18 अक्टूबर 2009

पश्चिम बंगाल के बुद्धिजीवी माओवादी हैं.?

कृपाशंकर चौबे

पश्चिम बंगाल शासन द्वारा मार्क्सवाद का एक विकृत पाठ तैयार किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में सिंगुर-नंदीग्राम-लालगढ़ में सरकार की नीति का प्रतिरोध करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवियों से राज्य शासन प्रतिशोध लेने को व्याकुल हो उठा है। नंदीग्राम गोलीकांड के बाद ही बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाईवाली वाममोर्र्चा सरकार ने बंगाल के बुद्धिजीवियों में विभाजन करा दिया था। सरकार ने अपने समर्थक बुद्धिजीवियों को "हमारे' और विरोधी बुद्धिजीवियों को "विद्वत्जन' संबोधन दिया था। "विद्वत्जन' संबोधन दरअसल कटाक्ष है। बाद में विद्वत्जनों की संख्या में इजाफा होते जाने पर उनकी आवाज बंद करने के लिए राज्य सरकार ने बर्बर हथकंडे अपनाने शुरू किए।

राज्य के पुलिस महानिदेशक भूपिन्दर सिंह ने लालगढ़ से गिरफ्तार छत्रधर महतो से मिली कथित सूचना का हवाला देते हुए पिछले दिनों कहा कि विद्वत्जनों (बुजुर्ग लेखिका महाश्वेता देवी, बुजुर्ग लेखक अम्लान दत्त, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि जय गोस्वामी, फिल्मकार अपर्णा सेन, अभिनेत्री सावली मित्र, अभिनेता कौशिक सेन, नाटककार ब्राात्य बसु, रंगकर्मी अर्पिता घोष, चित्रकार शुभ प्रसन्न, गायक प्रतुल मुखोपाध्याय और नाटककार विभास चक्रवर्ती) ने लालगढ़ की पुलिस संत्रास विरोधी जन साधाराण कमेटी के आंदोलन और उसके नेता छत्रधर महतो की मदद कर गैरकानूनी क्रियाकलाप निरोधक (संशोधन) कानून (यूएपीए) को तोड़ा है, इसलिए उनके विरुद्ध यथोचित कार्रवाई की जाएगी। पाठकों को बता दें कि यह वही पुलिस महानिदेशक भूपिन्दर सिंह हैं जिन पर सिंगुर में तापसी मल्लिक हत्याकांड की लीपापोती करने का आरोप लगा था। सिंगुर में जमीन के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रही तापसी मल्लिक की बलात्कार के बाद हत्या की गई तो भूपिंदर सिंह वहाँ उसके पिता से मिले और उसके बाद तापसी व उसके पिता के चरित्र का हनन करने वाली टिप्पणियां कीं। बाद में भूपिन्दर सिंह पर नंदीग्राम में तो माकपा के अनुगत के रूप में ही काम करने का आरोप लगा था। बहरहाल, पुलिस महानिदेशक द्वारा विद्वत्जनों के बारे में दिए गए बयान को राज्य के मुख्य सचिव अशोक मोहन चक्रवर्ती ने दोहराया। राज्य सरकार तीन दिनों तक कहती रही कि कानून की नजर में सभी एक समान हैं। चाहे कोई कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो? राज्य सरकार ने तो विद्वत्जनों से पूछताछ करने की योजना भी बना ली थी कि इसी बीच तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस मामले पर कड़ा रूख अपनाते हुए धमकी दी कि विद्वत्जनों को नाहक हिरासत में लिया गया तो पूरा बंगाल जल उठेगा। इस धमकी के बाद सरकार विद्वत्जनों से पूछताछ की योजना टालने को बाध्य हुई।

