने रमण सिंह पर यह आरोप लगाया कि वह राज्य में कोयला, लौह-अयस्क सहित अन्य खनिज पट्टों के आवंटन में अनियमितता बरत रहे हैं और वे आनन-फ़ानन में कंपनियों के साथ एमओयू साइन कर रहे हैं. जाहिर है ऐसे मुद्दों को उठाने वाले अनेक जनसंगठनों को अलग-अलग राज्यों ने ’विकास विरोधी’ नामक विशेषण दे रखा है. गुजरात में नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव भाषणों में कई बार यह दोहराया था कि लोगों को मेधा पाटेकर चाहिए या विकास? अभी-अभी महिला सशक्तिकरण और पंच-सरपंच सम्मेलन में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने नर्मदा बचाओ आंदोलन को विकास विरोधी करार दिया. क्या रमण सिंह कांग्रेस को विकास विरोधी के रूप में प्रचारित कर सकते हैं? जाहिर है संसदीय लोकतंत्र की बड़ी पार्टियां आपस में विरोध को उसी स्तर तक ले जाते हैं जहां तक वे बारी-बारी से सत्ता में आने से उसी काम को अंजाम दे सके जिसके लिए वे एक-दूसरे का विरोध कर रही थीं. नंगा तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ में पानी के कारण लोग उस समय मर रहे हैं जब देश में राष्ट्रकुल खेल के नाम पर पैसों का अश्लील प्रदर्शन किया जा रहा है और जब पानीपत से दिल्ली के लिए 45 मिनट में सुपरफास्ट रेलगाड़ी चलाए जाने की घोषणा हो रही है.
(लेखक पत्रकार हैं)संपर्क: दिलीप, प्रथम तल्ला, C/2 ,पीपल वाला मोहल्ला, बादली एक्सटेंशन, दिल्ली-42, मो. - +91 9555045077, E-mail - dilipk.media@gmail.com

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