24 जनवरी 2008

शामिलः-

हाशिया वाले रेयाज भाई की यह कविता आज के समय में लिखे जा रहे साहित्य से हट कर छत्तीसगढ़ के समय और संघर्ष को व्याख्यायित करती है| जब छत्तीसगढ़ में जनसंघर्ष चल रहा है, या यूं कहें की युद्ध चल रहा है, ऐसी स्थिती में छत्तीसगढ़ के लेखक अपनी भाषा के गुल खिला रहें है, और चटकारे लेकर लिख रहें है, उनकी पक्षधरता भी दिख रही है, किसी घटना पर कुछ न बोलने की| चाहे वह सलवा जुडुम हो या विनायक सेन की गिरफ्तारी, शायद उन्हे डर है सत्ता से सम्मान खोने का, उन्हे परहेज है जनपक्षधर हो के लिखने का| ऐसे में रेयाज की यह कविता उनके लिये जबाब भी हो सकती है की सिर्फ लेखक बने रहने के लिये लिखना और अपने समाज काल की स्थितियों और अभिव्क्तियों से लोगों को वाकिफ कराना दोनों में अंतर है...रेयाज की साहसशील लेखनी को सलाम


तुम कहोगी
कि मैं तो कभी आया नहीं तुम्हारे गांव
सलीके से लीपे तुम्हारे आंगन में बैठ
कंकडों मिला तुम्हारा भात खाने
लाल चींटियों की चटनी के साथ
तो भला कैसे जानता हूं मैं तुम्हारा दर्द
जो मैं दूर बैठा लिख रहा हूं यह सबङ्क्ष

तुम हंसोगी
मैं यह भी जानता हूं

तुम जानो कि मैं कोई जादूगर नहीं
न तारों की भाषा पढनेवाला कोई ज्योतिषी
और रमल-इंद्रजाल का माहिर
और न ही पेशा है मेरा कविता लिखना
कि तुम्हारे बारे में ही लिख डाला, मन हुआ तो

मैं तुम्हें जानता हूं
बेहद नजदीक से
जैसे तुम्हारी कलाई में बंधा कपडा
पहचानता है तुम्हारी नब्ज की गति
और सामने का पेड
चीन्ह लेता है तुम्हारी आंखों के आंसू

मैं वह हूं
जो चीन्हता है तुम्हारा दर्द
और पहचानता है तुम्हारी लडाई को
सही कहूं
तो शामिल है उन सबमें
जो तुम्हारे आंसुओं और तुम्हारे खून से बने हैं

दूर देश में बैठा मैं
एक शहर में
बिजली-बत्तियों की रोशनी में
पढा मैंने तुम्हारे बारे में
और उस गांव के बारे में
जिसमें तुम हो
और उस धरती के बारे में
जिसके नीचे तुम्हारे लिए
बोयी जा चुकी है बारूद और मौत

सुना कि तुम्हारा गांव
अब बाघों के लिए चुन लिया गया है
तुमने सुना-देश को तुम्हारी नहीं
बाघ की जरूरत है
बाघ हैं बडे काम के जीव
वे रहेंगे
तो आयेंगे दूर देश के सैलानी
डॉलर और पाउंड लायेंगे
देश का खजाना भरेगा इससे

सैलानी आयेंगे
तो ठहरेंगे यहां
और बनेंगे इसके लिए सुंदर कमरे
रहेंगे उनमें सभ्य नौकर
सुसज्जित वरदी में
आरामदेह कमरों के बीच
जहां न मच्छर, न सांप, न बिच्छू
बिजली की रोशनी जलेगी
और हवा रहेगी मिजाज के माफिक

...वे बाघ देखने आयेंगे
और खुद बाघ बनना चाहेंगे
तुम्हारे गांव में कितनी लडकियां हैं सुगना
दस, बीस, पचास
शायद नाकाफी हैं उनके लिए
उनका मन इतने से नहीं भर सकेगा

जो बाघ देखने आते हैं
उनके पास बडा पैसा होता है
वे खरीद सकते हैं कुछ भी
जैसे खरीद ली है उन्होंने
तुम्हारी लडकियां
तुम्हारा लोहा
तुम्हारी जमीनें
तुम्हारा गांव
सरकार
...वह जमादार
जो आकर चौथी बार धमका गया तुम्हें
वह इसी बिकी हुई सरकार का
बिका हुआ नौकर है
घिनौना गोखरू
गंदा जानवर
ठीक किया जो उसकी पीठ पर
थूक दिया तुमने

आयेंगे बाघ देखने गाडियों से
चौडी सडकों पर
और सडकें तुम्हारे बाप-दादों की
जमीन तुमसे छीन कर बनायेगी
और तुम्हारी पीठ पर
लात मार कर
खदेड देगी सरकार तुम्हें
यह
तुम भी जानती हो

पर तुम नहीं जानतीं
दूसरी तरफ है बैलाडिला
सबसे सुंदर लोहा
जिसे लाद कर
ले जाती है लोहे की टेन
जापानी मालिकों के लिए
अपना लोहा
अपने लोहे की टेन
अपनी मेहनत
और उस पर मालिकाना जापान का

लेकिन तुम यह जानती हो
कि लोहा लेकर गयी टेन
जब लौटती है
तो लाती है बंदूकें
और लोहे के बूट पहने सिपाही
ताकि वे खामोश रहें
जिनकी जगह
बाघ की जरूरत है सरकार को