कहना न होगा कि बुद्धदेव सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने वाले बुद्धिजीवियों को भयाक्रांत करने और उनके बारे में जनता के बीच संदेह पैदा करने के लिए ही तीन दिनों तक राज्य सरकार ने दुष्प्रचार चलाया। यही नहीं, महाश्वेता देवी समेत अन्य विद्वत्जनों के घर पर खुफिया पुलिस द्वारा निगरानी भी शुरू कर दी गई। मानो बंगाल में ओषित अपातकाल लागू कर दिया हो। विद्वत्जनों के माओवादी होने का यह कोई पहली बार दुष्प्रचार नहीं हो रहा है। 3 जुलाई 2007 को कोलकाता पुलिस की वेबसाइट 'कोलकाता पुलिस.आर्ग' में लिखा गया था कि महाश्वेता देवी और शिक्षाविद् प्रोफेसर सुनंद सान्याल की अगुवाई वाला 'संहति उद्योग' सीपीआई (माओवादी) से संबद्ध संगठन है। बाद में बुद्धिजीवियों ने इसका तीव्र प्रतिवाद करते हुए जब पूछा कि पुलिस को यह अधिकार किसने दिया कि वह किसी जनसंगठन या व्यक्ति को माओवादी बताए? बुद्धिजीवियों के तीव्र प्रतिवाद के बाद ही वेबसाइट से यह सूचना हटाई गई थी।

पुलिस विभाग मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के पास है और सिंगुर-नंदीग्राम व अन्यत्र सरकार के विरूद्ध लड़ने के कारण महाश्वेता देवी व अन्य बुद्धिजीवियों पर दवाब बनाने के लिए उन्हें बार-बार माओवादी या माओवादी समर्थक करार दिया जाता रहा है। बुद्धदेव सरकार तो नंदीग्राम के किसान आंदोलन के पीछे भी माओवादियों के हाथ होने का दुष्प्रचार करती रही। और तो और, राज्य सरकार तृणमूल कांग्रेस और माओवादियों के बीच सांठ-गांठ होने का भी प्रचार करती रही है। अब फिर सरकार कह रही है कि पुलिस संत्रास विरोधी जन साधारण कमेटी दरअसल माओवादियों का शाखा संगठन है, इसलिए विद्वत्जनों ने कमेटी के आंदोलन का समर्थन कर और उसे आर्थिक मदद देकर जुर्म किया। सवाल है कि बंगाल के बुद्धिजीवी किस आंदोलन को समर्थन देंगे, यह साम्यवादी शासन तय करेगा? लालगढ़ में बंगाल पुलिस ने माओवादियों की तलाशी के नाम पर आदिवासी महिलाओं पर जो अत्याचार किया था, उसके खिलाफ ही आदिवासियों ने पुलिस संत्रास विरोधी जनसाधारण कमेटी का गठन कर आंदोलन शुरू किया था। उस आंदोलन का विद्वत्जनों ने समर्थन किया था, न कि माओवादियों का। महाश्वेता देवी से लेकर अपर्णा सेन तक - सारे के सारे विद्वत्जनों ने सार्वजनिक तौर पर बार-बार बयान दिए कि वे आदिवासियों के आंदोलन के साथ हैं न कि माओवादियों के।

यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि विद्वत्जनों ने जब पुलिस संत्राम विरोधी जन साधारण कमेटी के आंदोलन का समर्थन किया था, तब वह कमेटी प्रतिबंधित नहीं थी। आज भी यह कमेटी प्रतिबंधित नहीं है। किसी प्रतिबंधित संगठन से यदि विद्वत्जन संपर्क रखते, तब उन पर कार्रवाई की जा सकती थी। अभी कहा जा रहा है कि छत्रधर महतो के माओवादियों से संपर्क हैं, इसलिए उन पर गैरकानूनी क्रियाकलाप निरोधक (संशोधित) कानून (यूएपीए) के तहत कार्रवाई की जा रही है। यहाँ यह भी गौर-तलब है कि नेपाल के माओवादियों से तो माकपा की पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी के भी सम्पर्क रहे। माकपा के लिए नेपाल के माओवादी अच्छे हैं और बंगाल के माओवादी खराब हैं? नेपाल और भारत के माओवादियों में क्या आदर्शगत अंतर है? इस सवाल पर माकपा ने क्यों चुप्पी ओढ़ रखी है?

