28 नवंबर 2007
भूमंडलीकरण एक प्रचार :-
ए.वी.वर्धन
इन दिनों भूमंडलीकरण एक बहु-प्रचारित अवधारणा है। यह आर्थिक विषयों पर सभी लेखन तथा बातचीत से सामने आ जाता है। इसे एक बड़ी वास्तविकता के रूप में स्वीकार करने के लिए दबाव बढ़ रहा है। यह दलील दी जाती है कि इससे बचा नहीं जा सकता है। स्पष्टत: इसका उद्देश्य सहज सत्य बतलाना नहीं है कि हम सभी `एक ही भूमंडल´ में रहते है। यह भौगोलिक तथ्य तो मंद बुद्वि के लिए भी साफ है। न ही इसका उद्देश्य इस नवीनतम सत्य को सामने लाना है कि संचार प्रौद्योगिकी में क्रांति ने दूरियों को काफी कम कर दिया है और विश्व एक `भूमंडलीय गांव´ बन गया है।
भूमंडलीकरण एक नीति-एक आर्थिक, सामाजिक तथा राजनितिक नीति का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक ऐसी नीति है जिसकी कुछ शक्तिशाली हितों द्वारा आक्रामक रूप से वकालत की जाती है और उन लोगों के गले में जबर्दस्ती उतारने का प्रयास किया जाता है जो असहाय हो कर इसे स्वीकार कर सकते हैं या इसका विरोध करने का प्रयास कर सकते हैं, हालांकि उन्हें अधिक सफलता नहीं मिल सकती हैं। ऐसे भी लोग हैं जो यह कहते हैं कि आप इसे उतना ही पीछे कर सकते हैं जितना आप किसी लहर को पीछे कर सकते हैं। यह देर-सबेर प्रत्येक देश को अपने आगोश में ले लेगा।
भूमंडलीकरण वास्तव में `नव-उदारवादी´ की संतति हो सकता है और अपने अभिभावक की भांति यह भी एक नीति है जिसे साम्राज्यवादी देशों द्वारा आगे बढ़ाया जाता है और वह तीसरी दुनिया के देशों के खिलाफ नििर्दष्ट है जिन्हें वह अपना िशकार बनाता है। तीन बहनें- उदारवाद, निजीकरण और भूमंडलीकरण साथ-साथ चलती हैं।
तीसरी दुनिया के देशों ने पिछली दो या तीन सदियों से साम्राज्यवाद के प्रभुत्व के तहत तकलीफें भोगी हैं। उन्होंने अपने उननिवेशी स्वामियों से पिछड़ेपन की विरासत प्राप्त की है। 20वीं सदी के मध्य या उत्तरार्ध के दौरान स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से वे अपने को कठोर स्थिति में पाते हैं, खासकर पूंजी तथा प्रौद्योगिकी के मामले में जिसकी विकास के लिए जरूरत है। वे हर क्षेत्र में अर्धविकास से पीिड़त हैं। भयंकर गरीबी, उच्च बेकारी, निरक्षरता, स्वास्थ्य-देखभाल का अभाव ही उनकी नियति बन गयी है।
द्वितीय विश्वययुद्ध की समाप्ति के बाद जो इतिहास का सर्वाधिकार विध्वंसकारी युद्ध था- विजेता ब्रेटनवूड्स सम्मेलन में शामिल हुए और उन्होंने पुनिर्नर्माण तथा विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों की स्थापना की। इन संस्थानों पर विकसित पूंजीवादी देशों खासकर अमरीका का प्रभुत्व कायम हो गया । जल्द ही वे यह निर्देश देने के औजार हो गये कि अपनी जरूरतों के लिए इन संस्थाओं से कर्ज लेने वाले ग्राहक देशों की किस तरह की आर्थिक नीतियां अपनानी चाहिए। कर्जों के साथ लगातार `शर्तो´ को भी थोप दिया गया। इसके साथ ही उन्होंने एक पूर्ण संरचनात्मक समायाजोन कार्यक्रम को जोड़ दिया जो सभी विकासशील देशों के लिए एक रामबाण हो गया, चाहे उनकी खास विशेषता जो भी हो।
संयुक्त राष्ट्र ने एक `नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था´ की रूपरेखा तैयार की। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ऐसी व्यवस्था की बातें बंद हो गयीं और उसकी जगह अमरीका निर्देिशत `नयी आर्थिक व्यवस्था´ की बात की जाने लगी। ` नव- उदरतावाद ´ का आर्थिक दशZन इस क्षेत्र में प्रभावी होने लगा। `मुक्त बाजार´ प्रतिस्पर्धा, निजी उद्यम, संरचनात्मक समायोजन आदि की बातों के आवरण में तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों जो अमरीका तथा ग्रुप-8 देशों से काम करती हैं, नवगठित विश्व व्यापार संगठन के औजार साथ जो असमान गैट संधि द्वारा सामने लाया गया, साम्राज्यवादी देशों ने तीसरी दुनिया के देशों की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर नियंत्रण करने का निष्ठुर अभियान शुरू कर दिया है। यह और कुछ नहीं बल्कि नये रूप में, नये तरीके से समकालीन विश्व स्थिति में नव उपनिवेशी शोषण थोपने का एक तरीका था। उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडीकरण प्रिय मुहावरा हो गये हैं।
तथ्य यह साबित कर रहे हैं कि इन सभी नीतियों ने वस्तुत: गरीबी, बेकारी, निरक्षरता तथा बीमारी की समस्याओं को और अधिक गहरा किया है जिनसे विकासशील देशा लगातार पीडित रहे हैं। इन नीतियों ने अमीर तथा गरीब देशों के बीच एवं प्रत्येेक देश में अमीर तथा गरीब के बीच खाई को बढ़ाया है।
विश्व व्यापार संगठन की कार्यविधि के जरिये सभी देशों पर निवेश पर बहुपक्षीय समझौते को थोपने के प्रयास का उद्देश्य भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाना एवं आगे बढ़ाना है जिसकी पहल अमरीका ने यूरोपीय यूनियन तथा आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के समर्थन से की है। वह विकासशील देशों की आर्थिक संप्रभुता का भितरघात करेगा।
नव-उदार भूमंडलीकरण एक अराजक विश्व का निर्माण कर रहा है जो पूंजीवाद, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं विश्व व्यापार संगठन के अंधे कानूनों की दया पर निर्भर रहेंगें। क्या भूमंडलीकरण यह काम कर सकता है ? या मानव जाति की बुनियादी समस्याओं का समाधान कर सकता है ? ऐसा भूमंडलीकरण आर्थिक संकट ही लायेगी जो अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले लेगा। हम ऐसे संकट के पूर्व संकेतों को देख रहे हैं।
इस तरह का भूमंडलीकरण नििश्चत तौर से अधिकांश देशों में मेहनतकश जनता की उपलब्धियों की निष्फल कर देगा।
हम केवल एक भूमंडलीकरण की परिकल्पना कर सकते हैं वह है समाजवादी भूमंडलीकरण जिसकी माक्र्स ने 150 वषZ पहले परिकल्पना की थी। लेकिन वह अभी काफी दूर है। पर इसके लिए संघषZ को विकसित किया जाना है। जन- प्रतिरोध तथा सभी विकासशील देशों के संयुक्त रूख ने नव-उदावादी भूमंडलीेकरण के प्रस्तावकों की योजनाओं को पराजित किया जा सकता है और एक नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था पर आधारित एक भूमंडलीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
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it is agood article but it is a lafafjee ........every body can see the w.b. and the cherecter of a b vardhan....
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