सुगना, तुमने सचमुच हिसाब
नहीं पढा
मगर फिर भी तुम्हें इसके लिए
हिसाब जानने की जरूरत नहीं पडी कि
सारा लोहा तो ले जाते हैं जापान के मालिक
फिर लोहे की बंदूक अपनी सरकार के पास कैसे
लोहे की टेन अपनी सरकार के पास कैसे
लोहे के बूट अपनी सरकार के पास कैसे

जो नहीं हुआ अब तक
जो न देखा-न सुना कभी
ऐसा हो रहा है
और तुम अचक्की हो
कि लडकियां सचमुच गायब हो रही हैं
कि लडके दुबलाते जा रहे हैं
कि भैंसों को जाने कौन-सा रोग लग गया है
कि पानी अब नदी में आता ही नहीं
कि शंखिनी और ढाकिनी का पानी
हो गया है भूरा
और बसाता है, जैसे लोहा
और लोग पीते हैं
तो मर जाते हैं

तुम्हारी नदी
तुम्हारी धरती
तुम्हारा जंगल
और राज करेंगे
बाघ को देखने-दिखानेवाले
दिल्ली-लंदन में बैठे लोग

ये बाघ वाकई बडे काम के जीव हैं
कि उनका नाम दर्ज है संविधान तक में
और तुम्हारा कहीं नहीं
उस फेहरिस्त में भी नहीं
जो उजडनेवाले इस गांव के बाशिंदों की है.

बाघ भरते हैं खजाना देश का
तुम क्या भरती हो देश के खजाने में सुगना
उल्टे जन्म देती हो ऐसे बच्चे
जो साहबों के सपने में
खौफ की तरह आते हैं-बाघ बन कर

सांझ ढल रही है तुम्हारी टाटी में
और मैं जानता हूं
कि मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं
केवल आज भर के लिए नहीं
हमेशा के लिए
तुम्हारे आंसुओं और खून से बने
दूसरे सभी लोगों की तरह
उनमें से एक

हम जानते हैं
कि हम खुशी हैं
और मुस्कुराहट हैं
और सबेरा हैं
हम दीवार के उस पार का वह विस्तार हैं
जो इस सांझ के बाद उगेगा

हम लडेंगे
हम इसलिए लडेंगे कि
तुम्हारे लिए
एक नया संविधान बना सकें
जिसमें बाघों का नहीं
तुम्हारा नाम होगा, तुम्हारा अपना नाम
और हर उस आदमी का नाम
जो तुम्हारे आंसुओं
और तुम्हारे खून में से था

जिसने तुम्हें बनाया
और जिसे तुमने बनाया
सारी दुनिया के आंसुओं और खून से बने
वे सारे लोग होंगे
अपने-अपने नामों के साथ
तुम्हारे संविधान में

जो जिये और फंफूंद लगी रोटी की तरह
फेंक दिये गये, वे भी
और जिन्होंने आरे की तरह
काट डाला रात का अंधेरा
और निकाल लाये सूरज

जो लडे और मारे गये
जो जगे रहे और जिन्होंने सपने देखे
उस सबके नाम के साथ
तुम्हारे गांव का नाम
और तुम्हारा आंगन
तुम्हारी भैंस
और तुम्हारे खेत, जंगल
पगडंडी,
नदी की ओट का वह पत्थर
जो तुम्हारे नहाने की जगह था
और तेंदू के पेड की वह जड
जिस पर बैठ कर तुम गुनगुनाती थीं कभी
वे सब उस किताब में होंगे एक दिन
तुम्हारे हाथों में

तुम्हारे आंसू
तुम्हारा खून
तुम्हारा लोहा
और तुम्हारा प्यार

...हम यह सब करेंगे
वादा रहा.

3 टिप्‍पणियां:

  1. ह्म्म, छत्तीसगढ़ के लेखक कम से कम सिर्फ़ एक पक्ष से सहानुभूति नही दिखा रहे। छत्तीसगढ़ के लेखक यह कहते हैं कि सलवा जुडूगलत है तो यह कहने का भी दम रखते हैं कि नक्सल हिंसा और भी गलत है।
    दिक्कत ऐसे लोगों से ज्यादा है जो खुद तो छत्तीसगढ़ में नही है लेकिन दूर बैठकर गाल बजाए जा रहे होते हैं कि सलावा जुडूम गलत है।
    नक्सल हिंसा मे जो निर्दोष मासूममारे जा रहे हैं उन पर इन गाल बजाने वालों के मुंह क्यों नही खुलते कभी?

    वैसे आपने जो कविता की भूमिका मे जो लिखा है उससे जाहिर होता है कि जो आपके कहे अनुसार न लिखे या आपके कहे अनुसार सहानुभूति न दर्शाए वह सिरे से गलत ही है, क्या सचमुच ऐसा है।

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  2. शुक्रिया, कविता तो दिल को ढूने वाली है पर उपर भूमिका में छत्तिसगढिया लेखकों के प्रति आपके मन में भरे गुबार को लिखकर कविता का मजा किरकिरा कर दिया । आप हमसे प्रायोजित लेखन करना चाहते हैं यह ठीक नहीं । आप मजे से लिखें, करें चिंता हमारे प्रदेश की, यह हमारा सौभाग्‍य है । हमें जहां लगेगा कुछ लिखना लाजमी है हम अवश्‍य लिखेंगें । पर ऐसा लिखकर वैमनुष्‍यता बढाने का कार्य न करें तो ज्‍यादा अच्‍छा ।

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  3. ache se aapne ek hi jagh par kafi jankariya apne blog ke madhyam se uplabdh kar di. badiya he. favoirtes me saamil kar raha hoon. sirf apko kholne par hi me tamaam jaghpahoonchjaaunga jahan jaana chahata hoon

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