दरअसल साम्यवादी सरकार बुद्धिजीवियों के माओवादियों से संबंध होने का दुष्प्रचार एक कौशल के तहत करती रही है। उसमें अन्तर्निहित मकसद था कि बुद्धिजीवियों को इतना भयाक्रांत कर दिया जाए कि वे स्वत: लालगढ़ के आंदोलन से दूर हो जाएं और तब केंद्र और राज्य के सशस्त्र पुलिस बलों की मदद से माकपा लालगढ़ को दखल में ले लेगी। लालगढ़ में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस बल के अभियान शुरू होने के बाद अपर्णा सेन व सांवली मित्र के नेतृत्व में आठ बुद्धिजीवी जब लालगढ़ गए तो उनके खिलाफ निषेधाज्ञा के उल्लंघन का मामला दायर किया गया। उसके ठीक बाद माकपा कैडरों ने लालगढ़ के पास मोटर साइकिल जुलूस निकाल कर इलाका दखल अभियान चलाया। उन कैडरों पर निषेधाज्ञा का कोई मामला क्यों नहीं दायर किया गया? नंदीग्राम गोलीकांड के बाद पुलिस की मदद से माकपा कैडरों ने इसी तरह मोटर साइकिल जुलुस निकाल कर नंदीग्राम को दखल में लिया था और उसे "सूर्योदय' की संज्ञा दी थी। पुलिस प्रशासन की मदद से हथियारों के बल पर ही माकपा ने खेजुरी और केशपुर आदि में दखल कर रखा है। इन सारे के क्रियाकलापों में साम्यवादी शासन का संकट स्वत: ही उजागर नहीं हो रहा है?

12 टिप्‍पणियां:

  1. यह आलेख उन महोदय द्वारा लिखा गया है जो अप्रोक्ष रूप से स्वयं को "विद्वत्जन' की कोति मे आना चाह रहे है.पता नही ५ वर्ष पुर्व ये तथाकथित "विद्वत्जन'कभी पार्टी क विरोध किये थे कि नही पर अब ये "विद्वत्जन' सरकार के पीछे पडे है. मुझे तो लगता है कि कही कोइ स्वार्थ का ममला फ़ंसा है.कल तक लाल सलामी हो रही थी. कांग्रेस के सौजन्य से पिछ्ले ५० वर्षो से अकादमिक सन्स्थानो मे मलाइ काती जा रही थी . अब क्या हो गया है. महाश्वेता जी की बार २ चर्चा करके चौबे क्या बताना चाहते है. यही न कि वही एक्मात्र "विद्वत्जन' है जिनकी असीम क्रिपा है चौबे पर. इसीलिये तो वर्धा मे उनकी नियुक्ति हुइ है. चौबेजी जब सरोकारो की बात की जाती है तो इमान्दारी से की जाती है. और इमानदार चौतरफ़ा होना पड्ता है. अब आप्से कोइ यह पूछे कि नियुक्ति के बाद कितने दिनो तक वर्धा मे रहे, तो आप्का क्या जबाब होगा.१५ अगस्त को आप झन्डारोहन मे नही थे. क्यो भाई .विमारी का बहाना बनाया फ़िर कलकत्ता रवाना.र्रीडर पर आप्की नियुक्ति से महश्वेता और नामवर दोनो दुखी है,ऐसा आप्ने एक पत्र मे लिखा है.आप जैसी प्रतिभा जो अब तक धूल्फ़ांक रही थी ,कोएक सुन्दर अवसर मिला है विवि को सवांरने का और आप है कि कलकत्ता रवाना होने के लिये बेचैन रहते है. आप तो इस जुगत मे है कि विवि क एक सेन्टर कलकत्ता मे खुल जाये और आप वही रहे. आपके द्वारा क्लास मे दिये गये कथन के अनुसार यह तो ड्राइ एरिया है जहा आप जैसे विद्वानो का रहना कठिन है. अभी आपको प्रो मनोज कुमार ने कलकत्ता से कुलपति को पकड्कर भगल्पुर ले आने को कहा. यह क्या है. आप्की प्रातिभा है या उस प्रोफ़े से मिलीभगत.कुलपति को अपने गिरफ़्त मे लेकर लेकर आप और मनोज कुमार जो वर्धा से गायब होने का खेल कर रहे है उसका हिसाब देना होगा.भागलपुर मे कुलपति की दो दो यात्रा किस्लिये.क्या वही शान्ति सेना का कैम्प लगेगा. सिर्फ़ इस्लिये कि प्रो मनोज कुमार क ग्रिह जनपद है.
    वर्दमान वि वि से एम ए मे गोल्ड कैसे आप्को मिला है आप तो जानते ही है फ़िर उसे वागर्थ मे क्यो महाश्वेता से लिखवाया. है हिम्मत तो आओ इस ब्लोग पर अप्नी वर्धा मे उपस्थिति का रिकार्ड बताओ. कितने घन्ते क्लास लिये यह भी बताओ.१५ अगस्त को अनुपस्थिति का कारन बताओ.आखिर कौन सी मज्बूरी थी कि आप तिनो सुरज पालीवाल,अनिल चमाडिया और क्रिपा शन्कर चौबे अनुपस्थिति है.आपको नही लगता कि आप्के इन सारे क्रियाकलापो से आपकी सच्चाई उजागर हो रही है

