01 नवंबर 2007

भगत सिंह के आइने में भारत


भगत सिंह के विचारों की बढ़ती प्रासंगिकता और आम आदमी का आज के समय में अलग-अलग मुद्दे पर संघर्ष आज उनके विचारों को और ज्यादा प्रासंगिक बना देता है ऐसी स्थिति मे हम दख़ल में भगत सिंह के दस्तावेजों की श्रिंखला की पहली कड़ी मे ये आलेख प्रस्तुत कर रहे है

दुनिया के सामने भगत सिंह का जो चेहरा जाने-अनजाने में रखा गया है वह किसी जुनूनी व मतवाले देश भक्त का है। भगत सिंह के विचार, उनके दर्शन को लोगों से दूर रखा गया पर वक्त ने देश को उस मुकाम पर ला खड़ा किया है जहॉ भगत सिंह के विचार और प्रासंगिक होते दिख रहे है। जिस आम जन की बात भगत सिंह करते थे वह मंहगाई, गरीबी, भूख से पीड़ीत होकर अपने को हाशिये पर महसूस कर रहा है। वह देश में बनाये गये कानूनों , नियमों, की पक्षधरता को देखते हुए उनके प्रतिरोध में खड़ा हो रहा है।
देश को अग्रेजी सत्ता से मुक्त होनें के साठ साल बाद भी देश का आम जन उस आजादी को नहीं महसूस कर पर रहा है। जो भगत सिंह, पेरियार, अम्बेडकर का सपना था। आज वे स्थितियां जिनका भगत सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय आंकलन किया था लोगों के सामने हैं। आंदोलन के चरित्र को देखते हुए भगत सिंह ने कहा था कि काग्रेस के नेतृत्व में जो आजादी लड़ी जा रही है उसका लक्ष्य व्यापक जन का इस्तेमाल करके देशी धनिक वर्ग के लिये सत्ता हासिल करना है। यही कारण था कि देश का धनिक वर्ग गांधी के साथ था। उसे पता था कि जब तक देश को अंग्रजी सत्ता से मुक्ति नहीं मिलेगी तब तक बाजार में उनके सिक्के जम नहीं सकेगें। आखिरकार हुआ भी वही जिसे भगत सिंह गोरे अंग्रजों से मुक्ति व काले अंग्रजों के शासन की बात करते थे। आज आम आदमी इस शासन तल में अपनी भागीदादी महसूस नहीं कर रहा है। उसके लिये आज भी अंग्रजों के द्वारा दमन के लिये बनें नियम-कानून नाम बदलकर या उसी स्थिति में लागू किये जा रहे हैं। आजादी के साठ वर्ष बाद सरकारे आफ्सा, पोटा, राज्य जन सुरक्षा अधिनियम जैसे दमन कानूनों की जरूरत पड़ रही है क्योंकि जन प्रतिरोध का उभार लगातार बढ़ रहा है।
आजादी के बाद कई मामलों में स्थितियां ओर भी विद्रूप हुई है। जहॉ सन् 42 में केरल के वायनाड जिले में इक्का-दुक्का किसानों की मौतें होती थी वहॉ आज स्थिति ये है कि देश के विभिन्न राज्यों में हजारों हजार की संख्या में किसान आत्महत्यायें कर रहे है। आज भी देश में काला हांडी जैसी जगह है बल्कि काला हांडी से एक कदम ऊपर देश की एक बड़ी आबादी है। जो जीवन की मूलभूत जरूरतों से जुझ रही है। जो इसलिये भी जिन्दा रखी गयी है ताकि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये वह सस्ते में श्रम को बेंच सके। इसके बावजूद भी आज एक बड़े युवा वर्ग के लिये करने को काम नहीं है। कारणवस वह किसी भी तरह का अपराध करनें को तैयार है। भारत एक बड़ी युवा संख्या की विकल्पहीन दुनियां है। ऐसी स्थिति में यह बात सच साबित होती है कि भगत सिंह जिस आजादी की तीमारदारी करते थे वह आजादी देश को नही मिल पायी है।
भगत सिंह देश, दुनिया को लेकर एक मुकम्मल समाज बनानें का सपना देखते थे जिसमें वे अन्तिम आदमी को आगे नहीं लाना चाहते थे बल्कि सबको बराबरी पर लाना चाहते थे। जहॉ जाति, धर्म भाषा के आधार पर समाज का विभाजन न हों। वे शोषण व लूट खसोट पर टिके समाज को खत्म करना चाहते थे, वे किसी प्रकार के भेदभाव को खारिज करते थे। उनका मानना था कि दुनियां में अधिकांश बुराइयों की जड़ निजी सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति को शोषण व भ्रष्टाचार के जरिये जुटाया जाता है जिसके सुरक्षा के लिये शासन की जरूरत पड़ती है यानि निजी संम्पत्ति के ही कारण समाज में शासन की जरूरत पड़ती है।
एक लम्बे अर्से तक भगत सिंह को आतंकी की नजर से देखा जाता रहा जिसको भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ विचार-विर्मश करते हुए कहा कि मैं आतंकी नहीं हूं। आंतकी वे होते है जिनके पास समस्या के समाधान की क्रांतिकारी चेतना नही होती। हमारे भीतर क्रांतिकारी चिंतन के पकड़ के आभाव की अभिव्यक्ति ही आतंकवाद है पर क्रांतिकारी चेतना को हिंसा से कतई नही जोड़ा जाना चाहिये, हिंसा का प्रयोग विशेष परिस्थिति में ही करना जायज है वर्ना किसी जन आंदोलन का मुख्य-हथियार अहिंसा ही होनी चाहिये। हिंसा-अहिंसा से किसी व्यक्ति को आंतकी नही माना जा सकता। हमें उसकी नीयति को पहचानना होगा क्योंकि यदि रावण का सीता हरण आतंक था तो क्या राम का रावण वध भी आतंक माना जाय। अपने अल्प कालिक जीवन के दौरान भगत सिंह ने कई विषयों पर लिखा, पढ़ा व सोचा समझा, और यह कहते गये कि-
हवा में रहेगी, मेरे ख्याल की बिजली।
ये मुस्ते खाक है फानी रहे, रहे न रहे।।

1 टिप्पणी:

  1. एकदम सच कहा कि आंतकी वे होते है जिनके पास समस्या के समाधान की क्रांतिकारी चेतना नही होती।

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