20 नवंबर 2007

54 करोड़ की विकल्पहीन दुनिया :-

एक आंकडे़ के मुताबिक भारत 54 करोड़ युवाओं की आबादी का देश है जो कि दुनिया में किसी भी देश के युवा आबादी की सबसे बड़ी संख्या है। 54 करोड़ युवा मस्तिष्क, एक अरब आठ करोड़ ( देश की सम्पूर्ण जनसंख्या से कुछ ज्यादा ही) हाथों वाला देश, देश की सबसे बड़ी शक्ति हो सकती है! यह शक्ति देश को बना सकती है और तबाह भी कर सकती है। बनाने व तबाह करने में इन हाथों को औजार की जरूरत है। इन हाथों में औजारों के चेहरे देश के भविष्य का चेहरा तय करेंगे। इनके उदर की भूख इस व्यवस्था में चारे की तलाश करेगी। इनका आक्रोश विकल्प को ढूंढ़ निकालेगा। देश के दो असमान बंटे ध्रुवों में पुल बनाकर रास्ता तय करने की कोई गुजांइश नहीं दिखती। अत: इस खाई को पाट कर समतल किया जाय, यह फैसला युवा आबादी की बहुसंख्या तय करेगी।
युवा वर्ग में शिक्षा की स्थिति व शिक्षा प्राप्त करने के जो कारण हैं उसका मनोविज्ञान शिक्षा प्रणालियों व पाठ्यक्रमों से तय होता है। शिक्षा के द्वारा समय-काल व हित को देखते हुए हमेशा लोगों का मनोभाव बनाया जाता रहा है। आज जो शिक्षा दी जा रही है चाहे वह मीडिया के द्वारा या फिर शिक्षण संस्थानों के द्वारा उसके पीछे के हित को हमेशा समझना होगा यद्यपि यह अलग बात है कि देश का मात्र 4% युवा ही विश्वविद्यालय के प्रांगण की सूरत देख पाता है पर देश की व्यवस्था प्रणाली को पूरी संचालित यही वर्ग कर रहा है। उच्च शिक्षा पाने वाला यह अल्प वर्ग आज किस वर्गों से आ रहा है यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शिक्षा कुछ खास घरानों में कैद होती जा रही है बल्कि शिक्षा के निजीकरण ने इस दायरे को और संकुचित करने का कार्य किया हैं शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार उन्हीं हाथों में कैद होते जा रहे हैं जिनके पास पहले से पैसे हैं, रोजगार हैं। तकनीकी शिक्षा, विज्ञान की शिक्षा या फिर सामाजिक विषयों कि शिक्षा मौलिक चितंन की परंपरा को बढ़ावा देकर समाज सापेक्ष बनाने के बजाय कुछ वगो के हित में अपनी भूमिका अदा कर रही है जिसका एक और उद्देश्य नौकरी पाने और निजी संपत्ति को बढ़ावा देने की योग्यता हासिल करना मात्र रह गया है। ऐसा करने में पाठ्यक्रमों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इन पाठ्क्रमों को तय करने वाले लोगों का हित व उद्देश्य इससे जुड़ा हुआ है। यह वर्ग इन पाठ्यक्रमों के जरिये अपने और आम युवा वर्ग के बीच एक मध्यस्थ तैयार कर रहा है। अपनी भाषा के मुताबिक इस वर्ग का मनोविज्ञान बना रहा है। शिक्षा मानव समाज के सभी पहलुओं के विकास के बजाय निजी विकास व व्यक्तिवाद के बढ़ावा देने वाली होती जा रही है, जिसका असर शहरी मèयम वर्ग में साफ तौर पर दिखाई पड़ता है, वह संवेदनहीन होता जा रहा है। समाज के निचले पायदान पर खड़ा आदमी उसके लिये जरूरत के मुताबिक सिर्फ मशीन है। उसके दुख, शोषण, अधिकार, निजता के स्वप्न में बहुत दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ते। मानसिक रूप से इनके साथ वह खड़े होने को भी तैयार नहीं है। यह निजीगत मुनाफे का भाव शिक्षा प्रणाली के जरिये मानव के मशीनीकरण की एक प्रक्रिया है। जो वेदना, करूणा, सहानुभूति जैसे मूल्यों को कमजोर बना रहा है। तकनीक, विज्ञान चिकित्सा में हो रहे शोध सामाजिक कल्याण के बजाय मुनाफे को ध्यान में रख कर किये जा रहे हैं। इसी पर दुनिया का बड़ा बजार टिका है।
शिक्षा व रोजगार के सवाल को एक दूसरे से जोड़ कर देखा जाता है और कुछ विषयों को लेकर बूम जैसी बातें की जाती है जिसमें मीडिया, तकनीक, मैनेजमेंट आदि विषय शामिल है। यह बूम क्या है ? इसे समझने की जरूरत है समाज के इस एक पक्षीय विकास में, जरूरत के मुताबिक कुछ खास तरह की योग्यता रखने वालों की जरूरत है ऐसी जरूरतें नयी तकनीक के कारण पैदा होती है। अत: अधिकाधिक संख्या में इस योग्यता या ज्ञान को बढ़ावा देकर ज्यादा से ज्यादा मानव संसाधन तैयार किया जाता है ताकि उन्हें बार्गेन कर सस्ती मजदूरी देकर मुनाफा कमाया जा सके। बूम जैसे फलसफे सिर्फ मुनाफे की बढ़ोत्तरी के लिये बनाये गये है। दूसरे पक्ष में उसका फायदा यह होता है कि बड़े-बड़े निजी संस्थान खोल कर अधिकाधिक फीस ली जाती है और धीरे-धीरे इस बूम में कूदनें वाले युवाओं की छलांग छोटी होती जाती है।