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  2. लगभग एक सप्ताह पहले कोलिकाता जाना हुआ था. वही एक सहज सत्य
    हाथ लगा. पता चला कि महाश्वेता देवी तो हिन्दी पढती ही नही है. तो फ़िर हिन्दी मे उनके नाम से छ्दम लेखन कौन कर रहा है. थोडा गहराइ मे गया तो पता चला कि ये तो चौबे जी ही है जो तीन पान्च करते रहते है. हां इसमे महाश्वेता देवी की मौन सहमति है. तो सुन लो हिन्दी प्रेमियो ,देश की ख्याति नाम लेखिका दोहरापन. ये वो लोग है जो सिर्फ़ क्रान्ति की ही बात करते है पर परदे के पीछे का यह रूप तो गजब का है.इसका मतलब यह हुआ कि अनेक अखबारो से लेकर पत्रिकाओ तक उनके नाम पर जो साहित्य रचा गया है वह किसी और का है. महाश्वेता देवी को पता होगा ही. पर वे इसे किस स्वार्थ मे कर रही है यह तो सा प्रेमी ही जाने . है कोइ सुनने वाला .
    चौबे जि बुधिजीवियो की बारात मे शामिल हो जाइये और एसे ही बढ्ते रहिये.फ़िर अपने इस बेशर्म हर्कतो को छुपाने के लिये माकपा को गाली दीजिये.यह है 'विभुति के बैभव' के लेखन का पुरस्कार.
    शरद

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  3. नंदीग्राम की तथाकथित डायरी लिखने वाला पुष्पराज और कृपाशंकर चौबे जैसे दो धूर्त और चालबाज लोग महाश्वेता देवी जैसी तथाकथित विद्वत्जन के प्रवक्ता हैं। अब परोफेसर हो गए हैं तो कलियान होइए गया। अब महाशवेता देवी जी की कोई किताबो आ जाएगी कृपाशंकर चौबे और पुष्पराज के जीवन वृत्त पर केंद्रित। वह भी हिंदी में...। इंतजार कीजिए...

