अतीत से कथाओं में,
कथाओं से मिथक में
और समय अनुपस्थित हो गया है
इन मिथकों के बीच से
समकालीन कहाँ रह गया है कुछ भी
इसूरत और बाथे की लाशें
पहुँच गयी हैं मुसोलिनी के कदमों के नीचे
और मुसोलिनी पहुँच गया है मनु के आश्रम में
और यह सब पहुँच गया है पाठ्यक्रमों में।
हमारी संस्कृतियाँ मुक्त हैं सदमों से,
हमारी संस्कृतियाँ मुक्त हैं सदमों से,
सदमें मुक्त हैं संवेदना से,
संवेदना दूर है विवेक से,
विवेक दूर है कर्म से.....
चीजें कितनी तेजी से जा रही हैं अतीत में
और हम सब कुछ समय के एक ही फ्रेम में बैठाकर निश्चिन्त हो रहे हैं।
भिवंडी की अधजली आत्मायें,
भिवंडी की अधजली आत्मायें,
सिंधुघाटी की निस्तब्धतानिस्संगता और वैराग्य के पर्दे में दफ़्न है।इतिहास!
अब तुम्हें ही बनाना होगा समकालीन को ''समकालीन''
अंशु मालवीय
अब तुम्हें ही बनाना होगा समकालीन को ''समकालीन''
अंशु मालवीय
अच्छी कविता. लेकिन अंत में ज़रा सा विरोधाभास लगा. सिन्धु घाटी की सभ्यता की बड़ी ही वाईब्रेंट छवि मेरे मन में है. जितना सा मैंने पढ़ा है, वह सच मुच एक ज़िन्दा, और संघर्ष शील समाज था,जहाँ रिचुअल्स के भी महज़ भौतिक इम्प्लिकेशंज़ थे. इतिहास के उस खण्ड को वैराग्य, निःस्तब्धता, के साथ जोड़ना अखरा.
जवाब देंहटाएंया तो मुझे वह इतिहास गलत पढ़ाया गया था. या फिर में कवि की बात का मर्म न समझ सका....