युवा और राजनीति :-
युवाओं में राजनीति एक अस्पृश्य शब्द है। यह माना जाता है कि राजनिति और शिक्षा दो अलग-अलग ध्रुव हैं। शिक्षण संस्थानों से राजनीति को धीरे- धीरे और दूर किया जा रहा है बी.एच.यू. जिसे एिशया के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान के नाम से जिसे जाना जाता है, छात्र-संघ को बैन रख किसी तरह की राजनीतिक गतिविधियां रोकने के लिये कई वषोZं से धारा 144 लगा दी गयी है। जिसमें 5 लोग एक साथ इकट्ठा भी नहीं हो सकते और दूसरी तरफ प्रशासन के सहयोग से संघ की शाखायें चलायी जाती है अन्य संस्थानों में राजनीति को संसदीय राजनीति से ही जोड़ कर देखा जा रहा है जिसका समाज से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।
विश्वविद्यालय की राजनीति को लूट-अत्याचार का कैम्प बनाकर¡ इसे संसदवादी राजनीति के ट्रेंनिग कैम्प के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। जहा¡ विश्वविद्यालय में िशक्षा प्राप्त राजनीतिक युवा को समाज के साथ जुड़ना चाहिये वहीं इसके विपरीत वह जनराजनीति को भूल जाता है। इस तरह से िशक्षा और राजनीति को अलग कर युवा वर्ग का गैर राजनीतिकरण किया जा रहा है। शिक्षण संस्थानों में चुनावों के बंद करने के पीछे एक कारण यह भी है कि संस्थानों में यदि राजनीति होगी तो जनपक्षीय राजनीति के भी उभार की आशंका बनी रह जाती है अत: किसी भी तरह राजनीति को शिक्षण संस्थानों में वर्जित किया जा रहा है।

मीडिया का प्रभाव :-
मीडिया के विभिन्न माध्यमों ने अपने-अपने तरह से युवा वर्ग को प्रभावित करने का प्रयास किया है फिल्मों की दुनिया में दिखने वाला युवा एक उच्च वर्ग का है जिसके पास गाड़ी है, समय की सबसे कीमती मोबाइल है, जीवन जीने की अपनी एक अलग शैली है, साथ में एक प्रेमी अवश्य है जिसमें दोयम दर्जे का प्रेम पाने के लिये उसे तमाम ताकतों से जूझना पड़ता है। यह एक सच हो सकता है पर उसकी जीवन शैली युवा वर्ग को प्रभावित कर अपनाने के लिये प्रेरित करती है। अपने शातिराने प्रेम मे वह समाज की समस्याओं से बहुत दूर खड़ा दिखता है। भविष्य में यदि इन फिल्मों को कोई इतिहासविद् आधार बनाकर समय को परिभाषित करेगा तो प्रेम समाज की सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर आयेगी जहा¡ से रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार में जूझता समाज गायब ही दिखता है। ये फिल्मों के चरित्र किस युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहें है। समाज के मूल्यों को इतना बदल दिया गया है कि भगत सिंह, महात्मा गांधी को रूमानी अंदाज में परोस कर सामने लाने की जरूरत महसूस हो रही है और लाया भी जा रहा है। विज्ञापन ने इच्छाओं को आवश्यकताओं में तब्दील कर दिया है मानसिक रूप से सभी वर्गों की जरूरतों में समानता स्थापित करने का काम किया जा रहा है। जहा¡ बिना मोबाइल, परयूम व अन्य कई चीजें जरूरत बनती जा रही हैं। इन्हें पूरा करने के लिये वह विवश है। विज्ञापनों ने जिस चालाकी के साथ यह सोच डाली है उसमें वो विशेष वस्तु के विज्ञापनों के लिये विशेष माडल व पीढ़ी का चुनाव कर रही है शीतल पेय, ब्रांडेड कपड़े, वाइन, बाइक, व मोटर गािड़यों का विज्ञापन किसी पापुलर युवा ब्रांड द्वारा करवा रही है उसके साथ एक विशेष वेश-भूषा में महिला ब्रांड के रूप में अभिनय करती है जिसमें विज्ञापन परोक्ष रूप से यह कहता हुआ दिखता है कि यदि आप के पास फला ब्रांड है तो इस तरह की लड़की भी आपके साथ हो सकती है या मिल सकती है।

विकल्प हीन दुनिया :-
पूंजी प्रधान इस युग में युवा पैसे के लिये कुछ भी करने को तैयार है, किसी भी तरह का रोजगार जहा¡ उसे पैसा मिल सकें, उसकी एक बड़ी उपलब्धियाँ के तौर पर यह है चाहे वह डोर-टु-डोर जा कर कंपनियों में हुए अति उत्पादन की खपत करे या काल सेंटरों में वक्त बेवक्त अपनी श्रम देकर तनाव भरी जिंदगी जिये। समाज के विकास की अवधारणा को उसने स्व विकास में ढाल लिया है पर इन समस्त बिंदुओं में सीमित अवसर के बीच एक स्थान बनाता है तो दूसरों की कब्र खोदकर, तीसरे को धक्का देकर। ऐसे में सम्पूर्ण युवा वर्ग के सामने एक अंधेरी दुनिया है जिसे बिना बदले कोई विकल्प सामने नहीं दिखता।

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