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  4. देश की ख्याति नाम लेखिका के दोहरेपन का असर,खुद को कभी उनका दत्तक पुत्र तो कभी दत्तक भाई बताने वाले कृपाशंकर चौबे पर भी है.वैसे तो यह खुद को गरीबों का हितैशी दिखाते हैं पर उनके ही विभाग के छात्र यह बताते हैं कि जब बात गांव की चलती है तो गांव के गरिबों का मजाक उड़ाने से वह कभी नहीं चुकते.उनके विभाग के छात्र यह भी बताते हैं कि उनकी नियुक्ति तो जनसंचार के शिक्षक के रुप में हुई पर कक्षा में वह साहित्य से उपर नहीं उठ पाते वह भी स्तरहीन.
    कक्षा में या बाहर हमेशा देश की हर बड़ी हस्ती को वह अपना रिस्तेदार ही बताते फिरते हैं.
    स्वयं को "विद्वत्जन" समझने की भूल करने वाले न वामपंथी न,न दक्षिणपंथी बल्कि अवसरपंथी इस लेखक के रग-रग में दोहरापन बसा है.
    दोहरेपन की कमाई खाने के लिये ही तो वह यहां(दिल्ली) से लेकर कोलकात्ता तक जाने जाते हैं चाहे वह प्रभाष जोशी की चमचागिरी से जुड़ा हो(जहां हर सहकर्मी इनके चुगलखोरी से परेशान रहते थे) या फिर महाश्वेता देवी से जुड़ा और फिर अब वर्धा भी पहुंच गए विभूतिजी के मित्र बनकर..

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  5. भई वाह . क्या खूब कही.यही है विभूति जी की मित्र मंड्ली.कम्यूनिस्तो का दोहरापन तो उनका स्व्भाव है. तो आश्चर्य काहे का.पढ्ने पढाने का काम होता तो वर्धा काहे आते चौबे जी.ये भी हार्वर्ड की राह देखते. इ चौबे तो मदर टेरेसा के भी खास रहे. उहा भी झाडू -वाडू लगाये रहे है.वइसे ये किसी का सपना देखने के बाद भी उसका बनाकर छाप लेते है. पता नही मार्क्स का साक्षात्कार छपा की नही. मिलेन्गे तो पूछ्ना भईया मेरी तरफ़ से कि इ सब का कर रहे है.
    देवी-देवता

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  6. देवी-देवता जी चमचागीरी की गाड़ी की चाल रफ्तार पकड़ चुकी है.शायद कोई थामके जी हैं जो नवसृजित झारखण्ड central university में डिप्टी रजिस्ट्रार हैं और उनकी वहाँ के कुलपति से जुगाड़रबाजी चल रही है.उसी जुगाड़रबाजी में चौबेजी भी लग चुके हैं,वहाँ कुछ पाने के फिराक में.इसिलिए तो पढाने से कन्नी काटने वाले चौबेजी नागपूर एयरपोर्ट पर समय से पहले खड़े दिखते हैं थामके को थामने को! लगे रहो चौबेजी चमचागिरी की कड़ी को आगे बढाने पर कुछ न कुछ तो मिल ही जाएगा.

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  7. BEBAAK said....
    yha comment krne walo ki nichta aur ghatiyapan ke bare me kya khah jay... ye aalekh pr comment hai ya vyakti vishesh ke prati apni niji kuntha nikaali gai hai ...!!! khair, jo log aisa kr rahe hain unko pta hai wo es se jyada aur kr bhi kya skte hain ? lekh likhne ki aukaat to unki hai nhi to ulti krte rehte hain..

