रणधीर सिंह
आठ मार्च 2007 को इतिहासबोध पत्रिका इलाहाबाद द्वारा आयोजित संगोष्ठी में दिया गया उद्बोधन.
मुझे समाजवाद के भविष्य पर बोलने के लिये कहा गया है. मैं यहाँ जो कुछ भी कहने जा रहा हूँ वह मेरी हालिया ही प्रकाशित पुस्तक ' क्राइसिस आफ सोशलिज्म - नोट्स आन डिफ़ेंस आफ़ ए कमिट्मेंट' पर आधारित होगा और अपने पक्ष में उन्हें विस्तार से स्पष्ट करने के लिये इस पुस्तक में संकलित उद्धरणों को उद्धृत करूँगा. इस प्रश्न को मैं अपने उद्बोधन के चार अलग लेकिन अंतर्संबंधित खंडों में स्पष्ट करने जा रहा हूँ.
छ्ठवें दशक के अंत के मजबूत व विद्रोही दिनों , में पेरिस के छात्रों ने उस हर व्यक्ति जो उन्हे संबोधित करता था, से सवाल किया और कहा कि पहले वह यह बतायें कि " उनके बोलने का प्रस्थान बिंदु क्या है? (अर्थात् आप बोल कहाँ से रहे हैं?) प्रत्येक वक्ता एक विशिष्ट दार्शनिक राजनीतिक जग़ह के केन्द्र से बोलता था तथा इसके लिये उन्होनें सार्वजनिक तौर पर अपने श्रोताओं का आभार माना. यहाँ यह बताना एकदम उपयुक्त होगा कि मैं मार्क्सवाद के पक्ष में खडे़ होकर बोल रहा हूँ, ऐसा मार्क्सवाद जिसे मैं समझता हूँ. जिस मार्क्सवाद में मुझे खुद के पारंगत होने का कोई मिथ्याभिमान नही है. मैने इसे कई तरीकों से सीखा और न सिर्फ़ मैने इसे अपनि राजनीति अथवा अध्यापक के पेशे के रूप में, बल्कि अपने जीवन और जीने के तरीके में उपयोगी पाया. यह अंतिम बात सिर्फ औपचारिक उद्बोधन नहीं है. मार्क्स को जानना, अपने जीवन में आपने क्या मूल्य बनाया, इसे कैसे समझा, जीने और दुनिया में कैसा व्यवहार कियाआदि के बारे में अंतर पैदा करता है. जार्ज बर्नाड शा ने कैसे एक बार कहा था कि " निश्चित तौर पर मुझे यह स्वीकार करना चाहिये कि कार्ल मार्क्स ने मुझे एक इंसान बनाया." अतः मार्क्स मेरे लिये महत्वपूर्ण हैं और मुझे लगता है कि अन्य किसी नहीं बल्कि इस कारण से कि आज पहले से भी कहीं ज्यादा वह हम सभी के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं, कि आज हम जिस दिनिया में रह रहे हैं वह पूँजीवादी है. सोवियत संघ के विघटन के बाद यह दुनिया पहले से कहीं ज्यादा पूँजीवादी है, तथा मार्क्स नें किसी और मनुष्य से ज्यादा, तब और अब भी, अपना सारा जीवन इस दुनिया के वास्तविकता की व्याख्या करने में समर्पित किया है तथा उनकी उपलब्धियाँ अभी भी अद्वितीय हैं. एक अर्थ में, समाजवाद के बारे में मैं यहाँ जो कुछ भी बोलने जा रहा हूँ, अपनी बेहतर समझ के साथ, वह ऐतिहासिक रूप से ज़रूरी तथा पूँजीवाद का संभाव्य नकार है.
आज समाजवाद के बारे में कोई विचार विमर्श, कम से कम इसके सभी भविष्य सहित, भूतपूर्व सोवियत संघ में जो कुछ घटित हुआ उसे छोड़कर नहीं हो सकता. हमने यहाँ जो कुछ भी देखा, जैसा कि मैनें अपनी पुस्तक में विस्तार से उल्लेख किया है, वह एक असफ़ल क्रांतिकारी प्रयोग था; जिसका निर्माण किया गया था वह एक शिकायती विकृत समाजवाद था. और एक अंतिम संकट तथा वर्गीय शोषक तंत्र के विरुद्ध वर्गहीन पीढी़ के विध्वंस से उसका पूरी तरह पतन हो गया जो ऐतिहासिक भौतिकवाद तथा वर्ग विश्लेषण की मार्क्सवादी व्याख्या पद्धति के अनुसार पूरी तरह अनुकूल ही है. दूसरे शब्दों में, सोवियत संघ में जो असफल हुआ वह समाजवाद नहीं बल्कि समाजवाद के नाम पर निर्मित एक तंत्र था. इस विशय पर विमर्श करने के लिये मेरे पास यहाँ समय नहीं है. मैं अभी इस बात पर जोर देना चाहुंगा कि समाजवादियों को यह समझने की जरूरत है कि भूतपूर्व सोवियत संघ में ऐसा क्यों और कैसे हुआ? इसके क्रियान्वयन में क्या कुछ घटित हुआ?
