01 अक्टूबर 2009

बंगाल पुलिस ने मीडिया बनकर छला


मुझे एक न्यूज स्टोरी के लिए किसी व्यक्ति से कुछ जानकारी चाहिए। वह मीडिया से बात करने तो तैयार नहीं। मैं एक पुलिस अधिकारी होने का नाटक करके उसे पकड़ लूं तो वह सब कुछ बता देगा। मेरी न्यूज स्टोरी बन जायेगी। लेकिन क्या कानून इसकी इजाजत देगा, क्या समाज इसके लिए माफ करेगा? पश्चिम बंगाल की सीआईडी पुलिस ने ऐसा ही शर्मनाक तरीका चुना। लालगढ़ आंदोलन के चर्चित नेता छत्रधर महतो 26 सितंबर को पकड़ लिये गये। पुलिस ने पत्रकार का वेश बनाकर ऐसा किया। एक पुलिस अधिकारी ने खुद को एशियन न्यूज एजेंसी, सिंगापुर का संवाददाता अनिल मयी बताया। उसने पहले एक स्थानीय पत्रकार का विश्वास जीता। फिर उसके साथ जाकर छत्रधर महतो का साक्षात्कार लेने के बहाने गिरफ्तार कर लिया। हर संस्था का अपना अलग कार्यक्षेत्र है। इस नाते उसे कुछ विशेष रियायत मिली होती है। हर संस्था की अपनी अलग भूमिका के अनुरूप लोग उस पर भरोसा करते हैं। किसी चर्च के पादरी के सामने अपने दोष को स्वीकार करने वाले को भरोसा होता है कि वह इसका दुरुपयोग नहीं करेगा। चिकित्सक के सामने एक महिला किसी भरोसे के ही कारण अपने शरीर को अनावृत करती है।
हर संस्था की अपनी इस विशिष्टता को बनाये रखना जरूरी है। अपनी सुविधा के लिए किसी संस्था को दूसरे के भरोसे से खिलवाड़ करने का हक नहीं। भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री प्रायः अपने संबोधनों में बेहद शौक के साथ बताते हैं कि वामपंथी उग्रवाद या नक्सलवाद के पीछे आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक कारण हैं।

आबादी के बड़े हिस्से का इन आंदोलनों के साथ जुड़ाव भी जगजाहिर है। लिहाजा इन आंदोलनों और इससे जुड़ी आबादी की आकांक्षाओं एवं गतिविधियों को सामने लाने की दिशा में मीडिया को अपनी अहम भूमिका निभाने का पूरा हक है। मीडिया पर आम लोगों और आंदोलनकारियों के निर्विवाद भरोसे के जरिये ही मीडिया अपनी यह भूमिका निभा सकता है। मीडियाकर्मी अपनी जान पर खेलकर दूरदराज के इलाकों में जाते हैं। उनके पास बचाव का एकमात्र जरिया उसकी यह पहचान ही है। इस पहचान को बदनाम करने का हक किसी को नहीं दिया जा सकता। पश्चिम बंगाल पुलिस की इस हरकत के बाद मीडियाकर्मियों को देश के किसी भी इलाके में जाने पर ऐसे ही संदेह का शिकार होना पड़ेगा। उन पर जानमाल का गंभीर खतरा हरदम बना रहेगा।
कई बार पुलिस प्रशासनतंत्र द्वारा ऐसे मामलों में पत्रकारों को अपना दलाल या मुखबिर बनाने की कोशिश की जाती है। झारखंड के लातेहार जिले में ऐसी ही एक कोशिश हुई थी। जब मीडिया ने इसमें पुलिस का साथ नहीं दिया तो पुलिस ने प्रभात खबर के स्थानीय प्रतिनिधि पर आरोपों का पुलिंदा तैयार किया था। उस वक्त प्रभात खबर, रांची के तत्कालीन संपादक बैजनाथ मिश्र ने जवाबी पत्र लिखकर मीडिया की स्वतंत्रता एवं भूमिका के पक्ष में जोरदार तर्क दिये थे। इसके कारण पुलिस ने अपने नक्सल विरोधी अभियान में मीडिया को मोहरा बनाने की हिम्मत नहीं की। अब पश्चिम बंगाल की बहुरूपिया पुलिस ने पत्रकार का वेश बनाकर मीडिया संस्था पर भरोसे की हत्या कर दी है। यह हरकत ऐतिहासिक भूल है। यह बेहद शर्मनाक, आपत्तिजनक एवं अक्षम्य अपराध है। इसका पूरे मीडियाजगत और समाज को ऐसा पुरजोर विरोध करना चाहिए ताकि दुबारा कोई ऐसी हरकत करे। यह सुनिश्चित हो कि इसकी पुनरावृति कभी, कहीं, किसी भी परिस्थिति में हो। इस संबंध में स्पष्ट कानून भी तत्काल बनना चाहिए। विष्णु राजगढ़िया

1 टिप्पणी:

  1. आनलाइन हस्ताक्षर द्वारा विरोध अवश्य करें

    यह मीडिया की स्वायत्तता का अतिक्रमण है। कृपया अपना विरोध दर्ज कराने के लिए यहां क्लिक करके प्रधानमंत्री के नाम पत्र पर आनलाइन हस्ताक्षर करें

    http://www.petitiononline.com/wbmisuse/petition.html

    अगर यहां लिंक नहीं मिले तो इसे कापी करके अपने एड्रेस बार में पेस्ट कर सकते हैं

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