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  8. बेबाक said..
    डा. कृपाशंकर चौबे के बारे में जो व्यक्तिगत कुंठा निकाली जा रही है, इसी तरह की कुंठा प्रोफेसर अनिल चमड़िया के बारे में निकाली गई। ताज्जुब है कि इन दोनों के लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की गई, व्यक्तिगत आक्रमण किए गए। मैं चुनौती देता हूं कि महात्मा गांधी अं. वि.वि. वर्धा के ये कतिपय कुंठाग्रस्त लोग बताएं कि अंतर्राष्ट्रीय कहे जानेवाले इस विश्वविद्यालय में प्रो. चमड़िया तथा डा. चौबे के अलावा और कोई अध्यापक है जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो? चोरी से दस किताबें लिखनेवाले अनिल राय अंकित को बचाने के लिए उनके सजातीय याने भूमिहार कुलपति ने वि.वि. के दिल्ली केंद्र के मनोज राय और कंपनी को चमड़िया व चौबे के खिलाफ टिप्पणियां करने-कराने के लिए लगा रखा है। यह कुंठित कंपनी चाहे जितनी कोशिश कर ले, उस कंपनी के लोग या अनिल राय अंकित और मनोज राय दस जनम जीकर भी चमड़िया एवं चौबे जैसा लेखन नहीं कर सकते। शर्म हया हो तो चौबे या चमड़िया जैसा लिखकर दिखाओ। अनिल राय इन दोनों जैसा पढ़ाकर ही दिखाए। अंकित ने तो एमफिल का पाठ्यक्रम बीए जैसा बनाया है। उसका ये बौद्धिक स्तर है। क्लास लेता नहीं। गलत एटेंडेंस बनाता है। एमफिलवालों का अभी तक कंप्यूटर क्लास नहीं शुरू हुआ। यदि चमड़िया तथा चौबे न रहें तो विभाग का भट्टा बैठ जाए. अंकित ने छात्रों का एक गुट बना लिया है। अंकित ने संदीप वर्मा को अपने विभाग का लेक्चरर बनाने का लालच दिया है। विभूति राय व मनोज राय के सहारे और गुटबाजी कर कब तक बचे रहेंगे अंकित?

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  9. vibhuti ji apne kaise teachar mass com mai laye jo etani gandgi faila rahe hai ki university ke bare mai sub jagai charcha ho rahi hai.mere ek dost ne kaha ki aap campus mai rahne wali chaukadi ke kabje mai hai.aap sirf chatukar chahte hai.apki durgati karne ke karyavahi suru ho gai hai.paridam jaldi ahege.NADIM,RAKES.NARENDRA.PALIWAL.

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  10. BEBAAK GURU !!!khub pahchhane, ab
    campus kabira ki suno MHRD mai v.c.ki file taiyar ho gai hai. join karne se lekar ab tak gadbadi ke kagaj panchteela se sastri bhavan pahuch gaye hai.aur ek copy Lkw.ke v.c.ko bhi.ab janata bamboo lekar taiyar hai.09 dec.aane do panchteela dhasak jaiga.bebaak guru e maneesha. vandana.rakhi.supriya.kuan hai.dilli mai bahut garam khabar hai.

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  11. bebaak ji aap sahi kah rahe hai. is tarah ki kuntha na likhi jaye to achha hi hai.
    par aap bhi bad me usi raste par chale gaye hai.
    aap hi gabhir rahate .aap to sabakaa nam le rahe hai aur ek khas jati par aakraman theek nahi. koi ganda kam kar raha hai to karane de.kaun pochhata hai aisee chhijo ko.isase bloginging ka uddeshya poora nahi hoga