निश्चित तौर पर उन समाजवादियों के लिये जो बगैर पूँजीवाद मे भविष्य की इच्छा रखते हैं, यह समझना बेहद जरूरी है कि सोवियत संघ में समाजवाद के रूप में क्या निर्मित हुआ, क्या घटित हुआ तथा क्या असफल हुआ? उन्हें इस असफलता के मूल्य तथा परिणामों के महत्व को समझना चाहिये, वास्तविक आस्तित्वमान समाजवाद, जैसा कि हमने पहले ही बताया है तथा कुछ लोगों के अनुसार, यह सत्तावादी समाजवाद का विध्वंस था. यद्यपि उन्हें वास्तविक आस्तित्वमान पूँजीवाद या तानाशाही/सत्तावादी पूँजीवाद के मूल्य तथा परिणामों का भी ध्यान रखना चाहिये जिसने टुकड़ों में पलने के लिए विवश कर दिया. समाजवादी तथा पूँजीवादी दुनिया के बीच दुनिया के बीच की प्रतिद्वंदिता के रूप में हमारे समय में होने वाले 'समाजवाद के लिये संघर्ष को निश्चित तौर पर गलत ढंग से देखा गया है, जैसे कि १९१७ के बाद के काल के आधिकारिक मार्क्सवाद के साथ हुआ. यह हमेशा से ही कुछ कम या अधिक कई अन्य मोर्चों के साथ एक अंतरराष्ट्रीय वर्ग संघर्ष था. वास्तविक समाजवाद के आस्तित्व वाले देश अपने अंत तक इस संघर्ष का केवल एक मोर्चा थे, जिन्होंने इस संघर्ष की स्थितियों को, नकारात्मक साथ ही साथ सकारात्मक तौर पर मजबूत या प्रभावित किया. लेकिन इन्होंने इसके परिणामों के प्रश्न को निर्धारित या प्रभावित नहीं किया. इन देशों के वर्तमान विध्वंस ने अथवा पूँजीवादी खेमों मे इनकी वापासी ने किसी भी रूप में समाजवाद के भविष्य के सवाल को निर्धारित नहीं किया है, यह संघर्ष अभी भी जारी है और पूँजीवाद के खात्मे तक जारी रहेगा. तथापि इस देशों ने जो स्थापित किआ था वह कई में अंतरराष्ट्रीय वर्ग संघर्ष का महत्वपूर्ण मोर्चा था तथा उनके विध्वंस की माग है कि समाजवादी इनकी स्थितियों/दशाओं को समझें. यदि वे एक विकृत तथा पतित समाजवाद के बोझ को ढोने तथा इसकी कुरूपता और निर्दयता की जवाबदारी की जरूरत नहीं समझते तो इसके विध्वंस की वास्तविक मार्क्सवादी व्याख्या का भार उनके द्वारा अभी भी उठाना है ताकि हमारी जनता सच जान सके तथा भविष्य के संघर्ष के लिये सही सबक सीख सके.इस व्याख्या की जरूरत हमें सिर्फ़ यह सीखने के लिये नही है कि जो कुछ हुआ उसमें क्या सही और क्या गलत है बल्कि इसलिये और भी ज्यादा है क्योंकि हमारी व्याख्या की अनुपस्थिति में, उनकी, दुश्मनों की व्याख्या का प्रचलन जारी रहेगा और वह यह कि 'समाजवाद का पतन हो गया'. इससे भी ज्यादा हमें उनको अपना इतिहास छीन लेने से रोकने की आवश्यकता है. पूँजीवादी विचारकों ने यद्यपि 'समाजवाद के खात्मे ' की घोषणा कर दिया है और उत्तर आधुनिकतावादी तो यहाँ तक कि इतिहास से सीखने की क्षमता से ही इंकार करते हैं, अक्टूबर का चित्रण करने में व्यस्त हैं. जनता की उपलब्धियों के एक पूरे युग में जो कुछ हुआ वह इतिहास में और कुछ नहीं बल्कि एक मंहगा विचलन था.
जारी
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