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  12. इस ब्लाग के प्रिय टिप्पणीकारों..... सबसे पहले मैं यह प्रश्न करना चाहूंगा कि आप ब्लाग के लेख पढ़कर प्रतिक्रिया देते हैं या लेखक पर. यदि लेखक पर ही कमेंट देना है तो इसके कई रास्ते हैं...आप खुलकर सामने आकर बात कर सकते हैं या आप भी अपना भड़ासपूर्ण लेखन कहीं छपवा सकते हैं.....ये तो आप लोगों से होगा नहीं क्योंकि आप लोगों में वो कूवत ही नहीं है.... रही बात अनिल चमड़िया और कृपाशंकर चौबे जी की क्लास लेने की बात......तो ये आप आकर क्लास में खुद आकर छात्रों से सामने में पूछकर देखिये .... आपको यह मालूम होना चाहिए कि छात्रों के बावत जो बातें आप कह रहे हैं वे छात्र वाजिब छात्र नहीं हैं..दरअसल उनकी तरफ से ये बातें उनके वे वरिष्ट छात्र कह रहे हैं जिनका पीं.एच.डी. में प्रवेश नहीं हुआ है. कहिए तो मैं उनके नाम भी बता दूं.... एक उमेश पाठक और दूसरा संदीप वर्मा, जिसको अब लेक्चरर की नौकरी पानी है.... लखनऊ से किसी तरह एल.एल.एम. करके भी कुछ नहीं कर पाए तो चले आए मास मीडिया पढ़ने और अब चले हैं मास मीडिया में पढाने.....
    यही नहीं जिनका चयन हो भी गया है वो भी शामिल हैं और अनिल अंकित राय की शह पर यह हाय तौबा मचा रहे हैं.......और सबसे बड़ी शुरुआत उन महाशय की है जो यह ब्लाग चलाते हैं ....अब जब सेलेक्शन हो ही गया है तो अब कोई कुछ भी कहे अनिल चमड़िया और कृपा जी के बारे में उनको कोई फर्क नहीं पड़ता....उन्होंने यह लेख जानबूझ कर छापा कि अब मजा लिया जाय अब तो अपना काम बन ही गया है.....नहीं तो एक साथ दोनों लेखों को देने की क्या जरूरत थी...इनमें से एक सज्जन ने तो पींएचंडी प्रवेश परीक्षा के दो दिन पहले अनिल अंकित राय को अपना गाईड भी बना डाला था ताकि इंटरव्यू और जी.डी. में नम्बर पाकर सेलेक्ट हो जांय.. और जब सेलेक्ट हो गए तब तुरन्त गाईड अनिल चमड़िया हो गए...इन दोनों छात्रों को कुलपति की छत्रछाया प्राप्त है...हालत यह है कि इन्हीं के कहने पर छात्राओं के हास्टल लौटने का समय १० बजे रात तक कर दिया गया.... शायद कुलपति जी को यह नहीं मालूम कि ये छात्र हर साल नए छात्रों के आने पर अपना पैंतरा किस तरह बदलते हैं और प्रगतिशील होने का ढोंग रचते हैं...हमेशा छात्रों की बुनियादी जरूरतों के बीच ये प्रशासन में अपनी पैठ बनाने की कोशिश करते हैं...और छात्रों की जरूरते चली जाती हैं घास चरने....कुलपति जी किसी व्यक्ति की वाक्जाल में फंसने के बाजय आप उस व्यक्ति के आचरण पर गौर कीजिए.. शायद आपको ये कोई नहीं बताएगा कि इन दोनों ब्लाग मालिकों (जो कैम्पस में हैं) के बारे में कि जो लड़की इनसे हाथ नहीं मिलाएगी और इनके साथ मण्डली में नहीं बैठेगी वह इनकी मित्र नहीं हो सकती....गरीब, पढ़ने में कमजोर और कम सौन्दर्य धारण करने वाली छात्राओं की तरफ इनके हाथ नहीं बढ़्ते..... ये इनके हर वर्ष का रवैया है..... आप चाहें तो ऐसी पड़ताल करा सकते हैं...पर शायद यह आपको कोई बताएगा नहीं....बात बहुत कड़वी है मैं कहना नहीं चाहती थी पर ये सब देख कर कहना पड़ रहा है क्यों कि सच्चाई ज्यादा दिन नहीं छुपती है....इस पक्ष को भी सामने लाना जरूरी था...

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